गत 75 वर्षो मे बहुत कुछ करने की कोशिश की गयी इसमें दोराय नहीं है। लेकिन बहुत कुछ रह गया यह भी सही है। — अनिल जवलेकर
भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। 75 वर्षों का कार्यकाल किसी भी देश के लिए कम नहीं होता। 1200 साल आक्रांताओं की मार झेलते-झेलते यह देश गुलाम हुआ था। इस गुलामी के दौरान अपनी संस्कृति पर होनेवाले सभी प्रकार के अत्याचारों के बावजूद इसे बचाए रखने में यह देश कामयाब रहा, यह गर्व की बात है। लेकिन इसी गुलामी की वजह से देश अपनी प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक संपति एवं उससे जुड़े संसाधन की लूट बचा नहीं पाया। अंग्रेजों की लूट इसमें मुख्य थी। जाते-जाते भी अंग्रेजों ने इस पावन भूमि का विभाजन किया और एक खंडित भारत को आजादी दी। आजादी के समय भारत का हाल बुरा था। विभाजन की मार से उत्पन्न लोक संख्या का स्थानांतरण हिंसा से गुजर रहा था और गरीबी इतनी थी कि जनता खाने को मोहताज थी। तिजोरी खाली थी। देश सभी दृष्टि से कमजोर और परावलंबी था। आजादी से यही अपेक्षा थी कि देश की सरकारे देश को फिर एक बार समृद्धि और खुशहाली की ओर ले जाए। आजादी का अमृत महोत्सव मनाते समय गत 75 वर्षोमे जो हुआ यह समझना भी जरूरी है।
बहुत कुछ किया
1. सर्व प्रथम भारतीय संविधान और तदनुसार व्यवस्था निर्माण करना यह एक प्रमुख कार्य था। निश्चित ही स्वीकारा हुआ भारतीय संविधान राजकीय और शासकीय व्यवस्था देने तथा कायदे कानून से राज करने की मंशा जाहिर करता है। कानून के सामने ‘सब समान’ को आधार बनाकर सभी नागरिकों को जीवन स्वातंत्र्य एवं अपने विकास की समान संधि देने की व्यवस्था इसका मुख्य अंग है। किसी भी प्रकार के भेदभाव को नकार कर यह व्यवस्था भारत को एक समर्थ और विकसित राष्ट्र बनाने की आशा रखती है। भारत का संविधान बदलने वाला नहीं है। इसलिए कई सुधारों के बावजूद इसका मूल ढाँचा कायम है और यह एक उपलब्धि मानी जाएगी।
2. संविधान के अनुसार व्यवस्था खड़ी करना एक बड़ा काम था। अंग्रेजों ने जो शासन व्यवस्था दी थी उसे कायम रखा गया यह कमजोरी कही जा सकती है। देश के नव-निर्माण में यह व्यवस्था काम करेगी ऐसी आशा थी। जो अधिकारी अंग्रेजों के लिए काम करते थे वही देश के लिए काम करेंगे ऐसा माना गया। कुछ हद तक यह सही रहा। लेकिन यह व्यवस्था अंग्रेजों की सीख नहीं भूल सकी और सत्ताधीशों के अनुकूल शासन चलाती रही। यह शासन व्यवस्था सत्ताधीशों के कितनी अधीन हो सकती है इसका अनुभव इंदिराजी द्वारा घोषित आपात काल में भारतीय जनता ने लिया है। आज भी इस में कुछ बदलाव आया है ऐसा कहा नहीं जा सकता।
3. राजकीय व्यवस्था में लोकतंत्र का स्वीकार भी महत्वपूर्ण कहा जाएगा। राज्य व्यवस्थाओं में सबसे कारगर व्यवस्था में लोकतंत्र है और सबसे बेहतर है, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन भारतीय राजनयिकों की चुनावी राजनीति ने इस लोकतंत्र को खोखला किया है और यह वास्तविकता लोकतंत्र के लिए खतरनाक होती जा रही है।
4. इसके बाद भाषा वार प्रांत रचना की गई जिसने प्रांतीय अस्मिता को जगाए रखा और राष्ट्रीयता इसमें कही कमजोर पड़ गई ऐसा कहा जा सकता है। राजनीति और चुनाव के लिए यह अड्डे बने, ऐसा प्राथमिक तौर पर दिखाई देता है। बहुत से राज्य केंद्रीय सत्ता को चुनौती देते नजर आ रहे है। लेकिन यह बात भी सही है की सत्ता और नीति इत्यादि के विकेन्द्रीकरण के हिसाब से प्रांत वार रचना उपयुक्त रही है।
5. आजादी के बाद जिन नेताओं ने सत्ता संभाली उनमें जवाहर लाल नेहरुजी मुख्य थे और वे पाश्चात्य देशों का लोकतंत्र तथा उनकी प्रगति एवं समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और शायद इसलिए उन्होंने देश को जो संस्थागत ढाँचा दिया वह इन्हीं से प्रेरित था। इसलिए सभी संस्थाओं की रचना और आधार बाहरी देश और बाहरी विचारधारा थी। चाहे शैक्षणिक संस्थान हो या फिर आर्थिक संस्थान हो। इसमें नया विचार कम और अनुकरण ज्यादा था। उसका परिणाम भारतीय व्यवस्था परावलंबी होने में हुआ यह कहने की जरूरत नहीं है।
6. आर्थिक नीतियों का जहाँ तक संबंध है वे बहुतायत विदेशी विचार पर आधारित थी इसलिए अस्थिर थी। परिणाम में भी वे सफल हुई है ऐसा नहीं कहा जा सकता। रशियन मॉडेल पर आधारित योजना और सरकार की इच्छानुसार सब कुछ से शुरू हुई आर्थिक नीतियाँ देश को डूबने के कगार पर ले आयी और सरकार को मजबूरी से घुमाव कर आर्थिक नीतियाँ बदलनी पड़ी। ग्रामीण विकास, गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याएं आज भी बड़ी बनी हुई है। भारतीय आर्थिक नीतियाँ जन सामान्य का जीवन स्तर बढ़ाने में असफल रही है यह बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है।
7. सामाजिक समता के लिए पिछड़ी जाति को आरक्षण और उनके विकास में सभी दृष्टि से उपयोगी योजनाओं द्वारा उन्हें लाभ देने की कोशिश कुछ हद तक सही साबित हुई है। लेकिन आज समाज में सभी जातियाँ/समुदाय आरक्षण मांगती नजर आ रही है जो इस पूरी व्यवस्था को कमजोर कर रही है। गरीबी और बेरोजगारी बढ़ना तथा सभी वर्गों की आय अपेक्षा अनुसार न बढ़ना इसका कारण कहा जा सकता है। आर्थिक नीतियों कि असफलता भी इसका बड़ा कारण माना जाता है।
8. गत 75 वर्षोंकी एक बड़ी उपलब्धि यह है की भारत ने अपने अन्न धान्य का भंडार बढ़ाया है और आयात पर निर्भर देश को आत्मनिर्भर बनाया है। आज देश कृषि उत्पादक निर्यातक बन गया है और यह गर्व की बात है। कोरोना काल में सरकार गरीबोंकों मुफ्त में राशन देने में सफल रहने का कारण अन्न-धान्य का यही विपुल भंडार था। उसी तरह दूध और शक्कर उत्पादन में भी भारत ने सफलता हासिल की है और भारत को इन उत्पाद में समर्थ और स्वावलंबी बनाने में मदद की है।
9. भारत का युवा शैक्षणिक दृष्टि से कुशल माना जाता है और इसका कारण भारत ने शुरू से तकनीकी शिक्षण पर ज़ोर दिया है और आईआईटी जैसे संस्थान खड़े किए है जिससे भारत के युवाओं को यह कामयाबी मिली है। आज इसका उपयोग कर भारतीय युवा नए उद्योग खड़े कर रहे है और दुनिया भर के तकनीकी विकास में अपना योगदान दे रहे है।
10. गत 75 वर्षोमे जो युद्ध हुए है उनमें 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा लेकिन पाकिस्तान के साथ हुए सारे युद्ध भारत ने जीते है। चीन के साथ युद्ध में भी जो वीरता भारतीय युवा जवानों ने दिखाई थी उसके चलते चीन को अपने कदम रोकने पड़े थे और युद्ध समाप्त करना पड़ा था। भारतीय सैन्य संस्थानों ने ऐसे वीर जवानों का निर्माण कर भारत को सुरक्षित किया है और आजादी का अमृत महोत्सव मनाते समय यह गर्व की बात नहीं भुलानी चाहिए।
बहुत कुछ रह भी गया
गत 75 वर्षो मे बहुत कुछ करने की कोशिश की गयी इसमें दोराय नहीं है। लेकिन बहुत कुछ रह गया यह भी सही है। इसमें प्रथम स्थान भारत की सीमा सुरक्षा है। भारत की सीमा अब भी तनाव में रहती है और चीन-पाकिस्तान से युद्ध का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। भारत ने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने और उसे सर्व दृष्टि से समर्थ करने की कोशिश जरूर की है लेकिन फिर भी चीन के मुक़ाबले वह बलशाली है ऐसा नहीं कह सकते। दूसरे, भारत विभाजन के समय से हिन्दू-मुस्लिम समुदायों में जो दरार पड़ी है वह अब भी बरकरार है और उससे राष्ट्रीय एकात्मता को खतरा बना हुआ है। तीसरे, दुनिया में आतंकवाद बढ़ रहा है और भारत भी इसका शिकार है। यहाँ की चुनावी राजनीति इसका फायदा उठाती नजर आ रही है और यहाँ के लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। चौथे, शुरू से भारत आर्थिक विकास की गति को पकड़ नहीं पाया है और यहाँ की जनता गरीबी, बेरोजगारी तथा बढ़ती कीमतों से परेशान रहती है। किसान अभी अपने को बचाने में लगा हुआ है और आत्महत्या करने को मजबूर है। पाँच, पर्यावरण और उससे उत्पन्न चुनौती बढ़ रही है। निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है की समस्याओं की कमी नहीं है।
जो किया है वह बहुत है लेकिन जो रह गया है उस पर भी आने वाले समय में ध्यान देना जरूरी है। इतना भी समझ ले तो बहुत है।