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आरसीईपी व्यापार समझौता और भारत की भूमिका 

दुनिया अभी बहुत ज्यादा बदली नहीं है और देश का सार्वभौमत्व दाव पर लगाकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसलिए भारत के ऐसे समझौते से बाहर रहने की भूमिका सराहनीय कही जाएगी। — अनिल जवलेकर

 

हाल ही में एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस में शामिल 10 देश और चीन, जापान, साउथ कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि देशों ने मिलकर एक व्यापार समझौता किया है। हालांकि भारत इस समझौता बातचीत के शुरूआती दौर में शामिल था लेकिन आखिर में इससे बाहर निकल आया। दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन में शामिल 10 देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम) और छः देश (जिसमें चीन, जापान, साउथ कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलंड और भारत शामिल है) एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर चुके थे और इसलिए यह सोलह देश मिलकर एक व्यापक व्यापार समझौता करने की कोशिश में थे। अब यह समझौता भारत को छोड़कर बाकी 15 देशों के बीच हुआ है। भारत इससे बाहर क्यों हुआ यह जानना दिलचस्प रहेगा। 

भारत और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 

भारत के लिए व्यापार, वह भी दूर दराज़ के देशों से करना, कोई नई बात नहीं है। सदियों से भारत और कई देशों के बीच व्यापार होता आया है। व्यापार का कारण देते हुए ही कई देशों ने कई देशों पर राज किया है और कई शतकों तक उनको गुलाम बनाकर रखा हुआ था। भारत भी इस गुलामी के दौर से गुजरा है। दूसरे महायुद्ध के बाद कई देश स्वतंत्र हुए और अपनी-अपनी व्यापार नीति अपनाने लगे। इसके बाद ही व्यापार समझौतों का दौर चल पड़ा। अब तो दो देशों के बीच व्यापार समझौते जैसे हो रहे है वैसे ही क्षेत्रीय तथा बहुत से देश मिलकर भी समझौते करने लगे है। भारत सभी प्रकार के समझौते में विश्वास रखता है और समझौते करने के लिए तैयार रहता है। वैसे सभी देश अपना हित ध्यान में रखकर ही समझौते करते है। भारत भी अपना हित सामने रखता आया है।

भारत की अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्थिति 

भारत को व्यापार दृष्टि से एक खुला हुआ देश कह सकते है। भारत अब विकासशील देशों से ज्यादा व्यापार करने लगा है और पहले के मुक़ाबले यूरोपियन, यूनियन देश तथा अमेरिका को होने वाली भारत की निर्यात अब कम हो रही है। वैसे ही पहले के मुक़ाबले अब भारत उद्योग, मशीनरी, ओटोमोबाइल, कारों के पार्ट्स तथा पैट्रोलियम उत्पाद का भी निर्यात करने लगा है। उत्पादित वस्तु तथा पैट्रोलियम उत्पाद अब निर्यात के 85 प्रतिशत है। कृषि और उसके निर्यात का प्रतिशत कम हो रहा है (2016-17)। भारत की लाजिस्टिक लागत निर्यात में एक बड़ी बाधा माना जाती है। यह विकसित देशों के मुक़ाबले लगभग दोगुनी है। भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता आ रह है और इसका अंतर राष्ट्रीय व्यापार घाटे का ही है। 

भारत और व्यापार समझौते

क्षेत्रीय व्यापार समझौते का चलन 1990 के दशक से बढ़ता आया है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार का लगभग आधा व्यापार अब इन्हीं समझौते के तहत होता है। साथ-साथ बहुद्देशीय व्यापार समझौते डब्ल्यूटीओ की देखरेख में चलते है। एक पुराने आंकडे के अनुसार करीब 455 क्षेत्रीय व्यापार समझौते दुनिया में अमल में थे। भारत ने लगभग 14 ऐसे समझौते किए थे और बहुत पर वार्ता चल रही थी। भारत ने कई फ्री-ट्रेड समझौते भी कई देशों के साथ किए हुए है। नीति आयोग के एक अभ्यास के अनुसार फ्री-ट्रेड समझौते से भारत को बहुत लाभ नहीं हुआ। भारत का आयात निर्यात के मुकाबले बढ़ा है। ऐसे समझौते की वजह से भारत की व्यापार टूट बढ़ी है। यह देखा गया है कि भारत की निर्यात आय व्यापार शुल्क में हुए बदलाव से प्रभावित होती है, न कि कीमत से। इसलिए शुल्क कम करने से निर्यात नहीं बढ़ती। भारत ने 2006 से क्षेत्रीय व्यापार समझौते पर ध्यान दिया, जिसका भी निर्यात बढ़ने में बहुत उपयोग नहीं हुआ। 

आरसीईपी समझौता

एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस में जुड़े हुए 10 देश और साथ आए चीन, जापान, साउथ कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलंड जैसे देशों ने मिलकर जो अभी समझौता किया है उसमें भारत शामिल नहीं हुआ। पिछले सात साल से चल रही वार्ता का अंत एक समझौते में हुआ, यह बात अच्छी मानी जाएगी। भारत वार्ता में शामिल रहा है लेकिन पिछले साल इससे बाहर हो गया। समझौते की मुख्य बातें समझे बगैर भारत का समझौते से बाहर होना नहीं समझा जा सकता। 

1.    पहली बात तो यह है कि यह समझौता डब्ल्यूटीओ के तहत सहकार करता है और अलग से कुछ नहीं करेगा। 

2.    दूसरी बात, यह समझौता व्याप्ति तथा प्रतिबद्धता की दृष्टि से व्यापक होगा। व्यापार के साथ कई और बातें भी समझौते के दायरे में आएंगी, जैसे कि निवेश तथा तकनीकी विकास। 

3.    तीसरी बात यह कि यह समझौता एक रूल बूक के तहत व्यापार करेगा। सबको एक ही रूल के तहत व्यापार करना होगा। 

4.    चौथी बात, यह समझौता एक दूसरे के हित को ध्यान में रखकर बर्ताव करेगा। 

5.    पांचवी बात, यह समझौता तकनीकी सहयोग और क्षमता निर्माण में भी सहकार करेगा। 

समझौते से अपेक्षित बातें 

यह कहने की बात नहीं है कि हर देश अपना व्यापार और मुनाफा बढ़ाना चाहता है। यह जब देश की निर्यात ज्यादा और आयात कम हो तो, लाभ होता है। इसका मतलब हर देश अपनी निर्यात बढ़ाना चाहता है और ऐसे समझौते से यही अपेक्षा रखता है। 

यह बात सही है कि अपने देश के विकास में आवश्यक साधन सामग्री बहुत बार देश में उपलब्ध नहीं होती और उसका नियमित और सस्ते दामों पर आयात करने की बात समझौते से आसान हो जाती है।  इसलिए समझौते से यह अपेक्षा रहती है कि ऐसा आयात आसानी से हो सके और अपने देश को निर्यात में सहूलियत मिले। 15 देशों द्वारा किया समझौता भी यही करने जा रहा है। 

1.    पहली बात, समझौते में शामिल सभी देश चाहते है कि आपसी व्यापार मुक्त हो। इसलिए आपसी व्यापार में आयात-निर्यात शुल्क कम से कम हो। 

2.    यह समझौता चाहता है कि सभी देश आपसी निवेश और तकनीकी सहायता बढ़ाए। 

3.    समझौते में शामिल देश एक ही समान नीतियों के तहत काम  करे और एक जैसे नियम अपनाए। 

4.    समझौता यह भी चाहता है कि समझौते के बाहरी देशों के साथ किया जाने वाला व्यापार शामिल देशों से बेहतर निबंधन के साथ न हो। 

5.    समझौते में शामिल देश व्यापार में एक दूसरे को विशेष चयन करेंगे और व्यापार बढ़ाने में एक दूसरे की मदद करेंगे। 

भारत की भूमिका 

1.    इस समझौते से भारत का व्यापार घाटा बढ़ने का खतरा ज्यादा था क्योंकि भारत का व्यापार 15 देशां में से ग्यारह देशों के साथ घाटे में चल रहा है, जिसमें चीन मुख्य है। जाहिर है कि भारत चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ाना नहीं चाहता। 

2.    आयात शुल्क कम करने का मतलब अपनी आयात बढ़ाना होगा और अपने उद्योगों के व्यापार पर आघात करना होगा। चीन के साथ व्यापार घाटे का परिणाम भारत भुगत रहा है।

3.    भारत समझता है कि इस समझौते में चीन मुख्य भागीदार है, जिसकी  व्यापार शक्ति, तकनीकी शक्ति और सैन्य शक्ति सबसे ज्यादा और प्रभावी है। इसलिए इस समझौते में शामिल होने का मतलब चीन की प्रभुसत्ता के साथ काम करना है। भारत यह जोखिम उठाना नहीं चाहता। 

4.    भारत इस समझौते से बाहर रह कर भी इन सभी देशों से व्यापार संबंध रख सकता है और अपना व्यापार बढ़ा सकता है। समझौते में शामिल होने से यह ज्यादा अच्छा सुविधाजनक पर्याय है। 

5.    भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और आत्मनिर्भरता पर विश्वास रखकर नीतियां अपनाने की कोशिश  कर रहा है। इसलिए किसी विशेष शक्ति के साथ व्यापार कर नुकसान नहीं होने देना चाहता। 

कोविड-19 के चलते सभी देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे है और ऐसी हालत में व्यापार को किसी देश और क्षेत्र से बंधे रखना गलत होगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार आत्मनिर्भरता में सहयोग दे सके, इतना ध्यान में रखना अब जरूरी हो गया है। दुनिया अभी बहुत ज्यादा बदली नहीं है और देश का सार्वभौमत्व दाव पर लगाकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसलिए भारत ऐसे समझौते के बाहर रहने की भूमिका सराहनीय कही जाएगी।         
लेखक स्वदेशी पत्रिका में लिखते आ रहे है।

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