विकास पर फोकस, मध्यम वर्ग को राहत
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2023 को संसद के समक्ष ’अमृत काल’ का पहला पूर्ण बजट और मोदी-02 सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश किया। उम्मीद के मुताबिक, अति धनी सहित मध्यम वर्ग के लिए, आयकर का बोझ (नई कर व्यवस्था में) कम हो गया है, जिसका कुल राजस्व पर प्रभाव 37,000 करोड़ रुपये पड़ेगा। नई आयकर प्रणाली करदाताओं को कम कर बोझ के साथ रिटर्न दाखिल करने में आसानी के मामले में राहत दे सकती है; लेकिन इसका आयकरदाताओं द्वारा की जा रही बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। आज के दौर में जहां जीएसटी बजट के दायरे से बाहर हो गया है; और कॉरपोरेट कराधान में किसी तरह के बदलाव की संभावना न के बराबर है, आर्थिक विश्लेषकों की नजर में सरकारी खर्च का आवंटन ज्यादा है। निस्संदेह, सरकारी व्यय का आवंटन सरकार की नीतियों का आईना होता है; और इस बजट में यह पूरी तरह से परिलक्षित हो रहा है।
बजट में बुनियादी ढांचे, ग्रामीण विकास, हरित विकास, शिक्षा और डिजिटलीकरण के लिए आवंटन सराहनीय है। मिलेट्स यानि मोटे अनाजों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष में मिलेट्स को बढ़ावा देना, कृषि ऋण में बढ़ोतरी, डेयरी और मत्स्य पालन जैसी संबद्ध गतिविधियों पर ध्यान देना, सहकारिता को प्रोत्साहन आदि इस बजट के प्रमुख आकर्षण हैं। बहुउद्देश्यीय प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पैक्स) को बढ़ावा देते हुए डेयरी, मत्स्य क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रावधान बजट में शामिल किये गये हैं। कृषि ऋण लक्ष्य को बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये करना एक स्वागत योग्य कदम है। यह सभी कृषि और संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा देगा। नई घोषणा के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में ’एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट’ से ’एस्पिरेशनल ब्लॉक’ की ओर बढ़ते हुए, पिछड़े ब्लॉकों में ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। सूखा प्रवण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए आवंटन अधिक समावेशी ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने का एक और प्रयास है। पिछले साल के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए, प्रभावी पूंजीगत व्यय (पूंजी निर्माण के लिए राज्य सरकारों को समर्थन सहित) का हिस्सा बढ़ाकर 13.7 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 प्रतिशत है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य प्रकार की परिसंपत्तियों के निर्माण में वृद्धि होगी। 2.40 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय रेलवे के लिए, 7500 करोड़ रुपए के लॉजिस्टिक सहित विभिन्न प्रकार के पूंजीगत व्यय का प्रावधान इस बजट को खास बनाता है। इतना पूंजीगत व्यय न केवल मात्रा के लिहाज से, बल्कि हाल के दशकों में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भी एक रिकॉर्ड है।
बजट में एक और स्वागत योग्य फोकस एमएसएमई क्षेत्र है। मध्यम लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी का विस्तार करना, उन मध्यम लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को राहत देना जो अपने अनुबंधों को पूरा नहीं कर सके, कारीगरों, जो सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं को सशक्त बनाने के लिए पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना स्वागत योग्य कदम हैं। ग्रीन ग्रोथ पर जोर इस बजट की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, नवीकरणीय ऊर्जा, गोबर्धन, ग्रीन ग्रोथ क्रेडिट आदि जैसे प्रावधानों को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए 2070 तक ’शुद्ध शून्य’ के भारत के संकल्प के संकेत के रूप में माना जा सकता है। सरकार पिछले कुछ समय से पर्यटन पर ध्यान दे रही है। कनेक्टिविटी में सुधार के साथ ही इस बजट में इस क्षेत्र में स्वरोजगार और कौशल निर्माण सहित कई प्रावधान हैं।
हालांकि, यह उम्मीद की गई थी कि इस बजट में विनिर्माण पर जोर दिया जाएगा, परंतु इस दिशा में पर्याप्त प्रयासों की कमी है। आज देश चीन से अभूतपूर्व आयात और व्यापार घाटे के दौर से गुजर रहा है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं जा सका। अब ज़रूरत इस बात की है कि अंतिम और साथ ही मध्यवर्ती उत्पादों दोनों पर टैरिफ की बढ़ोतरी की जाए, जहां भारत में क्षमता उपलब्ध है। वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमानों के अनुसार, कुल व्यय लगभग 42 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। इसकी तुलना में इस साल करीब 45 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान (बजट अनुमान) रखा गया है, यानी महज 7 फीसदी की बढ़ोतरी। शायद राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत तक सीमित करने के उद्देश्य से व्यय को सीमित किया गया है, हालांकि पूंजीगत व्यय पर राजकोषीय संतुलन का प्रभाव महसूस नहीं किया जा रहा है। ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचे और एमएसएमई पर ध्यान देने के साथ बजट विकासोन्मुख है, जिसमें समाज के सभी वर्गों की बेहतरी का पर्याप्त ध्यान रखते हुए भारत को दुनिया के समक्ष बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का रास्ता दिखाई देता है। मध्यम वर्ग द्वारा बचत, जो कि सरकार के उधार और पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, को बढ़ावा देने के लिए कर व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ उन उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने चाहिए, जिससे कि चीन के आयात पर अंकुश लगे और देश के विनिर्माण को बढ़ावा मिले।
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