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मुद्रीकरण योजना- खजाना ढूँढने का प्रयास

सरकार ने तय किया है कि मुद्रीकरण मूल्य तय करने हेतु जहाँ तक हो सके बाजार का आधार लिया जाये और जहाँ वह गुंजाइश नहीं है वहाँ दूसरे तरीके अपनाए जाये। बहराल इसमें सरकार खुले मन से जाना चाहती है और समयानुसार मुद्रीकरण मूल्य तय करना चाहती है। — अनिल जवलेकर

 

महाभारत में एक कथा आती है कि व्यास ऋषि और कृष्ण भगवान ने युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने युद्ध के कारण तिजोरी खाली होने की बात कही तो कृष्ण भगवान ने उन्हें मेरु पर्वत के पास खुदाई से सोना निकालने की सूचना दी। युधिष्ठिर ने उनके कहे अनुसार खुदाई की और सोना निकालकर अश्वमेध यज्ञ किया। आज सरकार की स्थिति भी युधिष्ठिर जैसी है। कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियां धीरे हुई है और अर्थव्यवस्था भी कमजोर पड़ी है। लेकिन सोना कहा मिलेगा, यह बताने के लिए अब कृष्ण भगवान नहीं है। हाँ आज हर जगह पर अर्थशास्त्री मौजूद है जो गलत-सलत सलाह देते रहते है। सरकार को भी देश चलाना है और विकास भी करना है। खजाने की खोज तो करनी ही पड़ेगी। सार्वजनिक संपातियों का मुद्रीकरण एक ऐसे ही खजाना खोजने की योजना है। इससे कितना खजाना मिलेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। 

क्या है यह मुद्रीकरण योजना 

सरकार बहुत कुछ करना चाहती है लेकिन पैसे की कमी है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी है और उसके बगैर आर्थिक विकास नहीं हो सकता। सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र इसमें आगे आए और इसका भार संभाले। पहले भी कई कोशिशें हुई, लेकिन फायदे की गारंटी के बगैर कोई ज्यादा सामने नहीं आया। अब सरकार चाहती है कि सार्वजनिक संपतियों का उपयोग करके ‘बनाओ और कमाओ’ के तहत निजी क्षेत्र काम करें। खुद भी कमाए और सरकार को भी कुछ कमाई का हिस्सा दे। इसको ही सरकार सार्वजनिक संपाति का मुद्रीकरण कह रही है। सरकार के कहे अनुसार पाँच वर्षों में (2020-25) इनफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए 111 लाख करोड़ रूपये लगेंगे। उसमें से  85 प्रतिशत तो बैंक और ऐसे ही साधनों से आयेगा। 5-6 प्रतिशत पैसा मुद्रीकरण करके लाना पड़ेगा। वही सरकार करने जा रही है। 

सरकार क्या करने जा रही है 

सभी रास्ते, पॉर्ट्स, रेलवे स्टेशन, ट्रेन, जहाज टर्मिनल, रेलवे ट्रक, रेलवे कॉलोनी, बिजली निर्माण और हस्तांतरण, गैस पाइप लाइन, स्टेडियम, गोदाम, टेलीकोम टावर और फाइबर, खदान वगैरह जैसी कई इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी सार्वजनिक संपतिया सरकार निजी क्षेत्र को देकर विकसित करना चाहती है और पैसा भी वसूलना चाहती है। आने वाले चार सालों में 6 लाख रुपये जमा करने का सरकार का इरादा है। सरकार चाहती है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र जितनी भी पूंजी लगाने को तैयार है, उसे ही मुद्रीकरण मान लिया जाए। सरकार ने तय किया है कि मुद्रीकरण मूल्य तय करने हेतु जहाँ तक हो सके बाजार का आधार लिया जाये और जहाँ वह गुंजाइश नहीं है वहाँ दूसरे तरीके अपनाए जाये। बहराल इसमें सरकार खुले मन से जाना चाहती है और समयानुसार मुद्रीकरण मूल्य तय करना चाहती है। 

इसका क्या मतलब है 

यह स्पष्ट है कि सरकार के पास पैसा नहीं है और निजी क्षेत्र के भरोसे सरकार विकास करना चाहती है और उसके लिए अपने अधिकार में आने वाली सार्वजनिक संपतियों का उपयोग करना चाहती है। इसका एक मतलब यह है कि सरकार चाहती है कि सेवा का उपयोग करने वाले नागरिक सीधे ऐसी योजनाओं का खर्चा उठाए। निजी क्षेत्र जो भी सेवा देगा उसकी वसूली उपभोग कर्त्ता से करेगा। इससे सरकार टैक्स लगाने से बच सकती है। वैसे यह बात छुपी नहीं है कि सरकार घाटे में चलती है और अपना ही  खर्चा नहीं उठा पाती तो विकास कैसे करेगी। दूसरा मतलब है कि सरकार आजकल आर्थिक योजनाओं के बदले गरीबों को प्रत्यक्ष लाभ देने वाली कल्याणकारी  योजनाओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहती है ताकि  गरीबों को प्रत्यक्ष रूप से मदद कर सके। इसका तीसरा मतलब यह भी है कि अब आर्थिक क्षेत्र में निजी कंपनियों का बोल-बाला रहेगा और सरकार का हिस्सा कम होता जाएगा। 

निजी क्षेत्र का अपना महत्व है 

यह कहने की जरूरत नहीं है कि निजी क्षेत्र का अपना महत्व है और आर्थिक विकास में उसका सहयोग जरूरी है। निजी क्षेत्र को कम करके आंकने की मानसिकता से देश बाहर आया है और 1990 के दशक से ही निजी क्षेत्र का योगदान बढ़ा है। लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास में निजी क्षेत्र ज्यादा कुछ नहीं कर पाया है। सार्वजनिक सुविधाओं का विकास और रखरखाव एक संवेदनशील विषय है और यह विकास मुनाफे का नहीं होता। इसलिए सार्वजनिक कहे जाने वाले उद्योग के विकास में निजी क्षेत्र का सहयोग मर्यादित रहेगा, यह बात समझनी होगी।  

सरकार को ज़िम्मेदारी नहीं भुलानी चाहिए 

सवाल यह नहीं है कि निजी क्षेत्र का विकास में महत्व है कि नहीं। सवाल यह है कि सरकार का विकास के प्रति क्या दायित्व है? इसको नकारा नहीं जा सकता कि सरकार का मुख्य दायित्व सार्वजनिक संपातियों को संभालकर रखना और उसका सार्वजनिक हित के लिए उपयोग में लाना है न कि उसको निजी क्षेत्र या कंपनियों को उनके फायदे के लिए किराए पर देना है। यह सभी जानते है कि निजी क्षेत्र अपने फायदे के लिए काम करता है न कि सार्वजनिक हित के लिए। इसलिए यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनकी नजर ऐसी सार्वजनिक संपातियों पर होती है जो कभी उनकी हो सकती है। सरकार भले ही यह कह रही हो कि वो संपात्तियों को बेच नहीं रही है और सभी मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेंगे। लेकिन यह नहीं भुला जा सकता कि सरकारें बदलती है और सरकारों की विचारधाराएं भी बदलती है। कल हो सकता है कि सरकार मालिकाना हक भी बेच दे। तब आज सस्ते में ली हुयी संपात्ति अनायास ही  निजी क्षेत्र को मिल जाएंगी और वह बात सार्वजनिक हित में नहीं है। उसी तरह निजी क्षेत्र को विकास काम करने देने का मतलब दुहरी टैक्स पद्धति अपनाने जैसा है क्योंकि निजी क्षेत्र अपना खर्चा उपभोगकर्त्ता से लेगा और सरकार भी अपना कोई टैक्स कम नहीं करेगी। जनता का बोझ तो बढ़ना तय है और यह अच्छी नीति नहीं कही जा सकती। 

क्या खजाना मिल पाएगा 

भारत में निजी क्षेत्र को इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास में शामिल करने या सार्वजनिक उद्योग निजी क्षेत्र के हवाले करने की बाते पहले भी हो चुकी है और उसका नतीजा बहुत अच्छा नहीं रहा है। अब भी बहुत कुछ होगा ऐसा नहीं कह सकते। निजी क्षेत्र को सिर्फ फायदे की बात समझ आती है और जब तक फायदे की गारंटी नहीं मिलती वह ऐसे कामों के लिए सामने नहीं आते। और दूसरी बात सार्वजनिक सम्पत्ति की अलग-अलग तरीके से किराए की बात शायद हकीकत में लाना मुश्किल होगा। पेसेंजर ट्रेन कोई और चलाएगा और स्टेशन कोई और बनवाएगा कहना मुश्किल है। हाँ यह हो सकता है कि कुछ बड़ी कंपनियाँ, जिसमें विदेशी कंपनियाँ भी शामिल है, बहुत सारी सार्वजनिक संपत्तियों को विकास के नाम पर  अपने नियंत्रण में लेगी। इसलिए यह देखना होगा कि इस तरह के मुद्रीकरण से कितना कुछ खजाना मिलेगा। कल्पना में मुद्रीकरण जितना अच्छा लगता है शायद उतना हकीकत में उतरेगा इसे लेकर शंका तो रहेगी ही।         

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