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आर्थिक विवेक की कसौटी पर डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय

दुनिया के ज़्यादातर अर्थशास्त्री नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के फ़ैसलों से सहमत नहीं हैं और उन्हें लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका प्रथम की बात तो कर रहे हैं, लेकिन उनके फ़ैसलों से न सिर्फ़ अमेरिकी अर्थव्यवस्था और अमेरिकी पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेगा, बल्कि अमेरिका बाक़ी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगा  - डॉ. अश्वनी महाजन

 

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अपने पिछले कार्यकाल से ही अपनी अप्रत्याशितता के लिए जाने जाते हैं, राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद और सत्ता संभालने के बाद फिर से अपने बयानों से सुर्खियां बटोर रहे हैं।

टैरिफ युद्ध

डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि दुनिया के दूसरे देश अमेरिकी उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ लगाते हैं, इसलिए वे भी अमेरिका में आने वाले आयातों पर टैरिफ बढ़ाएंगे, ताकि बाहर से आने वाले सामान को रोका जा सके और देश में उत्पादन को बढ़ावा मिले। राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल से ही वे लगातार यह कहते रहे हैं कि वे अमेरिका की जंग खा रही फैक्ट्रियों को फिर से चालू करना चाहते हैं। उनका कहना है कि भारत, चीन, ब्राजील और कई दूसरे देशों के आयात शुल्क बहुत ज्यादा हैं, इसलिए वे इन देशों से आयात पर भी भारी टैरिफ लगाएंगे। उन्हें लगता है कि अमेरिका में आयात शुल्क कम होने की वजह से अमेरिकी उद्योगों को भारी नुकसान होता है, क्योंकि देश का उत्पादन विदेशों में चला जाता है। इसलिए डोनाल्ड ट्रंप यह भी कहते हैं कि एक तरफ अमेरिका के लोगों का रोजगार खत्म होता है, वहीं दूसरी तरफ देश को राजस्व का नुकसान होता है; और आयात शुल्क से होने वाली आय की हानि की भरपाई के लिए, उन्हें अमेरिकी लोगों पर अधिक कर लगाना पड़ता है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आगे कहा कि वह आयकर खत्म कर देंगे और इसकी भरपाई आयात शुल्क से करेंगे। गौरतलब है कि अपने पिछले कार्यकाल में भी डोनाल्ड ट्रंप ने अमीर अमेरिकियों पर लगने वाले टैक्स में कटौती की थी। लेकिन उस समय भले ही अमेरिका ने प्रतीकात्मक रूप से टैरिफ बढ़ाए थे और कई कदम उठाए थे, जैसे कि कई भारतीय उत्पादों को जनरल सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी) से बाहर करना इत्यादि; लेकिन अमेरिका में आने वाले अधिकांश आयातों पर आयात शुल्क नहीं बढ़ाया गया था। लेकिन इस बार डोनाल्ड ट्रंप का बार-बार आयात शुल्क बढ़ाने पर जोर देना और आयकर खत्म करने की घोषणाएं असामान्य लगती हैं। इतना ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप पूर्व राष्ट्रपति जो बाईडेन के उस फैसले को पलटने की भी बात कर रहे हैं, जिसके अनुसार अति धनी लोगों पर आयकर बढ़ा दिया गया था।

डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि वह अन्य देशों पर कर लगाएंगे और अमेरिकियों पर कर कम करके उन्हें अमीर बनाएंगे। कर कम करने के संबंध में उनका इरादा व्यक्तियों और परिवारों की डिस्पोजेबल आय को बढ़ाना और अमेरिका को समृद्ध बनाना है। वे याद दिलाते हैं कि 1870 से 1913 तक का काल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के इतिहास का सबसे अच्छा काल है, जब टैरिफ आधारित आर्थिक व्यवस्था लागू थी और अमेरिका टैरिफ लगाकर भारी राजस्व कमाता था।

विदेशों में चली गई अमेरिकी कंपनियों को सलाह

आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों को विदेशी भूमि से अपनी उत्पादन इकाइयां अमेरिका में स्थानांतरित करने की सलाह भी दी है। अगर वे ऐसा करते हैं तो वे उच्च टैरिफ और आयकर का भुगतान करने से बच जाएंगे। डोनाल्ड ट्रंप का मानना घ्घ्है कि कम टैरिफ के कारण देश की जहाज और रक्षा उपकरण बनाने की क्षमता खत्म हो गई है। उनका कहना है कि एक समय था जब अमेरिका हर दिन एक जहाज बनाता था, लेकिन अब जहाज निर्माण लगभग विदेश में स्थानांतरित हो गया है।

डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि जो अमेरिकी कंपनियां अपनी फैक्ट्रियां वापस अमेरिका लाएगी, उन्हें प्रोत्साहन दिया जाएगा, खास तौर पर फार्मास्यूटिकल्स, सेमी-कंडक्टर और स्टील निर्माण में।

पर्यावरण की कीमत पर अमेरिका को महान बनाने की तैयारी

एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ बढ़ाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनका मानना है कि पर्यावरण की रक्षा के नाम पर अमेरिका को नुकसान पहुंचाया गया है। ऐसे में उन्होंने सभी पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा संयंत्रों को हटाने का भी आदेश दिया है, क्योंकि ये जमीन को नष्ट करते हैं और जमीन की कीमतों को कम करते हैं। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप ने दुर्लभ खनिज उत्पादों के खनन की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने की इच्छा जताई है। उनका कहना है कि अमेरिका में दुर्लभ खनिज उत्पादों का बड़ा भंडार है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के नाम पर इनके खनन में बाधाएं पैदा की जाती हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वे इन बाधाओं को दूर करने और इनका घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए काम करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्तावों का निष्कर्ष यह है कि वे अमेरिकी कामगारों और उनके परिवारों के हितों की रक्षा के लिए अमेरिका की व्यापार प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करेंगे। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि इससे अमेरिकी लोगों की आय में सुधार होगा और वे बेहतर जीवन जी सकेंगे। लेकिन क्या यह संभव होगा? इसका मूल्यांकन अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर करना होगा।

सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि वस्तुओं के आयात पर टैरिफ बढ़ाने से देश में उत्पादन बढ़ सकता है, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि देश के पास वर्तमान में उन वस्तुओं के उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता हो। यह सही है कि पहले अमेरिका में ज्यादातर वस्तुओं का उत्पादन होता था। स्टील, जूते, कपड़े, रक्षा उपकरण, जहाज, दवाइयां, रसायन, सभी तरह के उत्पाद अमेरिका में बनते थे। लेकिन अमेरिकी उद्योगों की उच्च लागत और सस्ते आयातित विकल्पों के कारण वे सभी उद्योग बंद हो गए और आज अमेरिका इन सभी वस्तुओं के लिए ज्यादातर विदेशी देशों पर निर्भर है। ऐसी स्थिति में आयात शुल्क बढ़ाने से उत्पादन तो नहीं बढ़ेगा, लेकिन इससे आयातित विकल्प महंगे जरूर हो जाएंगे और इस तरह महंगाई बढ़ेगी, जिससे अमेरिकियों पर और बोझ पड़ेगा।

दूसरा, अगर अमेरिका आयकर खत्म करने का फैसला करता है, तो इसकी भरपाई बजट घाटे में बढ़ोतरी से करनी होगी, क्योंकि आयात शुल्क में बढ़ोतरी आयकर संग्रह में हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी। ऐसी स्थिति में बजट घाटे में बढ़ोतरी के कारण अमेरिका में महंगाई और बढ़ सकती है।

तीसरा, महंगाई बढ़ने के कारण ब्याज दरें भी बढ़ानी होंगी। अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले ही उच्च ब्याज दरों की मार झेल रही है, घरों और अन्य टिकाऊ वस्तुओं जैसे कार और अन्य घरेलू उपकरणों की मांग प्रभावित हुई है। यदि यह मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो मांग और भी बाधित हो सकती है।

चौथा, डोनाल्ड ट्रम्प का पेरिस पर्यावरण समझौते से हटने का निर्णय; और देश में पर्यावरण सुधार के लिए विभिन्न प्रकार के संयंत्रों के उत्पादन को रोकने का निर्णय किसी भी अन्य देश की तुलना में अमेरिका को सबसे अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। भले ही डोनाल्ड ट्रम्प को लगता है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन समाप्त करने के उनके निर्णय से अमेरिका के ऑटोमोबाइल उद्योग को बढ़ने में मदद मिलेगी, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि पर्यावरण की रक्षा के लिए किए जा रहे प्रयास दुनिया से ज्यादा अमेरिका के हित में हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक तकनीकी विकास से अमेरिका को लाभ हो सकता था, लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर पाएगा। जिस गति से अमेरिका में इलेक्ट्रिक कारों का चलन बढ़ रहा था, अब उस पर असर पड़ेगा।

दुनिया के ज़्यादातर अर्थशास्त्री नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के फ़ैसलों से सहमत नहीं हैं और उन्हें लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका प्रथम की बात तो कर रहे हैं, लेकिन उनके फ़ैसलों से न सिर्फ़ अमेरिकी अर्थव्यवस्था और अमेरिकी पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेगा, बल्कि अमेरिका बाक़ी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगा, साथ ही महंगाई और आर्थिक मंदी के कारण अमेरिकी लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि डोनाल्ड ट्रंप सही साबित होंगे या अर्थशास्त्री।       

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