परमात्मा ने भी जगत का कुंभ बनाया है। जगत रूपी चाक बनाकर कुंभ की रचना करते हैं। समुद्र मंथन से निकले अमृत कुंभ की बूंदें चार स्थानों पर जहां भी गिरी हैं, वहां अमृत होने का बोध होता है। महाकुंभ में अमृत पान के लिए लोग आ रहे हैं। - विनोद जौहरी
वर्तमान में न केवल भारत में बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और महाकुंभ में स्नान करने की एक होड़ सी लगी है कि कैसे भी हो, महाकुंभ में स्नान करने का सौभाग्य हाथ से निकल न जाये और फिर 144 वर्ष की प्रतीक्षा के लिए कितने जन्म लेने पड़ें!! अभी तक लगभग 50 करोड़ सनातनी महाकुंभ में स्नान कर चुके और अभी 13 दिन शेष हैं और दो महास्नान भी शेष हैं। पहले भी कुंभ और महाकुंभ हमारे ही जीवन काल में आयोजित हुए हैं, परंतु जो संयोग, उत्साह, उमंग, साहस, लक्ष्य निष्ठता और प्रण इस बार है, उससे महाकुंभ में स्नान करके यह जीवन धन्य हो गया। विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, सोषल मीडिया, निजी मिलन, चाय की दुकानों, नुक्कड़, प्रातः पार्कों में, घरों-परिवारों में महाकुंभ की जितनी चर्चा और उत्साह है, वह अभूतपूर्व है।
आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “महाकुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था, अपितु इसका इतिहास समय के प्रवाह से साथ स्वयं ही बनता चला गया। वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेषा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि महाकुम्भ जैसा विषालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है।
कुंभ जैसी एकता कहीं नहीं मिलेगी। यहां कोई नहीं पूछता कि कौन किस जाति भाषा प्रांत से है। सब जुटे हैं। साधु-संत सवारी निकाल रहे हैं। कोटि-कोटि जन स्नान कर रहे हैं। यह सबसे बड़ी एकता है। धन्य है भारत की भूमि जहां तीन पावन नदियों की धारा (संगम) आपस में मिलकर हम सबको मिलना सिखा रही हैं।
ज्योतिष गणना के क्रम में कुम्भ का आयोजन चार प्रकार से माना गया है -
1. बृहस्पति के कुम्भ राषि में तथा सूर्य के मेष राषि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
2. बृहस्पति के मेष राषि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राषि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
3. बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राषि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
4. बृहस्पति के सिंह राषि में तथा सूर्य के मेष राषि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में षिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
धार्मिकता एवं ग्रह-दषा के साथ-साथ कुम्भ पर्व को तत्त्वमीमांसा की कसौटी पर भी कसा जा सकता है, जिससे कुम्भ की उपयोगिता सिद्ध होती है। कुम्भ पर्व का विष्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह पर्व प्रकृति एवं जीव तत्त्व में सामंजस्य स्थापित कर उनमें जीवनदायी शक्तियों को समाविष्ट करता है। प्रकृति ही जीवन एवं मृत्यु का आधार है, ऐसे में प्रकृति से सामंजस्य अति-आवष्यक हो जाता है। कहा भी गया है “यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” अर्थात् जो शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है, इस लिए ब्रह्माण्ड की शक्तियों के साथ पिण्ड (षरीर) कैसे सामंजस्य स्थापित करे, उसे जीवनदायी शक्तियाँ कैसे मिले, इसी रहस्य का पर्व है कुम्भ। विभिन्न मतों-अभिमतों- मतान्तरों के व्यावहारिक मंथन का पर्व है-‘कुम्भ’, और इस मंथन से निकलने वाला ज्ञान-अमृत ही कुम्भ-पर्व का प्रसाद है ।
कुंभ के कई अर्थ हैं, लेकिन प्रचलित कथा तो यही है कि समुद्र मंथन से अमृत कुंभ निकला। कुंभ से जहां-जहां वह छलका, वहां हम 12 साल में पूर्ण कुंभ मनाते हैं। कुंभ महामिलन है, महासम्मेलन है। कुंभ (घड़े) को देखें, तो उसका उदर बड़ा है और मुख संकीर्ण है। इसका अर्थ है कि जो कहना है, वह लघु रूप से सूत्र रूप में कह देता है, यद्यपि उसके उदर में तो सब शास्त्र होते हैं। इतना उदार उसका पेट है।
हर मांगलिक कार्य में, पूजा में कलष की स्थापना होती है। मंत्र भी ऐसे हैं कि कलष के मूल में यह देवता, मध्य में यह देवता, मुख्य में यह देवता वास करते हैं। हमारी प्रवाही परंपरा में कुंभ की बड़ी महिमा है। हम पूरी गंगा को घर तक नहीं ले जा सकते, लेकिन कुंभ में भरकर गंगा को घर में ला सकते हैं।
कुंभ में सब आए हैं, लेकिन स्पर्धा करने के लिए नहीं, त्रिवेणी में स्थान करने के लिए। कुंभ जैसी एकता कहीं नहीं मिलेगी। यहां कोई नहीं पूछता कि कौन ब्राह्मण है, कौन क्षत्रिय है, कौन किस जाति का है। किस भाषा, प्रांत, वर्ण से है। सब जुटे हैं, बिना कोई नेटवर्क बनाए। साधु-संत सब अपने हिसाब से सवारी निकाल रहे हैं। कोटि-कोटि जन स्नान कर रहे हैं। यह सबसे बड़ी एकता है। धन्य है भारत की भूमि, जहां तीन पावन नदियों की धारा आपस में मिलकर हम सबको मिलना सिखा रही हैं।
कुंभ में लोग कुछ लेने नहीं, बल्कि देने आते हैं। हां, पुण्य कमाने की इच्छा होती है, लेकिन मीलों नंगे पांव चलकर अपनी पवित्र परंपरा का दर्षन करने वे आते हैं। कुंभ विषेष भूमि पर होता है। यह विषेष महिमा वाली भूमि है। हम कहीं भी कथा करते हैं तो पहले तीन-चार दिन वायुमंडल बनाना होता है, मेहनत करनी पड़ती है। कुंभ में बना-बनाया वातावरण मिलता है। हजारों वर्षों का पुण्य यहां जमा है। कुंभ में किसी महात्मा से मिलना, कल्पवास कर रहे लोगों के दर्षन करना, बहुत महिमा का काम है। कौन क्या है, कुछ नहीं कहा जा सकता। इनमें कुछ प्रत्यक्ष चेतना हैं तो कुछ अप्रत्यक्ष चेतना हैं। हम किसी चेतना को न देख पाएं, न पहचान पाएं, लेकिन वह हमें देख ले तो यह भी हमारा गंगा स्नान है। दर्षन, स्नान, स्पर्ष, पान की महिमा है। साथ ही स्मरण की भी महिमा है।
युवा बहुत अधिक संख्या में कुंभ से जुड़ रहे हैं। कुंभ की चेतना सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में ऐसा और भी अच्छा दर्षन हो सकता है। कुंभ और तीर्थ दिव्य ही हैं। कुंभ भव्यता से भरा है, लेकिन मूल में दिव्यता है। आज का विज्ञान भव्यता बना रहा है, लेकिन कुंभ दिव्य तो है ही। इस बार एक विषेषता यह भी है कि इतने वर्षो के बाद ग्रह-नक्षत्र एक साथ अनुकूल हुए हैं।
इस महाकुंभ का संदेष है कि व्यक्ति-व्यक्ति, परिवार-परिवार, समाज-समाज, भाषा-भाषा, वर्ण-वर्ण, जाति-जाति, देष- दुनिया सबके बीच में वैचारिक संगम हो। बौद्धिक और हार्दिक संगम हो। हमारे चिंतन का केंद्र बिंदु संगम है। यह महाकुंभ, इतने वर्षो के बाद हुआ है। इसलिए इस बार की कथा का नामकरण भी मानस महाकुंभ किया गया।
रामचरित मानस भी एक महाकुंभ है, जो निरंतर अंतरस्नान और अवगाहन कराता है। इसका दर्षन, इसका स्पर्ष, इसका आचमन, इसका निमज्जन चारों रूपों का रामचरित मानस की पंक्ति में वर्णन आता है। गंगा, यमुना और अदृष्य सरस्वती की त्रिवेणी स्थावर संगम और राम चरित मानस जंगम संगम है। दुनियाभर में प्रयागराज घूम रहा है।
परमात्मा ने भी जगत का कुंभ बनाया है। जगत रूपी चाक बनाकर कुंभ की रचना करते हैं। समुद्र मंथन से निकले अमृत कुंभ की बूंदें चार स्थानों पर जहां भी गिरी हैं, वहां अमृत होने का बोध होता है। महाकुंभ में अमृत पान के लिए लोग आ रहे हैं। इस कुंभ का चिंतन अनेक रूपों में किया गया है। कुंभ से ही कुंभज (अगस्त्य ऋषि) रामकथा लेकर उत्पन्न हुए थे।
संदर्भ - स्वयं का अनुभव, महाकुंभ की वेबसाइट, दैनिक जागरण (11 फ़रवरी परमादरणीय मोरारी बापू का लेख - समस्त वेद शास्त्र-शास्त्रों का सत्व-तत्व है कुंभ)