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गैर-जीएम टैग है जरूरी

जीएम खाद्यों को अनुमति दिये जाने से भारत के निर्यात प्रभावित होंगे और जीएम आयात बढ़ जायेंगे, किसानों को भारी नुकसान होगा, बल्कि विश्व में बढ़ रही गैर-संचारी रोग (एनसीडी) को रोकने हेतु प्रयासों को भी भारी धक्का लगेगा। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

हाल ही में अमरीकी विदेशी व्यापार प्रतिनिधि ने विश्व व्यापार  संगठन में शिकायत की है कि भारत में ‘जैव संवर्धित’ (जीएम) आयातों पर लगी रोक के कारण अमरीकी निर्यातों को नुकसान हो रहा है। गौरतलब है कि भारत ने खाद्य आयातों के संदर्भ में गैर-जीएम उत्पाद के प्रमाण पत्र की अनिवार्यता रखी है। उनका कहना है कि विश्व व्यापार संगठन भारत को आदेश दे कि वह जीएम आयातों पर लगी रोक को हटाये ताकि अमरीका अपने जीएम खाद्य पदार्थों को भारत में भेज सके। गौरतलब है कि दुनिया के कुछ ही देशों में जीएम उत्पादों के उत्पादन की अनुमति है, जिसमें अमरीका का स्थान पहला है।

अमरीका का कहना है कि इस कारण अमरीका से चावल और सेब के निर्यात नहीं हो पा रहे। उनका कहना है कि इस प्रमाण पत्र की अनिवार्यता को हटाया जाये। भारत के खाद्य नियामक, एफएसएसएआई, ने 1 मार्च 2021 से भारत को खाद्य निर्यात करने वाले देशों का नॉन जीएम का प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया है। अमरीका का कहना है कि इस आदेश का औचित्य नहीं बताया गया है। गैर-जीएम प्रमाण पत्र को औचित्यपूर्ण ठहराने के लिए इसका वैज्ञानिक आधार होना चाहिए और इसका जोखिम मूल्यांकन होना भी जरूरी है।

दूसरी तरफ हाल ही में नाटकीय ढंग से भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति ने जीएम सरसों के व्यवसायिक उत्पादन की ओर आगे बढ़ते हुए, उसके पर्यावरणीय प्रदर्शन की संस्तुति की है, जिसे मंत्रालय ने भी समर्थन दिया है। इसका विरोध करने वालों का यह कहना है कि यदि भारत में खाद्य पदार्थों में जीएम को अनुमति दे दी जाती है तो देश से खाद्य पदार्थों के निर्यात में बाधा आने की भारी आशंका तो है ही, देश में जीएम वस्तुओं के आयातों को, जो किसी प्रकार से अभी तक रोका गया था, अब उसकी रोक भी हट जायेगी और देश में जीएम आयातों की बाढ़ भी आ सकती है।

समझना होगा कि भारत आज खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भर हो चुका है। खाद्य तेलों और कुछ मात्रा में दालों को छोड़, अतिरिक्त शेष सभी खाद्य पदार्थों, खाद्यान्न, फल-सब्जी, दूध एवं दूध के उत्पाद, अंडे, मांस इत्यादि सभी का देश में पर्याप्त उत्पादन होता है। यही नहीं भारत से आज लगभग 50 अरब डालर की खाद्य वस्तुओं का निर्यात भी भारत से हो रहा है। कई बार भारत के खाद्य निर्यातों की कई खेपों को कुछ देशों द्वारा यह कहकर अस्वीकार कर दिया गया कि उनमें उन देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों की सीमा से अधिक मात्रा पाई गई। लेकिन एक बार तो यह भी हुआ कि मध्य पूर्व एशिया में भेजे गये हमारे निर्यातित चावल की खेप तो इस कारण से अस्वीकार हो गई थी कि उनमें जीएम चावलों का मिश्रण मिला।

वर्ष 2021 के अक्टूबर माह में यूरोपीय संघ के ‘रेपिड़ एर्ल्ट सिस्टम’ की एक विज्ञप्ति के अनुसार ‘मार्स रिगले’ नामक कंपनी द्वारा ‘क्रिप्सी एमएंडएम’ नाम की प्रसिद्ध कैंडी को यूरोप भर से वापिस इसलिए मंगाना पड़ा, क्योंकि उनमें जीएम चावल के अंश पाये गये और इनका उद्भव भारत से बताया गया। हालांकि वाणिज्य मंत्रालय का यह कहना था कि भारत में तो जीएम चावलों का उत्पादन ही नहीं  होता है, इसलिए ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन किसानों का मानना है कि चूंकि चावल में जीएम के फील्ड ट्रायल चल रहे हैं, इसलिए संभव है कि इस कारण वे दूसरे चावलों के बीज उनसे प्रदूषित होने के कारण उनमें जीएम के अंश आ गये हों। तबसे यूरापीय देश भारत से चावलों के आयातों के प्रति अधिक आशंकित और सजग हो रहे हैं। स्वभाविक ही है कि यूरोप के नियमों के अनुसार ‘जीएम टैग’ के उत्पादों को तो सिरे से अस्वीकार कर दिया जायेगा।

भारत के खाद्य निर्यात और आयात

भारत से हर वर्ष लगभग 4 लाख करोड़ रूपये के खाद्य निर्यात होते हैं, जिनमें से कुछ निर्यात प्रोसेस्ड खाद्य के हैं और अधिकांश खाद्य कृषि जिंसों के हैं। ये खाद्य निर्यात दुनिया के लगभग 40 देशों को निर्यात किये जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि आज 26 देशों में तो जीएम प्रतिबंधित है, और विशेष बात है कि ये देश भारत से बड़ी मात्रा में खाद्य आयात करते हैं। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह है कि भारत में खाद्य पदार्थों में जीएम के प्रवेश होते ही, ऐसे देश (यूरोप, मध्य पूर्व एशियाई देश, मैक्सिको, रूस आदि) भारत के खाद्य निर्यातों से आशंकित हो जायेंगे और उन देशों को हमारे निर्यात बंद हो सकते हैं।

दूसरी तरफ खाद्य वस्तुओं के अतिरेक वाले अमरीका, कनाड़ा, आस्ट्रेलिया एवं अन्य देश जो जीएम मुक्त देशों को निर्यात नहीं कर पाते, वे भारत में अपना सामान डंप करने की राह देख रहे हैं। यदि भारत में खाद्य पदार्थों में जीएम की अनुमति दी जाती है तो उन देशों की भारत में निर्यात की राह आसान हो जायेगी।

यानि समझा जा सकता है कि जीएम को अनुमति देने से भारत को दोहरी मार पड़ सकती है। एक तरफ हमारे निर्यातों का रास्ता जीएम मुक्त देशों के लिए बंद हो जायेगा और दूसरी तरफ जीएम उत्पादक देश भारत में आसानी से अपने उत्पाद बेच पायेंगे। यानि एक तरह हमारी विदेशी मुद्रा की आमदनी घटेगी तो दूसरी ओर जीएम आयातों के बढ़ने से विदेशी मुद्रा का खर्च बढ़ेगा। लिहाजा भारत के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा पर दोहरी मार पड़ सकती है।

किसान पर भी दोहरी मार

जहां जीएम के समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि जीएम को अनुमति से किसानों को बहुत फायदा होने वाला है और उसकी आमदनी बढ़ेगी। लेकिन यदि जीएम को अनुमति से भारत के खाद्य निर्यात घटते हैं और खाद्य आयात बढ़ जाता है तो केवल विदेशी मुद्रा की ही हानि नहीं होगी, बल्कि किसानों को भी इसका भारी आर्थिक नुकसान उठाना पडेगा। भारत से खाद्य निर्यातों से किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिल पाता है। देश से चावल, गेहूं, मसालें, सब्जी, फल आदि के निर्यात लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे उचित कीमत मिलने से किसानों के संकट को थोड़ा कम किया जा सका है।

साथ ही साथ अमरीका एवं अन्य जीएम उत्पादक देशों से खाद्य आयात बढ़ने के कारण किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिलना कठिन होता जायेगा। गौरतलब है कि जीएम उत्पादक देश, कृषि में भारी सब्सिड़ी देने के लिए भी जाने जाते हैं। सब्सिड़ी युक्त वस्तुओं के आयात से भारत में आयतित वस्तुओं की बाढ़ आ सकती है, जिससे कृषि लाभकारी नहीं रह पायेगी।

भारत पर दायित्व

भारत दुनिया में खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण देश है, जो जीएम खाद्य से तो मुक्त है ही, सरकारी और गैर सरकारी उपायों के कारण जैविक खेती में भी काफी आगे बढ़ रहा है। गैर जीएम खाद्यों के साथ-साथ बड़ी मात्रा में जैविक उत्पादों का भी निर्यात किया जा रहा है। जीएम उत्पादों के कारण बढ़ते स्वास्थ्य खतरों के मद्देनजर, जैविक समेत स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है। ऐसे में जीएम खाद्यों को अनुमति दिये जाने से भारत के निर्यात प्रभावित होंगे और जीएम आयात बढ़ जायेंगे, किसानों को भारी नुकसान होगा, बल्कि विश्व में बढ़ रही गैर-संचारी रोग (एनसीडी) को रोकने हेतु प्रयासों को भी भारी धक्का लगेगा।                

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