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आपदा से अवसर

प्रधानमंत्री मोदी ने 20 जून 2020 को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान नाम से एक विशेष योजना की शुरूआत की थी। यह अभियान अपने गांवों में वापस पहुंचे प्रवासी मजदूरों की मदद करने और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू किया गया। यह अभियान प्रवासी मजदूरों की वापसी से सर्वाधिक प्रभावित 6 राज्यों के 116 जिलों में मिशन मोड में चलाया गया और इसमें 50 हजार करोड़ रूपए की धनराशि खर्च करने का लक्ष्य रखा गया। इस अभियान में 25 कार्य प्रमुख रूप से चुने गए। इस अभियान के कार्यान्वयन को ग्रामीण विकास, पंचायती राज, सड़क परिवहन, रेलवे, रक्षा मंत्रालय, दूरसंचार विभाग, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, खनन मंत्रालय समेत 12 सरकारी विभागों के साथ जोड़ा गया। इस योजना के 16 हफ्तों की उपलब्धियों का लेखा-जोखा सामने आ गया है। एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस दौरान 1.37 लाख जल संरक्षण ढ़ांचे, 4.31 लाख ग्रामीण आवास, 38,287 हजार पशु शेड्स, 26.5 हजार तालाब, 18 हजार शौचालय काम्प्लेक्सों के अलावा 2,123 ग्राम पंचायतों में इंटरनेट की सुविधा के साथ-साथ कई अन्य कार्य इस अल्पकाल में किए गए। इस कार्य को 33 करोड़ श्रम दिवसों के लिए रोजगार प्रदान करते हुए पूर्ण किया गया, जबकि इस योजना पर 33,114 करोड़ रूपए खर्च किए गए।

गौरतलब है कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए मजदूरों ने गांवों की ओर रूख कर लिया था। उनके आर्थिक संकटों के कारण उन्हें स्वभाविक रूप से सरकारी सहयोग की जरूरत थी। ऐसे में सरकार ने 80 करोड़ लोगों को कम से कम 6 महीने तक 10 किलो अनाज हर माह उपलब्ध करवाने की योजना को कार्यरूप तो दिया, लेकिन गांवों में पहुंचे मजदूरों के लिए लाभकारी रोजगार अभी भी एक समस्या बनी हुई है। इस बीच अपने गांवों में पहुंचे मजदूरों की विस्तृत जानकारी सरकार रेल विभाग, क्वारंटीन केन्द्रों एवं अन्य माध्यमों से एकत्र कर चुकी थी। सरकार के पास उनके कौशल और व्यवसायों की जानकारी होने के कारण, यह ध्यान में आया कि गांवों की ओर पलायन कर चुके मजदूरों को उनके गांवों के निकट लाभकारी ढंग से रोजगार प्रदान करते हुए गांवों के विकास को भी गति दी जा सकती है। वास्तव में कोरोना काल की आपदा की स्थिति को अवसर में बदलने के उद्देश्य से सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरूआत की। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान में कुशल और अकुशल सभी मजदूरों को शामिल किया गया है। विविध प्रकार के कार्य इसमें शामिल किए गए। ग्रामीण आवासों, तालाबों, सोलर संयत्रों, कम्युनिटी सैनेटाइजेशन कॉम्पलेक्सों, ग्राम पंचायत भवन, नेशलन हाइवे वर्क्स, जल संरक्षण और सिंचाई, आंगनबाड़ी केन्द्र, ग्राम सड़क योजना के साथ-साथ ग्राम पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने तक विभिन्न कार्यक्रमों को अंजाम दिया गया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूरबन मिशन को इसके साथ जोड़ा गया है। इसमें विविध प्रकार के कौशल का उपयोग हुआ है और इस कार्य में विभिन्न प्रकार के विभागों और मंत्रालयों का समन्वय हुआ है। 

स्वतंत्रता के बाद से अब तक आती-जाती सरकारों ने कभी भी सर्वांगीण ग्रामीण विकास का विचार ही नहीं किया। बल्कि प्रारंभ से ही हमारे अधिकांश अर्थशास्त्री यही कहते रहे कि दुनिया भर में आर्थिक विकास का अनुभव यह रहा है कि शहरीकरण से ही विकास संभव हो सकता है। उनका यह भी कहना रहा है कि कृषि उत्पादकता में वृद्धि की संभावनाएं अत्यंत कम होती है; इसलिए यदि ग्रामीणों को शहरों में लाकर बसाया जाए तो उन्हें बेहतर व्यवसायों में लगाकर आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है। संभव है कि इन अर्थशास्त्रियों का हेतु यह रहा हो कि देश में तेजी से आर्थिक विकास हेतु औद्योगीकरण जरूरी है, लेकिन इससे यह अभिप्राय तो नहीं हो सकता कि गांवों का सर्वांगीण विकास न किया जाए अथवा वहां रहने वाले लोगों के जीवन में सुधार न हो। 

शहर जहां आज भी जनसंख्या का मात्र 30 प्रतिशत ही बसता है, वहीं पर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, बड़े अस्पताल, मनोरंजन के तमाम साधन केन्द्रित हैं। गांव जहां आज भी 70 प्रतिशत लोग बसते हैं, उनके लिए रोजगार के साधनों का अभाव ही नहीं है, बल्कि उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सफाई का भी अभाव है। यहां तक कि वर्ष 2014 तक 63 प्रतिशत कृषि भूमि वर्षा पर ही निर्भर थी। गांवों में शहरों जैसी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए पूर्व राष्ट्रपति एपीजी अब्दुल कलाम ने यह अवधारणा दी थी कि गांवों में शहरों जैसी सुविधाओं (प्रोविजन ऑफ अरबन अमनेटिज इन रूरल एरियास ‘पूरा’) को उपलब्ध कराया जाए। वास्तव में इस अवधारणा में भारत में ग्रामीण विकास का मंत्र होना चाहिए। हालांकि प्रारंभ में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान को मात्र 125 दिनों के लिए ही प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिलाने की दृष्टि से लागू किया गया था और उसका 16 हफ्तों का रिपोर्ट कार्ड भी प्रकाशित हो चुका है, लेकिन इस अभियान की अभूतपूर्व सफलता और उसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में आ रहे बदलावों के मद्देनजर इस अभियान को न केवल आगे जारी रखने की जरूरत है, बल्कि इसे गांवों के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से देश के सभी जिलों में ले जाने की जरूरत है। इसके द्वारा डेयरी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पालन, बांस उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण समेत गांवों में रोजगार एवं आय के सृजन हेतु सुविधाओं का निर्माण किया जाए। इससे न केवल एपीजे अब्दुल कलाम का ‘पूरा’ का स्वप्न पूर्ण हो सकेगा, बल्कि गांवों में रोजगार और आय के सृजन को भी कार्यरूप दिया जा सकेगा। गांवों और शहरों में असमानताएं कम होंगी और मजदूरों का शहरों की ओर पलायन भी थमेगा।

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