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एक और भ्रामक रिपोर्ट

मार्च 2023 के तीसरे सप्ताह में ‘सस्टेंनेबल डेवलपमेंट सोल्युशन नेटवर्क’ द्वारा ‘विश्व खुशी रिपोर्ट’,  2023 जारी की गई है। इस रिपोर्ट में भी भारत को विश्व खुशी सूचकांक में 126वें स्थान पर दिखाया गया है। हालांकि इस रिपोर्ट में भारत को पिछले वर्ष 136वें पायदान से बेहतर 126वें पायदान पर रखा गया है, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि ऐसे कई मुल्क जो विभिन्न परिस्थितियों के चलते किसी भी हाल में खुशी के मामले में भारत से बेहतर हो ही नहीं सकते, उन्हें भी भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया गया है। उदाहरण के लिए साऊदी अरब जिसमें तानाशाही व्यवस्था है उसे 30वें स्थान पर, यूक्रेन जो युद्ध में बर्बाद हो चुका है उसे 92वें स्थान पर, तुर्की जो महंगाई के कारण टूट चुका है उसे 106वें स्थान पर, दुनिया के सामने भीख का कटोरा लिए खड़े पाकिस्तान 108वें स्थान पर दिखाया गया है और पूरी तरह से दिवालिया हो चुका श्री लंका 112वें स्थान पर है और भारत जो खाद्य पदार्थों की .ष्टि से ही नहीं बल्कि विभिन्न अन्य मामलों में दुनिया के उन तमाम मुल्कों से कहीं बेहतर है जो इस रिपोर्ट में भारत से बेहतर स्थिति में दिखाए गए हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट के बारे में भी सवाल उठ रहे हैं।

यह पहली बार नहीं कि इस प्रकार की भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। हाल ही में ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ नाम के एक जर्मन एजेंसी द्वारा भी भारत को भूखमरी सूचकांक में 121 देशों की तालिका में 107वें स्थान पर रखा था। उसमें दिलचस्प बात यह थी कि उस सूची में यूक्रेन ही नहीं बल्कि ईराक, ईरान, तुर्की, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बंगलादेश, और जोर्डन आदि देशों को भी भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया है। यह उस रेटिंग एजेंसी पर एक सवालिया निशान लगाता है। समझना होगा कि ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ का भुखमरी सूचकांक कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। भारत द्वारा पिछले कुछ दशकों में जो उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे लोगों का जीवन स्तर पहले से कहीं बेहतर हुआ है और भारत पिछले कुछ सालों में विश्व की दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ता हुआ 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, दुनिया की कई शक्तियों को भारत की यह प्रगति हजम नहीं हो रही। ऐसे में वे विभिन्न हथकंडे अपनाकर भारत को बदनाम करने का कोई कसर छोड़ते नहीं हैं।

विश्व खुशी रिपोर्ट की शुरूआत वर्ष 2012 में हुई। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की एक वैश्विक पहल ‘सस्टेंनेबल डेवलपमेंट सोल्युशन नेटवर्क’ द्वारा प्रकाशित की जाती है। कहा जाता है कि यह रिपोर्ट दुनिया भर से एक औचक यानि झटपट सर्वेक्षण के आधार पर बनाई जाती है। लेकिन देखा जाये तो इस प्रकार की अवधारणा की शुरुआत वास्तव में 1974 में भूटान के तत्कालीन नरेश जिगमे सिंगे वांचुक द्वारा ‘राष्ट्रीय खुशी सूचकांक’ के नाम से की गई। उनका मानना था कि उत्पादन में वृध्दि मात्र खुशी का सबब नहीं बन सकती। इसलिए विकास के मापन में खुशी एक महत्वपूर्ण तत्व होना चाहिए। उसके उपरांत भूटान देश ने अपने लोगों की खुशी के उद्देश्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी प्रारंभ की। पिछले कुछ वर्षों से दुनिया भर के देशों को वहां के लोगों की खुशी के आधार पर सूचीबध्द करने का काम शुरु हुआ। 2009 में प्रकाशित ‘हैप्पी प्लैनेट सूचकांक’ के नाम की सूची को देखने से पता चलता है कि अमरीका जो दुनिया का अत्यंत विकसित राष्ट्र है, ‘हैप्पी प्लैनेट सूचकांक’  के आधार पर 143 देशों की सूची में 114वें स्थान पर था। सिंगापुर 49वें, फ्रांस 71वें, कनाडा 89वें, इंगलैंड 74वें, जर्मनी 51वें और भारत 35वें पायदान पर था। प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के वर्तमान सूचकों के आधार पर मानव विकास सूचकांक की सूची में 131वें स्थान पर खड़ा भूटान आश्चर्यजनक रूप से खुशी सूचकांक के आधार पर 17वें स्थान पर खड़ा था। वास्तव में प्रथम 20 स्थानों में जगह बनाने वाले राष्ट्रों में भूटान एक मात्र विकासशील देश था। दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान में विश्व ख़ुशी सूचकांक  के हिसाब से फ़िनलैंड जो पहले स्थान पर है इस रिपोर्ट में 59वें स्थान पर था। जुलाई 2011 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया ‘खुशीः विकास के एक समग्र परिभाषा की ओर’। अप्रैल 2012 में पहली विश्व खुशी रिपोर्ट प्रकाशित की गई और उसके उपरांत हर वर्ष 20 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस के अवसर पर प्रकाशित की जाती है। इस संदर्भ में विभिन्न देशों की खुशी के पैमाने पर रैंकिंग ‘कैन्ट्रिल लेडर सर्वे’ यानि कैन्ट्रिल सीढ़ी सर्वेक्षण के पैमाने पर की जाती है। विचारणीय बात यह है कि भूटान की तर्ज़ पर विश्व में जो ख़ुशी सूचकांक सबसे पहले प्रकाशित हुआ था उसमें अमरीका और यूरोप के देश ख़ुशी सूचकांक में बहुत पीछे थे। लेकिन जब से यह काम पश्चिमी देशों के हाथ में आया, तब से एशियाई देश पीछे खिसक गए और यूरोपीय देश पहली पंक्ति में आ गये। यानि कहा जा सकता है कि भौतिक संपत्ति और आमदनी फिर से ख़ुशी का पैमाना घोषित हो गयी है और कम आय वाले देशों को अपनी मन मर्ज़ी से ऊपर-नीचे करने का काम हो रहा है।

भारत जिसे 126वें स्थान पर बताया गया है, आज खाद्य पदार्थों के संदर्भ में केवल आत्मनिर्भर ही नहीं, दुनिया भर को अन्न उपलब्ध करा रहा है, जहां पिछले कुछ सालों में घरविहीन और कच्चे घर वाले 3 करोड़ लोगों को आवास की सुविधा उपलब्ध कराई गई है, जिसने कोविड की त्रास्दी का दुनिया भर में सबसे बेहतर तरीके से सामना किया है, जहां लगभग सभी लोगों को कोरोना वैक्सीन दी जा चुकी है, जहां यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई व्यक्ति भूखा न रहे और उसके लिए 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा मुत राशन दिया जा रहा है, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, स्वच्छता आदि में अभूतपूर्व विकास हो रहा है, उसे पाकिस्तान, बंगलादेश और म्यांमार से पीछे दिखाए जाने से भारत की साख तो कम नहीं होती है लेकिन उस संस्था की साख पर बट्टा जरूर लगता है जो ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करती है।

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