9-11 जनवरी, 2004 को कडी (गुजरात) में सम्पन्न स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रऋषि श्रद्धेय श्री दत्तोपन्त जी ठेंगडी द्वारा दिया गया समारोप उद्बोधन स्वदेशी पत्रिका के पाठकों के लिए अक्षरशः प्रस्तुत है - दत्तोपंत ठेंगड़ी
यह अन्तिम सत्र है। समारोप के भाषण में एक पद्धति ऐसी है कि सम्मेलन में जो-जो हुआ, उसको संक्षेप में दोहराना पड़ता है और इसका कारण है कि सामान्य आदमी की स्मरणशक्ति कमजोर होती है, किन्तु मैं समझता हूँ कि इसकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ताओं की स्मरणशक्ति कमजोर नहीं है और इसलिए उसको दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
एक बात जिसका जिक्र आवश्यक है, वह यह है कि स्वदेशी जागरण मंच की विरासत, (लेगेसी) क्या है? 1920 की बात है, यानि आज से 83 साल पहले की बात है, नागपुर में ’इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ का अधिवेशन हुआ, उस अधिवेशन के स्वागत सदस्य परम पूजनीय डॉ० हेडगेवार जी थे। इसका उल्लेख मैं इसलिए कर रहा हूँ कि उस समय भारत के वायुमण्डल समिति के सक्रिय सदस्यों ने 1920 का उल्लेख किया था। 1917 में रूसी क्रान्ति हुई थी, कम्यूनिस्टों का शासन रूस में आया था, उसके बाद, हिन्दुस्तान के सभी नेता, लाला लाजपतराय से लेकर पण्डित नेहरू तक, यही विश्वास रखते थे कि दुनिया भर के पूँजीवाद (केपिटलिज्म) को नष्ट करने का काम अब ’कम्यूनिज्म’ करने वाला है। इस वायुमण्डल में, सब लोग यह तो जानते है कि परम पूजनीय डॉ० हेडगेवार जी कांग्रेस सेवा दल के प्रमुख थे, किन्तु दूसरी बात नहीं जानते है। उन्होंने ड्राफ्ट किया हुआ एक प्रस्ताव (रिजोल्युशन), ’ऑल इण्डिया कांग्रेस कमेटी के पास भेजा था, उसमें कहा गया था कि इस नागपुर के अधिवेशन में ’इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ को अपना ध्येय घोषित करना चाहिए। वह द्विविध होना चाहिए, एक - भारत को स्वतंत्र करते हुए उसमें गणतन्त्र की स्थापना और दो- विश्व के सभी देशों को पूँजीवाद के चुंगल से मुक्त करना, यह हमारा ध्येय घोषित होना चाहिए। स्पष्ट है कि अन्य नेताओं के समान डॉ. हेडगेवार जी यह मानने को तैयार नहीं थे कि ’केपिटलिज्म’ को खत्म करने का काम ’कम्यूनिज्म’ करेगा, ऐसा यदि मानते, तो ’ड्राफ्टिंग’ ऐसा न होता कि विश्व के सभी देशों को पूँजीवाद के चुंगल से, सभी देशों को पूँजीवाद (केपिटलिज्म) से मुक्त करने का जिम्मा भारत को ही उठाना पड़ेगा। यह उनकी दूरदृष्टि 1920 में प्रकट हुई उसका केवल मैं स्मरण दिलाना चाहता हूँ, वहीं हमारी विरासत है।
अब यह सम्मेलन समाप्त होने को है, यह अन्तिम सत्र है और इसमें हमने वापिस जाने के बाद, यहाँ का क्या संदेश लोगों को देना है, यह बताने की आवश्यकता है। आज की स्थिति हम जानते है। एक स्पष्टीकरण देना मैं आवश्यक समझता हू। चूंकि इतने साल तक केवल विश्व व्यापार संगठन के बारे में ही आन्दोलनात्मक, संघर्षात्मक काम करने का जिम्मा स्वदेशी जागरण मंच को उठाना पड़ा, इसके कारण एक गलतफहमी कुछ लोगों की है कि हम केवल विश्व व्यापार संगठन के बारे में सोच रहे हैं, ऐसा नहीं है। आज हमारा ’फोकस’ ‘विश्व व्यापार संगठन’ पर है, क्योंकि सबसे बड़ा संकट वो है, तो भी हम जानते है कि देश की जनता के लिए इसके अलावा भी कुछ संकट है, वो हमारी आँखों से ओझल नहीं है, भारत सरकार की गलत आर्थिक नीतियाँ और भारतीय उद्योगपतियों की, पूँजीपतियों की तृष्णा, ’मोनोपोली केपिटेलिस्ट’ बनने की इच्छा, यह दो बड़े संकट हमारी आखों से ओझल नहीं है, किन्तु इस समय यह सबसे बड़ा, ‘इंमीडियेट’, तात्कालिक संकट है, इस नाते डब्ल्यू.टी.ओ. की ओर हम ध्यान दे रहे हैं। डब्ल्यू.टी.ओ. की आज की स्थिति का विवरण उद्घाटन भाषण में किया है, वह एक ’क्रूशियल पॉइन्ट’ पर आ गया है, ऐसे पॉइन्ट पर कि ’डेवलप कन्ट्रीज’ ने जान लिया है कि पहले जैसा होता था कि ’डवलप कन्ट्रीज’ ने आपस में तय कर लेना कि उनके लिए लाभदायक क्या है, और फिर बाकी के लोगों को दबाव में लाकर कहना कि ऐसा वोटिंग करो, अब वह नहीं चलेगा, यह उन्होंने समझ लिया। ’केनकून’ की कॉन्फ्रेंस में सब लोगों ने इसको समझ लिया और इसके कारण एक अलग रणनीति वो अपना रहे हैं, जिसका मैंने विवरण किया। संक्षेप में ’अशुभस्य काल हरणम्’ माने कोई भी फैसला तुरन्त न हो, क्योंकि आज ऐसे ’क्रूशियल पॉइन्ट’ पर पहुँच गए हैं कि विकसित देशों के लिए अनुकूल फैसला होगा तो विकासशील गरीब देशों के लिए वह घातक होगा और विकसनशील गरीब देशों के लिए अनुकूल फैसला होगा, तो विकसित गौरे देशों के लिए वह घातक होगा। ऐसे ’क्रूशियल पॉइन्ट’ पर पहुँचने के कारण अभी ’अशुभस्य काल हरणम्’ चल रहा है। ऐसे समय क्या नीति अपनाना? ’अशुभस्य काल हरणम्’ लम्बे देर तक नहीं चल सकता। आज जिनके ध्यान में नहीं आया कि यह क्या रणनीति है, सो सब समझ जाएंगे कि यह ’अशुभस्य काल हरणम्’ है तो आगे क्या होगा? इसके विषय में निश्चित, ना हम जानते है न वो जानते है। लेकिन अपनी दृष्टि से इस सम्मेलन का संदेश जो कार्यकर्ताओं को देना है, जनता को देना है, वो यही है कि ’होप फोर दी बेस्ट, प्रिपेयर फोर दी वर्स्ट’। अच्छी से अच्छी परिस्थिति आएगी, ऐसी हम आशा करें, हालाँकि हम जानते है कि आने वाली नहीं और खराब से खराब परिस्थिति आई तो उसका मुकाबला करने की हम तैयारी रखे और उस दृष्टि से संगठन मजबूत हो, स्वदेशी जागरण मंच का संगठन का ढाँचा मजबूत हो, हमारा सम्पर्क विस्तृत हो, हर गाँव में हम पहुँचे और स्वदेशी का मंत्र लोगों को बताए और साथ ही साथ और एक बात है जिसका उल्लेख मैं बाद में करने वाला हूँ। तो संगठन और सम्पर्क, यह ’इमिडियेट’ काम हमारे सामने है और यह संदेश लेकर हम जा रहे है। संगठन की दृष्टि से, हर स्तर पर अच्छी वर्किंग टीम तैयार हो, जिसको कहा जाता है, ’मास्टर माइण्ड ग्रुप’। हर स्तर पर, ग्राम स्तर से लेकर मण्डल, जिला, प्रदेश, केन्द्र के स्तर पर, ’मास्टर माइण्ड ग्रुप’ तैयार हो। यह संगठन के लिए आवश्यक है और सम्पर्क तो करना ही है, हर गाँव में जो अशिक्षित लोग हैं, अनाड़ी लोग हैं, गरीब लोग हैं, उनको पता ही नहीं क्या हो रहा है?
पूजनीय महात्मा गांधी को एक बार राजनेताओं ने पूछा कि कोई भी राष्ट्रीय नीति तय करते समय ज्यादा ख्याल में रखने लायक कौनसी बात है? महात्मा जी ने कहा कि राष्ट्रीय नीति तय करते समय इसका ख्याल करो कि ’देहात में जो अनाड़ी, गरीब व्यक्ति पड़ा हुआ है, उसके ऊपर आपकी राष्ट्रीय नीति का क्या असर होगा? यह ध्यान में रखकर फिर नीति तय करो।’ यही आज ध्यान में रखने की आवश्यकता हैं और इस दृष्टि से संगठन और सम्पर्क, यहाँ से जाने के बाद तुरन्त यह दोनों काम शुरू होने चाहिए, क्योंकि तरह-तरह की परिस्थितियाँ निर्माण हो सकती है। किसी ने कहा कि ’प्रिपेयर फॉर दी वर्स्ट’ खराब से खराब परिस्थितियाँ आएगी तो क्या होगा, उसके लिए तैयार रहना चाहिए।
विकसित गौरे देश यह तो समझ गए कि विकसनशील गरीब देश अब अपनी बात केवल दबाव में आकर मानने वाले नहीं, लेकिन वह चुपचाप नहीं है। एक तरफ वार्ता चल रही है, लोगों से बात कर रहे हैं, यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि अरे भाई इश्यू क्या हैं, हमको पता ही नहीं था। आपको आश्चर्य होगा कि विश्व व्यापार संगठन के चेयरमैन प्रकट रूप से स्वीकार कर रहे हैं कि ’इश्यू’ क्या हैं, इसकी कल्पना ही नहीं थी। अब जब बाते कर रहे हैं हम लोगों से, तो कल्पना कर रहे हैं कि ’इश्यू’ क्या है? इतने दिन आपने क्या किया? चूंकि दबाव नहीं था, इश्यू समझ लेने की आवश्यकता नहीं थी, तो इस तरह से एक तरफ वो बतोत चला रहे हैं, लेकिन दूसरे तरफ ’सेबोटेज’ करने का भी प्रयास हो रहा है। गरीब देशों के नेताओं को, अफसरशाही को खरीदने का प्रयास हो रहा है। उनके पास पैसा बहुत है और जहाँ तक हमारे देश का सवाल है, हम जानते हैं कि हमारे देश में भी दो तरह की सरकारें हैं। एक तो परमानेन्ट सरकार, माने अफसरशाही, ब्यूरोक्रेसी और दूसरी टेम्परेरी सरकार, जो चुनाव के बाद आते जाते रहते हैं। परमानेन्ट सरकार के नौकरशाहों को यह भरोसा है कि यह जो आने जाने वाले मिनिस्टर है वो कुछ नहीं जानते इनका अध्ययन नहीं है, इसलिए हम जो कहेंगे उस डोक्युमेन्ट पर सिगनेचर करने के लिए बाध्य होंगे। यह आत्मविश्वास उनके अन्दर है और ऐसे जब ब्यूरोक्रेट्स है, अफसरशाही है, उनमें से कितने लोग खरीदे जा सकते हैं और कितने खरीदे नहीं जा सकते। इसका हिसाब लगाना कठिन है। आजकल समाचार पत्रों में इसकी खबरें आती है। समाचार पत्र पढ़ने से आपको आश्चर्य होगा कि यहाँ ’अनपरचेजेबल’ कौन है, जिसकी गिनती करना आसान है और ‘परचेजेबल’ कौन है, इसकी गिनती नहीं की जा सकती। ऐसे ’परचेजेबल’ लोगों के आधार पर अपनी नीति हमें तय करनी है। इसलिए जनता को सावधान करने की आवश्यकता है और इस स्थिति में लाने की आवश्यकता है, जो स्वदेशी जागरण मंच की पहली मिटिंग में दिल्ली में कहा गया था कि इस तरह के जो नौकरशाह है, उनको हम खोज लेंगे, उनको हम नग्न करेंगे और उनका सामाजिक बहिष्कार करेंगे। माने उनके साथ कोई सामाजिक सम्बन्ध न रहे। उनके पास जाना नहीं, उनके यहाँ नौकरी नहीं करना, उनके कपड़े धोना नहीं, बर्तन धोना नहीं कुछ भी काम करने के लिए उनके पास कोई नहीं जाए। ऐसा सामाजिक बहिष्कार ऐसे लोगों पर किया जाए। यह बात पहली मिटिंग में कही गई थी। आज भी उसी को दोहराने की आवश्यकता है। इस तरह से आज की परिस्थिति में संगठन और सम्पर्क यह दो प्रमुख बातें हैं, जरो इस सम्मेलन के संदेश के नाते लेकर जाना चाहिए।
इन सारी बातों के बीच जो सबसे महत्वपूर्ण है जिसे पिछले वर्किंग कमिटी की मिटिंग में हमने कही थी। हमने कहा था कि ’स्वदेशी मॉडल ऑफ डवलपमेंट’ माने विकास का स्वदेशी मॉडल क्या हो? यह वर्क आउट करना, ’स्पेल आउट’ करना इसकी आवश्यकता हो रही है। उसमें कुछ लोगों को ऐसा लगा कि काहे के लिए विकास की बात कर रहे हैं। यह तो बड़ी लम्बी बात है, दूर की बात है, किन्तु इस चुनाव में आपने देखा होगा कि यह दूर की बात नहीं है, चुनाव में अलग-अलग राजनैतिक दलों ने विकास को चुनाव का मुद्दा बनाया। चुनाव एवं उत्तम प्रशासन के लिए यह प्रमुख मुद्दे बनाए गए। इससे आपको यह तो कल्पना हुई होगी कि विकास का कितना महत्व है। विकास की कल्पना और उसका ’स्वदेशी मॉडल’ बनाना बहुत आवश्यक है। विदेशी मॉडल हमारे लिए काम नहीं कर सकता। जो पश्चिमी मॉडल हैं उसमें उनके ’पेरामीटर’ अलग है, भौतिक है, जी.डी.पी., जी.एन.पी. आधारित है। लोगों के पास कितना पैसा है, इन्कम है, यह सारी जो है, यह ’पैरामीटर’ उनके है, जो सारे के सारे भौतिक है। इसको हम पूरे ’पैरामीटर्स’ नहीं मानते हैं। पूरा पेरेडेम नहीं मानते हैं, ’पेरेडेम’ में वास्तव में उद्देश्य यही होना चाहिए कि हर आदमी को जो उसकी आवश्यकतएँ हैं, मौलिक आवश्यकताएँ हैं, यानी रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य इन सब बातों को उसको उपलब्ध करा देना। यह पहली बात और दूसरी कि उस मॉडल के अन्तर्गत हर व्यक्ति का विकास, व्यक्तिगत विकास कैसा होगा? ’पर्सनल डवलपमेन्ट’। इन दो बातों को लेकर ’स्वदेशी मॉडल ऑफ डवलपमेन्ट’ विकसित करना चाहिए। किन्तु हम जानते हैं और यह ’वर्किंग कमिटी’ के सामने भी कहा गया कि हम लोग तो ’डे टु डे एक्टिविटी’ में लगे हुए हैं। हम ऐसे थोड़े से लोग इस बौद्धिक काम के लिए उपयुक्त हो सकते है, लेकिन ज्यादातर हम ’डे टू डे एक्टिविटी’ में लगे हुए है, इसलिए हर स्तर पर ऐसा मॉडल तैयार करने के लिए जो बुद्धिमानी चाहिए, ऐसे बुद्धिमानी रखने वाले लोगों की खोज करना, जिसको कहा गया है- ’हंट फोर दी टेलेंट’। यह आवश्यक है, वह अभी से करना आवश्यक है। तो इस तरह से तीन बाते संदेश के रूप में लेकर जाना है- एक मजबूत संगठन, दूसरा विस्तृत सम्पर्क और तीसरा, उपयुक्त बुद्धिमान लोगों की खोज। इन तीन बातों को लेकर हम अपने लोगों के यहाँ जाए और उन्हें जागरूक करें।
(स्वदेशी पत्रिका से साभार)