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तार्किक ढंग से हो पाठ्यक्रम में संशोधन

कोविड-19 की वजह से तमाम छात्रों की पढ़ाई बाधित रही या बहुतों को विकल्प के रूप में ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ी। इन कारणों से सीबीएसई परीक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम को घटाने का विकल्प सामने रखा गया। — वैदेही

 

मेरी बहन गौरी गणित की परीक्षा देकर घर आई तो उदास थी। मैंने कारण जानना चाहा तो पता चला कि लिनियर इक्वेशन का एक प्रश्न उससे गलत हो गया है। उसका कहना था कि अगर दर्जा 9 में उसे एकपदीय और द्विपदीय समीकरण पढ़ाया गया होता तो वह इस बार की परीक्षा में पूछे गये बहुपदीय समीकरण को हल कर सकती थी। कोरोना के कारण पाठयक्रम में कटौती करते हुए कक्षा 9 में गणित के समीकरण संबंधी अध्याय कम कर दिये गये थे। इसलिए बहुत सारे बच्चे उससे वंचित रह गये थे। इस तरह की परेशानी विद्यार्थियों के साथ अन्य विषयों में भी हो सकती है। 

हाल ही में सीबीएसई बोर्ड द्वारा कक्षा 9 से 12 तक के पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत अथवा औचित्यपूर्ण बनाने के लिए पाठ्यक्रम में से लगभग 30 प्रतिशत कटौती की गई है। इस कटौती के अंतर्गत राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, गणित आदि कई विषयों को शामिल किया गया है। वर्ष 2018 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने कोविड-19 के कारण 2019 सत्र से पाठ्यक्रम को आधा करने की घोषणा की थी।

कोविड-19 की वजह से तमाम छात्रों की पढ़ाई बाधित रही या बहुतों को विकल्प के रूप में ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ी। इन कारणों से सीबीएसई परीक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम को घटाने का विकल्प सामने रखा गया। एक अलग तरीके से वैकल्पिक पाठ्यक्रम और वैकल्पिक अकादमी कैलेंडर सुझाया गया, जिसके तहत सत्र 2020-21 के लिए संघवाद नागरिकता, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, स्थानीय सरकार, क्षेत्रीय आकांक्षाएं, योजना आयोग, पंचवर्षीय योजनाएं, लोकतंत्र और विविधता लोकतंत्र की चुनौतियां जाति-धर्म और लिंग, भारत के पड़ोसियों से संबंध, भारत में सामाजिक और असामाजिक आंदोलन, आदि के अध्याय छात्रों के मूल्यांकन में शामिल नहीं किए गए। यानि हटाए गए। इनमें से कुछ को अगले सत्र में जोड़ दिया गया लेकिन कटौती 30 प्रतिशत की ही रही। इसीलिए इसे एक बार का उपाय बताया गया। यह उपाय 2021-22 में भी किया गया। पुनः 2022-23 सत्र के लिए सीबीएसई बोर्ड द्वारा पाठ्यक्रम में 30 प्रतिशत कटौती का मामला अब आया है, जो कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या बनाने वाली एनसीईआरटी के सुझाव पर अमल में लाया जाना है।

नवीन पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2023-24 सत्र से लागू की जानी है इसलिए कोविड-19 बहाने के रूप में ही सही इस सत्र की तुलना में 30 प्रतिशत कटौती वाला तथाकथित युक्तिसंगत पाठ्यक्रम 2022-23 सत्र तक लागू रहेगा। असली पेंच यह है कि संपूर्ण पाठ्यक्रम की कटौती 30 प्रतिशत है लेकिन सभी विषयों में समान रूप से यह कटौती नहीं की गई है। कक्षा 12 के बिजनेस स्टडीज का पाठ्यक्रम कटौती रहित है। वही राजनीति विज्ञान में 15 प्रतिशत कटौती की गई है। गणित में कुछ अध्याय को हटाया गया है तो कुछ नए अध्याय जोड़ दिए गए। अंग्रेजी विषय में केवल 5 प्रतिशत कटौती की गई है, जबकि रसायन विज्ञान में 30 प्रतिशत से अधिक की कटौती है, जीव विज्ञान में 20 प्रतिशत है, अकाउंटेंसी में भी 30 प्रतिशत से अधिक की कटौती की गई है।

गौरतलब है कि राजस्थान, उड़ीसा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने भी अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए परीक्षा हेतु राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम में कटौती की है। यह अध्ययन का विषय है कि जब कई राज्य सीधे एनसीईआरटी के आधार पर अपना पाठ्यक्रम तैयार करते हैं तो क्या उनके यहां भी पाठ्यक्रम की कटौती समान आधारों पर की गई है और अलग पाठ्यक्रम वाले राज्यों में इस कटौती का क्या आधार रहा है? पुस्तकों में संशोधन कुछ दिलचस्प उदाहरण भी सामने आए हैं।

लेकिन सौ टके का व्यवहारिक सवाल यह है कि यदि छात्र गणित के बुनियादी सूत्र या इतिहास के अनिवार्य कालखंड अथवा अर्थशास्त्र के बेसिक से वंचित रह जाएंगे तो अगली कक्षा में उनके ज्ञान क्षेत्र की अपेक्षित वृद्धि कैसे होगी? इसलिए पाठ्यक्रम में संशोधन बेहद पारदर्शी तार्किक और सुलझी हुई प्रक्रिया के तहत होने चाहिए, जिससे विद्याथियों के बोझ को कम करने के साथ ही आज के प्रतियोगी समय में उनके ज्ञान के अवसरों में वृद्धि की जा सके और यह काम जल्दबाजी में नहीं, बल्कि ठहर कर व्यापक विमर्श के पश्चात ही किया जाना चाहिए।

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