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प्रस्ताव-1 (14th Rashtriya Sammelan (Digital) of SJM (December 12-13, 2020, New Delhi)) - Hindi

खुदरा बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनी के छद्म प्रवेश रोका जाए

भारतीय खुदरा क्षेत्र, दुनिया के सबसे बड़े खुदरा बाजारों में से एक है। यह जहां हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत का योगदान देता है, यह देश में प्रमुख रोजगार प्रदाता भी है। देश में कुल रोजगार का 8 प्रतिशत खुदरा क्षेत्र से आता है। देश के कुल खुदरा व्यापार का 81 प्रतिशत भाग पारंपरिक खुदरा बाजार का है, जबकि संगठित और ई-कॉमर्स का योगदान क्रमशः 9 प्रतिशत और 3 प्रतिशत है। 8 करोड से अधिक लोगों द्वारा दो करोड़ छोटी बड़ी दुकानों के माध्यम से पारंपरिक खुदरा व्यापार संचालित होता है। यह क्षेत्र ने न केवल रोजगार उत्पन्न करता है, बल्कि युवा पीढ़ी को अपने उद्यमशीलता का कौशल दिखाने का अवसर भी देता है। खुदरा व्यापार में लोगों को लाभप्रद रोजगार मिलने के कारण सरकार पर लगातार बढ़ती आबादी हेतु रोजगार उपलब्ध कराने का दबाव भी कम होता है।

इस पृष्ठभूमि में सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश के प्रतिबंधित किया हुआ है। सरकार की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में इन्वेंटरी (भंडारण) मॉडल में एफडीआई को अनुमति नहीं दी है। हालांकि खुदरा क्षेत्र के नवीनतम तकनीकी विकास को सुनिश्चित करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मार्केट प्लेस मॉडल के साथ मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र में काम करने की अनुमति दी गई है। मार्किट प्लेटफार्म स्थानीय उत्पादों को ऑनलाइन बेचने और उपभोक्ताओं को खरीदने की सुविधा प्रदान करते हैं। ध्यातव्य है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां मार्किट प्लेस मॉडल में काम करने के लिए निर्धारित नियमों और मानदंडों की धज्जियां उड़ा रही है। स्वदेशी जागरण मंच द्वारा समय-समय पर सरकार को बताया जाता रहा है, लेकिन लगता है कि सरकार से अभी भी पूरी तरह से समाधान प्राप्त नहीं हो रहा है।

हाल ही में सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन भी किया गया है और निर्यातकों, सुपर बाजारों और बड़े थोक विक्रेताओं के लिए सभी कृषि उत्पादों के मात्रात्मक भंडारण की सीमा हटा ली गई है।

हम देख रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मल्टीब्रांड रिटेल क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का काम किया है। अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुख्य स्थानीय कंपनियों के साथ सोझेदारी कर रही है। इस माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां अत्यंत चालाकी से यह कोशिश कर रही है कि देश के एफडीआई कानूनों को धत्ता दिखाते हुए ‘ओमनी चैनल’ खुदरा मॉडल व्यवस्था लागू की जाए।

इन निवेशों में फेसबुक (जो व्हाट्सएप की भी स्वामी है) द्वारा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा बनाई गई जिओ प्लेटफार्म लिमिटेड में किया गया निवेश सर्वाधिक महत्व का है। जिओ प्लेटफार्म में जिओ टेलीकॉम लिमिटेड, (जो भारत का सबसे बड़ा टेलीकॉम नेटवर्क है), टीवी-18 (एक मीडिया कंपनी ग्रुप) और जिओ मार्ट (ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस) शामिल है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के संपूर्ण स्वामित्व वाली रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड, एक प्रमुख संगठित रिटेल खिलाड़ी है, जो रिलायंस रिटेलस, रिलायंस फ्रेश आदि के नाम से स्टोरों का संचालन करती है। इसने हाल ही में फ्यूचर समूह के खुदरा व्यापार का भी अधिग्रहण किया है, जो बिग बाजार, एफबीबी, सेंट्रल फूड हाल जैसे ब्रांड का भी स्वामी है। इस अधिग्रहण के बाद रिलायंस रिटेल इनके बड़े लाजिस्टिक्स और वेयर हाउसिंग (भंडारण) इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी नियंत्रित करने लगेगा। रिलायंस रिटेल ने ‘नेटमेड’ नामक ई-फार्मेसी का भी अधिग्रहण कर लिया है। इसके साथ ही रिलांयस रिटेल ने बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश भी प्राप्त किया है।

जिओ प्लेटफार्म लिमिटेड एवं रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड ने ‘जिओ-मार्ट-देश की अपनी दुकान’ के नाम से एक मल्टीब्रांड रिटेल बिजनेस मॉडल भी शुरू कर दिया है, जहां उपभोक्ता उत्पादों का चयन आनलाईन करेगा और उसकी डिलीवरी किराना स्टोरों के माध्यम से संपन्न कराई जायेगी। इस हेतु किरानो स्टोरों का पंजीकरण शुरू हो रहा है।

यानि ध्यान में आ रहा है कि  -

1.    विदेशी कपंनियां अब इन्वेंट्री आधारित मॉडल में शामिल हो जायेंगी, जहां विदेशी निवेश को फिलहाल अनुमति नहीं है।

2.    रिलायंस रिटेल और बिग बाजार अब आफलाईन खुदरा व्यवसाय में वर्तमान खिलाडियों जैसे डीमार्ट, क्रोमा इत्यादि पर हावी हो जायेंगी।

3.    स्थानीय किराना स्टोर अब जिओ मार्ट के मात्र आपूर्ति केंद्रों में तब्दील हो जायेंगे।

4.    थोक विक्रेता अब जिओमार्ट और रिलांयस रिटेल के भंडारण केंद्रों में तब्दील हो जायेंगे।

5.    रिलायंस रिटेल अब बड़ी मात्रा में कृषि उत्पादों की खरीद और भंडारण कर सकेगा। 

6.    हमारे कैमिस्टों (मेडिकल स्टोरों) को रिलायंस रिटेल (एक आनलाईन विक्रेता) के साथ गैरबराबरी की प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी।

ऐसी आशंका है कि इसके साथ ही 38 प्रतिशत खुदरा व्यवसाय अब रिलायंस इन्डस्ट्रीज के पास आ जायेगा। यह बदलाव एक ऐसी एकाधिकारिक प्रवृत्ति को जन्म देगा, जिसमें एक कंपनी न केवल आपूर्तिकर्ताओं, किसानों आदि का कम कीमत पर खरीद कर शोषण कर सकेगी, बल्कि बाजार में प्रतिस्पर्द्धा के अभाव में उपभोक्ताओं को माल महंगा बेचकर उनका भी शोषण कर सकती है।

स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि -

1.    चूंकि भारतीय बिजनेस घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच यह सांठगांठ न केवल स्थानीय किराना स्टारों के रूप में भारत के बहु ब्रांड खुदरा में संलग्न एक बड़ी जनसंख्या सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों क्षेत्र ही नहीं उपभोक्ताओं के हितों पर भी कुठाराघात करेंगी, उन्हें इस क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं दी जाये।

2.    इन सभी बदलावों के गैर संगठित खुदरा में कुल रोजगार और उपभोक्ताओं पर पड़ने वले वास्तविक दुष्प्रभावों की सरकार जांच कराये।

3.    देश के कानूनों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभावों के मददेनजर ई-कॉमर्स के जरिये दवा बिक्री को अनुमति न दी जाये।

4.    एफडीआई नियमों को उपयुक्त तरीके से संशोधित किया जाये, ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तरीके से बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रवेश रोका जा सके।

 

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