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युद्ध लंबा खींचा तो भारत की आर्थिकी पर भी होगा असर

भारत इजराइल और ईरान दोनों के पांच बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल है। युद्ध का असर दोनों देशों के साथ आयात और निर्यात पर पड़ेगा। - अनिल तिवारी

 

इजराइल और ईरान के बीच छिड़े युद्ध में अमेरिका के कूद आने के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और भू-राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। भारत सहित दुनिया के कई देशों ने ईरान पर अमेरिका के हमले के बाद युद्ध के बड़े क्षेत्र में फैलने की आशंका को देखते हुए कूटनीतिक समाधान तलाशने और संयम बरतने की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा युद्ध पर चिंता जताते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत हमेशा शांति और मानवता के पक्ष में रहा है। प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के संतुलनकर्ताओं से बातचीत कर स्थाई हल निकाले जाने पर बल दिया है।

लगातार बदलते वैश्विक परिदृश्य के साथ कदम ताल करते हुए हाल के बरसों में भारत और इजराइल करीब आए हैं। सुरक्षा और तकनीक के क्षेत्र में भारत और इजराइल के बीच गहरा सहयोग प्राप्त है। वर्ष 2023 में हमास के हमले पर भारत ने कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया दी थी। पहलगाम हमले के बाद इजराइल उन देशों में था जो भारत की आत्मरक्षा के अधिकार के साथ खुलकर सामने आया था। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत और ईरान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, भू राजनीतिक मसलों के साथ-साथ ऊर्जा जैसे मुद्दों पर साथ खड़े है। ऐसे में युद्ध के मद्देनजर भारत का भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। भारत के लिए मध्य एशिया का लिंक है चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट। चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट भारत को अफगानिस्तान मद्धेशिया और ईरान तक सीधी पहुंच देता है। भारत ने अच्छा खासा निवेश भी किया है। चीन की बीआरआई परियोजना के मद्देनजर भारत के लिए यह एक अहम रणनीतिक प्रोजेक्ट है। इन सब को देखते हुए भारत  पूरे घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए हैं क्योंकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बरकरार रखने में उसकी हिस्सेदारी है। मालूम हो कि मध्य पूर्व के देशों में लगभग एक करोड़ भारतीय लोग रहते हैं और वहां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं। ऐसे सभी भारतीयों की सुरक्षा और कल्याण भारत सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। हालांकि ईरान इजराइल युद्ध शुरू होने के बाद कई भारतीय छात्रों के साथ-साथनेपाल और श्रीलंका के छात्रों और नागरिकों को भी ईरान से सुरक्षित निकाला गया है और आगे भी भारत की ओर से ऐसे प्रयास जारी रखने के संकेत सरकार की ओर से मिले हैं। भारत की लगभग 60 प्रतिशत से ऊपर की ऊर्जा ज़रूरतें इस क्षेत्र से पूरी होती है ऐसे में अगर कोई भी अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। इजराइल हमास युद्ध और हुती विद्रोहियों के कारण शिपिंग मार्ग पहले से ही बाधित थे, अब ईरान इजराइल युद्ध के करण होरमुज जलडमरूमध्य के प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। इससे पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के आयात-निर्यात में बाधा खड़ी हो सकती है।

तकरीबन 500 साल पहले बाबर ने अपनी किताब में एक जगह लिखा था कि उसे अपने देश के बादाम बेचने के लिए उन्हें होरमुज जल संधि के बंदर अब्बास तक ले जाना पड़ता है, जिसका रास्ता बहुत कठिन और खर्चीला है, फिर भी वह व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। आज लगभग पांच शताब्दी बीत जाने के बाद ईरान-इजराइल के वर्तमान युद्ध के कारण होरमुज जलडमरूमध्य का महत्व फिर से बढ़ गया है।

ईरान और ओमान के बीच होरमुज जलडमरूमध्य स्थित है, जो लगभग 40 किमी. चौड़ी समुद्र पट्टी है, जिसके जरिए दुनिया का 20 प्रतिशत कच्चा तेल और पेट्रोलियम पदार्थ निर्यात होते हैं। इस मार्ग से मुख्य रूप से सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर, इराक और ईरान के माल निर्यात होते हैं। इस समुद्री मार्ग के अवरुद्ध होने पर विश्वव्यापी कच्चे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा जिससे उसकी कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है, जो गैसोलीन एवं अन्य वस्तुओं की कीमतों में भी बढ़त कर सकती हैं, और मुद्रास्फीति की स्थिति ला सकती है। समुद्र पट्टी के नीचे सबमैरीन केबल से विश्व की 95 प्रतिशत इंटरनेट और डाटा ट्रैफिक जाती है, जिसमें भारत भी सम्मिलित है। यह इस्त्राइल और होरमुज जलडमरूमध्य से लगी हुई है। यूरोपीय गेटवे, फाइबर आप्ट लिंक आदि इस कॉरिडोर से होकर जाती है। यूरोप, एशिया और अफ्रीका के लिए यह डिजिटल लाइफलाइन है। युद्ध में बमबारी के कारण यह खतरे में पड़ सकती है, जिसका विकल्प बहुत महंगा होगा और बहुत सारे देश इससे प्रभावित होंगे। भारत की डिजिटल इकॉनमी, जो देश की जीडीपी में 245 बिलियन डॉलर का योगदान करती है, दुष्प्रभावित हो सकती है। ईरान अपने आप को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) से अलग कर सकता है, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करना बंद कर सकता है, इससे परमाणु युद्ध की आशंका बढ़ सकती है।

इजराइल के साथ भारत का घनिष्ठ संबंध है। ईरान के साथ भी उसके संबंध पाकिस्तान के साथ अधिक निकटता के बावजूद कुल मिलाकर लाभकर ही रहे हैं। ईरान के चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारत ने भारी निवेश किया है। यह पाकिस्तान को दरनिकार कर अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया के लिए भारत का गेटवे है, भारत के अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारे का हिस्सा है। भारत के बासमती चावल का ईरान सबसे बड़ा खरीदार है। इजराइल से भारत रक्षा सामग्री और आधुनिकतम मारक रक्षा यंत्रों की भारी मात्रा में खरीदारी करता है। इसके अतिरिक्त, डायमंड, केमिकल्स, मशीनरी और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स पदार्थ भी आयात करता है। भारत से इजराइल जो सामान खरीदता है, उनमें हीरा-मोती, सेमीप्रोसेस्ड स्टोन, इंजीनियरिंग गुड्स और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक शामिल हैं। 2024-25 में भारत ने इजराइल से जितना सामान खरीदा उससे 16 बिलियन डॉलर अधिक का निर्यात किया।

ईरान से भारत कच्चा तेल, ऑर्गेनिक एवं इनॉर्गेनिक केमिकल्स, फर्टिलाइजर्स, प्लास्टिक एवं मेवे (बादाम, पिस्ता, छुहारा आदि) खरीदता है। ईरान को बासमती चावल के अलावा चाय, फर्टिलाइजर, आयरन एंड स्टील, फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स, केमिकल्स, प्रेशर मिनरल्स, पॉलिएस्टर यार्न और फाइबर आदि निर्यात करता है।

भारत इजराइल और ईरान दोनों के पांच बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल है। युद्ध का असर दोनों देशों के साथ आयात और निर्यात पर पड़ेगा। भारत से जो माल ईरान जा रहा है, उसका भुगतान पहले से ही देर से मिल रहा है, अब और देर होने की संभावना है, जिसके कारण भारत के व्यापारी और सरकारी कंपनियां विश्व के दूसरे बाजारों की तलाश में लग लग गए हैं। कच्चे तेल के सप्लाई के लिए भी भारत की कंपनियां अन्य देशों की ओर रुख करने को मजबूर हो सकती हैं। यद्यपि ईरान पर इस मामले में भारत की निर्भरता अधिक नहीं है, इस कारण देश में पेट्रोल और पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति पर इजराइल-ईरान युद्ध का ज्यादा अवसर नहीं पड़ेगा।

फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अस्पष्ट टैरिफ नीति के कारण पहले से ही संकट में घिरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला की नई आपदा आ खड़ी हुई है। युद्ध से वैश्विक वित्त बाजार प्रभावित हो रहा है। जिस दिन इजराइल ईरान युद्ध शुरू हुआ पूरी दुनिया के स्टॉक एक्सचेंज में कीमतों में भारी गिरावट हुई। भारतीय शेयर बाजार में बीएसई सूचकांक 1300 अंक नीचे चला गया। आपूर्ति श्रृंखला में बाधा की आशंका से कच्चे तेल की वैश्विक कीमत तेजी से ऊपर की ओर भाग रही है। तेल कंपनियों एवं वित्तीय कंपनियों के शेयरों में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। शेयर बाजार की निवेश में कमी आई है और मंदी का माहौल लगातार बढ़ता जा रहा है। शेयर और म्युचुअल फंड की जगह उपभोक्ता निवेशक सोने चांदी में निवेश ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं।

कुल मिलाकर ईरान इजराइल युद्ध शुरू होने के बाद से मध्य पूर्व में संघर्ष की आशंका बढ़ी है जिसका असर तेल की कीमतों पर दिखने लगा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत 74.40 प्रति बैरल हो चुकी है। वही चूंकि भारत के दोनों देशों से संबंध अच्छे हैं इसलिए इसलिए दोनों के साथ संतुलन बनाए रखने की कूटनीति चुनौती पूर्ण है। ईरान का चाबहार बंदरगाह सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस प्रोजेक्ट में भारत बड़ा हिस्सेदार भी है। सऊदी अरब यूएई ओमान बहरीन कतर कुवैत ईरान और इजराइल में लगभग एक करोड़ भारतीय रह रहे हैं। इन देशों में रहने वाले भारतीय लाखों डॉलर की राशि भारत भेजते हैं जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होता है। युद्ध के फैलने की स्थिति में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सीधा असर पड़ेगा। युद्ध की स्थिति में भारत की सुरक्षा चुनौतियों भी बढ़ सकती हैं। राजनीति शास्त्र और सैन्य विज्ञान का स्थापित सत्य है कि जब पावर वैक्यूम बढ़ता है तो नॉन स्टेट एक्टर्स अपनी जगह बनाने के लिए गतिशील हो जाते हैं।       

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