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केन-बेतवा लिंक परियोजना से बुंदेलखंड का होगा चतुर्दिक विकास

वर्षों से प्रतीक्षित केन-बेतवा लिंक परियोजना को आखिरकार केंद्र सरकार से 8 दिसंबर को मंजूरी मिल गई, अब इसका काम प्रारंभ होने का मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की भांति नदी जोड़ो परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना है। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना तो उनकी कल्पनानुसार मूर्तरूप ले चुकी है, किंतु नदी जोड़ो परियोजना समय के झंझावात में फंसकर रह गई है। यद्यपि नदी जोड़ो परियोजना की कल्पना वर्ष 1858 में सर्वप्रथम मद्रास रेजीडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर काटोन ने की थी, जिसकी रूपरेखा कैप्टन दस्तूर ने प्रस्तुत की थी, किंतु मूर्तरूप नहीं ले सकी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1960 में तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री के.एल. राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का विचार प्रस्तुत किया था, किंतु तत्कालीन सरकार में मतभेद के कारण राव की यह योजना भी ठंडे बस्ते में ही रह गई। वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी बाजपेई ने नदी जोड़ो परियोजना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।

देश में एक साथ ही अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि तथा बाढ़ एवं सूखे की समस्या आए दिन मुंह बाए खड़ी रहती है। प्रतिवर्ष कहीं न कहीं इस स्थिति का सामना करना पड़ता है जिसके कारण अपार जन-धन की हानि होती है, जिसका स्थाई निदान खोज पाना असंभव सा है। नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से इस समस्या का निदान प्राप्त किया जा सकता है। बाढ़ के दिनों में एक नदी का जल नहर के माध्यम से दूसरे नदी में पहुंचाकर बाढ़ की समस्या का समाधान खोजा जा सकता है। बाढ़ का पानी जो बहकर समुद्र में जाकर व्यर्थ हो जाता है, उसको समुद्र में जाने से रोककर उसका सदुपयोग किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर सूखे की स्थिति में संबंधित क्षेत्र को जल पहुंचाकर वहां सूखे का भी समाधान किया जा सकता है। जिसके लिए तत्कालीन अटल सरकार ने एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की थी, योजना के अंतर्गत 30 नदियों को आपस में जोड़कर इसे मूर्तरूप देना था।

वर्षों से प्रतीक्षित केन-बेतवा लिंक परियोजना को आखिरकार केंद्र सरकार से 8 दिसंबर को मंजूरी मिल गई, अब इसका काम प्रारंभ होने का मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश में चुनाव के पहले केन-बेतवा लिंक परियोजना की आधारशिला रखी जाएगी। केन-बेतवा लिंक परियोजना की मंजूरी मिलने से बुंदेलखंड में प्रगति एवं विकास के आसार हैं। बुंदेलखंड की लाइफ लाइन कही जाने वाली यह परियोजना काफी समय से कागजों में थी, मार्च में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों में इस परियोजना को लेकर समझौता भी हो चुका था किंतु केंद्र सरकार की स्वीकृति न मिल पाने के कारण इसका शुभारंभ नहीं हो सका था। अब केंद्र सरकार की अनुमति मिलने से परियोजना के प्रारंभ होने की स्थिति बन गई है।

इस परियोजना को साकार करने हेतु विश्व जल दिवस 23 मार्च को प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना को साकार करने का श्रीगणेश किया था। समझौते के समय प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना बुंदेलखंड का भाग्य बदलेगी, इससे प्यास भी बुझेगी और विकास भी होगा। परियोजना से लाखों लोगों को पानी तो मिलेगा ही, बिजली भी मिलेगी और प्रगति भी होगी।

केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किलोमीटर उत्तर की ओर चलकर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के चिल्ला गांव में यमुना नदी में मिलती है। इसी प्रकार बेतवा नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर 576 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना में मिलती है। 6000 करोड़ की इस परियोजना का मुख्य बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के दौधन गांव में बनना है, 77 मीटर ऊंचा तथा 19633 वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षमता वाले इस मुख्य बांध में 2853 एमसीएम पानी भंडारण की क्षमता होगी।

2613.19 करोड़ की लागत से बनने वाले इस बांध में दो बिजलीघर बनेंगे, जिससे 78 मेगावाट बिजली मध्य प्रदेश को प्राप्त होगी। 341.55 करोड की लागत से इन बिजली घरों का निर्माण होगा। बांध से 2708.36 करोड़ की लागत से नहरे बनाई जाएंगी। 218 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर उत्तर प्रदेश के बरुआ सागर में जाकर मिलेगी। इस नहर से 1074 एमसीएम पानी प्रतिवर्ष भेजा जाएगा, जिसमें से 659 एमसीएम पानी बेतवा नदी में पहुंचेगा। दौधन बांध के अतिरिक्त तीन अन्य बांध भी मध्य प्रदेश में  में बेतवा नदी पर बनाए जाएंगे। रायसेन तथा विदिशा जिले में बनने वाले मकोडिया बांध से 56850 एकड़ क्षेत्र में, बरारी बैराज से 2500 तथा केसरी बैराज से 2880 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी। लिंक नहर से मार्गों में 60294 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा, इससे मध्य प्रदेश के 46599 व उत्तर प्रदेश के 13695 हे. क्षेत्र में सिंचाई होगी। दौधन बांध से छतरपुर और पन्ना जिले की 3.23 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी। इस परियोजना को मूर्तरूप देने में कुल 35111 करोड रुपए व्यय होंगे, जिसमें से 90 प्रतिशत धनराशि केंद्र सरकार वहन करेगी, शेष धनराशि की 5-5 प्रतिशत राशि राज्य सरकारें वहन करेंगी। 

बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के 7 और मध्य प्रदेश के 9 जिले आते हैं, योजना के मूर्तरूप लेने से हमीरपुर स्थित मौदहा बांध को लिंक नहर से जोड़कर भरा जाएगा। इससे दोनों राज्यों को लाभ मिलेगा। उत्तर प्रदेश के महोबा झांसी ललितपुर एवं हमीरपुर के 21 लाख लोगों को 67 मिलीयन क्यूबिक मीटर जल मिलेगा। हमीरपुर में मौदहा बांध को भरकर हमीरपुर में 26900 हेक्टेयर की सिंचाई व्यवस्था और तहसील राठ में पेयजल उपलब्ध कराया जाएगा। जनपद महोबा में लगभग 37564 हेक्टेयर ललितपुर में 3533 हेक्टेयर झांसी में लगभग 17488 हेक्टेयर और बांदा में लगभग 192479 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का लाभ प्राप्त होगा। जनपद झांसी में लगभग 14.66 मिलियन क्यूबिक मीटर ललितपुर में 31.8 क्यूबिक मीटर, हमीरपुर में 2.79 मिलियन क्यूबिक मीटर और महोबा में लगभग 20.13 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पेयजल के रूप में उपलब्ध कराया जा सकेगा। परियोजना के अंतर्गत बरियारपुर पिकअप बीयर के डाउनस्ट्रीम में दो नए वैराजों का निर्माण कर लगभग 188 क्यूबिक मीटर जल भंडारण किया जा सकेगा। 

उ.प्र. के महोबा हमीरपुर झांसी जिलों में तथा मध्य प्रदेश में छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना जिले में किसान धान गेहूं की खेती कर सकेंगे, जो अब तक सिंचाई के साधनों के अभाव में नहीं कर पाते थे, वर्षा जल के सहारे बोई गई फसल प्रायः सूख जाती थी। दोनों राज्यों में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में वर्ष में 2-3 फसलें उगाई जा सकेंगी, पीने का पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा जिससे क्षेत्र का चतुर्दिक विकास होगा। इस परियोजना से  प्रत्यक्ष रूप से मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिले तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलां को इसका लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त अप्रत्यक्ष रूप से अन्य कई जिले इससे लाभान्वित होंगे।

यह परियोजना वर्ष 2005 में ही स्वीकृत की गई थी, तब उत्तर प्रदेश को रबी फसल के लिए 547 मिलीयन क्यूबिक मीटर एमसीएम और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम पानी देना तय हुआ था किंतु दोनों राज्यों के मध्य उत्तर प्रदेश को रबी फसल के लिए यह पानी देने को लेकर विवाद था। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश ने रबी फसल के लिए 700 एमसीएम पानी की मांग रखी जो बाद में 788 एमसीएम तक पहुंच गई और तुरंत बाद यह मांग जुलाई 2019 में 930 एमसीएम पानी  उपलब्ध कराने तक पहुंच गई और उसकी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु उत्तर प्रदेश द्वारा इस आशय का मांग पत्र दिया गया था। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश को इतना पानी देने के लिए तैयार नहीं था जिससे दोनों राज्यों के मध्य पानी बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा था और योजना को मूर्तरूप देना संभव नहीं हो सका था। 

वस्तुतः केन-बेतवा लिंक परियोजना देश की 37 प्रमुख नदियों को एक दूसरे से जोड़ने की महत्वपूर्ण परियोजना थी, जिनमें से मध्य प्रदेश के अंतर्गत नर्मदा तथा क्षिप्रा को जोड़ने की योजना मध्य प्रदेश राज्य से ही संबंधित होने के कारण समय से मूर्तरूप ले चुकी है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी में सूख जाने वाली क्षिप्रा में अब गर्मी में भी पर्याप्त पानी बना रहता है तथा उज्जैन को अपेक्षा अनुसार जल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित होती रहती है। इन्हीं योजनाओं में केन-बेतवा  परियोजना भी थी जो अनेक कारणों से अब तक मूर्तरूप नहीं ले सकी थी किंतु अब दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं प्रधानमंत्री की सदिच्छा से यह योजना मूर्तरूप लेने जा रही है, जिससे इन दोनों राज्यों का चतुर्दिक विकास होने के साथ-साथ राष्ट्र के विकास की गति में भी इनका योगदान बढ़ेगा। 

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