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तंत्र स्वदेशी, मंत्र वंदेमातरम्

यदि संगीत के एक टुकड़े की शब्दावली एक मंत्र है, तो भारतीय ग्रंथों में कई मंत्र दर्ज हैं, लेकिन मन्त्रों द्वारा राष्ट्र में शक्ति संचारित करना दुर्लभ है क्योंकि मंत्र, तंत्र और यन्त्र के समन्वय से ऊर्जा का संचार होता है। - सरोज कुमार मित्र

 

7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों से लगभग दस हजार छात्र जुलूस के रूप में टाउन हॉल की ओर निकले। तरह-तरह के अंग्रेज विरोधी नारे और देशात्मबोधक गीत चल रहे थे। तभी किसी ने पुकारा, वंदेमातरम््, हजारों आवाजें गूंज उठी, वंदेमातरम््, वंदेमातरम््। इस जोरदार ध्वनि ने वंदेमातरम्् को रण हुँकार में बदल दिया। छात्रों की भीड़ को संभालने के लिए टाउन हॉल में एक साथ तीन सभा की गयी। उस दिन के एक प्रत्यक्षदर्शी मोतीलाल राय ने लिखा है “उस दिन बाजार अपने आप बंद हो गए थे। उसकी छाया में बूढ़े और बीमार लोग भी अपने शरीर को लाठियों से घसीटते हुए वंदेमातरम्् चिल्लाते हुए सभा स्थल पर जा रहे थे।“ टाउन हॉल की सभा में कासिम बाजार के महाराजा मणिन्द्र चंद्र नंदी के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं, प्रशासन, शिक्षा, न्यायपालिका सभी क्षेत्रों में बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गया।

वंदेमातरम्् मंत्र

श्री अरविंद ने 1907 में लिखा था- “आज से 32 साल पहले बंकिम ने अपना सर्वश्रेष्ठ गीत वंदेमातरम्् लिखा था, लेकिन उस दिन कोई भी यह सुनने को तैयार नहीं था। पूर्व निर्धारित समय पर किसी ने वंदेमातरम्् गायन किया। मंत्र दिया गया और एक ही दिन में पूरे देश को देशात्मबोध धर्म में दीक्षित किया गया, माँ ने आत्मप्रकाश किया।“ अरविंद ने 1894 में बंबई से प्रकाशित ’इंदु प्रकाश पत्रिका’ में नवभारत के निर्माता के रूप में बंकिमचन्द्र के बारे में लिखा, लेकिन वंदेमातरम्् के बारे में उल्लेख नहीं किया। यदि संगीत के एक टुकड़े की शब्दावली एक मंत्र है, तो भारतीय ग्रंथों में कई मंत्र दर्ज हैं, पर मन्त्रों द्वारा राष्ट्र में शक्ति संचारित करना दुर्लभ है क्योंकि मंत्र, तंत्र और यन्त्र के समन्वय से ऊर्जा का संचार होता है।

बंकिमचंद्र चटर्जी ने 1875 में वंदेमातरम्् की रचना की और 1882 में उनका संन्यास विद्रोह संबंधित ’आनंदमठ’ उपन्यास वंदेमातरम्् शृंखला के रूप में ’बंग दर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। पूरे वंदेमातरम्् को संशोधित करने और इसे बांगला और संस्कृत में लिखने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए बंकिम ने अपने प्रिंटिंग प्रेस प्रबंधक से कहा, - “यदि आप पचीस वर्ष और जीवित रहेंगे, तो आप देखेंगे कि इसने बंगाल में क्या हलचल मचा दी है।“ मृत्यु शय्या पर बंकिम ने अपनी बड़ी बेटी से कहा था- “एक दिन तुम देखोगी कि वंदेमातरम्् पूरे देश को आंदोलित करेगा और यह उनकी अंतरात्मा से निकलेगा।“ 8 अप्रैल 1897 को बंकिमचंद्र ने यह संसार छोड़ दिया।

22 दिसम्बर 1886 को प्रसिद्ध गायक और अधिवक्ता हेमचन्द्र बनर्जी ने कलकत्ता स्थित टाउन हॉल में दादाभाई नारोजी की अध्यक्षता में आयोजित कांग्रेस के दूसरे सत्र में वंदेमातरम्् के कुछ हिस्से गाये थे। फिर 1896 में कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने स्वयं अपनी आवाज में वंदेमातरम्् गाया और कहा “जैसे ही मैंने वंदेमातरम्् गाया, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में सिर से लेकर पाँव तक बिजली दौड़ रही हो, मैं गहरी भावना में डूबा हुआ था। यह “संगीत नहीं बल्कि जलता अग्निपुंज था, जिसने श्रोताओं को द्रवित कर दिया।

29 जनवरी, 1908 को अमरावती के नेशनल स्कूल में दिए गए भाषण में अरविंद ने कहा “वंदेमातरम्् मंत्र का आविष्कार नहीं हुआ, यह एक पुराने मंत्र का पुनर्संयोजन है। नबकिशन नामक व्यक्ति के विश्वासघात के कारण यह मंत्र लुप्त हो गया था। 19 फरवरी, 1908 को फिर से अरविंद ने खुलासा किया कि विन्धयाचल के सन्यासी वंदेमातरम्् मंत्र की पेशकश करने वाले पहले व्यक्ति थे, लेकिन हमारे कुछ देशवासियों के विश्वासघात के कारण यह मंत्र हटा दिया गया था। उस समय राष्ट्र उत्थान के लिए पर्याप्त परिपक्व नहीं था, इसलिए अपरिपक्व अवस्था में उत्थान होने से शीघ्र पतन होता है; लेकिन 1897 में आए भूकंप के दौरान संन्यासियों को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें पता चल गया था कि भगवान की इच्छा के अनुसार भारत का उत्थान होगा। विश्व में फिर से मंत्र उन्मुक्त हुआ।

डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी लिखते हैं कि बंकिमचंद्र ने ऋग्वेद के अंतिम सूक्त के अंतिम मंडल में वर्णित मंत्र से प्रेरित होकर वंदेमातरम्् राष्ट्रगान की रचना की। ऋषि अंगिरस ने अपने निर्धारित देवता को जो प्रार्थना करते हैं और उसी दैवी शक्ति के नामकरण से पता चलता है कि वो गणतंत्र की दैवी शक्ति हैं। एकमात्र दैवी शक्ति का नाम पारंपारिक रूप से पूजे जाने वाले सभी देवताओं से स्वतंत्र है। इस दिव्य शक्ति का नाम समिग्याना या समग्याना है। सायानाचर्या के मत में यह सामूहिक राष्ट्रीय और राजनैतिक चेतना का प्रतीक है और यह चेतना जनता के बीच समान (साम्य) रूप से प्रकट होती हैं, जिसे राष्ट्रीय चेतना कहा जाता है। इस राष्ट्रीय चेतना का विनम्रतापूर्वक आह्वान या प्रार्थना करने से ही मानस या चेतना बलशाली होती है। यह चेतना मजबूत हो जाती है। व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की चेतना को योग द्वारा इस विश्व चैतन्य या विश्व चेतन में मिलाना होगा। क्योंकि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग कहलाता है। इस दिव्य शक्ति की आराधना का मंत्र ऋग्वेद में वर्णित है। लोकतंत्र के उपासकों को अपनी आशाओं, आकांक्षाओं और राष्ट्रीय नीतियों के लिए दिल दिमाग एक करके इस मंत्र का उच्चारण करके पूजा करनी होगी।

जिस दिन विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से वंदेमातरम्् मंत्र में अन्तर्निहित शक्ति या राष्ट्र की अंतरात्मा का आह्वान किया और भारत माता को आजाद कराने की शपथ ली तथा कार्यक्रम तैयार हुआ, उस दिन वंदेमातरम्् मंत्र से शक्ति का संचार हुआ। 7 अगस्त 1905 को वंदेमातरम्् रण हुंकार में बदल गया। यह संयोग का क्षण है बिना धूप, दीप, प्रसाद या शंख, घंटी और आरती के हजारों स्वरों में भारत माता के सहस्र कंठों से वंदेमातरम्् के जयकारों के बाद जो ऊर्जा फूटी, उसने अंग्रेज साम्राज्य को हिलाकर रख दिया।

वंदेमातरम्् में देवी भारत माता को कमला, वाणीविद्यादायिनी और दशप्रहरण धारिणी दुर्गा रूप में आराधना किए जाने के कारण मूर्तिपूजा न करने वाले ब्रह्म समाज के सदस्य बिपिन चंद्र पाल ने पहले इस पर आपत्ति जताई थी। इसके मीमांसा की जिम्मेदारी चित्तरंजन दास को दी गयी। 

जब चित्तरंजन दास ने बिपिन पाल से पूछा कि क्या बंगाल के लोगों से माँ काली को छीनना संभव है? तो बिपिन चन्द्र पाल को अपने भ्रम का एहसास हुआ और उन्होंने कहा, It is not idolatory, it is idealatory. “यह मूर्तिपूजा नहीं है, यह आदर्श की पूजा है।’’ मुसलमान भी वंदेमातरम्् और अल्लाह-हो-अकबर के ध्वनि के साथ मार्च करके बंगभंग विरोधी आन्दोलन में शामिल हो गए। इसमें मौलवी लियाकत हुसैन प्रमुख थे।

28 सितंबर 1905 महालया के दिन तूफान और बारिश के बावजूद कलकत्ता के कालीघाट मंदिर में छात्रगण नंगे पांव पहुँचे थे। शहर के विभिन्न हिस्सों से कीर्तन दल वंदेमातरम्् गान करते हुए आ रहे थे। संख्या बढ़कर पचास हजार हो गई थी। तभी यह असाधारण घटना घटी, शायद इस तरह की सामूहिक रचनात्मक कार्यक्रम भारत के इतिहास में पहला था। हजारों लोगों को जिस राष्ट्रीय मंत्र का आशीर्वाद मिला, उसे आज तक दोहराया नहीं गया।       

 

स्रोत- ‘तंत्र स्वदेशी, मंत्र वंदेमातरम्’ सुरूचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक

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