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छोटे किसानों के लिए घातक है मुक्त बाजार

कृषि कानूनों के खिलाफ भारतीय किसानों द्वारा ट्रैक्टर रैली की चर्चा तकरीबन पैंतालिस साल पहले अमेरिका में हुए किसान रैली से की जा रही है, लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि अमेरिकी किसानों के उलट भारत में कृषि कानूनों को लेकर विरोध करने वाले किसान अपने आंदोलन में ‘समानता’ शब्द का उपयोग नहीं कर रहे हैं। भारतीय किसान एक सुनिश्चित मूल्य के माध्यम से आय आश्वासन चाहते हैं। — देविन्दर शर्मा

 

कड़ाके की ठंड में सुबह-सुबह सैकड़ों ट्रैक्टरों का जत्था वाशिंगटन डीसी की सड़कों पर उतर आया था। 5 फरवरी 1979 को लगभग दो हजार ट्रैक्टरों पर सवार अमेरिकी किसान वहां के पूंजीपतियों के लिए बनाई गई कृषि नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। किसानों का आरोप था कि अमेरिकी हुक्मरान खेत की कीमतों पर पूंजीपतियों के हित में कानून बना रहे हैं। उन दिनों वहां कृषि आय में लगातार गिरावट हो रही थी। अमेरिकी किसानों ने सत्ता प्रतिष्ठानों से अपील की थी कि उन्हें वाजिब कृषि आय देकर उनके खेत को और उनकी किसानी को सुरक्षित किया जाए। हाल के भारत में चल रहे किसान आंदोलन को अमेरिका के उसी आंदोलन के नजरिए से देखा जा रहा है, क्योंकि हालिया भारतीय आंदोलन में भी कमोवेश उन्हीं भावनाओं की गूंज है।

अमेरिकी कृषि आंदोलन (एएएम)ः बताया जाता है कि अमेरिकी कृषि आंदोलन 1977 के बाद शुरू हुआ, जब अमेरिकी कृषि बिल अधिशेष खाद्य उत्पादन के समय खेत की कीमतों की रक्षा करने में विफल रहा। जहां कमोडिटी की कीमतों में गिरावट जारी रही, वहीं किसानों को उत्पादन लागत को भी कवर करना मुश्किल हो गया था। इसके परिणामस्वरूप छोटे किसानों ने कृषि को छोड़ दिया और इस प्रक्रिया में खेत की जमीनों की नीलामी बढ़ गई। तब किसानों ने तर्क दिया कि सरकार को किसानों की देखभाल की तुलना में उपभोक्ताओं के लिए खाद्य कीमतों को कम मूल्य पर रखने के बारे में चिंता अधिक है।

उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी किसानों को जो गेहूं की कीमत मिली, वह कम थी। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि मुद्रास्फीति के लिए समायोजित वर्ष 1976 में अमेरिकी कृषि आय वर्ष 1930 के दशक में ग्रेट डिप्रेशन के वर्षों के दौरान वार्षिक कृषि आय से भी कम थी।

अमेरिका में खेती-किसानी पर आए संकट से निपटने के लिए किसानों ने कोलोराडो के कैंपों में एक बैठक की। बैठक में यह तय किया गया कि ग्रामीण परिवार की संरचनाओं को बचाने के लिए अमेरिकी राज्य की राजधानियों में श्रृंखलाबद्ध आंदोलन किए जाएं। इसमें यह भी तय किया गया कि चूंकि आंदोलन कृषि आबादी से जुड़ा हुआ है इसलिए खेत के प्रतीक के तौर पर आंदोलन में ट्रैक्टरों के साथ हिस्सा लिया जाए। अमेरिकी किसानों ने इसके लिए हजारों ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया। अमेरिका में ट्रैक्टर प्रदर्शनों को ट्रैक्टरकैड के रूप में जाना जाने लगा। इस प्रदर्शन के जरिए किसानों ने अमेरिकी जनता के बीच कृषि संकट का संदेश दिया, जिससे अमेरिका की शहरी आबादी ग्रामीण अमेरिका में व्याप्त ग्रामीण आर्थिक विषमताओं के बारे में परिचित हुई।

कृषि पोषण और बैंकिंग पर अमेरिकी सीनेट समिति के मुताबिक किसान घरेलू और निर्यातित कृषि उत्पादों पर 100 प्रतिशत समानता चाहते थे। किसानों का कहना था कि कृषि उत्पादों को 100 प्रतिशत क्षमता पर अनुबंधित किया जाए तथा घरेलू आयात को पूरा करने के लिए खाद्य आयात पर रोक लगाई जाए। कृषि नीति में घरेलू मांग की घोषणाएं, किसानों को उत्पादन को समायोजित करने के लिए समय देने और किसानों को नीतिगत मामलों में प्रभाव देने का एक तरीका है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अमेरिकी किसान मूल्य आश्वासन की मांग कर रहे थे और यहां तक कि व्यापार विकृतियों के समय सुरक्षा चाहते थे।

अब आज के समय में जब मैं प्रदर्शनकारी भारतीय किसानों की मांगों को देखता हूं और अमेरिकी किसान जो उस समय मांग रहा था उसकी तुलना करता हूं तो मुझे दोनों में एक समानता दिखाई देती है। हालांकि भारतीय किसान अपनी मांगों में ‘समानता’ शब्द का उपयोग नहीं कर रहे हैं। भारतीय किसान अनुमानित मूल्य के माध्यम से एक आय आश्वासन चाहते हैं। यह जानते हुए कि हर जगह किसानों को बाजारों की क्रूरता का सामना करना पड़ता है इसलिए किसान चाहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाया जाए। यह निश्चित रूप से व्यापार नीति को प्रभावित करेगा। लेकिन यह आजीविका के नुकसान की तुलना में एक छोटी सी कीमत है, जो लाखों किसानों को साल दर साल भुगतना पड़ता है। ऐसे में जब भारतीय किसान तीन केंद्रीय कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं, जिन्हें हितधारकों के साथ बिना किसी सार्थक परामर्श के लाया गया है, तो वास्तव में भविष्य की कृषि नीतियों को तैयार करने में एक भूमिका को देखते हुए ही है।

वर्ष 1979 में वाशिंगटन डीसी में हुए ऐतिहासिक ट्रैक्टरकैड ने सारे अमेरिकी किसानों को आकर्षित किया था। प्रदर्शन के दौरान लगभग 1300 मील की दूरी तक ट्रैक्टर चलाने वाली प्रदर्शन में शामिल एकमात्र महिला  बेवर्ली एंडरसन ने अपने एक साक्षात्कार में उसे याद करते हुए बताया कि कभी-कभी ट्रैक्टर चालकों को उन समुदाय के लोगों द्वारा खिलाया जाता था, जहां वे रहते थे। जब कभी ट्रैक्टर चालकों को राजमार्गों से हटाया जाता था, तब भी स्थानीय निवासी ट्रैक्टर चालकों के पक्ष में खड़े होते थे। एंडरसन का मानना है कि वह किसानों की एक सफलता थी। इसके जरिए किसानों ने अपनी दुख भरी कहानियां लोगों के बीच फैलाई। अमेरिकी समाज को यह संदेश देने में कामयाबी मिली कि अगर खेती किसानी के प्रति आम नागरिकों का सहयोग नहीं मिला तो अमेरिकी ग्रामीण समाज संकट में आ जाएगा। वही कृषि प्रणाली की विफलता देश को आयातित खाद्य पर निर्भर करेगी।

प्रारंभ में वहां के निवासी दुखी थे। वे चाहते थे कि किसानों को बाहर निकाला जाए। लेकिन उसी समय एक प्राकृतिक आपदा आई, बर्फीले तूफान के कारण वहां का जीवन चक्र रूक गया। सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया था। ऐसे मुसीबत के समय में किसानों ने सड़कों को साफ करने, बर्फ के नीचे से कारों को निकालने और डाक्टरों और नर्सों को ट्रैक्टर से अस्पताल पहुंचाने में बड़ी भूमिका अदा की। कठिन समय में किसानों द्वारा उठाए गए इस कदम से शहरी आबादी प्रभावित हुई तथा किसानों को साथी नागरिक के रूप में देखना शुरू कर दिया। इसके बाद कई हफ्तों तक किसान ट्रैक्टर के जरिए अमेरिकी समाज में ग्रामीण खेती की दुर्दशा का संदेश देते रहे। 

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, जो खुद एक किसान थे, प्रदर्शनकारियों के साथ सहानुभूति रखते थे। तब उन्होंने कहा था कि मुझे किसी अन्य ऐसे समूह का पता नहीं है जो किसानों की तुलना में मुद्रास्फीति से अधिक पीड़ित हो।

एंडरसन ने याद दिलाया कि आंदोलन के दौरान अमेरिकी किसानों ने अपनी दुर्दशा की कहानी बताने में सफलता पाई, लेकिन अगर यह पूछा जाए कि कानून ने कोई मदद की, तो वास्तव में नहीं। 

इस आंदोलन के दशकों बाद टाइम्स पत्रिका की कवर स्टोरी (27 नवंबर 1919 का अंक) ‘‘वह हमें नक्शे से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, छोटे अमेरिकी किसान विलुप्त होने वाले हैं।’’ यह शीर्षक अमेरिकी किसानों की व्यथा-कथा का विवरण प्रस्तुत करता है। दरअसल नीति निर्माताओं ने केवल किसानों की समस्याओं को सुना होता और उन्हें कम से कम गारंटीकृत मूल्य प्रदान किया, तो अमेरिकी खेती को तबाह होने से बचाया जा सकता था। वहां खेत की जमीनों से छोटे किसानों को बाहर निकलने के लिए मजबूर किया गया। गहन कृषि से मिट्टी नष्ट कर दी गई, भूजल को प्रदूषित कर दिया है और रासायनिक कीटनाशकों ने खाद्य श्रृंखला को दूषित कर दिया है। सस्ते फीड़ की वास्तविक लागत के साथ अमेरिकी कृषि पुनर्जनन के लिए रो रही है।

यहां एक सबक है कि रूढ़िवादी मुक्त बाजार ने अमेरिका सहित दुनिया के किसी भी देश में कृषि आय को बढ़ाने में मदद नहीं की है। इसमें केवल छोटे किसानों को कृषि से बाहर किया है। ऐसे में छोटे किसानों के लिए खेती को आर्थिक रूप से व्यावहारिक और टिकाऊ बनाने के लिए भारत को प्रदर्शनकारी किसानों को ध्यान से सुनने की जरूरत है।         

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