लगभग एक साल से महामारी से जूझती मानवता को वैक्सीन के रूप में अंततः एक आशा की किरण दिखाई दे रही है। बड़ी जनसंख्या वाले देशों की सूची में देखें तो भारत महामारी से निपटने में काफी हद तक बेहतर स्थिति में दिखाई दे रहा है। संक्रमण दर हो अथवा मृत्यु दर, दोनों काफी हद तक कम और काबू में हैं। हाल ही में संक्रमण में आई इस वृद्धि को छोड़ दें तो मौटेतौर पर दिखाई दे रहा है कि इस महामारी पर विजय पाने में हम सफल हो पाए हैं। अधिक संतोष का विषय यह है कि एक विकासशील देश होने और संसाधनों की कमी के बावजूद भारत यह संभव कर पाया।
यही नहीं, महामारी के प्रारंभ से ही भारत में कोरोना वैक्सीन निर्माण के प्रयास शुरू हो गए थे। जहां दुनिया में 200 से अधिक प्रयास चल रहे हैं, उनमें से 20 मात्र भारत में ही हैं। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से एक प्रयास जो पूणतया स्वदेशी है फलीभूत हुआ और भारत बायोटेक नाम की एक कंपनी ने कोवैक्सीन नामक वैक्सीन का सफलतापूर्वक निर्माण किया, जिसे आपातकालीन मान्यता भी मिल गई और देश भर में उस वैक्सीन को लगाया भी जा रहा है।
हमें समझना होगा कि दुनिया भर में अमीर मुल्क जैसे अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप के कुछ अन्य देश कुछ बहुर्राष्ट्रीय कंपनियों से वैक्सीन खरीदकर बड़ी मात्रा में अपने नागरिकों को लगा पाने में सफल हो रहे हैं। लेकिन भारत में बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद वैक्सीन लगाने का जो उपक्रम शुरू हुआ है, उसमें सभी को बारी-बारी से वैक्सीन उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई है। सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिसकर्मियों, अध्यापकों समेत फ्रंटलाईन कार्मिकों को वैक्सीन उपलब्ध कराई गई है और बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को वैक्सीन लगाई भी जा चुकी है। भारतीय वैक्सीन के खिलाफ तमाम प्रकार के दुष्प्रचारों के बावजूद ये सभी लोग वैक्सीन लगवा भी रहे हैं। 1 मार्च से 60 वर्ष से ऊपर की आयु के सभी लोगों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने का क्रम शुरू हो चुका है। इस वर्ग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कुछ अन्य बड़े नेताओं ने सबसे पहले वैक्सीन लगवाकर भारतीय वैक्सीन के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार पर विराम लगाने का कार्य किया है।
यह सही है कि सबसे पहले सरकार द्वारा कंपनियों से खरीद सबसे जरूरतमंद वर्गों को वैक्सीन मुफ्त में लगाने का कार्य किया है। गौरतलब है कि इस वर्ष के बजट में वैक्सीन हेतु 35 हजार करोड़ रूपए का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन कम समय में बड़ी संख्या में देशवासियों को वैक्सीन उपलब्ध कराते हुए उन्हें इस महामारी से सुरक्षा प्रदान करने हेतु अब सरकार ने निजी क्षेत्र को भी अनुमति प्रदान करने का निर्णय लिया है। लेकिन वैक्सीन लोगों को उचित कीमत पर मिल सके, इसलिए उस पर कीमत नियंत्रण किया गया है। वैक्सीन की दो डोज लगाने की कुल कीमत 500 रूपए रखी गई है, जिसमें प्रति डोज 150 रूपए वैक्सीन की कीमत होगी और 100 रूपए वैक्सीन लगाने की लागत रखी गई है। शायद दुनिया भर में वैक्सीन की यह सबसे कम कीमत है।
भारत वैक्सीन निर्माण के क्षेत्र में एक अग्रणी देश है। पूर्व में भी भारत की विभिन्न कंपनियों द्वारा विभिनन प्रकार के वैक्सीनों का निर्माण कर उन्हें विभिन्न देशों को उपलब्ध कराया जाता रहा है। लेकिन भारत की इस विशिष्ट क्षमता की पहचान विश्व में इस महामारी के कारण ज्यादा बनी है। ऐसा इसलिए हुआ है कि जहां बड़ी बहुर्राष्ट्रीय कंपनियां अपनी वैक्सीन निर्माण की क्षमता के आधार पर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने की फिराक में हैं, वहीं भारत विश्व बंधुत्व का संदेश लेकर दुनिया के कई गरीब एवं कम संसाधनों वाले मुल्कों को वैक्सीन उपलब्ध कराते हुए न केवल प्रशंसा प्राप्त कर रहा है, बल्कि दुनिया में मैत्री का संदेश भी दे रहा है। मीडिया में इसे वैक्सीन मैत्री का नाम दिया गया है।
जहां भारत सरकार इस प्रयास में है कि आमजन को सस्ते में वैक्सीन उपलब्ध हो सके, वहीं देश में ऐसे कई लोग हैं जो सरकार की यह कहकर आलोचना कर रहे हैं कि सरकार वैक्सीन की कीमत को कम रखते हुए देश में वैक्सीन के निर्माण को हतोत्साहित कर रही है, क्योंकि वैक्सीन की कम कीमत मिलने के कारण वैक्सीन निर्माता कंपनियां वैक्सीन निर्माण से पीछे हट सकती हैं। हालांकि इस मुद्दे पर वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने चुप्पी साध रखी है। लेकिन पूर्व में मिले संकेतों के अनुसार वे यह अपेक्षा कर रही थीं कि निजी क्षेत्र को अनुमति मिलने पर उन्हें वैक्सीन की ऊंची कीमत सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं होने पर उनकी आशाओं पर पानी जरूर फिर गया है।
गौरतलब है कि पूरे विश्व में दवा निर्माता कंपनियों का यह प्रयास रहता है कि वे ग्राहकों से ज्यादा से ज्यादा वसूल कर अपने लाभों को अधिकतम कर सकें। कोरोना वैक्सीन निर्माता कंपनियों का भी यही प्रयास था कि वे ऊंची कीमत पर अपनी वैक्सीन बेच सकेंगी। भारत ने पूरी दुनिया के अपेक्षाकृत कम आय वाले देशों के लिए उचित कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध कराई है। जहां तक कीमत का प्रश्न है, यह सही है कि यह कंपनियों द्वारा अपेक्षित कीमत से कम है, लेकिन यह भी सत्य है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, बिल मिलिंडा गेट्स समर्थित संगठन ‘गावी’ आदि के द्वारा शुरू की गई योजना हेतु भी यह कंपनी 3 डालर प्रति डोज की दर से वैक्सीन उपलब्ध करवा रही हैं। इसलिए सरकार द्वारा 150 रूपए की कीमत और 500 रूपए की सब्सिडी, उस कीमत के लगभग समान ही है। इसलिए वैक्सीन की कीमत कम देने का दोषारोपण सही नहीं है।
जहां तक ‘सेरेम इंस्टीच्यूट’ द्वारा वैक्सीन निर्माण हेतु निवेश करने और उस निवेश पर उचित लाभ दिलाने की बात है, उसमें भी कोई दम नहीं है, क्योंकि ‘बिल मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ ने इस हेतु 300 मिलियन डालर की मदद पहले ही दी जा चुकी है। समझना होगा कि लाभ कमाने के अवसर आगे भी मिलते रहेंगे, लेकिन मानवता की रक्षा हेतु दवा कंपनियों को आगे आना होगा। भारत सरकार द्वारा कीमत नियंत्रण पूरी दुनिया में मानवता की रक्षा हेतु एक सराहनीय कदम माना जा सकता है।