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चीन में अनहोनी की सुगबुगाहट

चीन की मौजूदा शांति वहां के राष्ट्रपति शी के अधिकार को चुनौती देने वाली हो सकती है लेकिन निकट भविष्य में दुनिया के बारे में उनके विचार में बदलाव की संभावना नहीं है। — के.के. श्रीवास्तव

 

चीन की शून्य कोविड रणनीति के कारण वहां के आम नागरिकों में व्यापक आक्रोश और विरोध का माहौल बना हुआ है। चीन में इन दिनों जनता और तानाशाह शी जिनपिंग के बीच ठन गई है। तानाशाह पीछे हटने को तैयार नहीं है, तो वहीं जनता अब और सहने के मूड में नहीं है। 1989 में थ्येनमेन चौराहे पर अपनी जनता पर तोप चलाने से भी चीन के पूर्व तानाशाहों ने गुरेज नहीं किया था। उस समय चीन में हुए लोकतंत्र समर्थक विरोध में अधिकतर विद्यार्थी हिस्सा ले रहे थे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने विद्यार्थियों के इस विद्रोह को दबाने के लिए उन्हें फांसी की सजा दी और उसका टेलीकास्ट टीवी पर करवाया था, जिससे जनता की हड्डियों में डर समा जाए, एक बार फिर उसी तरह का माहौल वहां बना हुआ है।

विडंबना यह है कि लॉकडाउन में ढ़ील देने से बीमारी और मृत्यु में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि बुजुर्ग चीनी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरी तरह से टिका लगवाया नहीं है। हालिया विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर कुछ इलाकों में थोड़ी ढील दी गई है, लेकिन प्रशासन किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह चौकस है। प्रदर्शनकारियों के नेताओं को साधने की कोशिश की जा रही है। चीनी विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया है। पुलिस तानाशाही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की वकालत करने वालों और विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर उतरी है। लोग फिर भी उत्तेजित हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी स्वतंत्रता पर बहुत कठोर अंकुश लगाया गया है। यह वे नागरिक हैं जिन्होंने कभी लोकतंत्र का स्वाद नहीं चखा है। उनकी सत्ता में कोई हिस्सेदारी नहीं है और न ही उनका सुझाव देने में कोई भूमिका नहीं है कि उन्हें कैसे शासित किया जाना चाहिए, फिर भी उन्होंने सड़कों पर आने का विकल्प चुना है।

2022 में चीन की फिजां बदली हुई है। चीन की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। विनिर्माण का काम रुका हुआ है। आपूर्ति श्रृंखला बाधित है। लॉकडाउन की नीति को सख्ती से लागू करने के कारण महंगाई बढ़ रही है। बेरोजगारी चरम पर है। प्रॉपर्टी बाजार का बुलबुला फूट चुका है। बैंक दिवालिया हो रहे हैं। लोगों के पास खाने तक के पैसे नहीं हैं। कारखाने के उत्पादन में आई मंदी ने आम जनता की दैनिक रोटी कमाने की क्षमता को भी प्रभावित कर दिया है। लेकिन चीन अपने शीर्ष नेतृत्व मुख्य रूप से राष्ट्रपति की भूल को पेश करने के उद्देश्य से अपने स्वयं के प्रचार में ही फंस गया है। शी ने समृद्धि का आह्वान किया है, जो जीरो कोविड जैसा नारा मात्र है। हालांकि वहां विरोध निश्चित रूप से उस चरण तक नहीं पहुंचा है, जहां राज्य स्थिति पर नियंत्रण खो देता है। फिलहाल इसकी संभावना भी नहीं है। कोई याद कर सकता है कि कैसे 1989 के विद्रोह को क्रूर बल से कुचल दिया गया था। फिर भी किसी को यह स्वीकार करना चाहिए कि इस तरह के क्रोध का विस्फोट एक ऐसे देश में साहस का काम करता है, जहां बहुत कमजोर कानूनी अधिकार वाले व्यक्तियों को बंदूक के बल पर नियंत्रित किया जाता है।

चीन की अर्थव्यवस्था को जल्दी ठीक होने की संभावना नहीं है। युआन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपना जमीन खो चुका है। साथ ही विरोध प्रदर्शनों का अंतरराष्ट्रीय करण भी बढ़ रहा है, जिसमें दुनिया के कई हिस्से में लोग चीनी दूतावासों के सामने इकट्ठा होकर अपना विरोध जता रहे हैं। आमतौर पर चीन इस तरह की आलोचनाओं को खारिज करता रहा है। इस बार थोड़ी बात अलग दिख रही है। क्या हम चीन पर विश्वास कर उसे खूली छूट से खेलने का अवसर दे सकते हैं? चीन जिम्मेदारी से कार्य करेगा, इसकी फिलहाल कोई संभावना नहीं है। ऐसा देखते हुए भी कि शी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुने गए हैं और उनके शासन मॉडल का हर कीमत पर बचाव किया ही जाएगा। शी अपने अधिकार में सेंध लगाने की अनुमति कतई नहीं दे सकते, लेकिन हालिया घटनाओं से यह भी अनुमान किया जा सकता है कि वर्ष 2023, 1989 नहीं होगा। तब चीन ने आर्थिक उच्च भूमि को प्राप्त किया था, अब इसकी संभावना बहुत कम नजर आ रही है। इसे हालिया आर्थिक अनुमानों से भी समझा जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) को उम्मीद है कि 2022 में चीनी अर्थव्यवस्था 3.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी, जो एशिया में अपने उभरते बाजार साथियों की तुलना में लगभग 1.2 प्रतिशत धीमी है। वास्तव में चीनी अर्थव्यवस्था गति खो रही है। 2002 से 2012 के बीच अर्थव्यवस्था वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के सीएजीआर में लगभग 11 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन यह दर 2012 से 2021 के शी शासन अवधि के दौरान 7 प्रतिशत से भी अधिक कम हो गई। शी का लक्ष्य अगले दशक में चीन को मध्य स्तर का विकसित देश बनाना है, इसके लिए इसे सालाना करीब 5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की जरूरत होगी, लेकिन कुछ टिप्पणीकारों का अनुमान है कि यह वास्तव में लगभग 2.5 प्रतिशत ही बढ़ सकता है। तो यह केवल अस्थाई लॉकडाउन की बात नहीं है। घटती जनसंख्या, घटती उत्पादकता, वृद्धि और भारी कर्ज के बोझ ने इसे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से रोक दिया है, जबकि पहले (डेंग शियाओपिंग के शासन के दौरान) निजी पूंजी (वैश्विक खिलाड़ियों) का स्वागत किया गया था। अब राज्य के लिए अधिक भूमिका अधिक केंद्रीय योजना और सामान्य समृद्धि की प्राप्ति होगी। राज्य और निजी पूंजी के बीच समीकरण का यह समुद्री बदलाव चीनी आर्थिक संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

आर्थिक, राजनीतिक, शासन सभी मामलों में शी का एजेंड़ा पूरी तरह से उनकी नीतियों को सही साबित करने की आवश्यकता से प्रेरित लगता है, लेकिन इस प्रक्रिया में शासन का यह अधिनायकवादी मॉडल आम नागरिकों की दुर्दशा का जवाब देने में विफल रहा है। आगे भी इसके विफल होने की ही संभावना है। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि राजनीतिक और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की आर्थिक भलाई द्वारा भरपाई नहीं की जाएगी, तब तक नाराजगी और गुस्से वाले विरोध प्रदर्शनों में वृद्धि होगी। हालांकि वहां की सरकार के नरम पड़ने के संकेत नहीं है, लेकिन अहम सवाल है कि लंबे समय तक चीनी मॉडल अपना अस्तित्व कैसे बनाए रखेगा। चीनी राज्य को अपनी प्रजा पर अब तक अपार शक्ति प्राप्त है। शायद यह अपने स्वयं के अधिकार के प्रति अनिश्चित हो सकता है, एक मॉडल के रूप में लोकतंत्र आदर्श नहीं हो सकता। लेकिन सत्तावादी शासन निश्चित रूप से गहरे संकट में है। लोग स्वतंत्रता के लिए तरस रहे हैं। राजनीतिक और आर्थिकतौर पर वे खुद को थोड़ा और ज्यादा आजाद करना चाहते हैं। बंद समाज जो अपने सदस्यों की भलाई को जोखिम में डालते हुए राष्ट्रवादी गौरव का पोषण करते हैं, वह उथल-पुथल के लिए खुले हैं। इसीलिए चीन ने विदेशी वैक्सीन को खारिज करते हुए महामारी को रोकने में खुद को असमर्थ पाया। जिन लोगों का पेट भरा हुआ है वह कुछ समय के लिए अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता को छोड़ने का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन जब आर्थिक विकास भी नहीं हो पाता है तो वह अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व समझने लगते हैं।

फिर भी निकट भविष्य में चीन के वर्तमान शासन का मृत्यु लेख लिखना जल्दबाजी होगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि शी एक और सामरिक रियायतें दे सकते हैं और दूसरी ओर लक्षित दमन का प्रयास कर सकते हैं। वास्तव में वहां की सरकार ने उस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। दूसरा, अधिकांश विरोध जैसा कि इतिहास हमें बताता है या तो एक क्रूर बल के माध्यम से दबा दिया जाता है या तो वह अपने आप ही फीका पड़ जाता है। तीसरा, इस तरह के विरोधों के लिए एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता होती है। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां के विरोध प्रदर्शनों को फैलने से रोक दिया गया है और लगभग दबा दिया गया है। चौथा, जब वहां की सत्ता एक आदमी और उसके आश्रितों में ही केंद्रित है तो ऐसे में इस बात की बहुत कम संभावना है। शी जल्दी से अपने अधिकार को फिर से हासिल करने में कोई देरी करेंगे। हालांकि दुनिया चीन के शी शासन को थोड़ा पीछे हटते हुए देख सकती है, लेकिन उसमें पूरी सच्चाई नहीं है। दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के हथकंडे आगे भी शी अपनाते रहेंगे।

ऐसे में सवाल है कि इसके आगे क्या है? मेरी राय में शी को अभी तक अपने शासन या नीतियों के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है, फिर भी उसके लिए आत्म-त्याग की मुद्रा में रहना मूर्खता होगी। उनके अधिकार को निश्चित रूप से चुनौती दी गई है। अब जबकि शी चीन को आक्रामक संशोधनवादी विश्व नेता के रूप में पुनर्स्थापित करना चाहते हैं, अपने मन के मुताबिक स्थानीय और विश्व व्यवस्था को फिर से आकार देना चाहते हैं तो जाहिर सी बात है कि उन्हें दुनिया भर की प्रतिक्रियाएं झेलनी ही होगी। जिनपिंग ने चीनी सत्ता पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित तो कर लिया है, लेकिन चीनियों का एक बड़ा वर्ग देश के भविष्य को नकारात्मक रूप से देखना देखने लगा है। आर्थिक विकास के लिए बाजारों के खिलाफ राज्य पर बढ़ती निर्भरता साझा नियत के नाम पर अधिक मुखर नीतियां और राजनीतिक नियंत्रण के साथ उन्होंने सब कुछ अपने कब्जे में करने की कोशिश की है। उनकी इन कार्रवाइयों से भविष्य का आभासी झलक तो मिल रही है लेकिन वास्तविक तस्वीर सामने आनी अभी बाकी है।        

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