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रूकना चाहिए सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल

हाल के एक-दो वर्षों में सोशल मीडिया का लोगों ने बहुत बेजा इस्तेमाल किया है। लोगों के बेजा इस्तेमाल के कारण ही यह सूचना का तंत्रा बेलगाम हो गया है। इनका न तो कोई संपादक है, ना कोई पहरेदार। — अनिल तिवारी

 

टूल किट मामले में बंगलुरु की लड़की दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद देश में सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर बहस-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। केंद्र की सरकार दिन प्रतिदिन बढ़ते साइबर अपराध के कारण सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के पक्ष में है जबकि कुछ लोगों का कहना है कि यह उनकी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला जैसा है।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। निश्चित रूप से सोशल मीडिया में भी दो पक्ष हैं। एक अच्छा और एक बुरा। कहते हैं कि अच्छाई की चाल धीमी है, पर बुराई के पंख लगे होते हैं। सोशल मीडिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। अच्छाई के लिए शुरू की गई यह प्रक्रिया दबे पांव बुराई का एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर रही है। लोगों को ज्ञानवान करने के गरज से शुरू किया गया सोशल मीडिया का अभियान अब लोगों के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। जनसंचार माध्यमों से होने वाला दुष्प्रचार व्यक्ति ही नहीं, अब देश की भी छवि देश-दुनिया में खराब करने पर आमादा है। वैसे भी बिना ब्रेक और बिना चालक वाली गाड़ी से हर समय खतरे की शंका बनी रहती है?

बरसों पहले जब सोशल मीडिया का दायरा धीरे-धीरे बढ़ रहा था। पहले शहरी क्षेत्रों में जड़े फैली, फिर गांव देहातों में भी इसका विस्तार हो गया। जब यह अभियान शुरू हुआ था तब लोगों को जनसंचार के इस रूप में केवल फायदे ही फायदे दिख रहे थे। सूचनाओं के आदान-प्रदान के हिसाब से कई क्षेत्रों के लिए यह फायदेमंद साबित भी हुआ और आज भी है। पर शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि एक दिन यह सब समूची आबादी के लिए खतरनाक होता जाएगा। पर बदलते समय के साथ देखा गया कि इस तरह के जनसंचार माध्यमों से होने वाले दुष्प्रचार के चलते न सिर्फ शासन प्रशासन मुसीबत की भेंट चढ़ने लगा बल्कि सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव अब सीधे व्यक्तिगत हो गया है तथा निजता पर अटैक करने लगा है। साइबर कानून के पूरे सिस्टम ने इससे बढ़ते अपराधों से निपटने में घुटने टेक दिए हैं। क्योंकि हर किस्म के अपराध में सोशल मीडिया सक्रिय है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के ताजा आंकड़े बहुत ही डरावने हैं। अद्यतन रिपोर्ट के मुताबिक अपराध से जुड़ा प्रत्येक पांचवां मामला किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है।

गौरतलब है कि बीते चार-पांच सालों में केंद्र सरकार के पास सोशल मीडिया से संबंधित करीब 24 लाख शिकायतें आई। इतनी शिकायतों का निपटारा करना अपने आप में एक बड़ी समस्या है। हालांकि सरकार दिन दुना रात चौगुना बढ़ते साइबर अपराध के कारण, इसकी रोकथाम के लिए कोई कदम उठाने के लिए पहले से ही विचार विमर्श कर रही थी। कोरोना संकट की शुरुआत के बाद से ही केंद्र सरकार में यह मंथन चल रहा था कि कैसे बढ़ते हुए सोशल जंजाल को रोका जाए। काफी मनन मंथन के बाद आखिरकार केंद्र की सरकार ने सोशल मीडिया पर बंदिश लगाने की घोषणा की है तथा इस बावत एक दिशा निर्देश जारी किया है।

सरकार की इस घोषणा के बाद से ही समाज में बहस भी शुरू हो गई है। बहस दो दलों में विभाजित है। एक पक्ष में है, तो दूसरा विपक्ष में। विपक्षी खेमे में खड़े लोगों, संगठनों का मानना है कि यह सब केंद्र सरकार ने अपने खिलाफ उठते हुए स्वर और दिल्ली में तीन महीनों से जारी किसान आंदोलन को रोकने और उनके खिलाफ उपजे जनाक्रोश को समेटने के लिए किया है। वही पक्ष में खड़े लोगों का तर्क है कि सोशल मीडिया के जहरीले समुद्र में आज की युवा पीढ़ी 24 घंटे गोते लगा रही है। इन्हें डूबने से बचाने के लिए सरकार ने कदम उठाया है और यह कदम बहुत ही आवश्यक है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हाल के एक-दो वर्षों में सोशल मीडिया का लोगों ने बहुत बेजा इस्तेमाल किया है। लोगों के बेजा इस्तेमाल के कारण ही यह सूचना का तंत्र बेलगाम हो गया है। इनका न तो कोई संपादक है, ना कोई पहरेदार। ऐसे अनगिनत उदाहरण मिले हैं, जब एक व्यक्ति का दूसरे के प्रति दुर्भावना रखने पर उसकी इज्जत सोशल मीडिया पर पलक झपकते ही नीलाम की गई हो। बेवजह की परेशानी से कईयों को अपनी जान भी देनी पड़ी है। ऐसे मामलों को तो देखकर लगता है कि सरकार की सोशल मीडिया पर पाबंदी के लिए लिया गया फैसला बहुत ही समसामयिक और अच्छा है।

‘देर आए दुरुस्त आए’ की तर्ज पर कई बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र की सरकार ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नई गाईडलाईन जारी की है। नई गाईडलाईंस के मुताबिक सोशल तंत्र केंद्र सरकार को भड़काऊ मैसेज भेजने वालों की पूरी डिटेल देगा। इसके लिए उनको अपना नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा। यद्यपि थोड़ा संदेह होता है कि क्या कंपनियां अपने विभिन्न प्लेटफार्म को रेगुलेट करेंगी? मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार आईटी एक्ट के सेक्शन 79 में संशोधन कर, आईटी एक्ट इंटरमीडिएटरी रूल्स 2021 के तहत  आईटी मंत्रालय के जरिये निगरानी का काम करेगी। व्यवस्था की गई है कि मीडिया प्लेटफार्म को अपने कंटेंट को सरकार के कहने पर 24 घंटे में हटाना होगा और अगले 72 घंटे में संबंधित पर कार्रवाई भी करनी होगी। मीडिया प्लेटफार्म पर बढ़ रहे दुष्प्रचार के लिहाज से यह आवश्यक है। लेकिन इन सारे मामलों को कुछ कंपनियों पर ही छोड़ देना ज्यादा तर्कसंगत नहीं लगता है? इससे बेहतर होता कि सरकार खुद सक्रिय होकर यह नियंत्रण और निगरानी का जिम्मा अपने पास ही रखती।

केंद्र सरकार के इस निर्णय से पूर्व के नोटबंदी और लॉकडाउन के निर्णयों की तरह हर तरफ हाय-तौबा मची है। चूंकि सोशल मीडिया आज लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। कईयों को तो इसके बिना जीवन ही अधूरा लगता है। समूचे हिंदुस्तान में करीबन 53 करोड़ लोग व्हाट्सएप यूजर हैं। 40 करोड़ के आसपास लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, तो वहीं लगभग एक करोड़ लोग ट्विटर पर मौजूद है। इनमें से व्हाट्सएप का दुरुपयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। इसे हैदराबाद के एक मामले से आसानी से समझा जा सकता है। 

मालूम हो कि हैदराबाद के कुछ शरारती तत्वों ने वहां के प्राइमरी स्कूल की एक टीचर का फोटो एडिट करके गंदी फिल्म में डाल दिया। उसके बाद व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर पूरे शहर में उसे वायरल कर दिया। महिला टीचर ने बदनामी से अपनी जान दे दी। यह मामला मात्र एक बानगी भर है, वरना ऐसे मामलों की देशभर में भरमार है।

सोशल मीडिया के सबसे ज्यादा भुक्तभोगी सफेदपोश और नौकरशाह लोग हैं। राह चलता अदना आदमी भी इस मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर बड़े लोगों पर पलक झपकते झूठे आरोप-प्रत्यारोप लगाता रहता है।

ऐसे में सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम सोशल मीडिया को सुधारने के लिए है। कहा जा रहा है कि प्रेस काउंसिल जैसा कोड बनेगा। नियमों का उल्लंघन करने वालों पर आईटी का नया कानून लागू होगा। पर लगे हाथ यह प्रश्न उठता है कि क्या ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार की बात को मानेंगे? क्या उनके कहने से आपत्तिजनक कंटेंट हटाएंगे? यह एक बड़ा सवाल है। फेसबुक की आस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ कैसे ठनी हुई है, इसके उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं। हालांकि फेसबुक को आस्ट्रेलिया सरकार के सामने झुकना पड़ा है। फिलहाल इसका तोड़ केंद्र सरकार ने खोजा है। मैसेज का एंक्रिप्शन सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देगी। उसके बावजूद भी बात नहीं मानी तो संचार के संपूर्ण माध्यम को सरकार को रोकना पड़ेगा, जिसे सरकार आसानी से कर सकती है। सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आसानी से नकेल कस सकती है। बस जरूरत है इमानदारी और इच्छाशक्ति की। बहरहाल हर सेकेंड जहर उगलते सोशल मीडिया प्लेटफार्म के शुद्धिकरण के लिए केंद्र की सरकार ने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया है, क्योंकि सोशल मीडिया पर नियंत्रण सरकार की ही नहीं, बल्कि वक्त की भी जरूरत है।           

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