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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत

यकीनन कोविड-19 एक आपदा की तरह आया है, लेकिन प्रधानमंत्रा ने इसे एक अवसर की चुनौती की तरह लेने का आह्वान किया है। उम्मीद करें 2020 के अच्छे मानसून का परिदृश्य तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए सरकार की घोषणाओं के कारगर क्रियान्वयन से करोड़ों किसानों के घर खुशहाली दस्तक देगी। - स्वदेशी संवाद

 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार का पहिया धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगा है। देष में रबी की बंपर पैदावार के बाद फसलों के लिए किसानों को लाभप्रद न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला है। सरकार द्वारा किसानों को दी गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, गरीबों के जनधन खातों में नगद रुपया डालने जैसे कदमों से किसानों के हाथ में जरूरी धनराषि पहुंची है। मार्च 2020 में हुए लॉकडाउन के बाद से अब तक किसानों के पास करीब 1.33 लाख करोड़ रुपए पहुंच चुके है। इसी अवधि में 8 करोड़ परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर के साथ-साथ मनरेगा के तहत करीब 17 हजार 600 करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है। कुछ शहराती चिर असंतुष्टों की नकारात्मक स्थितियों के बरक्स गांव से सुखद समाचार आ रहे हैं। ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ने से उन क्षेत्रों में उपभोग की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में उर्वरक, बीज, खाद, रसायन, ट्रेक्टर एवं कृषि उपकरण जैसी वस्तुओं के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं के मांग में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है। अच्छे मानसून के आगमन से आर्थिक खुषहाली के संकेत मिल रहे हैं।

हमारे देष की रीढ़ कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है। देष में मानसून अच्छा रहता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था में चमक आ जाती है और कई बार देखा गया है कि खराब मानसून अर्थव्यवस्था में मुष्किलें बढ़ा देता है। अच्छा मानसून हमारे यहां आर्थिकी के साथ-साथ सामाजिक खुषहाली का भी कारण माना जाता है। क्योंकि देष में आधे से अधिक खेती सिंचाई के लिए बारिष पर ही निर्भर होती है। चावल, मक्का, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए बारिष बहुत जरूरी है। हालांकि हमारे देष के सकल घरेलू उत्पाद का 17 प्रतिषत योगदान कृषि क्षेत्र का है लेकिन कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिषत इस क्षेत्र पर आश्रित है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिषत है।

मालूम हो कि मानसून का प्रभाव में केवल देष के करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी और रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है बल्कि समाज, कला, संस्कृति और लोक जीवन पर भी इसका सीधा असर दिखाई देता है। क्योंकि कई महत्वपूर्ण मुद्दों को जैसे टेक्सटाइल, सोयाबीन, शक्कर मिल, दाल मिल, आदि सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर है और कई उद्योग अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि उत्पादों पर आश्रित है। इसलिए देष के लिए मानसून की बड़ी अहमियत है।

चालू वित्त वर्ष 2020 में अच्छे मानसून का महत्व इसलिए भी प्रासंगिक है कि कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए उठाए गए लॉकडाउन के कदम के चलते पूरे देष की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा सी गई है। अनलॉक फेज शुरू होने के पहले ग्रामीण भारत दोहरी मार झेल रहा था। एक तरफ ग्रामीणों की कमाई यातायात बंद होने से प्रभावित हुई थी, वहीं दूसरी तरफ शहरों में रहने वाले उनके परिजन जो अपनी शहरी कमाई का कुछ हिस्सा गांव के लिए भेजते थे, वह स्वयं कोविड की वजह से अपना काम गंवाकर गांव में लौट आए थे। भारी संख्या में प्रवासियों के लौटने से गांव की मैरिज इकोनॉमी अचानक शून्य के स्तर पर आ गई थी।

भारत एक उत्सव प्रधान देष है। हमारे सभी उत्सव समाज को हर दृष्टि से जोड़ते हुए मजबूती प्रदान करते हैं। खासकर शादी विवाह की रस्मों की ऐसी बुनावट की गई है जिसमें हर तबके को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मजबूत करने की व्यवस्था है। नाच, बाजा, शामियाना, बढ़ई, लौहार, कुम्हार, पुरोहित आदि अनेक वर्ग के लोग अपनी वर्ष भर की आजीविका इसी के जरिए अर्जित करते रहे हैं। उनके समक्ष संकट की स्थिति थी। कृषि क्षेत्र ने इस संकट को बहुत हद तक संभाला है। अब अच्छे मानसून से ऐसे परिवारों की खुषियां उम्मीदें लेकर आई है। प्रवासी परिजनों द्वारा गांव में किए जा रहे श्रम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलने लगा है। महामारी के दौरान ही सरकार द्वारा दिए गए आर्थिक पैकेज का लाभ ग्रामीणों को मदद करने में सहायक बना है। गरीबों के लिए नवंबर तक मुफ्त राषन की योजना का लाभ एक बडी आबादी को मिल रहा है। वही खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण किसानों की आय में वृद्धि हुई है।

गत दिनों सरकार ने 17 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 2 से लेकर 7.5 प्रतिषत तक की बढ़ोतरी की घोषणा की है। विषेष रूप से खरीद की मुख्य फसल धान के लिए 2.89 से 2.92 प्रतिषत, तिलहनों के लिए 2.07 से 5.26 प्रतिषत तथा बाजरे के लिए 7.5 प्रतिषत एमएसपी में वृद्धि की गई है। नई एमएसपी बढ़ोतरी में मोदी सरकार द्वारा किसानों को फसल लागत से 50 प्रतिषत अधिक दाम देने की नीति का पालन करने के लिए कहा गया है। नई कीमत उत्पादन लागत से 50 से 83 प्रतिषत अधिक होगी। साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड से किसानों को 4 प्रतिषत ब्याज पर 3 लाख रूपये तक का कर्ज सुनिष्चित किया जाना भी किसानों के लिए बहुत ही मददगार साबित होगा।

प्रकृति की मेहरबानी और सरकार के लगातार प्रयास से ग्रामीण भारत की आर्थिक की अच्छी दिषा में है। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में और चमक लाने के लिए अच्छे मानसून का लाभ लेने के साथ-साथ हमें कई एक बातों पर विषेष ध्यान देना होगा। सरकार द्वारा कृषि उपज का अच्छा विपणन सुनिष्चित करना होगा। इससे ग्रामीण इलाकों में मांग में और अधिक वृद्धि की जा सकेगी। ग्रामीण मांग बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग एवं सर्विस सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ सकेंगे। किसानों के खरीफ सीजन के मद्देनजर कृषि उत्पादन के लिए जरूरी सामान खरीदने के लिए पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराना होगा। प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण रोजगार अभियान के माध्यम से गांव में लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार सृजन हेतु अतिरिक्त फंड का आवंटन करना होगा। मनरेगा के उपयुक्त क्रियान्वयन पर भी सचेत रूप से नजर रखनी होगी।

सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उन्नत कृषि, शीत भंडारगृह, पषुपालन, डेयरी उत्पादन तथा कृषि प्रसंस्करण उद्योगों से संबंधित जो घोषणा की है उन्हें शीघ्रतापूर्वक कारगर तरीके से लागू किया जाना चाहिए। विषेष रूप से देष में पहली बार कृषि सुधार के लिए जो तीन ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं उनके क्रियान्वयन को लेकर सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आवष्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संषोधन करने के फैसले से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज की कीमतें प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति को छोड़कर भंडारण सीमा से स्वतंत्र हो जाएगी। ऐसे में जब किसान अपनी फसल को तकनीक एवं वितरण नेटवर्क के जरिए देष और दुनिया भर में कहीं भी बेचने की स्थिति में होंगे तो इससे निष्चित रूप से किसानों को उपज का बेहतर मूल्य हासिल होगा। यकीनन कोविड-19 एक आपदा की तरह आया है, लेकिन प्रधानमंत्री ने इसे एक अवसर की चुनौती की तरह लेने का आह्वान किया है। उम्मीद करें 2020 के अच्छे मानसून का परिदृष्य तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए सरकार की घोषणाओं के कारगर क्रियान्वयन से करोड़ों किसानों के घर खुषहाली दस्तक देगी।

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