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एन.एम.पी. से निकलते सवाल

सरकार को अपने संपूर्ण अधिकारों का दुरुपयोग करने से बचना चाहिए तथा एक भागीदार की तरह अधिक कार्य करना चाहिए जो व्यवहारिक होगा और प्रासंगिक भी। — के.के. श्रीवास्तव

 

संपत्ति मुद्रीकरण योजना (एनएमपी) सिद्धांत रूप में अच्छी और आसान लगती है, लेकिन इसको लागू करने से पहले इसके छिद्रों को भरना होगा तथा मौजूद पेंचों-खम को कम करने के लिए ढीले-ढाले रवैया से मुक्ति पाकर दृढ़ता से आगे बढ़ना होगा।

भारत में समाजवादी मानसिकता वाले लोगों के गहरे वैचारिक मूल्य के साथ राज्य के स्वामित्व वाली संपत का निजीकरण भावनात्मक रूप से आवेशित करने वाला और आमतौर पर विवादास्पद मुद्दा रहा है, जिस पर तत्काल प्रतिक्रिया होती है। सरकार ने बुनियादी ढांचे पर नए पूंजीगत व्यय के वित्त पोषण के लिए मौजूदा बजट में सार्वजनिक संपत्ति के मुद्रीकरण की योजना की घोषणा की थी। इसके बाद हाल ही में सरकार ने एक राष्ट्रीय संपत्ति मुद्रीकरण योजना की घोषणा की है। जहां सड़कों, रेलवे, बिजली, विमानन, खेल बुनियादी ढांचे, शिपिंग, दूरसंचार और आवास जैसे क्षेत्रों में सरकारी संपत के 6 लाख करोड़ रुपए का अगले 4 वर्षों में मुद्रीकरण करने का प्रस्ताव है।

मुद्रीकरण का वर्ष-वार सांकेतिक मूल्य
वित्तीय वर्ष 2022    --------------  रू. 88190 करोड़
वित्तीय वर्ष 2023    ---------------- रू. 162422 करोड़
वित्तीय वर्ष 2024    ---------------- रू. 179544 करोड़
वित्तीय वर्ष 2025    ---------------- रू. 167345 करोड़

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत के अनुसार, ‘‘कार्यक्रम का राजनीतिक उद्देश्य संस्थागत और दीर्घकालिक रोगी पूंजी का दोहन करके ब्राउनफील्ड सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति में निवेश के मूल्य को अनलॉक करना है, जिसे बाद में सार्वजनिक निवेश के लिए लाभ उठाया जा सकता है।’’ योजना के तहत निजी खिलाड़ी इनबिल्ट रूट का उपयोग करके निश्चित रिटर्न के लिए परियोजनाओं में निवेश कर सकते हैं। वे सरकार को वापस स्थानांतरित करने से पहले एक निश्चित अवधि के लिए संपत्ति का संचालन और विकास भी कर सकते हैं और कुछ संपत्तियां जैसे गोदाम और स्टेडियमों को भी लंबी अवधि के आधार पर पट्टे पर दिया जा सकता है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार, ‘केवल उन्हीं संपत्तियों को इसमें शामिल किया जाएगा जो या तो खराब हो रही है या कम इस्तेमाल की जा रही है, इस प्रकार से जुटाए गए धन को आगे बुनियादी ढांचे में निवेश किया जाएगा।’ सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि यह संपत्तियां स्वामित्व नहीं बदलेगी, ये ब्राउनफील्ड संपत्ति सरकार के स्वामित्व में रहेगी और लीज अवधि समाप्त होने के बाद सरकार के पास वापस आ जाएंगी।

परिसंपत्ति                                                      मूल्य (करोड़ में)
सड़कें    ....................................................... 1,60,200
रेलवे    .......................................................   1,52,496
पॉवर टं्रासमिशन    ......................................    45,200
पॉवर जेनरेशन    ..............................................39,832
टेलीकॉम    ......................................................35,100
भंडारण    ....................................................... 28,900
खनन    .......................................................    28,747
नेचुरल गैस पाईपलाइन    ...................................24,462
प्रोडक्ट पाईपलाइनस/अन्य    ..............................22,504
विमानन    .......................................................20,782
बंदरगाहों    .....................................................12,828
स्टेडियमस    ...................................................11,450

ज्ञात हो कि यह कोई नई अवधारणा नहीं है। भारत अतीत में भी दिल्ली हवाई अड्डे आदि के तरह की संपत्तियों का सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से संपत्ति का मुद्रीकरण करता रहा है। हालांकि पिछले वर्षों का सरकारी ट्रैक रिकॉर्ड बहुत प्रेरणादायक नहीं है। पुरानी परिपाटी को देखते हुए हम कह सकते हैं कि लक्ष्य को हासिल करना असंभव तो नहीं, लेकिन बहुत कठिन काम है।

क्योंकि यह सारा मामला बाजार की स्थितियों पर निर्भर करता है। इसलिए भी यह एक चुनौतीपूर्ण काम है। फिर भी यदि वर्तमान वैश्विक तरलता अधिशेष भारत में प्रवाहित होता है तो लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाएगा। कुछ विशिष्ट संपत्तियां चुनौती का कारण बन सकती है, इनमें से कुछ परिसंपत्तियों को किसी खास को दिये जाने की भी आशंका निर्मूल नहीं है। अगर ऐसा होता है तो जाहिर है कि राजस्व में कमी हो सकती है। 

विनिवेश रिकॉर्ड (करोड़ रू. में)
वित्तीय वर्ष                       बजट अनुमान               वास्तविक आंकड़ें
वित्तीय वर्ष  2017                 56,500                        47,742
वित्तीय वर्ष 2018                  72,500                      100,045
वित्तीय वर्ष 2019                  80,000                        94,727
वित्तीय वर्ष 2020                105,000                       50,304
वित्तीय वर्ष 2020                210,000                       32,886

उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में संपत्ति के पुनर्चक्रण का बड़ी सफलता के साथ प्रयास किया गया। इसलिए भारत में भी परिसंपत्तियों का अगर सही तरीके से मुद्रीकरण किया जाए तो यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। संपत्तियों का सर्वोत्तम उपयोग उनका उचित रखरखाव उच्च स्तर और सेवा की गुणवत्ता का प्रावधान संचालन की दक्षता में सुधार आदि के जरिये यदि योजना को अच्छी तरह से क्रियान्वित किया जाता है तो इससे नए रोजगार का सृजन भी संभव होगा और इन सबसे ऊपर सरकार को सामाजिक क्षेत्र पर खर्च करने के लिए अतिरिक्त संसाधन भी प्राप्त हो जाएंगे।

इसमें कोई दो राय नहीं कि शुरुआत में निजी खिलाड़ी सीमित समय अवधि में अपने लाभ को अधिकतम करना चाहेंगे इसलिए वह शायद कीमतें बढ़ाना पसंद करेंगे, लागत में कटौती और प्रतिस्पर्धा को सीमित करने की कोशिश करेंगे। हमारे सामने सिंगापुर का उदाहरण है जहां राज्य को अपनी उपनगरीय ट्रेनों और सिगनलिंग सिस्टम का राष्ट्रीयकरण करना पड़ा, क्योंकि मुख्य निजी ऑपरेटर ने रखरखाव में कम निवेश किया था इससे यात्रियों को बहुत ही खराब सेवा का सामना करना पड़ा। इसी तरह न्यू साउथ वेल्स में निजीकरण के बाद बिजली की कीमतें दोगुनी हो गई और सरकार को फौरी तौर पर कठोर कदम उठाना पड़ा।

नौकरशाही क्षमता और निवारण व्यवस्था की कठोरता के बारे में भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सभी जानते हैं कि इस कवायद से कुछ व्यापारिक घरानों के हाथों में सत्ता का केंद्रीकरण हो सकता है। हवाई अड्डे (अदानी) या दूरसंचार (अंबानी और मित्तल) के बारे में शंकाएं उठाई जा रही हैं। इसके अलावा निजीकरण से नौकरी जाने की संभावना है क्योंकि अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में कर्मचारियों की भरमार है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यदि एनएमपी सौदों को सभी हितधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए संरक्षित नहीं किया जाता है तो अंतिम उपयोग कर्त्ता, कर्मचारी, छूटग्राही, सरकार, सभी  के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। 

2014 के बजट में सरकार ने पिछली गलतियों से सीखते हुए नए पीपीपी मॉडल तैयार करने के लिए एक शीर्ष निकाय स्थापित करने का वादा किया था, पर दुर्भाग्य से अब तक ऐसा कुछ हुआ नहीं। अगर समय रहते इसका गठन हुआ होता तो निश्चित रूप से भारत की संस्थागत क्षमता अब तक अधिक परिपक्व हो गई होती।

इस योजना को लेकर सशंकित  उपभोक्ताओं को भरोसे में लेना होगा।  सरकार अगर कुछ चुने हुए कदम गंभीरता से उठाती है तो निश्चित रूप से यह संदेश जाएगा कि यह योजना ऊंची दुकान के फीके पकवान के कहावत जैसी नहीं है बल्कि अपने सफल क्रियान्वयन की ओर अग्रसर है।

एक, सरकार की सीमित निष्पादन क्षमता को देखते हुए नीति आयोग को पूरी प्रक्रिया के माध्यम से मंत्रालयों को सौंपने की जरूरत है। सभी को एक साथ मिलकर संपत्ति मुद्रीकरण विवरण को अंतिम रूप देना, ठीक करना और औपचारिक बनाना चाहिए। याद रहे चालू वर्ष का लक्ष्य अत्यंत कठिन है चालू वित्तीय वर्ष में केवल 6 महीने  शेष हैं।

दो- सरकार को व्यवहारिकता दिखानी होगी। उसे संपत्ति का उचित मूल्य देना चाहिए, लेकिन महंगा नहीं। भले ही उसे संयम बरतना पड़े। कम से कम लेनदेन के शुरुआती दौर के लिए वैल्यूएशन बना या बिगाड़ सकता है।

तीन- वर्तमान में राज्य एक प्रमुख खिलाड़ी है। इसलिए नियामक ढांचे को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि कानूनी पचड़ा फैलाने की जगह मदद की नीयत से आगे आवें। शासन को पारदर्शी, निष्पक्ष सरकारी प्रभाव से मुक्त और वैचारिक अधिभार से मुक्त होना चाहिए। एक बार स्वायतत्ता मिल जाने के बाद यूनियनों आदि से निपटने में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। मालूम हो कि रेलवे में निजीकरण का मामला बहुत ही निराशाजनक रहा है। प्रारंभ में उम्मीद थी कि रेलवे के निजीकरण से 30 हजार करोड रुपए की पूंजी जुटाई जाएगी, लेकिन वहां से केवल 7200 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए। इसलिए कहा जा सकता है कि सरकार को अपने संपूर्ण अधिकारों का दुरुपयोग करने से बचना चाहिए तथा एक भागीदार की तरह अधिक कार्य करना चाहिए जो व्यवहारिक होगा और प्रासंगिक भी।

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