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भारतीय अर्थव्यवस्था में गुणात्मक सुधार

बदलते परिदृश्य में भारत अपनी विकासोन्मुख नीतियों, योजनाओं जैसे कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा, बुनियादी ढांचे के विकास में खर्च में वृद्धि, अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण, भू राजनीतिक परिवर्तनों और व्यापार संबंधों के सकारात्मक प्रभाव के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सतत प्रयत्नशील है। — शिवनंदन लाल

 

महंगाई के मोर्चे पर थोड़ी ही सही मगर राहत मिली है, वही पीएचडीसीसीआई की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया की शीर्ष 10 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में इकलौता है जिसने अपनी अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार दर्ज किया है। भारत की वर्ष 2021 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी 7 प्रतिशत के करीब थी, जिसके अगले 5 वर्षों में 8.5 प्रतिशत से अधिक बढ़ने का अनुमान है। 90 के दशक में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ने लगी और भारत आज वैश्विक व्यापार में प्रमुख हिस्सेदार बन गया है। फलस्वरूप बेसिक वस्तुओं के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी, जो 2000 में मात्र 0.6 प्रतिशत थी, अब बढ़कर 2020 में लगभग 1.9 प्रतिशत हो गई है। इसी अवधि के दौरान सर्विस निर्यात का प्रदर्शन और भी अधिक प्रभावशाली हुआ है और भारत में वैश्विक सर्विस निर्यात में लगभग 4 प्रतिशत का योगदान दिया है। भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था में भी बाहरी क्षेत्र का योगदान बढ़ने लगा है। भारतीय अर्थव्यवस्था का बढ़ता वैश्वीकरण अर्थव्यवस्था के वैश्विक व्यापार के लिए खुलने के प्रमुख मानक आयात और निर्यात की जीडीपी में हिस्सेदारी में भी प्रतिबिंबित हो रहा है। वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात और निर्यात का शेयर जीडीपी में 2007-08 में 41 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 60 प्रतिशत हो गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ती बाहरी क्षेत्र की भूमिका को 2015 से 2019 के दौरान थोड़ा ब्रेक लगा था, जिसका मुख्य कारण बाहरी एवं घरेलू दोनों ही थे। बाहरी कारणों में विश्व की अर्थव्यवस्था में सुस्ती, वैश्विक मांग प्रमुख थे। घरेलू कारणों में भारत सरकार द्वारा 2016 में विमुद्रीकरण, नोटबंदी और 2017 में जीएसटी के शुभारंभ से आपूर्ति श्रृंखलाओं में अल्पकालिक व्यवधान और भारतीय रुपए की डॉलर के मुकाबले थोड़ी कमजोरी प्रमुख थे। इन अल्पकालिक बाधाओं के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले वर्षों में बाहरी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में भारत की भूमिका प्रमुख रहेगी।

2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी के आगमन से और परिणामी राष्ट्रीय लॉकडाउन, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर प्रतिबंधों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा में दुनिया की तर्ज पर भारत में भी भारी गिरावट दर्ज की गई थी। तत्कालीन आंकड़ों के अनुसार इस गिरावट की दर 13 से लेकर 23 प्रतिशत तक की सीमा में आंकी गई थी। हालांकि यह प्रभाव ज्यादा देर तक स्थाई नहीं रह सका और परिणाम पलटते हुए दिखे। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार ने तेजी से गति पकड़ी और जल्दी ही रिकवरी दर्ज हुई और व्यापार की मात्रा 2021 में महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच गई। आंकड़ों के अनुसार सर्विसेज के व्यापार में वस्तुओं के व्यापार की तुलना में काफी अधिक गिरावट आई थी, पर इसमें सुधार की दर भी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। भारत के सर्विसेज निर्यात में 2020 की पहली तिमाही में 22 प्रतिशत की गिरावट आई थी। 

महामारी से प्रेरित वैश्विक उथल-पुथल ने कुछ नए अवसरों को भी जन्म दिया और इन अवसरों के कारण व्यापार के वैश्वीकरण की गति में तेजी आई। स्थापित सिद्धांत यह बताता है कि वैश्वीकरण का नया रूप मुख्य रूप से सेवाओं के संचालन के तरीके को बदलकर सेवा क्षेत्र को प्रभावित करता है। इस परिवर्तन से डिजिटली इनेबल्ड सर्विसेज सेक्टर जैसे कि फिटनेस, ई-कॉमर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्रिप्टो करेंसी, दिल्ली हेल्थ, ऑनलाइन शिक्षा जैसे नए क्षेत्र में नए अवसर पैदा हुए हैं। भारत ने अपने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के बड़े पुल के बल पर डिजिटल टेक्नोलॉजी की नई दुनिया को न केवल अपनाया है बल्कि इसमें मजबूत उपस्थिति भी दर्ज कराई है। अब ताजा रिपोर्ट यह भी बता रही है कि दुनिया के कई विकसित देश भारत के इस मॉडल की ओर देख रहे हैं।

पिछले कुछ सालों के दौरान भारत के व्यापारिक भागीदारों की हिस्सेदारी में भी महत्वपूर्ण बदलाव आया है। पश्चिम के देशों के साथ व्यापार में वृद्धि के साथ-साथ भारत के निर्यात में एशिया का हिस्सा धीरे धीरे कम हो रहा है। भारत पश्चिमी देशों के साथ नए क्षेत्रों में व्यापार संबंध स्थापित करने की तलाश में है, क्योंकि आसियान क्षेत्र में भारत का निर्यात गैर टैरिफ बाधाओं को कम करने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में लगभग स्थिरता हो गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि श्रम प्रधान उत्पादों के साथ भारत के निर्यात का सामान अन्य आसियान देशों से बहुत अलग नहीं है। भारत ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कुछ देशों के साथ वैकल्पिक व्यापारिक भागीदार के रूप में आगे बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि कुछ पश्चिमी देशों के चीन के साथ संबंध हाल के वर्षों में अपेक्षाकृत खराब हुए हैं। इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए भारत ने कुछ देशों के साथ टैरिफ मुक्त व्यापार समझौतों की पहल में आगे बढ़ा है। कई एक खाड़ी देशों के साथ भी इस तरह की व्यापारिक बातचीत चल रही है।

महामारी ने भारत के फार्मा उद्योग के लिए भी अवसर खोले हैं। भारत का फार्मा निर्यात उसके कुल निर्यात का 6.6 प्रतिशत है और भारत की जीडीपी में इसका लगभग 2 प्रतिशत का योगदान है। भारत दुनिया में चिकित्सा वस्तुओं का 12वां सबसे बड़ा निर्यातक देश है और पिछले दो दशकों के दौरान भारत का फार्मा निर्यात गुड्स निर्यात की तुलना में कुछ ज्यादा ही तेजी से आगे बढ़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार भविष्य में घरेलू फार्मा उद्योग के विकास को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है, शोध पर खर्च में वृद्धि और एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट के आयात पर निर्भरता को कम करना। सरकार ने इस दिशा में भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं ताकि कुछ प्रमुख ड्रग इंटरमीडिएट सप्लाई के लिए आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके।

बदलते परिदृश्य में भारत अपनी विकासोन्मुख नीतियों, योजनाओं जैसे कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा, बुनियादी ढांचे के विकास में खर्च में वृद्धि, अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण, भू राजनीतिक परिवर्तनों और व्यापार संबंधों के सकारात्मक प्रभाव के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सतत प्रयत्नशील है। इसके लिए निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं में विविधता लाकर वैश्विक बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने पर भी ध्यान देना जरूरी है।    

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