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कोरोना की दूसरी लहर: जैविक हमले का परिणाम तो नहीं! 

जैविक शस्त्रा संपूर्ण मानवता के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि ये न तो दिखाई देते हैं और न ही इनका तात्कालिक इलाज उपलब्ध होता है। वस्तुतः घातक बीमारी पैदा करने वाले जैविक माध्यम होते हैं, जिनका प्रयोग हथियार के रूप में किया जाता है। — अनिल तिवारी

 

कोरोना महामारी की पहली लहर पर कमोबेश नियंत्रण हासिल कर चुके भारत पर दूसरी लहर का कहर सब पर भारी पड़ रहा है। मार्च के अंत तक आते-आते कोरोना ने अपनी काया बदलकर जोरदार हमला किया। अलग-अलग मरीजों में अलग-अलग लक्षणों के साथ घुसा यह वायरस पकड़ में नहीं आ रहा था। अप्रैल आते-आते इसने प्राणघातक रूप अख्तियार कर लिया। हमारा स्वास्थ्य तंत्र चरमरा उठा। अस्पतालों में जगह कम पड़ने लगी। ऑक्सीजन के लिए लोग सड़कों पर भटकने लगे। इस वायरस ने हमें स्पष्ट रूप से चेताया है कि आजादी के बाद से चली आ रही स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ कोरोना जैसे दुश्मन से नहीं लड़ा जा सकता। लेकिन लगे हाथों यह भी प्रश्न किया जा रहा है कि कोरोना की यह दूसरी लहर किसी जैविक हमले का परिणाम तो नहीं, अगर इसका उत्तर ‘हां’ में है, तो हमें और अधिक सचेत होते हुए अपने स्वास्थ्य ढांचे को इस अनुरूप भी विकसित करना होगा।

जैविक हथियार के जनक फ्रांसिस वाइन ने भी माना है कि कोरोना वायरस दरअसल एक घातक जैविक शस्त्र है, जिसका निर्माण डीएनए जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए हुआ है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त फ्रेंच वैज्ञानिक लूक माउंटेइनर ने भी एक साक्षात्कार में कहा था कि सोर्स कोड टू वायरस यानी कोविड-19वी पर काम कर रही चीन की टीम द्वारा वुहान के लैब में यह बना है। अब हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के हाथ लगे खुफिया दस्तावेजों से यह पता चल रहा है कि चीन पिछले 6-7 सालों से कोरोना वायरस के जरिए तीसरा विश्व युद्ध छेड़ने की तैयारी में था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘जैविक हथियार और उसके रोकथाम’ विषय पर शोध करने वाले कई छात्रों के मन में भी कोरोना के जैविक शस्त्र होने से जुड़े सवाल हैं। उनका कहना है कि अचानक ऐसे घातक अनजाने वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में कैसे फैला? चीन के वुहान से निकला यह वायरस यूरोप, अमेरिका, भारत पहुंच गया, पर चीन के दूसरे प्रांतों में इसका प्रकोप क्यों नहीं हुआ? चीन ने अपने यहां आने वाली सभी लाइट्स रोक दी, पर चीन से बाहर जाने वाली लाइट क्यों नहीं रोकी? चीन ने न सिर्फ कोरोना से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां छिपा दी, बल्कि चीन उन लोगों को भी सामने नहीं आने दिया, जो शुरू में ही इस महामारी के बारे में कुछ सूचनाएं साझा करना चाह रहे थे। आधिकारिक तौर पर यह भी जानकारी मिली है कि चीन ने अपने यहां कोविड-19 से होने वाली मौतों का न सिर्फ आंकड़ा छुपाया, बल्कि इस बारे में जानकारियां और चेतावनी देने वाले डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को सजा भी दी है।

यूं तो जब से कोरोना आया है दुनिया भर में इसे लेकर जितने मुंह उतनी बातें होती रही है, लेकिन आधिकारिक तौर पर यही बताया गया कि चीन के वुहान में जन्मा यह वायरस चमगादड़ से इंसानों में किसी अन्य जानवर के माध्यम से आया होगा। इस तथ्य तक पहुंचने के लिए दुनिया की सर्वोच्च स्वास्थ्य संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने चीन के वैज्ञानिकों के साथ इस महामारी के प्रकाश में आने के शुरुआती दौर में महामारी का केंद्र बने वुहान में करीब 4 हते का समय बिताया था। डब्ल्यूएचओ ने भले ही वुहान की लैब से कोरोना वायरस के निकलने की कहानी को खारिज नहीं किया, लेकिन इस संभावना को अपने स्तर से कभी भी खास महत्व नहीं दिया। इसके बावजूद चीन को लेकर पश्चिमी देशों का संदेह सदैव बना रहा। खासकर अमेरिका के रडार इस मामले को लेकर चीन की ओर लगातार नजर बनाए रखें, यहां तक कि अमेरिकी चुनाव में भी यह मुद्दा बना। ट्रंप सीधे-सीधे इसे चीनी वायरस की संज्ञा देते रहे। चीन भी एशियाई विरोध की आड़ लेकर सवालों से लगभग बचता रहा है। बितते समय के साथ चीन की लैब से निकले वायरस की थ्योरी ‘आयी बात गई’ बात तक पहुंच गई, लेकिन जो निकलकर सामने आया है उससे यह स्पष्ट होने लगा है कि भारत, अमेरिका सहित यूरोप के अन्य देशों की शंका निराधार नहीं थी। आस्ट्रेलिया से आए नए संकेतों ने इस शंका को और अधिक पुख्ता कर दिया है। हालांकि हालिया सबूतों का स्रोत भी पहले की ही तरह अमेरिकी ही है, लेकिन ‘पुरानी शंकाओं के बरक्स नई जानकारी’ कुछ अधिक ठोस और विश्वसनीयता वाली लगती है। ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार ने अमेरिकी अधिकारियों के हाथ लगे कुछ चीनी खुफिया दस्तावेजों को आधार बनाते हुए संदेह जताया है कि वर्ष 2019 में दुनिया के समक्ष महामारी बनकर आया कोरोना वायरस दरअसल चीन का एक जैविक हथियार है, जिसे बनाने की तैयारी चीन ने 2014 में ही कर ली थी और अगले साल यानी 2015 से ही इस पर काम शुरू कर दिया था। इन बातों के प्रमाण चीनी दस्तावेजों को डिकोड करने पर मिले हैं। दस्तावेज बताते हैं कि चीन अपनी ओर से तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में है और इस युद्ध के लिए चीन पारंपरिक हथियारों के बजाय लड़ाई को जैविक हथियारों से जीतने का एक ब्लूप्रिंट भी बना रखा है।

हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। बीते वर्षों में दुनिया के कई देशों में चीन को लेकर इस तरह की चर्चाएं समय-समय पर होती रही है। अमेरिका तो विशेषतौर पर इसे आगे रखकर दुनिया को आगाह करता रहा है कि चीन गड़बड़ियां फैला रहा है। भारत में भी चीन को लेकर सतर्क बातचीत चलती रही है, लेकिन चीन के खतरनाक मंसूबों वाली इस तरह की जानकारी पहली बार सार्वजनिक हुई है। यह आस्ट्रेलियाई अखबार में छपी खबर जिसमें कि अमेरिकी अधिकारियों के अधिकारिक बयान को आधार बनाया गया है, पर बाइडन सरकार की ओर से कोई स्पष्टीकरण न देकर यही संकेत दिया गया है कि इस खुलासे पर एक तरह से उसकी मौन स्वी.ति है। वहीं दूसरी तरफ चीन ने इस खबर को खारिज किया है तथा कहा है कि उसे ऐसी किसी योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। चीन के सरकारी अखबार ‘पीपुल्स डेली’ में चीन के अधिकारियों ने इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे खारिज किया है तथा इसे पूरी तरह बेबुनियाद और मनगढ़ंत कहा है। लेकिन इस खबर के उजागर होने के बाद उस आग को एक बार फिर हवा मिल गई है, जिसकी आंच में पूरी दुनिया दशकों से अंदर ही अंदर सुलगती रही है। इस खुलासे पर यकीन करने का एक कारण चीन के मशहूर वैज्ञानिक और महामारी विशेषज्ञ ‘ली येन’ द्वारा दी गई जानकारी भी है। उनके मुताबिक अमेरिकी गुप्तचर विभाग द्वारा दी गई एक-एक जानकारी ‘सौलह आने’ सच है। येन के मुताबिक चीन तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में जुटा है और कोरोना वायरस उसकी सेना पीएलए (पीपुल लिबरेशन आर्मी) की लैब से ही निकला हुआ एक जैविक हथियार है। येन का यह भी दावा है कि साल 2019 में वुहान के लैब से कोरोना लिक नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने इसका बकायदा वहां ट्रायल किया था और जब ट्रायल के दौरान वुहान में कोरोना का वायरस बेलगाम हो गया तो वहां के हालात बहुत ही खराब हो गए थे।

कोरोना वायरस के जैविक हथियार होने का दावा कई पैमानों पर सच लगने लगता है, क्योंकि इसके बारे में चीन की सरकार को सब कुछ पहले से पता रहा होगा, इसलिए चीन ने इस पर तुरंत काबू कर लिया। चीन की सेना का लक्ष्य रहा होगा कि इस वायरस के जरिए दुनिया के अन्य देशों की स्वास्थ्य सेवाओं का नुकसान पहुंचाकर और अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर उन देशों को घुटने पर लाया जा सकता है। अब जबकि कोरोना के साए में डेढ़ साल होने को है तो दुनिया भर में संक्रमण का कहर जारी है तथा आवश्यक सुई दवाई भी नहीं मिल पा रही है। तो ऐसे में कहा जा रहा है कि चीन काफी हद तक अपने मंसूबे में सफल रहा है। 

ज्ञात हो कि कुछ गिने-चुने देशों को छोड़कर चीन दुनिया के सभी देशों को अपना दुश्मन मानता है, लेकिन उसकी आंखों में कांटे की तरह चुभने वाले दो प्रमुख देश हैं - भारत और अमेरिका। बेशक यह दोनों देश चीन की तरह आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देशों में गिने जाते हैं लेकिन केवल इन्ही दो तथ्यों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि यहां कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या अधिक होना स्वाभाविक है, महज संजोग है। कोरोना ने भारत और अमेरिका में बड़ा नुकसान पहुंचाया है, अन्य देशों की तुलना में इन दोनों देशों में जनधन की अधिक हानि हुई है। लाखों नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। जो लोग संक्रमण से उबर रहे हैं, उन्हें भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक हालात भी असमंजस में फंसे है। लेकिन इसके ठीक उलट चीन जिसकी आबादी दुनिया में सबसे अधिक है वहां की अर्थव्यवस्था चौकाने वाली चमक-दमक के साथ अपने पुराने यानी कोरोना काल के पहले वाली ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। 

गत वर्ष बेहद खराब शुरुआत के बावजूद चीन अर्थव्यवस्था में वृद्धि करने वाला एकमात्र देश रहा था। 2021 की पहली तिमाही आते-आते अचानक चीन में सब कुछ बदल गया। चीन ने 1992 के बाद अर्थव्यवस्था में ऊंची छलांग लगाते हुए पिछले साल की तुलना में 18.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हासिल कर ली है। ऐसे में सवाल है कि अगर अर्थव्यवस्था की ऊंचाई उसकी मेहनत का नतीजा है तब तो उसे बहुत पहले ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाना चाहिए था, लेकिन कई एक चीनी वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य कर्मियों, पत्रकारों और नागरिकों ने अपनी जान को जोखिम में डालते हुए कोरोना के प्रसार को लेकर कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां दुनिया के अन्य देशों के साथ साझा की हैं, जो चीन की चालबाजियों से पर्दा हटाती है। चीन को एक खलनायक की तरह देखने के लिए मजबूर करता है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे तमाम वैश्विक संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए मानवता को बचाने के लिए दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए सामने आए तथा ठोस कदम उठाएं।

जैविक शस्त्र संपूर्ण मानवता के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि ये न तो दिखाई देते हैं और न ही इनका तात्कालिक इलाज उपलब्ध होता है। वस्तुतः घातक बीमारी पैदा करने वाले जैविक माध्यम होते हैं, जिनका प्रयोग हथियार के रूप में किया जाता है। 

इतिहास बताता है कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भी इनके प्रयोग की कोशिशें हुई थी। हैजा, चेचक, प्लेग जैसी बीमारियों का प्रयोग चुपके-चुपके जैविक शास्त्र के रूप में किया गया, पर इनसे होने वाले नुकसान के मद्देनजर साल 1972 में बायोलॉजिकल एंड केमिकल वेपंस कन्वेंशन लाया गया जिसका अनुमोदन दुनिया के अधिकांश देशों ने किया था। तब कहा गया था कि जैविक शस्त्र न सीमा देखते हैं न राष्ट्रीयता, वह तो बस तबाही मचाते हैं। इनका निर्माण सरल है तथा यह प्रसलित सामान्य शस्त्रों की तुलना में यह बहुत सस्ते होते हैं। इसके साथ समस्या यह भी है कि जब तक कोई आगे आकर यह सूचित न करें कि अमुक महामारी दरअसल उस देश या संगठन द्वारा किया गया जैविक हमला है, तब तक पता लगाना बहुत मुश्किल है कि वास्तव में कोई प्राकृतिक महामारी फैली है या कोई जैविक हमला हुआ है। फैलने के बाद इन्हें रोक पाना असंभव हो जाता है। तुरंत वैक्सीन या अन्य इलाज न होने के कारण यह जल्द ही भयावह रूप धारण कर लेते हैं।

इन सभी प्रश्नों को एक साथ जोड़कर देखें तो कई बार लगता है कि भारत के हाल के वर्षों में बढ़ते कद, कूटनीतिक सफलता और आंतरिक प्रगति को रोकने के लिए जैविक हमले के रूप में तो नहीं किया गया। अगर इसका उत्तर ‘हां’ में मिलता है तो हमें सजग सार्थक और ठोस कदम उठाने की जरूरत है।   

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