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भारत के लिए पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू काश्मीर का महत्वः वापसी क्यों आवश्यक?

पाकिस्तान से वार्ता के सभी मार्ग लगभग बंद हो चुके हैं क्योंकि पाकितान का नेतृत्व संकट में है। पाकिस्तान एक राजनीतिक दुष्चक्र में फंसा हुआ है जिसका प्रमाण यह है कि वहाँ एक चुनी हुई सरकार तो है परंतु उसकी डोर सेना के हाथ में है। - विनोद जौहरी

 

जम्मू कश्मीर से संबंधित संविधान की धारा 370 तथा 35ए को संसद द्वारा हटाने तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा उसकी पुष्टि के पश्चात पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर की भारत में वापसी पर राजनीतिक, सामरिक एवं आर्थिक पक्षों पर भी जनमानस में और राजनीतिक पटल पर चर्चा होने लगी है। 

पाकिस्तान में भी सैन्य नियंत्रित सरकारों की दमनकारी नीतियों, अत्याचारों, मानवाधिकार दमन और शोषण के कारण बलोचिस्तान, गिलगित बाल्टिस्तान, मीरपुर, मुजफ्फरबाद तथा सिंध में सरकार विरोधी आंदोलन वर्षों से चल रहे हैं। यह सिलसिला 1947 से ही भारत विभाजन के फलस्वरूप अलग हुए पाकिस्तान में चल रहा है। धरातल पर और पाकिस्तान की घटनाओं के अध्ययन से समझ आता है कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर, बलोचिस्तान, सिंध, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) कभी पाकिस्तान के साथ एक देश के रूप में आत्मसात नहीं हुए और पाकिस्तान की सेना के बलपूर्वक तथा अत्याचारों के कारण अधिकार में हैं जिसकी परिणति बांग्लादेश की स्वतन्त्रता के रूप में हुई। आतंकवाद, आतंकवादियों और पीओके में उनके लांच पैड से पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर की जनता त्रस्त है जो भारत में आतंकवाद और आक्रमण और पीओके में जनता के दमन के लिए भी बनाए गए हैं। पाकिस्तान की जनता खुले आम भारत के साथ मिलने की आवाज़ बुलंद करने लगी है। पाकिस्तान की जनता में घोर निराशा है और उस देश की आर्थिक विपन्नता पाकिस्तान के शासकों को ऋण और अनुदानों के लिए दर दर भटकने को विवश कर रही है। 

भारत के दोषपूर्ण और षड्यंत्रकारी विभाजन से जब से पाकिस्तान बना है, तभी से कश्मीर को लेकर पाकिस्तान भारत के विरुद्ध युद्धोन्माद ग्रस्त है और आतंकवाद भी उसी का अंग है। कश्मीर को विवादग्रस्त, उद्वेलित तथा आतंकवाद से त्रस्त रखने के पीछे अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र है जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ भी सम्मिलित है और इस विषय पर बहुत सी पुस्तकें देश  विदेश के इतिहासकारों, विद्वानों, सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों, मीडिया के प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा राजनीतिक नेताओं द्वारा लिखी गईं हैं। रूस तथा चीन के यह आरोप रहे हैं कि कश्मीर को रूस और चीन पर हमले करने के लिए कश्मीर को सैन्य अड्डा और लॉंच पैड बनाने का प्रयास किया गया। इन अंतरराष्ट्रीय षडयंत्रों का भयानक घटनाक्रम है जिसके परिणाम जम्मू कश्मीर तथा पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर की जनता ने भोगे हैं। सम्पूर्ण पाकिस्तान और विशेषकर पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में हिंदुओं पर भयंकर अत्याचार हुए और उनका सफाया हो गया तथा हिन्दू मंदिरों एवं बौद्ध मठों को नष्ट कर दिया गया। यह एक अलग गंभीर विषय है जिस पर अलग से चर्चा की जा सकती है परंतु इसका भी सत्य हम सब के लिए जानना आवश्यक है। 

यह जानना और समझना आवश्यक है कि पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर का भारत के लिए क्या महत्व है और इसकी भारत में वापसी क्यों आवश्यक है? इस भूभाग को वापस लेने के तर्क को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं। 

भारत के लिए पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर की वापसी क्यों आवश्यक ?

1. अन्य रियासतों की तरह जम्मू कश्मीर के राज्य प्रमुख महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारत के साथ अपना अधिमिलन कर लिया था। यह अधिमिलन पूर्ण वैधानिक व प्रावधानों के अनुरूप था। अधिमिलन के समय जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग किलोमीटर था। परंतु वर्तमान समय में जम्मू कश्मीर की लगभग 54.4 प्रतिशत भूमि (1 लाख 21 हजार वर्ग किमी.) पाकिस्तान और चीन के अवैध नियंत्रण में है। राष्ट्र का कर्तव्य है कि वह अपनी सीमाओं, नागरिकों और संसाधनों को सुरक्षा प्रदान करके उसे संवैधानिक दायरे में लाये। 

2. जम्मू कश्मीर ही भारतीय सभ्यता की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा। वह भारत की सांस्कृतिक धरोहर है। सदियों से वह भाग भारतीय परंपरा के पदचिन्हों को शैल चित्रों के रूप में सँजोये हुए है। यह सैकड़ों बोलियों और भाषाओं का क्षेत्र है।

3. भारत का यह आर्थिक द्वार है। यह क्षेत्र भारत के लिए मध्य एशिया और यूरोप को स्थल मार्ग से जोड़ता है। भारत को विश्व गुरु व सोने की चिड़िया तभी तक माना जाता था जब भारत की सीमाएं हिंदुकुश व पामीर के पठार को छूतीं थीं। जब भी भारत अपने को महाशक्ति के रूप में देखना चाहेगा तो उसे अपनी इन प्रकृतिक सीमाओं को प्राप्त करना होगा। 

4. यह पूरा क्षेत्र भारतीय सभ्यता की पहचान के लिए आवश्यक है, क्योंकि शारदा पीठ भारत की सांस्कृतिक समृद्धि व ज्ञान का केंद्र रहा है। इसी प्रकार भारत अपनी सभ्यता की पहचान सिंधु नदी से ग्रहण करता है जो इस भूभाग से होकर बहती है। 

5. चीन की पाकिस्तान के प्रगाढ़ मित्रता कभी संभव नहीं होती यदि गिलगित बाल्टिस्तान भारत के साथ होता। यही वह भूभाग है जो इस दोनों को अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने में सहायक सिद्ध होता है। यह गठबंधन वर्तमान में भारत को सबसे अधिक और निकटतम वैचारिक, आर्थिक व रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। 

6. प्रत्येक राष्ट्र के लिए अपने जन-धन (मानव और भौतिक संसाधनों) की सुरक्षा करना प्रथम कर्तव्य होता है। यहाँ के निवासी मूलतः भारतीय हैं। किसी कारणवश पिछले 75 वर्ष से विदेशी शासन के अधीन आकर दोहरे उपनिवेश का दंश झेल रहे हैं। 

7. इस भूभाग को पाकिस्तान के दासता से मुक्त कराना आवश्यक है। इससे पाकिस्तान का आत्मबल क्षीण होगा और पाकिस्तान का वैश्विक इस्लामिक नेतृत्व का भ्रम टूट जाएगा। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का केंद्र पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर ही है। जम्मू और कश्मीर में किसी युद्ध से भी अधिक जन और धन की हानि हो चुकी है। पिछले 30 वर्षों से भारत एक अप्रत्यक्ष युद्ध में है। 

8. रणनीतिक दृष्टि से भी कश्मीर को सुरक्षित करने के लिए गांधार को सुरक्षित करना होगा। इतिहास की सीख है की भारतीय नेत्रत्व को पानीपत सिंड्रोम से बचना चाहिए, क्योंकि जिन आक्रांताओं को खैबर दर्रे पर रोकना चाहिए था वह पानीपत तक आने में कैसे सफल हुए थे? 

9. जैसा कि परिलक्षित हो रहा है कि पाकिस्तान बिखराव की ओर अग्रसर है, इस बिखराव से भारत का प्रभावित होना स्वाभाविक है। अब प्रश्न यह है की क्या भारत इन परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है?

10. किसी भी देश के लिए महाशक्ति की स्थिति अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक अस्मिता है, उस अस्मिता से जुड़े कुछ निश्चित व्यवहार होते हैं। निर्णय लेने की क्षमता उस व्यवहार का प्रमुख अवयव है। इस कारण भी भारत को एक निर्णायक फैसला लेने की आवश्यकता है। पूरा पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर व लद्दाख वापस लेने का निर्णय भारत को महाशक्ति के रूप में प्रस्थापित करेगा। 

भारत के लिए विकल्प खुला है 

पाकिस्तान से वार्ता के सभी मार्ग लगभग बंद हो चुके हैं क्योंकि पाकितान का नेतृत्व संकट में है। पाकिस्तान एक राजनीतिक दुष्चक्र में फंसा हुआ है जिसका प्रमाण यह है कि वहाँ एक चुनी हुई सरकार तो है परंतु उसकी डोर सेना के हाथ में है। सेना मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथों में है। इसलिए यह निश्चित नहीं है कि किस संस्था से विश्वसनीयता के साथ बातचीत की जाए। वास्तव में यह पाकिस्तान के लिए कोई नई स्थिति नहीं है, पहले भी कहा जाता था कि पाकिस्तान को अल्लाह, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं। इसलिए कोई भी कूटनीतिक संवाद परिणामोन्मुखी नहीं होंगे, इसका कारण पाकिस्तान की भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण अवधारणा है। 

पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर व लद्दाख के विषय में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका समाप्त हो चुकी है। शिमला समझौते में यह कहा गया है कि सभी विवादास्पद विषयों को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाएगा। जम्मू कश्मीर के संदर्भ में कहा गया था कि नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखेंगे और कभी युद्ध विराम का उल्लंघन नहीं करेंगे। लाहौर घोषणा पत्र में भी ईईए शिमला समझौते को दोहराया गया था। पाकिस्तान शिमला और लाहौर समझौते का लगातार उल्लंघन कर रहा है। इसलिए भारत के पास शिमला समझौते को मानने की बाध्यता नहीं है। अब भारत के पास अपने मार्ग चुनने की स्वतंत्रता है।           

 

(नोट- इस लेख में “भारत के लिए पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर की वापसी क्यों आवश्यक?” के बाद का भाग मूलतः पुस्तक “पाकिस्तान अधिकृत भारतीय भू-भाग जम्मू कश्मीर व लद्दाख”  (लेखक श्री शिव पूजन प्रसाद पाठक एवं डा प्रशांत कुमार द्विवेदी - जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र, दिल्ली) से साभार लिया गया है।)

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