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विज्ञान में प्रगति ही आत्मनिर्भरता की कुंजी

देश भविष्य में स्वास्थ क्षेत्रा में किसी भी अभूतपूर्व स्थिति व महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए सजग तैयार हो सकता है अगर कुछ विषयों जैसे स्वास्थ्य क्षेत्रा पर सकल घरेलू उत्पाद का पहले से अधिक निवेश, अनुसंधान में एकीकृत प्रयास और ब्रेन ड्रेन अर्थात प्रतिभा पलायन को रोकने हेतु कारगर नीतियाँ बनाई जाएं। — डॉ. जितेन्द्र

 

भारत में लगभग 135 करोड लोग रहते है, जोकि दुनिया मे दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देष है। भारत में विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों का एक व्यापक नेटवर्क है। मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों (एम्स) की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार देष में कुल विश्वविद्यालयों की संख्या एक हज़ार से भी अधिक है। विश्वविद्यालयों व अन्य बड़े संस्थानों में जैसे कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेषन एंड रिसर्च व अन्य संस्थानों से प्रति वर्ष हजारों की संख्या में छात्र उच्च षिक्षा की डिग्री प्राप्त करते हैं। 

देष भविष्य में स्वास्थ क्षेत्र में किसी भी अभूतपूर्व स्थिति व महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए सजग तैयार हो सकता है अगर कुछ विषयों जैसे स्वास्थ्य क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का पहले से अधिक निवेष, अनुसंधान में एकीकृत प्रयास और ब्रेन ड्रेन अर्थात प्रतिभा पलायन को रोकने हेतु कारगर नीतियाँ बनाई जाएं ताकि स्वदेषी निर्माण को बल मिले एवं इलाज और निदान दोनों ही सस्ते और सुलभ हो। अत्यधिक संख्या में देष के होनहार छात्रों का पलायन बेहद ही चिंता का विषय है। 2015 में प्रकाषित संयुक्त राज्य के उच्चतम वैज्ञानिक निकाय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विगत वर्षों में भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का अमेरिका में प्रवर्जन 85 प्रतिशत तक बढ़ा है। सबसे अधिक प्रतिभा पलायन विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के छात्रों में देखा गया। 

वर्ष 2019 में भारत विश्व में प्रवासियों की संख्या के मामले में पहले नंबर पर है मैक्सिको और चीन दूसरे और तीसरे नंबर पर है। खाड़ी देषों जैसे संयुक्त अरब अमीरात में सबसे अधिक 53 प्रतिशत प्रवासी भारतीय है। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरी सबसे बड़ी प्रवासी भारतीय संख्या की मेजबानी करता है। ज्यादातर यह देखा गया है कि चिकित्सा, विज्ञान अथवा अन्य किसी क्षेत्र में निपुण व्यक्ति कम वेतन, उच्च योग्यता प्राप्ति हेतु, अन्य प्रषासनिक कठिनाइयों के कारण और यदि उसकी योग्यता का ठीक मूल्यांकन न हो रहा हो एवं उसके विषेषता वाले क्षेत्र में अनुसंधान और सुधार के अच्छे अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हो तो वह पलायन के लिए मजबूर होता है। यदि कोई व्यक्ति उच्च योग्यता प्राप्ति हेतु अन्य विकसित देषों में जाता है तो कोई हानि नहीं है, परन्तु मन में राष्ट्रीयता एवं स्वदेष प्रेम हमेषा रहे ताकि अवसर मिलने पर वापिस आकर देष की सेवा की जाये।

साधन संपन्न लैबोरेट्रीज, देष में विकास की संभावनाएं, योग्यता का सही मूल्यांकन, राष्ट्रीय षिक्षा निति में समय-समय पर बदलाव अधिकांष प्रतिभाओं का पलायन रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती है। देष में वैज्ञानिक क्षमता है, परन्तु विकासषील से विकसित देष बनने में हमें अपने नीतियो में सुधार और उनका मजबूती से कार्यान्वयन करने की जरुरत है। भारत के चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों, निवेषकों और नीति निर्माताओं के सामूहिक और सहयोगात्मक प्रयास से कोविड-19 जैसी घातक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए स्थायी अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल-2019 के अनुसार, भारत देष के स्वास्थ्य क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.28 प्रतिशत खर्च कर रहा है। नैदानिक (डायग्नोसिस) किट और स्वास्थ्य उपकरणों के स्वदेषी निर्माण में तेजी लाने के लिए यह अधिक बढ़ाने की आवष्यकता होगी। 

भारत में कोविड़-19 डायग्नोस्टिक्स पर शोध में तेजी लाने के लिए हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से केंद्र सरकार की मेंटरषिप के तहत भारत में कोविड-19 डायग्नोस्टिक्स के स्वदेषी निर्माण में विभिन्न फंडिंग प्रोजेक्ट लॉन्च किए हैं। भारत की षिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाया जाना चाहिये साथ ही स्वदेषी विचार एवं इंटीग्रेटेड षिक्षा नीतियों पर भी विषेष बल दिया जाना चाहिए ताकि देष मे बेहद प्रतिभाषाली और बुद्धिमान युवा पैदा हो। मानव जीव विज्ञान एवं संबंधित बीमारियों को समझने में अन्य विषयों का एकीकरण जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति महत्वपूर्ण है जोकि भविष्य में स्वास्थ्य क्षेत्र की बेहतरी के लिए प्रभावी होगा।  

देष में हर क्षेत्र की अपनी पेषेवर परिषदें हैं - जैसे  अखिल भारतीय तकनीकी षिक्षा परिषद, राष्ट्रीय अध्यापक षिक्षा परिषद, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, इत्यादि परंतु अभी तक इंटीग्रेटेड परिषद नहीं बनाई गयी है यदि यह स्थापित की जाये तो देष के वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजीनियर, नीति निर्माता और निवेषक एकीकृत होकर अनुसंधान में योगदान कर सकते हैं जोकि आत्मनिर्भरता और वैश्विक मुद्दों के समाधान में एक शक्तिषाली तंत्र सार्थक होगा।       

लेखक सीनियर रेजिडेंट, सूक्ष्म जीव विज्ञान, एम्स, ऋषिकेष, उत्तराखंड है। तथा संस्थापक - आईएएमबीएसएस, सदस्य- संपादकीय बोर्ड, आईएएमबीएसएस।

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