swadeshi jagran manch logo

धीरे-धीरे पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था

सभी घटकों पर ध्यान देने के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में सितम्बर 2020 माह से सकारात्मक बढोत्तरी देखी जा रही है। यदि मौसम व प्रकृति ने सब कुछ ठीक रखा तो अर्थव्यवस्था में मजबूती आती चली जायेगी तथा यह मजबूत स्थाई प्रकृति की होगी। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

वर्ष 2020 की प्रथम तिमाही से ही चीन से आये कोरोना वायरस से संक्रमित कोविड़ 19 के फैलने से जहां विश्व भर की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा वहीं भारत की अर्थव्यवस्था पर भी व्यापक विपरीत प्रभाव पड़ा। अर्थव्यवस्था को यह झटका देश के संसाधनों के दुरूपयोग अथवा किसी सरकारी नीति के गलत होने से नहीं हुआ अपितु लम्बे समय तक लागू होने वाले लॉकड़ाउन से बंद हुए बाजार व उद्योगों के कारण हुआ, वहीं सरकार ने बड़ी मात्रा में करोड़ां लोगों को मुफ्त में गेंहू, चावल, चना व दाल इत्यादि का वितरण लगातार कई महीनों तक करवाया तथा स्वास्थ्य व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए चिकित्सा पर व्यय किया गया जिसका प्रभाव यह पड़ा कि देश का आर्थिक विकास बहुत धीमा हो गया। विपक्षी दलों ने अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार का ठीकरा केन्द्र सरकार के सिर पर फोड़ने की प्रत्येक सम्भव कोशिश की परन्तु वे अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाये तथा जनता ने परिस्थितियों को समझते हुए सरकार को प्रत्येक निर्णय में सरकार का साथ दिया।

कोरोना वायरस का प्रभाव अभी लम्बे समय तक चलने वाला है परन्तु नवम्बर 2020 आते आते आर्थिक विकास का गति बढ़ती जा रही है। हालांकि खपत में बढ़ोत्तरी और कारोबारी गतिविघियां भी अभी तक पूरी रफ्तार से नहीं चल सकी है। केन्द्र सरकार ने राहत का 20 लाख करोड़ रुपये का एक पैकेज मई 2020 में दे दिया। वहीं भारतीय रिजर्व बैंक भी मार्च 2020 से अब तक ब्याज दरों में 115 बेसिक पांइटस की कमी कर चुका है। अभी सरकार यह भी निरन्तर संकेत दे रही है कि अर्थव्यवस्था को बुरे प्रभाव से बचाने हेतु और भी कदम उठाये जा सकते है।

कोरोना के कारण लाखों लोगों का रोजगार छिन गया था जिसमें अधिकांश वे लोग है जो छोटा-मोटा कार्य करके प्रतिदिन रोजी रोटी कमाते थे। यदि कोरोना का दूसरा आक्रमण प्रभावकारी ढंग से नहीं रोका गया तो सरकारी व्यय बढ़ जायेगा, मंहगाई भी बढ़ जायेगी तथा सरकार को व्यापक आर्थिक तंगी की मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। 18-27 अगस्त 2020 के बीच 50 अर्थशास्त्रियों की ओर से किये गये सर्वे के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 18.3 प्रतिशत सिकुड़ गई जबकि इससे पूर्व 20 प्रतिशत का अनुमान लगाया गया था। अर्थव्यवस्था की यह स्थिति 1990 के बाद सबसे खराब दौर से गुजर रही है।

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी भारत की अर्थव्यवस्था में 2021 की प्रथम तिमाही में ही 3.0 प्रतिशत सुधार के संकेत प्राप्त होने की आशा है तथा मार्च 2021 तक आर्थिक वृद्धि दर 6 प्रतिशत से कम ही रहने कर उम्मीद है। अच्छे मानसून के कारण सुधार के कुछ संकेत देखने को मिल रहे है। परंतु कारोबार में अभी भी कमजोरी बनी हुई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंड़िया भी बढ़ती मंहगाई से चिन्तित है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगली तिमाही में रिजर्व बैंक 25 बेसिस पांइटस की और कमी लाकर अपने रेपो रेट को 3.75 प्रतिशत कर सकता है। 50 में से 20 अर्थशास्त्रियों का यह भी अनुमान है कि इन हालातों में रिजर्व बैंक अर्थवव्यवस्था में ज्यादा दखल नहीं देगा। कुछ अर्थशास्त्री यह भी मानते है कि अर्थव्यवस्था को सुधारने में अभी दो वर्ष का समय और लग सकता है शर्त यह कि लॉकड़ाउन के उपरान्त रफ्तार पकड़ती अर्थव्यवस्था में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए।

देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कोविड़ 19 के मामले निरंतर कम होते जा रहे है। वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार जीड़ीपी में 44 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले देश के आठ राज्यों में कोरोना से रिकवरी दर काफी तेजी से बढ़ रही है। तमिलनाड़ू, आंध्र प्रदेश, बिहार में रिकवरी दर 90 प्रतिशत हो गई है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बंगाल, गुजरात, राजस्थान में रिकवरी दर 80 प्रतिशत हो गई है। परन्तु रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना महामारी के अभी समाप्त होने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे है।

इस समय रिकवरी से ज्यादा से ज्यादा उपाय करके कोरोना संक्रमण की दर को बहुत न्यून करने के उपाय किये जाने चाहिए इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है तथा अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए इससे संबंधित पक्षों को सामने आने की आवश्यकता है। लोगों, सामान व माल की आवाजाही पर प्रतिबंध लगभग हटा लिया गया है। सितम्बर 2020 माह से पैट्रोल, बिजली की खपत बढ़ने का संकेत यह कि अब उद्योगों में उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है तथा व्यापारिक कार्यो से लोगों का आना जाना बढ़ता जा रहा है। जीएसटी में बढ़ोत्तरी से भी आर्थिक स्तर पर रिकवरी के संकेत मिल रहे है।

वित्त मंत्रालय एमएसएमई क्षेत्र से बहुत उम्मीद लगाये बैठा है क्योंकि अक्टूबर व नवम्बर 2020 माह में त्यौहारों का मौसम है तथा केन्द्र सरकार ने अपने कर्मचारियों को भारी आर्थिक सहायता भी दी है। अभी भी भारत का प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग दबाब में है तथा विश्व की अर्थव्यवस्था में अपना स्थान बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयासरत् है। रिजर्व बैंक की सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 (कोरोना से पूर्व) भारतीय उपभोक्ता का विश्वास 115 अंक था जो मई 2020 में 98 अंक रह गया तो इससे यह समझा गया था कि अर्थव्यवस्था की मौलिक स्थिति विपरीत दिशा में है।

वर्तमान में देश का चालू खाता सुदृढ़ स्थिति में दिखाई दे रहा है। परन्तु इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि देश के निर्यात की गिरावट मार्च 2020 से पूर्व हो गई थी। 2019-20 में निर्यात में गिरावट पांच प्रतिशत थी अब कोरोना के कारण यह गिरावट वर्तमान में भी जारी है। कच्चे माल के निर्यात में वृद्धि हुई है। अतः वर्तमान में चालू खाते में जो मजबूती है वह देश के आंतरिक हालातों की कमजोर स्थिति के कारण से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऑटों सेक्टर में बिक्री बढ़ रही है। रेलवे ने अधिक माल की ढुलाई की है। जीएसटी से भी अधिक संग्रह हुआ है। बिजली का उत्पादन भी बढ़ा है कोयले का उत्पादन भी बढ़ा, पैट्रोल की बिक्री बढ़ी है परन्तु डीजल की बिक्री 7 प्रतिशत (सितम्बर 2020) में कम रही परन्तु अगस्त 2020 के मुकाबले डीजल की बिक्री 22 प्रतिशत अधिक रही है। इंड़ियन मैन्यूफैक्चरिंग मैनेजर्स इंड़ेक्स (पीएमआई) 56.8 के स्तर पर पहुंच गया जो वर्ष 2012 के जनवरी माह के बाद से सबसे अधिक है। इस 2020 के प्रारम्भ में पीएमआई 52 के स्तर पर था।

सभी घटकों पर ध्यान देने के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में सितम्बर 2020 माह से सकारात्मक बढोत्तरी देखी जा रही है। यदि मौसम व प्रकृति ने सब कुछ ठीक रखा तो अर्थव्यवस्था में मजबूती आती चली जायेगी तथा यह मजबूत स्थाई प्रकृति की होगी।            ु

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

Share This

Click to Subscribe