ई-उत्पादों के आयात पर टैरिफ़ लगाने की दरकार
ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे यह स्पष्ट है कि पूर्व में विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत किए गए समझौते गैरबराबरी के समझौते थे, जिसमें विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के विकास को बाधित करने और वहां की सरकारों को अपने उद्योग, कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को किसी भी प्रकार की मदद से रोकने के सभी प्रावधान किए गए थे। लेकिन साथ ही साथ जहां-जहां विकसित देशों की कंपनियों को फायदा पहुंच सकता था, उसके लिए विकासशील देशों से रियायतें लेने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई। विश्व व्यापार संगठन का मंत्रीस्तरीय सम्मेलन हालांकि अभी स्थगित हो गया है, लेकिन जब भी यह सम्मेलन आयेजित होगा, उसमें भी विकसित देशों द्वारा भारत पर अपने छोटे मछुआरों को सब्सिडी समाप्त करने, हमारे किसानों से सरकारी खरीद को सीमित करने, के साथ-साथ विश्व व्यापार संगठन की रीति नीति में बदलाव करते हुए हमारे जैसे मुल्कों को हानि पहुंचाने के सभी प्रयास होने वाले हैं। जब भारत सरकार द्वारा, जैसा कि सरकारी हलकों से यह स्पष्ट संदेश है कि जहां भारतीय हितों का संरक्षण विश्व व्यापार संगठन में किया जाएगा, वहीं विकसित देश अपनी आर्थिक शक्ति का उपयोग करते हुए भारत को अलग-थलग करने का भी प्रयास करेंगे।
इस संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन के प्रारंभ से ही इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ स्थगन के अस्थाई प्रावधान को समाप्त करने हेतु प्रयास करने का समय आ गया है। गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन के प्रारंभ के समय इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों में व्यापार बहुत सीमित था। ऐसे में इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों के व्यापार पर अस्थाई रूप से टैरिफ को स्थगित रखा गया और विश्व व्यापार संगठन के दूसरे मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में ही यह निर्णय हुआ कि विकसशील देशों की विकास के आवश्यकताओं के संदर्भ में वैश्विक इलैक्ट्रॉनिक व्यापार से संबद्ध सभी मुद्दों पर अध्ययन हो और अगले मंत्रीस्तरीय सम्मेलन तक इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ को स्थगित रखा जाए।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकसित देशों ने तरह-तरह की बहानेबाजी के माध्यम से इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर टैरिफ छूट को रोके रखा। आज स्थिति यह है कि अकेले भारत द्वारा लगभग 30 अरब डालर से भी ज्यादा इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों का आयात हो रहा है। यानि यदि 10 प्रतिशत भी टैरिफ लगाया जाए तो भारत सरकार को 3 अरब डालर से ज्यादा का राजस्व प्राप्त होगा। यहां विषय केवल राजस्व की हानि का ही नहीं है, बल्कि भारत जैसे देश में जहां हमारे स्टार्टअप और सॉफ्टवेयर कंपनियां विभिन्न प्रकार के इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों को बनाने में सक्षम है, जहां फिल्में और अन्य मनोरंजन के उत्पाद हम अपने देश में ही बना सकते हैं, लेकिन जब बिना टैरिफ, बिना रोकटोक, इस प्रकार के सभी उत्पाद आयात हो जाते हैं, तो हमारे देश में उन्हें उत्पादित करने के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं रहता। गौरतलब है कि बिना टैरिफ, बेरोकटोक इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात के कारण केवल अमरीका और यूरोपीय देश ही लाभांवित नहीं हो रहे, बल्कि चीन भी इससे खासा फायदा उठा रहा है।
इसके साथ ही साथ हमें यह भी समझना होगा कि दुनिया में उत्पादन का प्रकार भी बदल रहा है। आज किसी भी वस्तु को विदेश से मंगाने के लिए उसको भौतिक रूप से आयात करना जरूरी नहीं। 3डी प्रिटिंग द्वारा उस वस्तु को सॉफ्टवेयर और अन्य मेटिरीयल का उपयोग करते हुए उसको भौतिक रूप से बनाया जा सकता है। यानि यदि ऐसा होता है तो भौतिक वस्तुओं के आयात पर लगने वाले आयात शुल्कों से भी देश को हाथ धोना पड़ सकता है। यानि विषय केवल इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों पर मिलने वाले राजस्व की हानि का ही नहीं है, बल्कि भविष्य में भौतिक वस्तुओं पर मिलने वाले आयात शुल्कों की संभावित हानि का भी है।
इलैक्ट्रॉनिक कॉमर्स के बारे में दुनिया में अभी भी स्पष्टता नहीं है और न ही इसके व्यापार संबंधित विषयों की समझ में कोई मतैक्य है। विभिन्न प्रकार की चलाकियों से ई-कॉमर्स के विषय और उसपर होने वाली चर्चाओं के दायरे को उलझाने की कोशिश हो रही है। भारत और दक्षिण अफ्रीका इस मामले में पहले से ही काफी सतर्कता और स्पष्टता से कार्य कर रहे हैं और विश्व व्यापार संगठन परिषद को दिए गए प्रस्ताव में उन्होंने इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ स्थगन पर प्रश्नचिन्ह लगाया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि 1998 के मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में इलैक्ट्रॉनिक हस्तांतरण (इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों) पर टैरिफ स्थगन के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। इस संदर्भ में भारत और अफ्रीका का कहना है कि 1998 के प्रस्ताव में स्थगन के दायरे के बारे में किसी मतैक्य के साथ निर्णय नहीं हुआ था, और उस समय यह भी स्पष्ट नहीं था कि डिजिटल क्रांति इस तेजी से फैलेगी।
दिसम्बर 2019 में सदस्य देशों ने जून 2020 (12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन) तक के छः महीनों के लिए इस स्थगन को आगे बढ़ाया था। कोविड के चलते 12वां मंत्रीस्तरीय सम्मेलन जून 2020 में नहीं हो पाया था। तब यह कहा गया था कि 12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों द्वारा इलैक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन की परिभाषा की स्पष्टता की जाएगी। 12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में भारत और दक्षिण अफ्रीका के इस प्रस्ताव में जहां कई विकसित एवं विकासशील देशों के मत भी शामिल किए गए हैं, यह कहा गया है कि विकासशील देशों के लिए इस टैरिफ स्थगन पर पुनर्विचार करना जरूरी हो गया है, ताकि न केवल इनके आयातों को विनियमित करने हेतु नीति बनाई जा सके, सीधेतौर पर टैरिफ लगाकर राजस्व प्राप्त किया जा सके और डिजिटल उद्योगीकरण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके।
हमें समझना होगा कि इस मुददें पर और अधिक अनदेखी नहीं की जा सकती। भारत पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों में पिछड़ा रहा, जिसके चलते हमारा औद्योगिक विकास बाधित और स्थगित हुआ। आज चौथी औद्योगिक क्रांति का समय है, जो डिजिटल उद्योगीकरण के माध्यम से आएगी। हमें इस अवसर को खोना नहीं है। जब विकसित देश अपनी कंपनियों और अपनी अर्थव्यवस्था के लिए किसी भी हद तक जाकर भारत जैसे देशों पर दबाव बनाते हैं, भारत को भी अन्य विकासशील देशों को साथ लेकर उनके द्वारा हमारे उद्योगीकरण को बाधित करने से विकसित देशों को रोकना होगा। इलैक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर टैरिफ लगाना डिजीटल उद्योगीकरण के लिए पहली शर्त होगी।
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