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विश्व में अग्रणी भारत की जैविक अर्थव्यवस्था 

भारत की वैज्ञानिक परंपरा और ज्ञान संस्कृति के वाहक के रूप में जैविक अर्थव्यवस्था न केवल भारत बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहे विश्व को कल्याण का मार्ग दिखाती है।  - विनोद जौहरी

 

भारत की जैविक अर्थव्यवस्था के विषय में देश के आर्थिक तंत्र में एक अभूतपूर्व उत्साह है और टेक्नालोजी एवं स्टार्ट-अप के माध्यम से इस विकास के आयाम को देश के जनमानस से जोड़कर एक निश्चित नीति निर्धारण के द्वारा भारत विश्व में शीर्ष जैविक अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया जा सकता है। यह केवल उद्यमी वर्ग तक सीमित नहीं, बल्कि उपभोक्ता को भी जैविक उत्पादों के घरेलू, व्यापारिक एवं औद्योगिक उपभोग के लिए भी प्रेरित करने की आवश्यकता है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत आवश्यक है। वैसे तो हमारे देश की वैदिक संस्कृति पर्यावरण के अनुरूप ही है और आज भी समाज में हमारी परम्पराएँ, उत्सव और दिन प्रतिदिन की दिनचर्या भी पर्यावरणीय चेतना से अभिभूत हैं। यह कहना उचित नहीं कि जैविक अर्थव्यवस्था कि संकल्पना यूरोप से आई, क्योंकि हमारी वैदिक संस्कृति का आधार ही पर्यावरण के अनुकूल है। 

भारत में जैविक तकनीक (बायो टेक्नोलाजी), पांच बड़े स्तंभों पर आधारित है। जिसमें ऊर्जा, कृषि, औषधि, उद्योग और सेवाएं हैं। इसमें सूचना प्रोद्योगिकी और शोध सेवाएं भी सम्मिलित हैं। जैविक अर्थव्यवस्था का संबंध अर्थव्यवस्था से जु़ड़े सभी क्षेत्रों में सूचना, उत्पादों, प्रक्रियाओं और सेवाओं को प्रदान करने के लिए संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी सहित जैविक संसाधनों का उत्पादन, उपयोग और संरक्षण से है।

भारत शीर्ष पांच वैश्विक जैविक अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित है। बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बीआईआरएसी) और एसोसिएशन ऑफ बायोटेक्नोलॉजी लेड एंटरप्राइजेज (एबीएलई) की रिपोर्ट में जैव प्रौद्योगिकी, कृषि नवाचार, स्वास्थ्य सेवा और जैव विनिर्माण में परिवर्तनकारी प्रगति को रेखांकित किया गया है। इसे वैश्विक ‘बायो-इंडिया समिट 2024’ के एक सत्र के दौरान जारी किया गया।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव और बीआईआरएसी के चेयरमैन राजेश एस. गोखले ने कहा कि रिपोर्ट में भारत की जैविक अर्थव्यवस्था के 2014 में 10 अरब अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2023 तक 151 अरब डॉलर तक पहुंचने की बात कही गई है। वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में भारत की बाजार हिस्सेदारी 3-5 प्रतिशत है। जैविक अर्थव्यवस्था 3.3 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देगी। हम 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की अपेक्षा कर रहे हैं। ऐसा टीकों और जैव दवाओं की बढ़ती मांग के कारण संभव हो पाया है। इस क्षेत्र का देश की जीडीपी में 4.25 प्रतिशत का योगदान है। भारत 2025 तक शीर्ष 5 वैश्विक जैव-विनिर्माण केंद्रों में शामिल हो जाएगा। 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने “ग्लोबल बायो-इंडिया - 2023“ की वेबसाइट लॉन्च करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 9 वर्षों में हमारी जैव अर्थव्यवस्था ने प्रति वर्ष दोहरे अंकों की वृद्धि दर देखी है। डॉ. सिंह कहा कि भारत की अब दुनिया के शीर्ष जैव प्रौद्योगिकी गंतव्यों में गणना होती है और आने वाले समय में जैव-अर्थव्यवस्था आजीविका का एक बहुत ही आकर्षक स्रोत बनने जा रही है। बायोटेक स्टार्टअप भारत की भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी भविष्य की प्रौद्योगिकी है, क्योंकि आईटी पहले ही अपने संतृप्ति बिंदु पर पहुंच चुकी है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने याद दिलाया कि जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, दोनों देशों के नेतृत्व ने अपने प्रशासन से उन्नत जैव प्रौद्योगिकी और जैव विनिर्माण के लिए वर्तमान साझेदारी का विस्तार करने और जैव सुरक्षा एवं जैव सुरक्षा प्रथाओं तथा नवाचार मानदंडों को बढ़ाने का आह्वान किया था। नेशनल साइंस फाउंडेशन   के निदेशक डॉ. सेथुरमन पंचनाथन ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत मिलकर जैव प्रौद्योगिकी नवाचार और जैव विनिर्माण के माध्यम से जलवायु शमन और ऊर्जा लक्ष्यों जैसी महत्वपूर्ण वैश्विक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने अगले 25 वर्षों में “अमृत काल“ के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के व्यवसायों के बीच व्यापक तालमेल का आह्वान किया। जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सरकार की मेक इन-इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल को सार्वजनिक- निजी भागीदारी के माध्यम से जैव- औषधि (बायो-फार्मा), जैव-सेवाओं (बायो-सर्विसेस), कृषि जैव-प्रौद्योगिकी (एग्रो-बायोटेक), औद्योगिक जैव- प्रौद्योगिकी (इंडस्ट्रियल बायोटेक) और जैव सूचना विज्ञान जैसे क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी नवाचार, अनुसंधान और विनिर्माण में एक मजबूत आधार बनाकर उसे पोषित किया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया है कि अब अलग-अलग काम करने का युग समाप्त हो चुका है और हमें अपने अप्रयुक्त संसाधनों की विशाल क्षमता को उजागर करने के लिए निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा परिकल्पित अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देगा और अगले 5 वर्षों में भारत को वैश्विक अनुसंधान एवं विकास नेता के रूप में स्थापित करेगा। हमें वैश्विक मानदंडों, वैश्विक रणनीतियों और वैश्विक दृष्टिकोण को पूरा करना होगा। 

पिछले 8 सालों में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या 100 गुना बढ़ गई है, जबकि 2014 में इनकी संख्या 52 थी और आज इनकी संख्या 6,300 से ज़्यादा है। प्रतिदिन भारत में 3 बायोटेक स्टार्टअप्स स्थापित हो रहे हैं, जिनका लक्ष्य व्यवहार्य तकनीकी समाधान प्रदान करने का है। जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप एक अलग शैली है, जो जीव विज्ञान और विनिर्माण के नए अनुसंधान को जोड़ती है, अर्थात सूक्ष्म जीवों, स्व- संस्कृतियों आदि जैसे जीवित प्रणालियों का प्रसंस्करण। आज 3,000 से अधिक एग्रीटेक स्टार्टअप हैं और वे अरोमा मिशन और लैवेंडर की खेती जैसे क्षेत्रों में बहुत सफल हैं। लगभग 4,000 लोग लैवेंडर की खेती से जुड़े हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग उन्नत जैव ईंधन और अपशिष्ट से ऊर्जा  प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास नवाचारों को समर्थन दे रहा है। अब सिंथेटिक टेक्नोलॉजी, जीनोम एडिटिंग, माइक्रोबियल बायोरिसोर्सेज और मेटाबोलिक इंजीनियरिंग जैसे उपकरणों के बारे में अब बात की जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विजन का उल्लेख करते हुए केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा कि भारत की वैक्सीन रणनीति, मिशन सुरक्षा ने फार्मा, उद्योग और शिक्षा जगत को वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए साझेदारी में एक साथ समावेशित किया है। पहले भारत को निवारक स्वास्थ्य सेवा के लिए शायद ही जाना जाता था, लेकिन आज भारत को दुनिया के टीकाकरण केंद्र के रूप में जाना जाता है।

भारत की जैव अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले प्रमुख उप-क्षेत्रों में  जैव औद्योगिक (48 प्रतिशत)ः इसमें जैव ईंधन, रसायन, जैव प्लास्टिक आदि, बायोएग्री (8 प्रतिशत)ः उदाहरणार्थ   बीटी कॉटन जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें। बायोफार्मा (36 प्रतिशत)ः फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, डायग्नोस्टिक्स,  बायोआईटी/अनुसंधान सेवाएं (8 प्रतिशत) : इसमें अनुबंध अनुसंधान, नैदानिक परीक्षण, जैव सूचना विज्ञान आदि शामिल हैं।

भारत में जैव संसाधनों का विशाल भंडार है, एक असंतृप्त संसाधन जिसका दोहन किया जाना शेष है और जैव प्रौद्योगिकी में विशेष रूप से हिमालय में विशाल जैव विविधता और अद्वितीय जैव संसाधनों के कारण लाभ है। फिर 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा है और पिछले साल हमने समुद्रयान लॉन्च किया जो समुद्र के नीचे जैव विविधता की खोज करने जा रहा है।

देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (सीएसआईआर-आईआईपी) द्वारा विकसित पुनर्चक्रण तकनीक से भविष्य में कचरा शून्य हो जाएगा। सब कुछ रीसाइकल किया जाएगा। 

चंद्रयान-3 और डीएनए वैक्सीन की दोहरी सफलता की कहानियों ने भारत के वैज्ञानिकों को वैश्विक स्तर पर स्थापित कर दिया है, जहां विकसित देश भी हमसे सीख ले रहे हैं। भारत की वैज्ञानिक परंपरा और ज्ञान संस्कृति के वाहक के रूप में जैविक अर्थव्यवस्था न केवल भारत बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहे विश्व के कल्याण का मार्ग दिखाती है। 

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