किसानों को मिला सारथी ऐप का तोहफा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 93वें स्थापना दिवस पर लांच किये गये इस ऐप से आशा की गई है कि चूंकि तकनीक के इस्तेमाल से जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव आया है तो इस ऐप के जरिए किसानों के जीवन में भी विकासात्मक बदलाव आएंगे। — अनिल तिवारी
नीति आयोग के मसौदे के मुताबिक किसानों की वास्तविक आय 2015-16 के आधार वर्ष की तुलना में 2022-23 तक दोगुना करने के लिए किसानों की आय में 10.41 प्रतिशत की वृद्धि दर अपेक्षित है। केंद्र की सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सतत प्रयत्नशील है तथा दर्जनों योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के बाद इस हेतु किसान सारथी ऐप का तोहफा दिया है। यह ऐप किसान सारथी के नाम से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है, जिसके माध्यम से किसानों को फसल और उससे जुड़ी सभी चीजों की जानकारी एक क्लिक में हासिल हो सकती है। इतना ही नहीं इस ऐप के जरिए किसान अपनी फसल को सही तरीके तथा वाजिब मूल्य पर बेच सकेंगे।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 93वें स्थापना दिवस पर लांच किये गये इस ऐप से आशा की गई है कि चूंकि तकनीक के इस्तेमाल से जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव आया है तो इस ऐप के जरिए किसानों के जीवन में भी विकासात्मक बदलाव आएंगे। किसान सारथी ऐप का उपयोग कर अपने जीवन को और अधिक समृद्ध बना पाएंगे। किसान डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वैज्ञानिकों से सीधे कृषि और कृषि से जुड़े क्षेत्रों पर व्यक्तिगत परामर्श का लाभ उठा सकते हैं। खेती से जुड़े हर मसले पर वैज्ञानिक किसानों को उचित सलाह देंगे जिससे खेती से जुड़ी अद्यतन जानकारी किसानों को हासिल होगी और खेती के तरीकों में भी बदलाव आएगा।
केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री ने इसे ‘एक अनूठा ऐप’ की संज्ञा देते हुए बताया है कि इलेक्ट्रॉनिक और आईटी मंत्रालय, संचार मंत्रालय, मत्स्य पालन डेयरी और पशुपालन मंत्रालय के साथ मिलकर कृषि कल्याण मंत्रालय किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है। इस क्रम में परिवहन की लागत तथा समय को कम करने के लिए रेल मंत्रालय को भी साथ लिया गया है।
गौरतलब हो कि किसानों की आय दोगुनी करना विषय पर आयोजित एक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए चार पहलुओं का उल्लेख किया था, जिनमें कच्चे माल की लागत कम करना, उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करना, फसलों की बर्बादी रोकना और आमदनी के वैकल्पिक स्रोत सृजित करना, मुख्य रूप से शामिल है। इसके अलावा नए बिजनेस मॉडलों के जरिए किसानों की आय दोगुनी करने को प्रदर्शित करने और किसानों को मुश्किलों से राहत दिलाने के लिए एक विशेष कार्यदल का भी गठन किया गया है, जो कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल फसल पद्धति को बढ़ावा देने, पशुधन, मछली पालन, बागवानी, दुग्ध उत्पादन, कृषि वानिकी इत्यादि अपनाकर फसल प्रणाली में विविधता लाने, चेक डेमो, तालाबों, हर तरह के ट्यूबलों को सिंचाई का साधन बनाने, सिंचाई की प्रभावी पद्धति अपनाने, भूमि समतलीकरण, भूमि की मेड़बंदी, जैसे कम जल प्रयोग और नमी संरक्षण की तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया गया है।
हमारे देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के मोटे तौर पर दो स्त्रोत हैं- क्षेत्र और उत्पादकता। गैर कृषि उपयोगों के लिए भूमि की बढ़ती मांग तथा देश के सकल भौगोलिक क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि के पहले से ही उच्च हिस्से की वजह से कृषि क्षेत्र में आगे अत्यधिक वृद्धि करना बहुत व्यवहार्य नहीं है। लेकिन इसके साथ ही साथ देश में अधिकांश फसलों की उत्पादकता कम है, और इसे बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। गेहूं को छोड़कर देश में अन्य फसलों की उत्पादकता वैश्विक औसत से कम है और कृषि के क्षेत्र में अग्रणी देशों की तुलना में यह और भी कम है। देश के अंदर भी विभिन्न राज्यों की पैदावार में काफी अंतर है। विभिन्न राज्यों की पैदावार में एक बड़ा अंतर सिंचाई सुविधा की उपलब्धता में अंतर की वजह से है। सरकार का मानना है कि सिंचाई के समान स्तर पर उत्पादकता में भिन्नता और औसत की तुलना में भारत में कम पैदावार बेहतर प्रौद्योगिकी के पर्याप्त अवसर तथा इसके कम उपयोग की वजह से है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कुल कार्यबल का 64 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है और कुल ग्रामीण निवल घरेलू उत्पाद में 39 प्रतिशत योगदान करता है। इससे पता चलता है कि कार्यबल कृषि पर एक सीमा से अधिक निर्भर है, क्योंकि रोजगार के अन्य विकल्प नहीं है। इससे कृषि और गैर कृषि क्षेत्र के बीच प्रति श्रमिक उत्पादकता में व्यापक अंतर का भी पता चलता है। ऐसे तमाम अंतर्विरोधों से निपटने तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने अपनी कार्य नीति में चार तत्वों को प्रमुखता से शामिल किया है। जिसमें संरचना, विकास की पहलें, प्रौद्योगिकी नीतियां और संस्थानिक तंत्र के जरिये उत्पादन बढ़ा, लागत को कम करना प्रमुख है।
भारत ने 1991 में नई आर्थिक नीति के तहत व्यापक आर्थिक सुधारों को अपनाया। इन सुधारों में उदारीकरण, विनियमन और निजी क्षेत्र से अधिक नियंत्रण तथा प्रतिबंधों को समाप्त करना शामिल है, जिनसे आर्थिक क्रियाकलापों में निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिए बड़ी अनुकूल परिस्थितियां पैदा हुई। लेकिन पूर्व की सरकारों ने इसका अपेक्षित लाभ नहीं उठाया, जिसके चलते कृषि संबंधी नीतिगत परिदृश्य में अधिक परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ, क्योंकि कृषि क्षेत्र में सुधार यत्र-तत्र छिटपुट और आंशिक ही रहा। पूर्व के वर्षों में कृषि क्षेत्र में अपेक्षित सुधारों की अनदेखी के कारण कृषि क्षेत्र और गैर कृषि क्षेत्रों के बीच गंभीर असमानता ही उत्पन्न हुई।
सरकार ने तय किया है कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए फसल उत्पादकता को 4.1 प्रतिशत और संवर्धित पशुधन मूल्य को 6 प्रतिशत की दर से बढ़ाया जाएगा। दो फसलों वाली भूमि के रकबा को मौजूदा 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 53 प्रतिशत तक किया जाएगा। बाजार सुधार भी इस प्रकार होंगे कि किसानों को वास्तविक अर्थों में आधार स्तर से कम से कम 17 प्रतिशत अधिक मूल्य मिल सके। सरकार ने बेहतर प्रौद्योगिकी और वैरायटी के माध्यम से स्तरीय बीजों, सिंचाई, उर्वरक और कृषि रसायनों का उपयोग बढ़ाकर उत्पादकता में वृद्धि करने की नीति बनाई है। देश में पशुधन की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए भी नस्ल संवर्धन, बेहतर चारा, बेहतर पोषाहार, पशु स्वास्थ्य तथा बेहतर झुंड संबद्धता को प्राथमिकता दी गई है। कृषि बाजार को उदार बनाने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए कई सुधारों की घोषणा की गई है, इसमें राज्यों में एपीएमसी अधिनियम में सुधार के लिए संस्थानिक उपाय करना तथा विपणन में प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना शामिल है, ई-नाम पहल के जरिए राज्य कृषि वस्तुओं के लिए कि व्यापार मंचों को अपना सके इसकी व्यवस्था की गई है।
अनौपचारिक या परंपरागत आपूर्ति संस्थाएं भारत में कृषि की विशेषताएं हैं, जो स्थानीय मध्यस्थ, व्यक्तियों और उसके बाद लघु व स्थानीय भंडारों को उत्पाद उपलब्ध कराती हैं। औपचारिक मूल्य संवर्धन उसी उत्पाद को सामान्यतः बेहतर अथवा अधिक सामान गुणवत्ता में अधिक वाणिज्यिक फर्मों, थोक विक्रेताओं, सुपर बाजारों या निर्यातकों को उपलब्ध करवा सकते हैं। लघु उत्पादकों को घरेलू और निर्यातोमुखी दोनों प्रकार के अधिक आधुनिक मूल्य संवर्धन में समेकित करने के लिए भी केंद्र सरकार ने कृषि विषयक 3 कानून पारित किए हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है लेकिन केंद्र की सरकार अपनी विकास की पहलों, प्रौद्योगिकी और नीतिगत सुधारों पर केंद्रित कार्यक्रमों के जरिए इस लक्ष्य को हासिल करने में जुटी हुई है चूंकि अधिकांश विकासात्मक पहलें और नीतियां केंद्र के साथ-साथ राज्यों द्वारा कार्यान्वित की जाती है। राज्य सिंचाई जैसे बहुत से विकासात्मक कार्यकलापों पर केंद्र द्वारा परिवार की तुलना में बहुत अधिक निवेश करते हैं, ऐसे में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को केंद्र के साथ हर मोर्चे पर कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना होगा। यदि केंद्र और सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा संगठित और अच्छी तरह से संबंधित प्रयास किए जाते हैं तो देश वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य सहज ही हासिल कर सकता है।
इस लक्ष्य के आलोक में हाल ही में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लांच किया गया किसान सारथी एप किसानों की समृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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