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भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देती नई शिक्षा नीति

शिक्षा राष्ट्र-निर्माण का प्रभावी माध्यम होती है। ऐसे में शिक्षा में असमानता राष्ट्रीय- एकता के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है। जिसको एक समान पाठ्यक्रम अपनाकर दूर किया जा सकता है। अतः नई शिक्षा नीति का महत्व बढ़ जाता है। — दुलीचन्द कालीरमन


शिक्षा एक ऐसा साधन है जो देश के बच्चों से लेकर युवाओं तक का भविष्य निर्माण करता है। इसलिए देश की शिक्षा व्यवस्था में देश की सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ उसके भविष्य के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट नजर आना चाहिए। भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देती नई शिक्षा नीति को आखिरकार लगभग साढे तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद 29 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई।

हालांकि देश की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की कवायद मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल से ही चल रही थी। श्री टी.एस.आर. सुब्रमण्यम ने नई शिक्षा नीति संबंधी अपनी रिपोर्ट मई 2016 में सौंप दी थी इसके बाद “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन“ (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के कस्तूरीरंगन ने एक विस्तृत परिचर्चा के बाद उच्च शिक्षा नीति तैयार की। इस शिक्षा नीति को लेकर देश के विभिन्न सामाजिक संगठनों, शिक्षा विशेषज्ञों से विस्तृत परिचर्चा के उपरांत लगभग 2.25 लाख सुझाव आए थे, जिनका विश्लेषण करने के बाद नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया गया।

भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा और गुरुकुल पद्धति का एक स्वर्णिम दौर रहा है। लेकिन औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान मैकाले का घोषणा-पत्र, वुड डिस्पैच और हंटर आयोग के माध्यम से ऐसी शिक्षा व्यवस्था को भारत पर लादने का प्रयास किया गया जो औपनिवेशिक हितों के अनुरूप थी। स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा का भारतीयकरण करने का प्रयास किया जाना चाहिए था, लेकिन शिक्षा नीतियों पर वामपंथी विचारधारा का दबाव था। जिससे शिक्षा व्यवस्था देश की अंतरात्मा और संस्कृति से जुड़ने में असफल रही।

नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक आमूलचूल बदलाव किए गए हैं। जिनका भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर व्यापक असर पड़ेगा। वर्तमान में चल रही 10 $ 2 प्रणाली के स्थान पर पढ़ाई की रूपरेखा 5 $ 3 $ 3 $ 4 के आधार पर तैयार की जाएगी। पहली व दूसरी कक्षा में भाषा व गणित पर कार्य करने पर जोर देने की बात नई शिक्षा नीति के मसौदे में की गई है। इसके साथ ही चौथी व पांचवीं के बच्चों के लेखन कौशल पर ध्यान देने की बात की गई है। बच्चों में अपनी मातृभाषा व गणित के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए “भाषा सप्ताह“ व “गणित सप्ताह“ के प्रारूप भी नई शिक्षा नीति में जोड़े गए हैं। इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सरकार ने शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने का फैसला किया है जो कि वर्तमान में 4.43 प्रतिशत है।

नई शिक्षा नीति में प्रावधान है कि कम से कम पांचवी कक्षा तक बच्चों को  मातृभाषा या किसी अन्य भारतीय भाषाओं में पढ़ाई करवाई जाए। इस नियम के माध्यम से सरकार का उद्देश्य बच्चों को भारतीय भाषाओं से जोड़ना है। संस्कृत भाषा को भी विषय के तौर पर रखा गया है। एक विषय के रूप में बच्चे अंग्रेजी भी पढ़ सकते हैं और पांचवी कक्षा के बाद अगर वे चाहें तो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई जारी रख सकते हैं। अतः इससे बच्चों में अंग्रेजी ज्ञान में कमजोरी की संभावना नहीं है अपितु इससे बच्चे अपनी भाषा व संस्कृति से घनिष्ठ संबंध बना पाएंगे।

नई शिक्षा नीति का एक लक्ष्य यह भी है कि सन 2035 तक 50 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा में दाखिला लें। वर्तमान परिस्थितियों में विद्यार्थियों और युवाओं की जरूरतों को देखते हुए “मल्टीपल एंट्री एग्जिट सिस्टम“ का प्रावधान रखा गया है ताकि कोई भी विद्यार्थी अगर किसी कारण से अपना अध्ययन बीच में छोड़ देता है तो उसे प्रथम वर्ष के बाद ’सर्टिफिकेट’ द्वितीय वर्ष के बाद ’डिप्लोमा’ तथा तृतीय/चतुर्थ वर्ष के बाद डिग्री प्रदान की जा सके। अगर कोई विद्यार्थी एक निश्चित अवधि के बाद अपना अध्ययन पुनः आरंभ करना चाहता है तो वह अपनी शिक्षा को जारी रख सकता है। इससे उसके ’क्रेडिट बैंक’ में रखा क्रेडिट स्कोर उसके काम आएगा।

शिक्षक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। शिक्षकों के प्रशिक्षण और शैक्षिक विकास के नियमों में भी बदलाव किया गया है। अब शिक्षकों के लिए वर्ष भर में 50 घंटे नियमित ’प्रोफेशनल डेवलपमेंट कोर्स’ अनिवार्य कर दिया गया है ताकि वे तकनीक की मदद से शिक्षण में निरंतर सुधार कर सकें। इसके साथ-साथ “राष्ट्रीय पाठ्यचर्या-2005“ को भी 15 वर्ष हो गए हैं तथा“ शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम“ में भी अपेक्षित बदलाव की जरूरत है। नई शिक्षा नीति में इस दिशा में भी कार्य किए जाने की मंशा जाहिर की गई है। शिक्षण संस्थानों के लिए अलग-अलग नियामक संस्थाओं के स्थान पर एक केंद्रित संस्था का निर्माण प्रस्तावित है। “मानव संसाधन विकास मंत्रालय“ कानाम बदलकर “शिक्षा मंत्रालय“ कर दिया गया है तथा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन का भी प्रस्ताव है।

नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर जोर दिया गया है। यह भारत की नई पीढ़ी को कौशल युक्त करने की सराहनीय पहल है। विद्यालय स्तर पर व्यवसायिक शिक्षा पहले कक्षा नौवीं से दी जाती थी। अब कक्षा छठी से ही आरंभ कर दी जाएगी ताकि वह अपनी वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक की पढ़ाई के बाद अपने रोजगार हेतु कुशलता प्राप्त कर सके।

सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास जरूर करना चाहिए कि कक्षा पाँचवीं तक भाषा संबंधी नियम केवल सरकारी विद्यालयों तक ही सीमित न हो बल्कि निजी विद्यालयों पर भी सख्ती से लागू किए जा सके। ऐसा करने से ही हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्वदेशीकरण हो पाएगा अन्यथा भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाला यह प्रावधान अमीर-गरीब के बीच खाई पैदा करने वाला होगा। इसके साथ साथ हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी, विज्ञान की स्तरीय पाठ्य-सामग्री के अभाव को दूर करने के प्रयास भी यथाशीघ्र होने चाहिए अन्यथा ऐसे प्रावधानों का संपूर्ण लाभ भावी पीढ़ी नहीं उठा पाएगी और भारतीय भाषाएं भी पीछे छूट जाएंगीं। 

शिक्षा राष्ट्र-निर्माण का प्रभावी माध्यम होती है। ऐसे में शिक्षा में असमानता राष्ट्रीय-एकता के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है। जिसको एक समान पाठ्यक्रम अपनाकर दूर किया जा सकता है। अतः नई शिक्षा नीति का महत्व बढ़ जाता है।        ु

(लेखक पूर्व सैनिक है तथा वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए है। समसामयिक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर निरंतर लिखते रहते है।)

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