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भारत के लिए अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के मायने

दुनिया की उभरती हुई शक्तियों में से भारत सबसे अधिक विश्वसनीय दोस्त रह सकता है। इसलिए भारत के आर्थिक और सामरिक हितों को सुरक्षित करते हुए भारत और अमरीका के बीच आर्थिक सहयोग, अमेरिका और भारत के लिए ही नहीं बल्कि विश्व शांति के लिए भी मंगलकारी होगा। — डॉ. अश्वनी महाजन

 

शायद अमरीकी चुनावों को लेकर भारत में इस बार पहले से कहीं ज्यादा और उत्सुकता बनी हुई थी। कारण था, अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प अपने बड़बोलेपन, लेकिन साथ ही अपने बिंदास अंदाज के लिए लगातार समाचारों में बने रहे। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की निजी कैमिस्ट्री भी समाचारों में स्थान पाती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाउडी मोदी रैली में मोदी के साथ हाथों में हाथ डालकर भारतीयों का अभिवादन करना अभी भी भारतीयों के मस्तिष्क पटल पर बना हुआ है

हालाँकि राजनीति में अपेक्षाकृत कम अनुभवी डोनल्ड ट्रंप, अनुभवी हिलेरी क्लिंटन को हराकर राष्ट्रपति पद पर पहुँचे थे और उस दृष्टि से 78 वर्षीय जोसेफ बाइडेन वर्ष 1973 से राजनीति में सक्रिय रहे हैं और उनका राजनीतिक जीवन 47 वर्ष का है। इस बीच वे बराक ओबामा के कार्यकाल में वे अमेरिका के उपराष्ट्रपति भी रह चुके हैं। ऐसे में बाइडेन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की अहम भूमिका के बारे में भलीभाँति परिचित हैं। अमरीका के भारत के साथ संबंध काफी उतार चढ़ाव वाले रहे हैं। शीत युद्ध (कोल्ड वार) के दिनों में भारत की तटस्थ नीति अमेरिका को कभी रास नहीं आयी। उन दिनों हमारे पड़ोसी देष पाकिस्तान के साथ अमरीका के संबंध अधिक दोस्ताना हुआ करते थे। भारत पाक युद्ध के दौरान अमरीका द्वारा भारत के विरुद्ध वीटो का उपयोग भारत कभी भूला नहीं। लेकिन उस समय के बाद भारत और दुनिया में काफी बदलाव हो चुके हैं। इस बीच सोवियत संघ के विघटन और भूमंडलीकरण के विस्तार में जाने अनजाने अमेरिका को भारत का भरपूर साथ मिला। पिछले लगभग तीन दषकों में प्रौद्योगिकी कम्पनियों, ई-कामर्स कंपनियों, फार्मा कंपनियों समेत अमरीकी कार्पोरेट का भारत में खासा विस्तार हुआ है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार इसी काल में बना (हालाँकि चीन से भारी आयातों के चलते पिछले कुछ सालों से यह स्थान चीन ने ले लिया था)। आज बड़ी संख्या में भारतीय लोग अमेरिकी अर्थव्यवस्था और प्रषासन में अहम भूमिका का निर्वहन भी कर रहे हैं।

भारत, अमेरिका और विष्व के संबंधों की बात करें तो पिछले काफी समय से अमेरिका का पाकिस्तान से काफी हद तक मोहभंग हो चुका है। पाकिस्तान के आतंकवाद में डूबे होने के कारण अमेरिका की पाकिस्तान से दूरी और भारत के साथ नजदीकी बनती गई। आतंकवाद में लिप्तता के कारण पाकिस्तान फाइनेंषियल एक्षन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ‘ग्रे सूची’में है और उसे कभी भी ‘ब्लैक सूची’ में डाला जा सकता है। साथ ही साथ पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति में लगातार गिरावट आती जा रही है। ऐसे में अमरीकी प्रषासन में बदलाव के बाद भी अमेरिका पाकिस्तान संबंधों में गर्माहट आने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। जहाँ तक चीन का सवाल है डॉनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने से पहले ही चीन के साथ युद्ध छेड़ रखा था। जिसने पिछले दो सालों से व्यापार युद्ध का रूप ले लिया था। पिछले 2 दषकों से अपनी आक्रामक आर्थिक नीति, और विषेष तौर पर व्यापार नीति के चलते, चीन ने अमेरिका को आर्थिक चुनौती दे रखी थी। आम तौर पर यह माना जा रहा है कि बायडन चीन के प्रति नरम रुख अपना सकते हैं, लेकिन समझना होगा कि पिछले काफी समय से अमरीका के साथ इसके तल्ख संबंध चल रहे हैं। जिस प्रकार से चीन की विस्तारवादी नीति के कारण, प्रषांत महासागर में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा पिछले कुछ समय से संयुक्त रूप से सैन्य अभ्यास चल रहे हैं और उन्हें विराम देना संभव नहीं होगा। क्योंकि ऐसा करना अमरीका एक महाषक्ति की छवि के विरुद्ध होगा। दूसरे जहां ट्रंप अमरीका को फिर से महान बनाने की बात करते रहे हैं, बाइडेन अमरीकी खरीदो (बाय अमेरिकन) के पक्षधर रहे हैं। इसलिए चीन के खिलाफ व्यापार प्रतिबंधों को विराम दिया जाना भी व्यवहारिक नहीं होगा।

भारत के साथ व्यापार

नहीं भूलना चाहिए कि डॉनाल्ड ट्रंप चीन के खलिफ कड़ा रुख अपनाते हुए सामरिक एवं कूटनीतिक दृष्टि से भारत के अधिक नजदीक दिखते थे, लेकिन आर्थिक दृष्टि से वे भारतीय हितों के खिलाफ लगातार फैसले लेते रहे। व्यापार युद्ध में उनका पहला निषाना चीन ही था, लेकिन उसी क्रम में उन्होंने पहले भारत से आने वाले आयातों पर आयात शुल्क भी बढ़ाया और बाद में तो कई दषकों से भारत को अमरीका द्वारा प्रदत्त, अन्य देषों से कम आयात शुल्क पर प्राथमिकता के आधार पर आयात की व्यवस्था, यानी जनरल ड्रम ऑफ प्रेफ्रेंसिस (जीएसपी) को भी समाप्त कर दिया। यही नहीं अमरीका में काम कर रहे इंजीनियरों और अन्य कार्मिकों के लिए भी वीसा नियमों को प्रतिकूल बनाना भी उन्होंने शुरू कर दिया था। जिसके चलते अमेरिका में भारतीयों पर अनिष्चितता की तलवार लटकने लगी थी। साथ ही साथ राष्ट्रपति चुनावों से पहले ही अमरीकी प्रषासन भारत पर यह दबाव भी बना रहा था कि भारत उनसे व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करे। अमरीका की इस बाबत शर्तें भारतीय हितों के अनुकूल भी नहीं थी, और समझौता नहीं हो पाया था।

समझना होगा कि बाइडेन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी समस्याओं का निदान है। विष्व में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण और मौतों के चलते एक ओर स्वास्थ्य संकट और दूसरी और आर्थिक संकटों से पार पाना बाइडेन की पहली प्राथमिकता होगी। इसके अतिरिक्त हाल ही में अमरीका में नस्ली दंगों के कारण भी समाज में विघटन उत्पन्न हो रहा है। इसके लिए भी बाइडेन को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त अमरीका एक महाषक्ति की छवि को पहले समय से काफी धक्का लगा है, क्योंकि डॉनल्ड ट्रम्प यूरोप एवं अपने अन्य सहयोगी और मित्र देषों के साथ मधुर संबंध बनाए रखने में असफल रहे। इसके चलते अमरीका की छवि और शक्ति दोनों ही प्रभावित हुए हैं। महामारी के चलते भूमंडलीकरण के प्रति दुनिया का मोह भी भंग हुआ है, जिसका नुकसान चीन को ही नहीं अमरीका को भी उठाना पड़ेगा। आने वाले समय में अमरीका को अपनी महाषक्ति की छवि को पुनर्स्थापित करने में बाइडेन कितना सफल होते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अमरीकी समस्याओं का कितना निदान कर पाते हैं। लेकिन उन्हें ये समझना होगा कि दुनिया की उभरती हुई शक्तियों में से भारत सबसे अधिक विष्वसनीय दोस्त रह सकता है। इसलिए भारत के आर्थिक और सामरिक हितों को सुरक्षित करते हुए भारत और अमरीका के बीच आर्थिक सहयोग, अमेरिका और भारत के लिए ही नहीं बल्कि विष्व शांति के लिए भी मंगलकारी होगा।   

 

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