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उत्तर प्रदेश की बदलती तस्वीर

कुछ सप्ताह पूर्व नीति आयोग ने वर्ष 2020-21 के लिए स्थायी विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) के सदंर्भ में भारत के 36 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों की कार्यनिष्पादन रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार जहां समस्त भारत के स्थायी विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कुल अंक 2019 में 60 से बढ़ाकर 2020 में 66 तक पहुंच गए हैं, सभी राज्यों में यह वृद्धि कम या ज्यादा देखने को मिली है। एसडीजी के संदर्भ में सबसे शीर्ष में पूर्व की भांति 75 अंकों के साथ केरल है, जबकि सबसे नीचे भी पहले जैसे ही 52 अंकों के साथ बिहार है।

यदि सबसे तेज गति से आकांक्षा से बेहतर निष्पादक की श्रेणी में जाने वाला राज्य उत्तर प्रदेश बना, जो 2018 में मात्र पर 42 अंकों से आगे बढ़ता हुआ 2020 में 60 अंकों तक पहुंच गया यानि 18 अंकों की बढ़त, जबकि अन्य 2018 के आकांक्षी राज्य बिहार और असम का कार्य निष्पादन उससे काफी कम रहा। बिहार इन दो सालों में 48 अंकों से बढ़कर 52 अंकों तक ही पहुंचा (यानि मात्र 4 अंकों की वृद्धि) और असम 49 अंकों से बढ़कर 57 अंकों तक पहुंचा यानि 8 अंकों की बढ़त। नीचे के पायदान के अन्य राज्यों में झारखंड 50 अंकों से 56 अंक, मध्यप्रदेश 52 अंकों से 62 अंक, राजस्थान 50 अंकों से 60 अंक तक पहुंचे। पश्चिम बंगाल भी 56 अंकों से मात्र 62 अंकों तक ही पहुंचा। उत्तर पूर्व राज्यों में मेघालय 52 अंकों से 62 अंकों तक पहुंचा, जबकि अरूणाचल प्रदेश 51 अंकों से 60 अंकों तक। नागालैंड 51 अंकों से 61 अंकों तक और मणीपुर 59 अंकों से 64 अंकों तक। 

काफी लंबे समय से हमारा देश क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं से जूझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के फार्मूले के आधार पर लंबे समय से विभिन्न देशों का रैंकिंग उनके मानव विकास के स्तर के आधार पर की जाती है। एसडीजी में कई कारकों को शामिल किया गया है जो मानव विकास सूचकांक में शामिल नहीं थे। मानव विकास सूचकांक में प्रतिव्यक्ति आय, स्वास्थ्य के स्तर और शिक्षा के स्तर को उनके संकेतकों के आधार पर शामिल किया गया था।

उधर वर्तमान में एसडीजी में 17 लक्ष्यों को शामिल किया है। इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, शून्य भुखमरी, अच्छा स्वास्थ्य और कुशल क्षेम, स्तरीय शिक्षा, लिंग समानता, स्वच्छ जल और सफाई, सस्ती और साफ ऊर्जा, अच्छा काम और ग्रोथ, असमानताओं में कमी, शांति और न्याय हेतु सबल संस्थाएं, जिम्मेदारी पूर्ण उपभोग एवं उत्पादन इत्यादि शामिल हैं। इन लक्ष्यों के कार्य निष्पादन का आकलन करने के लिए 117 संकेतकों का इस्तेमाल किया जाता है।

हमारे देश के पिछड़े राज्यों में अधिक जनसंख्या वाले राज्य बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, के साथ-साथ कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ शामिल थे। कई बार इन राज्यों (बिहार, मध्यप्रदेश, असम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश), के नामों को जोड़कर ‘बीमारु’ राज्य भी कहा जाता रहा है। यदि इन ‘बीमारु’ राज्यों का पिछला तीस वर्षों का आकलन करें तो देखते हैं कि वर्ष 1990-91 से 2004-05 के बीच बिहार की ग्रोथ की दर -1 प्रतिशत, मध्यप्रदेश की 1.78 प्रतिशत, असम की 3.18 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश की 2.79 प्रतिशत ही रही। लेकिन राजस्थान की ग्रोथ 5.11 प्रतिशत और उड़ीसा की 5.52 प्रतिशत रही। लेकिन यहां यह समझना होगा कि अगड़े राज्यों की ग्रोथ इस दौरान 6.03 प्रतिशत, जबकि पिछड़े राज्यों की मात्र 2.7 प्रतिशत ही रही। लेकिन 2004-05 से 2019-20 के दौरान पिछड़े राज्यों की ग्रोथ सम्मानजनक रही। बिहार में जीडीपी ग्रोथ 8.6 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 7.9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 6.5 प्रतिशत, राजस्थान में 6.9 प्रतिशत और उड़ीसा में 5.9 प्रतिशत और झारखंड में 6.7 प्रतिशत की दर से दर्ज की गई। लेकिन यह भी सच है कि चूंकि इन राज्यों में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है, इसलिए तेज आर्थिक संवृद्धि के बाद भी प्रतिव्यक्ति आय की दृष्टि से ये राज्य अभी भी बहुत पीछे है, जिसके कारण वहां के लोगों में गरीबी, भूखमरी इत्यादि अधिक है। यही नहीं सरकारी राजस्व भी कम होने के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर भी नीचे रहता है। यदि देखा जाए तो अभी भी सबसे अमीर राज्य (महाराष्ट्र) की प्रतिव्यक्ति आय और सबसे पिछड़े राज्य की प्रतिव्यक्ति आय के बीच अंतर अभी भी 5 गुणा से ज्यादा बना हुआ है।

महाराष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय अभी भी उत्तर प्रदेश की प्रतिव्यक्ति आय से 3.3 गुणा से ज्यादा है, फिर भी एसडीजी के संदर्भ में उत्तर प्रदेश दो ही वर्षों में 42 अंकों से बढ़कर 60 तक कैसे पहुंचा, यह जानना दिलचस्प होगा। यदि विभिन्न कारकों में से देखें तो उत्तर प्रदेश में एसडीजी 7 (यानि स्वच्छ एवं सस्ती ऊर्जा के संबंध में सबसे बेहतर प्रगति हुई है, जिसमें दो वर्षों में उत्तर प्रदेश के अंक 23 से बढ़कर 100 पहंच गए हैं। ऐसा इसलिए है कि विद्युतीकरण शत प्रतिशत पहुंच गया है और एलपीजी कनैक्शन 107 प्रतिशत पहुंच चुके हैं। उत्तर प्रदेश को दूसरी सबसे बेहतर सफलता स्वास्थ्य एवं कुशल क्षेम (एसडीजी 3) में मिली है, जिसमें उत्तर प्रदेश के अंक 25 से बढ़कर 60 हो गए हैं। लिंग समानता (एसडीजी 5) के संदर्भ में भी उत्तर प्रदेश का कार्य निष्पादन इसलिए बेहतर हुआ है, क्योंकि महिलाओं की भागीदारी राज्य विधायिका में पहले से बेहतर हुई है। स्वच्छ जल एवं सफाई व्यवस्था (एसडीजी 6) में भी उत्तर प्रदेश के अंक 2 सालों में 55 से 85 पहुंच गए हैं। शांति, न्याय और सबल संस्थाओं (एसडीजी 16) के संदर्भ में भी उत्तर प्रदेश के अंक 61 से बढ़कर 79 तक पहुंच गए हैं। यदि देखा जाए तो चाहे 17 कारकों में से उत्तर प्रदेश का कार्यनिष्पादन सिर्फ 5 कारकों में ही उल्लेखनीय रूप से बेहतर हुआ है, लेकिन इन्हीं कारकों के कारण उत्तर प्रदेश को संयुक्त अंकों में 11 अंकों की बढ़त हासिल हुई है। यदि ऐसा होता है तो बीमारु राज्य से विकसित राज्य की उत्तर प्रदेश की यात्रा शेष राज्यों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करेगी।

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