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‘स्वावलंबी भारत अभियान’ से युवा बन रहे आत्मनिर्भर

स्वावलंबी भारत अभियान का लक्ष्य भारत को प्राचीन दिनों की तरह समृद्ध भारत का लक्ष्य हासिल करना है। - अनिल तिवारी

 

युवाओं को आत्मनिर्भर बनाकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ने 16 जनवरी 2016 को स्टार्टअप्स इंडिया का आगाज किया था जिसे सरकार द्वारा शुरू की गई सफल योजना माना जा सकता है। एक आंकड़े के मुताबिक जुलाई 2023 तक 111 यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स ने चार लाख 42 हजार 714 लोगों को रोजगार दिया जो कि सितंबर 2022 में दर्ज 429949 कर्मचारियों से 12765  अधिक है। यानी कि इस पहल से रोजगार में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। इस क्रम में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘स्वदेशी जागरण मंच’ द्वारा शुरू किया गया स्वावलंबी भारत अभियान का परिणाम भी अब दिखने लगा है। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी इस अभियान से जुड़कर न सिर्फ स्वयं आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं। रोजगार मांगने वालों की बजाय रोजगार देने वालों की कोटि में अभियान से जुड़े सदस्य लगातार आगे बढ़ रहे हैं।

स्वावलंबी भारत अभियान देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण भारत में प्रशिक्षण के अलावा अन्य आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध करवा रहा है। देश में उद्यमिता की भावना को मजबूत करने के लिए स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालय में सैकड़ो कार्यक्रम अब तक आयोजित किए गए जिसका बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उल्लेखनीय है कि हिंसा से जल रहे मणिपुर राज्य में भी स्वावलंबी भारत अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित किए गए तथा वहां के स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में युगांतरकारी काम किए गए। स्वावलंबी भारत अभियान का लक्ष्य भारत को प्राचीन दिनों की तरह समृद्ध भारत का लक्ष्य हासिल करना है।

औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी)और वनिज एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत में स्टार्टअप की संख्या 2018 में 8635, वर्ष 2019 में 11279, वर्ष 2020 में 14498, वर्ष 2021 में 20046 और वर्ष 2022 में 26542 थी। अनुमान है कि भारत में तकनीकी स्टार्टअप्स की संख्या जून 2023 तक 68 हजार तक पहुंची है वह 2030 आते-आते बढ़कर 1.8 लाख तक हो जाएगी। यानी कि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच देश में स्टार्टअप्स की संख्या में 99000 से अधिक की वृद्धि हुई है जिनमें से आधा से अधिक के मुख्यालय टायर 2 और टायर 3 शहरों में है जो दर्शाता है कि स्टार्टअप्स महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी फल फूल रहे हैं। नैस्काम और जिनोव की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारतीय स्टार्टअप्स ने 1.79 लाख करोड रुपए जुटाए।

एक आदमी रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का चौथा सबसे ज्यादा स्टार्टअप्स वाला देश बन गया है जबकि पहले दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका चीन और ब्रिटेन है।आंकड़ों से अभी पता चलता है कि देश में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम तेजी से बढ़ रहा है और इससे नवाचार  प्रौद्योगिकियों के केंद्र के रूप में देश की प्रतिष्ठा भी बढ़ रही है।

मोटे तौर पर स्टार्टअप्स की शुरुआत कोई एक व्यक्ति या कई लोग मिलकर कर सकते हैं। नए विचार नवोन्मेष उपाय और तकनीक के साथ शुरू किया गया स्टार्टअप्स अपने अनोखे और अद्भुत प्रतिबद्धता की वजह से बाजार में जल्दी ही अपनी जगह बना लेता है। स्टार्टअप को चलाने के लिए प्रवर्तक खुद निवेश कर सकते हैं या बैंक या वित्तीय संस्थान से ऋण ले सकते हैं। स्टेटस में जोखिम ज्यादा होती है लेकिन कारोबार चल निकलने पर प्रवर्तक को अच्छा प्रतिफल मिलता है। बड़ी संख्या में दूसरों को रोजगार भी मुहैया होता है। स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने क्रेडिट गारंटी स्कीम फॉर स्टार्टअप्स की शुरुआत की है। स्टार्टअप्स को ऋण महैया कराने के लिए वित्तीय संस्थानों को डीआईपीपी की शर्तों का अनुपालन करना होता है। डीआईपीपी से मान्यता प्राप्त वित्तीय संस्थान ही स्टार्टअप्स को ऋण मुहैया कर सकते हैं। वित्तीय सहायता कार्यशील पूंजी, डिबेंचर, मियादी ऋण आदि के रूप में दी जाती है। डीआईपीपी के सदस्य ऋण संस्थान बिना तीसरे पक्ष की गारंटी या प्रतिभूत के स्टार्टअप्स को 5 करोड रुपए तक की ऋण राशि प्रदान कर सकते हैं। कोई स्टार्टअप्स इस योजना के तहत 1.5 करोड रुपए का ऋण लेना चाहता है तो उसका 75 प्रतिशत वित्तीय सहायता संस्थान देता है और शेष 25 प्रतिशत राशि का इंतजाम उद्यमी को खुद करना होता है। 5 लाख से कम राशि का ऋण मांगने वाले उद्यमियों को संस्थान 85 प्रतिशत तक की वित्तीय सहायता देता है और शेष 15 प्रतिशत राशि की व्यवस्था उद्यमी को स्वयं करनी होती है। सरकार ने स्टार्टअप्स को नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अटल इनोवेशन मिशन, स्टार्टअप्स, सीडफंड योजना आदि की भी शुरुआत की है।

हालांकि बाधाएं भी कम नहीं है। स्टार्टअप्स का विकास सुनिश्चित करने के लिए अनुकूल माहौल बनाने नियामक शर्तों के सरलीकरण समीचीन सुविधा उपलब्ध कराने की अभी भी सख्त जरूरत है। स्टार्टअप्स की संख्या में सतत बढ़ोतरी के लिए तकनीक से लैस युवा आबादी, मध्य वर्ग की बड़ी संख्या जिनके पास पूंजी काम है लेकिन वह नवाचार वाले विचारों से लैस के लिए अनुकूल परिस्थितियों तैयार करना भी आवश्यक है। विभिन्न आर्थिक एजेंसियों ने अनुमान किया है कि अगर स्टार्टअप्स के लिए अनुकूल माहौल मिला तो 2023 तक इसका सकल घरेलू उत्पाद में स्टार्टअप्स के योगदान बढ़कर 5 से 10 प्रतिशत तक हो सकते हैं।

स्टार्टअप्स के विकास में सबसे बड़ी बड़ा निवेश की है लेकिन यह बाधा सरकार के सहयोग से धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। सरकारी बैंक और वित्तीय संस्थान स्टार्टअप्स को वित्त पोषण करने में गुरेज नहीं कर रहे। देसी विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियां भी भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश कर रही हैं। भारतीय स्टार्टअप परिस्थिति तंत्र के मजबूत होने से 2030 तक इसमें निवेशकों की भागीदारी 45 प्रतिशत से अधिक की हो सकती है। भारतीय स्टार्टअप्स का ना केवल देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी विस्तार हो रहा है। स्टार्टअप्स की मदद से लोगों की आई और रोजगार सृजन में जाता हो रहा है और लोग आत्मनिर्भर बन रहे हैं।   

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