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राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेषन (एनआरएफ)ः एक नई पहल

एनआरएफ को  सामान्य सरकारी रवैया, नौकरषाही उदासीनता और कठोरता को छोड़कर सामाजिक रूप से प्रासंगिक और उद्योग पसंदीदा अनुसंधान को जोड़कर सार्थक परिणाम लाने के लिए आगे आना चाहिए। - डॉ. जया कक्कड़

 

नई षिक्षा नीति के तहत कई बड़ी घोषणाएं की गई थी उन्हीं में से एक घोषणा राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेषन की स्थापना की भी थी। एनआरएफ का मूल उद्देष्य अलग-अलग मंत्रालयों के द्वारा स्वतंत्र रूप से दिए गए रिसर्च संबंधी अनुदान को एकत्रित करना एवं शोध कार्यों को राष्ट्रीय प्राथमिकता के विषयों से जोड़ना है। इसके साथ शोधकर्ताओं, उद्योग जगत और सरकार के बीच समन्वय स्थापित करना है ताकि हर क्षेत्र में शोध का महत्व बढ़ाया जा सके। एनआरएफ के जरिए शोधकर्ताओं विश्वविद्यालयों एवं राज्य विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। सरकार ने एनआरएफ के लिए 5 वर्षों में 50000 करोड़ का बजट लागू किया है जिसमें 14000 करोड रुपए का योगदान सरकार करेगी बाकी निजी क्षेत्र से आएगा और इसके लिए निजी भागीदारी को प्रबल तरीके से प्रोत्साहित करना होगा। शोध के मामले में भारत की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है और यह बहुत ही आंषिक रूप से अनुसंधान की आवष्यकताओं को पूरा करता है। भारत में शोध अनुसंधान में निवेष इस समय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7 फीसदी है, वहीं अगर हम इसकी तुलना अन्य राष्ट्रों से करें तो अमेरिका अपनी जीडीपी का 2.8 फ़ीसदी और चीन अपनी जीडीपी का 2.1 फ़ीसदी शोध कार्यों में निवेष करता है। यह स्थिति तब है जब भारत की जीडीपी इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में केवल 7.6 और 5.1 गुना छोटी रह गई है। अतः एनआरएफ की कोषिष रहेगी कि भारत में अलग-अलग धाराओं में रिसर्च कर रहे सभी शोधार्थियों को फंड की कमी ना हो।

भारत में प्रति मिलियंन जन संख्या पर 366 अनुसंधान और विकास के कर्मचारी हैं, जबकि चीन में यह संख्या 2366 है। भारत में अनुसंधान गतिविधियों पर खर्च बहुत कम है। भारत इनहाउस और आरएंडडी पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल एक चौथाई प्रतिषत ही निवेष करता है, जबकि विश्व का  औसत निवेष इस क्षेत्र में 1.4 फ़ीसदी है। हालांकि भारत की जनसंख्या और विकास संबंधी आवष्यकताएं इतनी ज्यादा है की दुर्लभ संसाधनों की मांग बढ़ती ही जा रही है। इसलिए अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का 0.3 फीस भी खर्च करना पूर्णतया गलत नहीं है। भारत को अनुसंधान एवं विकास पर वर्तमान की तुलना में कम से कम 4 से 5 गुना अधिक संसाधन लगाने की जरूरत है ताकि स्वायत्त सरकारी संस्थानों (जो जीडीपी के 0.4 फ़ीसदी पर अल्प विश्वविद्यालय स्तर के अनुसंधान द्वारा पूरक) पर निर्भर न रहना पड़े। हालांकि एनआरएफ इस दिषा में ज्यादा लाभकारी दिखाई नहीं प्रतीत होता, क्योंकि अनुसंधान के प्रचार प्रसार में भी निवेष को बढ़ाने की जरूरत है। 

एनआरएफ में काफी हद तक अमेरिका के नेषनल साइंस फाउंडेषन के तत्व है और इसे उसी के अनुरूप तैयार किया गया है। एनआरएफ के प्रस्तावित विधेयक में अन्य देषों की विज्ञान एजेंसियों की कुछ सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया गया है। इसका उद्देष्य अनुसंधान प्रयासों की सीमाओं पर आलोचनात्मक रचनात्मकता और नवीनता लाना है। एनआरएफ वैज्ञानिक अनुसंधान को एक उच्च स्तरीय रणनीतिक दिषा प्रदान करना चाहता है ताकि शैक्षणिक संस्थाओं के साथ-साथ स्वायत्त निकायों में भी अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति को बढ़ाने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाए। इसका प्रयास यह भी होगा कि अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में निजी संस्थाओं की सहभागिता बढ़ाया जा सके क्योंकि तकनीकी रूप से उन्नत देषों में निजी क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास में अग्रणी भूमिका रखते हैं। साइलोस में वैज्ञानिक अनुसंधान कम करने के लिए अनुसंधान निकायों द्वारा किए गए सभी प्रयासों को एकीकृत करने की कोषिष करेगा।

एनआरएफ के प्रस्तावित विधेयक से एक बात तो साफ है कि अब अनुसंधान के कार्य का सरकार पर कम बोझ रहेगा इसलिए वह अन्य विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग कर सकती है। 

निष्चित रूप से हमारे लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं बहुत बड़ी हैं, लेकिन अवरोधों की कमी नहीं है। उदाहरण के लिए अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी जो कि 36000 करोड रुपए है, को कैसे जुटाएगी? सरकार दिषा निर्देष कैसे बनाएगी और लागू कैसे करेगी? एनआरएफ की सफलता इस बात से भी तय होगी।

तकनीकी रूप से उन्नत देष जैसे अमेरिका, जर्मनी, दक्षिण कोरिया के निजी क्षेत्र ने अनुसंधान और विकास के संचालन और इसके व्यक्त पोषण में अग्रणी भूमिका निभाई है पर भारत में यह आंकड़ा बहुत कम है। भारत में निजी क्षेत्र की भागीदारी केवल 35 प्रतिशत है। इसकी तुलना में इजरायल की 88 प्रतिशत है। भारत में बड़ी कंपनियों के बिक्री बजट का एक प्रतिषत जो कि वास्तव में 0.3 प्रतिशत मात्र है अनुसंधान पर खर्च किया जाता है। अतः सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह निजी क्षेत्र को आगे आने के लिए कैसे प्रेरित करेगी।

देखा जाए तो भारत अभी भी अनुसंधान के क्षेत्र में सजग नहीं है। वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत की रैंकिंग 2015 में 81 से बढ़कर 2022 में 40 हो गई है इसी तरह प्रकाषनों की संख्या के आधार पर रैंकिंग 2010 और 2020 के बीच सातवें स्थान पर पहुंच गई है। अगर इसकी तुलना अमेरिकी पेंटेटिंग और प्रषासन की गुणवत्ता से करें तो भारत का स्थान बहुत नीचे है। हम शुरुआत से दूसरों से नवाचार खरीदते रहे हैं। यह जानते हुए भी कि हमारे पास निष्चित रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पंक्ति में सबसे आगे रहने की क्षमता है। हमें यह समझना होगा कि भारत को विश्व शक्ति बनाने के लिए अनुसंधान में पैमाने और गुणवत्ता दोनों की आवष्यकता है।

एनआरएफ निष्चित रूप से एक सकारात्मक और प्रषंसनीय पहल है। बस आवष्यकता है तो इसके सही तरीके से क्रियान्वयन की। केंद्र की मोदी सरकार अपनी भूमिका और जिम्मेदारियों के प्रति सचेत है। उदाहरण के लिए सरकार ने नीतिगत सहायता प्रदान करने के अलावा पेटेंट जारी करने की प्रक्रिया को भी बहुत सरल बना दिया है। परिणाम स्वरूप 2014 से 2023 के बीच प्रति वर्ष जारी किए गए पेटेंट की संख्या 7 गुना अधिक बढ़ गई है। हमारी कोषिष यह होनी चाहिए कि अनुसंधान केवल प्रयोगषालाओं तक सीमित ना रहे बल्कि हमारी आवष्यकताओं के लिए भी इसकी प्रासंगिकता बनी रहे। आज हमारे पास प्रतिभा के विषाल भंडार और प्रयोगषालाओं से लैस उत्कृष्ट संस्थान है, फिर भी हम वैज्ञानिक अनुसंधान में कोई बड़ी सफलता नहीं प्राप्त कर पाए हैं। 

इसलिए एनआरएफ की कोषिष है कि यह न केवल अनुसंधान प्रस्तावों का मूल्यांकन और वित्तीय सहायता देकर बल्कि इसे सरकार और उद्योग से जोड़कर सार्थक परिणाम दे सके। साथ ही यह दोनों के धन का उपयोग करके भारत को उसकी पूर्ण क्षमता का अनुभव करा सके, जिससे अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भारत के सफलता का मार्ग प्रषस्त हो।

एनआरएफ अनुसंधान एवं विकास करने में आसानी कैसे प्रदान कर सकता है?

1.    सरकार के मंत्रालय वर्तमान में संसाधनों के कम आवंटन के साथ व्यक्तिगत प्रयास करते हैं इसलिए वे अपने अनुसंधान को एनआरएफ द्वारा संचालित और प्रबंधित कर सकते हैं।

2.    निजी क्षेत्र सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के तहत अनुसंधान प्रयोगषालाओं को प्रतिभाषाली शोधकर्ताओं के लिए अपने सुविधाएं साझा करना चाहिए ताकि संसाधनों का इष्टतम उपयोग किया जा सके।

3.    परियोजना स्वीकृत होने के बाद बिना अधिक समय अंतराल के अनुसंधान के अनुदान का वितरण जल्द से जल्द होना चाहिए।

4.    कर प्रोत्साहन प्रदान करके निजी योगदानकर्ताओं में उनके हिस्से के निवेष को प्रेरित किया जाना चाहिए।

5.    शोधकर्ताओं को किसी भी तरह की कागजी कार्यवाही या अन्य प्रकार के बोझ से मुक्त करना चाहिए ताकि उन्हें धनराषि शीघ्र से शीघ्र उपलब्ध हो सके।

6.    वैज्ञानिकों को आवंटन के अनुसार धन के उचित उपयोग के लिए जवाब देह बनाया जाना चाहिए और धन खर्च में लचीलापन होना चाहिए और इसके लिए सामान्य वित्तीय नियमों (जीएसआर) के बजाय स्वतंत्र दिषानिर्देष विकसित किए जाने चाहिए।

7.    वर्तमान में अनुसंधान निधि बहुत ही असमान रूप से वितरित की जाती है जिससे विज्ञान के अधिकांष शोधछात्रों को अनुसंधान के लिए बहुत कम या कोई अनुभव नहीं मिल पाता। अतः एनआरएफ का लक्ष्य धन के वितरण को लोकतांत्रिक बनाना है ताकि बड़ी संख्या में वैज्ञानिक और छात्र इस योजना से लाभान्वित हो सके। वैज्ञानिक और नव प्रवर्तक पूरी योजना से लाभान्वित हो सके।

अतः एनआरएफ को  सामान्य सरकारी रवैया, नौकरषाही उदासीनता और कठोरता को छोड़कर सामाजिक रूप से प्रासंगिक और उद्योग पसंदीदा अनुसंधान को जोड़कर सार्थक परिणाम लाने के लिए आगे आना चाहिए। 

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