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बिम्सटेकः क्षेत्रीय सहयोग का उभरता और प्रभावी मंच

पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये के कारण सार्क मृतप्राय हो चुका है, और बिम्सटेक नए क्षेत्रीय समूह के रूप में उभरा है, जिसमें भारत एक प्रमुख शक्ति है। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 2 से 4 अप्रैल 2025 को बैंकाक में आयोजित बिम्सटेक के छठे शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और संगठन में शमिल सभी सात एशियाई देशों के बीच बेहतर जुड़ाव, आर्थिक और डिजिटल संबंधों को प्रगाढ़ बनाने का आह्वान किया। गौरतलब है कि ‘बिम्सटेक’ में बंगलादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के 2024 के अनुमानों के अनुसार ये देश कुल 5.23 ट्रिलियन अमरीकी डालर की जीडीपी का उत्पादन करते हैं, जिसमें स्वभाविकतौर पर भारत का योगदान सर्वाधिक है। यह बंगाल की खाड़ी से तटवर्ती या समीपी देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग संगठन है। खास बात यह है कि पाकिस्तान इस संगठन का सदस्य देश नहीं है।

हालांकि यह संगठन 27 साल से भी अधिक समय से चल रहा है, शुरूआत में जून 1997 में इसका गठन बिस्टेक के नाम से हुआ, यानि बंगलादेश, इंडिया, श्रीलंका और थाईलैंड इकोनॉमिक कॉओपरेशन। थोड़े ही समय बाद दिसम्बर 1997 इसमें म्यांमार को शामिल करते हुए इसका नाम बिम्सटेक हो गया। फरवरी 2004 में नेपाल और भूटान इसके सदस्य बन गए और इसका नाम तो बिम्सटेक ही रहा, लेकिन उसे अब ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेकनिकल एंड इकोनॉमिक कॉओपरेशन’ के नाम से जाना जाने लगा। अभी तक पूर्व में इसके शिखर सम्मेलन क्रमशः थाईलैंड, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका में होने के बाद इसका छठा शिखर सम्मेलन थाईलैंड बैंकॉक में आयोजित हुआ।

सार्क से कैसे अलग है बिम्सटेक

गौरतलब है कि भारत के पड़ोसी देशों का एक संगठन सार्क है। सार्क यानि साऊथ एशियन एसोसिएशन फॉर रिजनल कोओपरेशन, दक्षिण एशिया के देशों भारत, बंगलादेश, भूटान, मालद्वीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका, कुल सात देशों का संगठन के रूप में 1985 में बना। 2007 में इसमें अफगानिस्तान शामिल हुआ। सार्क के 9 पर्यवेक्षक देश भी है, जिसमें यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमरीका, ईरान और चीन भी शामिल हैं। सार्क देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए साऊथ एशियन प्रफ्रेंशिएल ट्रेड एग्रीमेंट, यानि साप्टा; और साऊथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया, यानि साफ्टा नाम के दो समझौते क्रमशः 1995 और 2004 में हुए। इन समझौतों का उद्देश्य इस क्षेत्र में लोगों की भलाई के लिए व्यापार और विकास को बढ़ावा देना था। शुरूआती दौर से ही सार्क में कुछ विवाद रहा, क्योंकि पाकिस्तान ने भारत के विरूद्ध छोटे देशों को भड़का कर उसे बदनाम करने का काम करना शुरू कर दिया था।

पाकिस्तान के इस रूख को देखते हुए भारत ने 1992 से शुरू ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के तहत बिम्सटेक को बढ़ावा देने का काम शुरू किया। 1997 में इंडियन ओसिएन रिम एसोसिएशन, वर्ष 2000 में मैकाँग गंगा कोओपरेशन और 2015 में बंगलादेश, भूटान, भारत और नेपाल ट्रांसपोर्ट एग्रीमेंट करते हुए बिम्सटेक को मजबूत करने का काम किया। गौरतलब है कि भारत के सार्क से विमुख होने के बाद सार्क का महत्व ही समाप्त हो गया और पिछले 10 सालों से भी ज्यादा समय से इसका एक भी शिखर सम्मेलन नहीं हुआ।

बिम्सटेक से क्या हैं आशाएं?

बिम्सटेक में शामिल भारत के पड़ोसी या समीपवर्ती सातों देश विकासशील देश हैं। इन देशों में आर्थिक और जनसंख्या के नाते सबसे बड़ा देश भारत है। आज जब दुनिया भर के देशों के बीच विभिन्न प्रकार के अवरोध और असमंजस बढ़ रहे हैं, भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के तहत इस क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन का महत्व और बढ़ जाता है। भारत ने पिछले एक दशक में जो तकनीकी और आर्थिक प्रगति की है, इस क्षेत्र के लोग उससे प्रभावित हैं। कनेक्टिविटी का मामला हो अथवा डिजिटाइजेशन की बात हो, अथवा अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग का मामला हो, भारत आज इस स्थिति में है कि इस क्षेत्र के देशों को मदद कर सके।

भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति और सॉफ्ट पावर दोनों ही उसे इस क्षेत्र के नेतृत्व हेतु बिम्सटेक में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। यही कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बिम्सटेक के छठे शिखर सम्मेलन में दिया गया भाषण खास महत्व रखता है। प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक को दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब बिम्सटेक क्षेत्रीय सहयोग, समन्वय और विकास हेतु एक प्रभावी मंच बन चुका है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने बिम्सटेक के एजेंडा और क्षमता को और मजबूत करने का आह्वान किया है।

प्रधानमंत्री ने बिम्सटेक में संस्थान और क्षमता निर्माण की दिशा में भारत के नेतृत्व में कई पहलों की घोषणा भी की। इनमें आपदा प्रबंधन, सतत समुद्री परिवहन, पारंपरिक चिकित्सा और कृषि में अनुसंधान और प्रशिक्षण पर भारत में बिम्सटेक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना शामिल है। उन्होंने युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए एक नए कार्यक्रम की भी घोषणा की, जिसके तहत पेशेवरों, छात्रों, शोधकर्ताओं, राजनयिकों और अन्य लोगों को प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी। उन्होंने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में क्षेत्रीय आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए भारत द्वारा एक पायलट अध्ययन और क्षेत्र में कैंसर देखभाल के लिए एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम की भी पेशकश की। अधिक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का आह्वान करते हुए, प्रधानमंत्री ने बिम्सटेक चौंबर ऑफ कॉमर्स की स्थापना और भारत में हर साल बिम्सटेक बिजनेस समिट आयोजित करने की भी पेशकश की। क्षेत्र को एक साथ लाने वाले ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने लोगों से लोगों के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए कई पहलों की घोषणा की। भारत इस वर्ष बिम्सटेक एथलेटिक्स मीट की मेजबानी करेगा और 2027 में जब समूह अपनी 30वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब पहले बिम्सटेक खेलों की मेजबानी भी भारत करेगा। यह बिम्सटेक पारंपरिक संगीत महोत्सव की मेजबानी भी करेगा। क्षेत्र के युवाओं को करीब लाने के लिए प्रधानमंत्री ने यंग लीडर्स समिट, हैकाथॉन और यंग प्रोफेशनल विजिटर्स प्रोग्राम की घोषणा की।

अब जबकि पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये के कारण सार्क मृतप्राय हो चुका है, और बिम्सटेक नए क्षेत्रीय समूह के रूप में उभरा है, जिसमें भारत एक प्रमुख शक्ति है, जहां क्षेत्र के विभिन्न देश अंतरिक्ष क्षेत्र, भुगतान प्रणाली, डिजिटलीकरण, औद्योगिकीकरण और अन्य में सहयोग के लिए भारत की ओर देख रहे हैं, यह भारत को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का एक नया अवसर देता है, जहां चीन बुनियादी ढांचे और अन्य तरीकों से हावी होने की कोशिश कर रहा है। श्रीलंका सहित पड़ोसी देशों की प्रधानमंत्री की यात्रा एक संकेत है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग विकसित करने के बारे में गंभीरता से सोच रहा है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इसका भू-राजनीतिक महत्व भी है। क्योंकि चीन भी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। बिजनेस समिट, यंग लीडर्स समिट, बिम्सटेक चैंबर ऑफ कॉमर्स की स्थापना, खेल आयोजन और ऐसे अन्य उपायों के रूप में बिम्सटेक देशों के साथ नियमित बातचीत, क्षेत्र के देशों के बीच आर्थिक सहयोग बेहतर करने में लंबा रास्ता तय कर सकती है।          

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