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प्रस्ताव-2 (14th Rashtriya Sammelan (Digital) of SJM (December 12-13, 2020, New Delhi)) - Hindi

किसानों को लाभकारी मूल्य का कानूनी अधिकार हो

हालांकि कई राजनीतिक दल और किसान संगठन नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, माना जा रहा है कि नवीन कृषि विधेयकों को लाने में सरकार की नीयत सही है। लेकिन इन नये कानूनों में कमियों और उनसे उत्पन्न संश्यों और डर को दूर करने हेतू कुछ संशोधन आवश्यक है। ‘किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020’ का भाव यह है कि मध्यस्थों से बचाकर किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिले।

इस संबंध में यह संशय उत्पन्न हो रहा है कि मंडी शुल्क से मुक्त होने के कारण व्यापारियों और कंपनियों को स्वाभाविक रूप से मंडी से बाहर खरीदने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। ऐसे में मंडी का महत्व ही नहीं रहेगा किसान भी मंडी से बाहर बिक्री करने के लिए बाध्य होगा। ऐसे में बड़ी खरीदार कम्पनियां किसानों का शोषण कर सकती हैं। ऐसे में स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि जब कानून बन ही रहे हैं और मंडी के बाहर खरीद को अनुमति दी जा रही है, ऐसे में जरूरी है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी हो और न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम खरीद गैर कानूनी घोषित हो। केवल सरकार ही नहीं कोई भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम न खरीद पाए। जब गैर कृषि औद्योगिक उत्पादों को कंपनियां स्वयं द्वारा निर्धारित कीमत अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) पर बेचती हैं, जो उनकी उत्पादन लागत से कहीं ज्यादा होती है, तो किसान को भी कम से कम अपनी लागत पर आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अपना माल बेचने की सुविधा होनी चाहिए। चूंकि किसान की सौदेबाजी क्षमता बहुत कम होती है, उसके लिए सरकार को यह न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना चाहिए।

साथ ही साथ नए प्रावधानों के अनुसार जब कोई भी खरीदार अपना पैन कार्ड दिखाकर किसान से खरीद कर सकता है, ऐसे में जैसे ही किसान का माल उठाया जाए उसका भुगतान भी तुरंत होना चाहिए। अथवा सरकार को उसके भुगतान की गारंटी लेनी चाहिए। कृषि उत्पाद खरीद करने वाले सभी व्यापारियों और कंपनियों का पंजीकरण हो।

किसान के पास अपनी उपज की बिक्री हेतु अधिक विकल्प होना सही है, लेकिन यदि किसी एक बड़ी कंपनी अथवा कुछ कंपनियों का प्रभुत्व हो जाएगा तो गरीब किसान की सौदेबाजी की शक्ति समाप्त हो जाएगी। सरकार द्वारा पूर्व में 22 हजार मंडियों की स्थापना की बात कही गई थी। इस योजना को जल्दी से पूरा किया जाना चाहिए, ताकि किसान के लिए अपनी उपज को बेचने हेतु अधिक विकल्प हों। 

किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक 2020 के अंतर्गत किसान की परिभाषा है जो स्वयं अथवा मजदूरी देकर अन्य लोगों द्वारा कृषि उत्पाद में संलग्न हो। इस परिभाषा के अनुसार कंपनियां भी किसान की परिभाषाओं में शामिल हो जायेंगे। यह सही नहीं होगा। स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि किसान की परिभाषा में स्वयं खेती में संलग्न कंपनियों को नहीं बल्कि किसानों को ही शामिल किया जाये।

स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि मंडियों से बाहर अपने उत्पाद बेचने वाले किसानों के पास व्यापारियों से अग्रिम लेने की सुविधा नहीं रहेगी। ऐसे में जब किसान संविदा खेती में संलग्न होता है तो उसे बुआई के समय से ही भुगतान शुरू होना चाहिए। इस प्रकार किसान को तीन-चार किश्तों में राशि दी जा सकती है।

संविदा खेती में संलग्न किसानों के लिए  न्यायसंगत विवाद समाधान तंत्र होना चाहिए। संविदा खेती से संबंधित ‘किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता विधेयक, 2020’, द्वारा प्रस्तावित विवाद समाधान तंत्र किसानों के लिए बहुत जटिल है। पहले से ही काम के बोझ में दबे सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को महत्वपूर्ण भूमिका में रखा गया है, जिससे किसान को समाधान मिलने की संभावनाएं बहुत कम हैं। इसके लिए उपभोक्ता अदालतों की तर्ज पर किसान अदालतों की स्थापना इस समस्या का समाधान होगा।

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