भारत को 2047 के पहले एक वैभवशाली, समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने के लिए स्वदेशी को पूर्णरूप से अपनाना होगा, ताकि स्वदेशी तकनीक, स्वदेशी पूंजी तथा स्वदेशी शस्त्रागार एवं स्वदेशी उत्पादों के क्षेत्र में भारत स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बन सके। — डॉ. धनपत राम अग्रवाल
पिछले कुछ वर्षों से भारत निरन्तर सैन्य तकनीकी क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति कर रहा है और स्वदेशी अस्त्र-शस्त्र और हथियारों के नये अनुसंधानों द्वारा राष्ट्र की सुरक्षा का नया कीर्तिमान स्थापित कर रहा है जो हाल के भारत-पाक (सिंदूर) युद्ध में सारी दुनिया ने स्वीकार किया है। भारत सरकार के दो प्रमुख अनुसंधान केंद्र डीआरडीओ तथा इसरो के संयुक्त प्रयास से दूर मार करने वाली मिसाइलें और सेटॅलाइट द्वारा संचालित नाविक जैसे संवाद और अमेरिकी जीपीएस सिस्टम से भी ऊच्च स्तर के संयंत्रों और ब्राह्मोस तथा आकाशतीर जैसी अचूक निशाने वाली और जल, थल, नभ तीनों से मार करने की क्षमता वाली युद्ध कौशल में निपुण हमारी सेना राष्ट्र सुरक्षा का अभेद्य कवच और शूर-वीरता की पहचान है।
भारत के हिंदुस्तान एरोनॉटिक लिमिटेड में बने सैन्य विमान जिनमें जासूसी विमान भी शामिल हैं तथा तेजस जैसा स्वदेशी निर्मित एवं आधुनिक हथियारों से लैस लड़ाकू विमानों ने चीन तथा तुर्की से बने विमानों और प्रेक्षास्त्रों की धज्जियाँ उड़ादी तथा आतंकी ठिकानों को शीघ्र ही ध्वस्त कर पाकिस्तान के सैनिकों और उनके विदेशों से आयातित हथियारों को ब्राह्मोस और आकाशतीर मिसाइलों द्वारा नाकों चने चबवा दिये।
आज के वैज्ञानिक, तकनीकी और नवाचार के युग में युद्ध के शस्त्र और तरीक़ों में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। अब युद्ध आमने सामने सैनिकों से बन्दूक और तोपों से नहीं बल्कि पूर्ण रूप से तकनीक पर आधारित हैं। अभी हाल ही में हमने देखा 22 जून की सुबह भारतीय समय 6.40 पर अमेरिकी जासूसी विमानों ने जिन्हें बी-2 बॉम्बर कहा जाता है वे दुनिया के सबसे खतरनाक जीबीयू-57, जिसके एक बम का वजन 13600 किलो या 3000 पाउंड होता है, ऐसे 14 बमों का इस्तेमाल कर ईरान के तीन नाभिकीय अनुसंधान केंद्रों,फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान की पहाड़ी और पथरीली जमीन के नीचे लगभग 100 मीटर गहराई में जाकर 18 घंटों की लंबी यात्रा कर, उन पाताल में छिपे ठिकानों पर हमला करके उन्हें चंद मिनटों में ध्वस्त कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी या भनक ईरान के किसी भी रक्षा कवच और राडारों को नहीं मिली जबकि अमरीकी सैन्य विमानों का काफिला 100 से ज़्यादा का था।
भारत की सैन्य शक्ति अभी हाल के वर्षों में काफ़ी तीव्रता से बढ़ी है और हम दुनिया की किसी भी शक्ति का डटकर मुकाबला करने को तैयार हैं, फिर भी हमें आज अपनी सैन्य तकनीक का जिसमे ड्रोन, मिसाइलें, स्टील्थ यानि जासूसी तथा दुश्मन के राडारों से अपनी पहचान को छिपाकर उड़ने वाले विमान तथा आधुनिक अस्त्र शस्त्र से संपन्न विमान जिनमें राफेल जैसे विमान शामिल हैं, इस तरह की तकनीक का अनुसंधान करने की आवश्यकता है, जो हम कर रहे हैं तथा उनमें जो कमी है, उसे दूर करने का प्रयास भी जारी है।
ऐसी स्थिति में दुश्मन देशों के पास जिस तरह की आधुनिक और अत्याधुनिक तकनीक है, उसका अवलोकन और विश्लेषण भी आवश्यक है और हमारी सैन्य सुरक्षा के लिये धन की भी आवश्यकता है। इन सारी बातों को समझने से पहले हमें अपनी वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिये।
भारत की सैन्य सुरक्षा व्यवस्था और आधुनिक अनुसंधान की मौजूदा स्थिति, उपलब्धियाँ और चुनौतियों पर तथ्यों सहित एक समीक्षा में हम पाते हैं कि 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति संतुलन में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र, हिन्द महासागर और दक्षिण एशिया में सामरिक प्रतिस्पर्धा के बीच भारत ने अपनी सैन्य सुरक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाने और स्वदेशी अनुसंधान को बढ़ावा देने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
भारत की सशस्त्र सेनाएँ जो एक त्रिशूल के रूप में हमारी सीमाओं की रक्षा करती हैं ये क्रमशः थल सेना, वायु सेना और नौसेना विश्व की सबसे बड़ी और सक्षम सेनाओं में गिनी जाती हैं। भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में है जिनके पास परमाणु हथियार हैं। भारत के कुल सैनिकों की संख्या 14.5 लाख है जिनमे थल सेना : 12.3 लाख सक्रिय वायु सेना : 1.4 लाख नौसेना : 72,000 (2024 तक)।
आज के युद्ध के तरीक़े पारम्परिक नहीं बल्कि आधुनिक तकनीकी से युक्त होते है और जिनमें निरंतर तेज़ी से बदलाव हो रहा है। भारत अपनी सैन्य क्षमता को तकनीकी रूप में मिसाइल, लड़ाकू विमान एवं अंतरिक्ष उपग्रहों द्वारा संचालित नाविक जैसी संचार तकनीकों के आधार पर सूक्ष्म से सूक्ष्म ठिकानों पर सटीक निशाने से आक्रमण करने की तैयारी में अपने दुश्मन देशों से भी उत्तम किस्म के बंकर ब्लास्टर बम भी बना रहा है जो धरती की सतह से 200 मीटर नीचे तक घात कर सकते हैं।
ब्राह्मोस मिसाइल
भारत के पास शक्तिशाली मिसाइलों का एक प्रभावशाली शस्त्रागार है जो उसकी सामरिक रक्षा और क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें से, ब्राह्मोस मिसाइल दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, जो रूस के साथ एक संयुक्त उद्यम है। 800 किमी तक की रेंज और 2.8-3 मैक की गति के साथ, इसे जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बियों से लॉन्च किया जा सकता है। इसकी सटीकता, कम ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता और मल्टी-रोल विशेषताएँ भारत को दुश्मन के ठिकानों, नौसैनिक जहाजों और बंकरों पर तेज़ी से हमला करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे उसकी नौसैनिक शक्ति और सामरिक प्रभाव बढ़ता है, खासकर चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने और हिंद महासागर में रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में यह महत्वपूर्ण है।
आकाश मिसाइल
आकाश मिसाइल, एक सतह से हवा में मार करने वाली (एसएएम) मिसाइल है, जो पूरी तरह से स्वदेशी रक्षा प्रणाली है। इसे कम से मध्यम ऊंचाई पर उड़ने वाले लड़ाकू विमानों, ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलों को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 30-50 किमी की रेंज और 2.5 मैक की गति के साथ, यह एक महत्वपूर्ण वायु रक्षा कवच के रूप में कार्य करती है, जो सामरिक अड्डों, रडार प्रतिष्ठानों और महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा करती है।
पृथ्वी मिसाइल
भारत की पृथ्वी मिसाइल एक सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है जो परमाणु और पारंपरिक दोनों प्रकार के हथियार ले जाने में सक्षम है। अपने विभिन्न संस्करणों (पृथ्वी-प्ए प्प्ए प्प्प्) में 150-350 किमी तक की रेंज के साथ, यह सीमावर्ती क्षेत्रों में त्वरित जवाबी हमला करने की क्षमता प्रदान करती है और भारत की रणनीतिक निवारक क्षमता का एक प्रमुख घटक है। मोबाइल लॉन्चर प्लेटफॉर्म से लॉन्च की गई, इसे युद्धकाल में दुश्मन के सामरिक ठिकानों पर हमला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
अग्नि मिसाइल
अग्नि मिसाइल श्रृंखला में सतह से सतह पर मार करने वाली इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें (आईसीबीएम) शामिल हैं जो भारत की परमाणु त्रय की रीढ़ हैं। अग्नि-प् (700 किमी) से अग्नि-ट (5000-5500 किमी) और आगामी अग्नि-टप् (8000-10000 किमी) तक की रेंज वाली ये मिसाइलें परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। अग्नि-टप् जैसे भविष्य के संस्करणों में मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (एमआईआरवी) तकनीक को शामिल करने की उम्मीद है, जिससे एक ही मिसाइल कई लक्ष्यों पर कई वारहेड पहुंचा सकेगी। मोबाइल प्लेटफॉर्म या भूमिगत साइलो से लॉन्च की गई अग्नि मिसाइलें भारत को एक निर्णायक लंबी दूरी की मारक क्षमता प्रदान करती हैं, जिससे चीन और पाकिस्तान सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन सुनिश्चित होता है।
अंत में, के-6 मिसाइल, जो वर्तमान में विकास के अधीन है, एक पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) है जिसकी अनुमानित रेंज 6000-8000 किमी है। अरिहंत-श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों के लिए डिज़ाइन की गई, के-6 परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम होगी और इसमें एमआईआरवी तकनीक होगी। यह मिसाइल भारत के परमाणु त्रय को पूरा करेगी, जिससे समुद्र के नीचे से एक अदृश्य दूसरी-स्ट्राइक क्षमता मिलेगी। यह क्षमता किसी भी प्रतिकूल हमलावर द्वारा संभावित पहले हमले के बाद भी निर्णायक जवाबी हमले की गारंटी देती है, जिससे हिंद महासागर में भारत का सामरिक प्रभुत्व मजबूत होता है। विशेष रूप से ब्रह्मोस और अग्नि मिसाइलें, भारत के -रु39;नो फर्स्ट यूज़ -रु39; परमाणु सिद्धांत के बावजूद, मजबूत दूसरी-स्ट्राइक और जवाबी-स्ट्राइक क्षमताओं को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
भारत के प्रमुख लड़ाकू वायुयान (2025)ः एक सिंहावलोकन
भारतीय वायुसेना के पास कई महत्वपूर्ण लड़ाकू विमान हैं, जिनमें एचएएल तेजस (एलसीए तेजस) एक हल्का मल्टी-रोल स्वदेशी विमान है जिसकी अधिकतम गति मैक 1.6 और युद्ध भार 4000 किलोग्राम है। यह एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलों से लैस है और 2025 से इसके एमके-1ए संस्करण को शामिल किया जाएगा, जो सीमावर्ती वायु रक्षा और मल्टी-रोल स्ट्राइक में महत्वपूर्ण होगा। सुखोई-30 एमकेआई भारत का सबसे घातक और मुख्य एयर डोमिनेंस फाइटर है, जिसे एचएएल और रूस ने लाइसेंस के तहत बनाया है। यह मैक 2 की अधिकतम गति, 8000 किलोग्राम युद्ध भार और 3000 किलोमीटर की रेंज वाला एक भारी मल्टी-रोल फाइटर है, जो ब्रह्मोस-ए सहित विभिन्न मिसाइलों को ले जा सकता है। मिराज-2000, फ्रांस के डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित एक मल्टी-रोल फाइटर है, जिसकी अधिकतम गति मैक 2.2 और रेंज 1550 किलोमीटर है। यह एमआईसीए ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, साथ ही यह परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है।
वायुसेना का बेड़ा और आधुनिकीकरण
रूस निर्मित मिग-29 न्च्ळ एक मल्टी-रोल फाइटर है जिसकी अधिकतम गति मैक 2.3 और ऑपरेशन रेंज 1500 किलोमीटर है, जो वायु सीमा सुरक्षा और स्ट्राइक मिशनों के लिए उपयोग होता है। जगुआर (ैम्च्म्ब्।ज् श्रंहनंत), जिसे एचएएल द्वारा लाइसेंस के तहत बनाया गया है, एक ग्राउंड अटैक और डीप पेनिट्रेशन स्ट्राइक एयरक्राफ्ट है, जिसकी अधिकतम गति 1350 किमी/घंटा और रेंज 1400 किमी है। यह लेजर गाइडेड बम और ।ै.30स् मिसाइलों से लैस है और परमाणु क्षमता भी रखता है।
भारत की उन्नत अनुसंधान परियोजनाएँः भविष्य की वायु शक्ति
भारत भविष्य की वायु शक्ति के लिए कई उन्नत परियोजनाओं पर काम कर रहा है। एचएएल एएमसीए (उन्नत मध्यम लडाकू विमान) एक 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ मल्टी-रोल फाइटर है जो डिज़ाइन और प्रोटोटाइप निर्माण के चरण में है, जिसका लक्ष्य 2028 तक इसे शामिल करना है। इसकी अधिकतम गति मैक 2.15 होगी और इसमें स्टील्थ तकनीक, स्वदेशी एईएसए रडार और सुपरक्रूज़ क्षमता होगी, जो इसे चीन के श्र.20 और अमेरिका के थ्.35 के समकक्ष खड़ा करेगा। ज्म्क्ठथ् ;ज्ूपद म्दहपदम क्मबा ठेंमक थ्पहीजमतद्ध नौसेना के लिए एक स्टील्थ फाइटर है जिसे आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विशाखापत्तनम पर संचालन के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है, और यह नौसेना के डपळ.29ज्ञ का भविष्य का विकल्प होगा। इसके अतिरिक्त, तेजस एमके-2 एक मध्यम वजन का मल्टी-रोल फाइटर है जिसका प्रोटोटाइप 2025 में तैयार होगा और 2028 से शामिल किया जाएगा। इसकी अधिकतम गति मैक 2, युद्ध भार 6500 किलोग्राम और रेंज 1700 किलोमीटर होगी, जिसमें बेहतर ईंधन क्षमता और हथियार ले जाने की क्षमता होगी।
कुल मिलाकर, एएमसीए, टीईडीबीएफ और तेजस एमके-2 जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं भारत को 5वीं और 6वीं पीढ़ी की वायु प्रभुत्व शक्ति में आत्मनिर्भर बनाएंगी। 2025-2035 का दशक भारतीय वायुसेना के लिए अत्यंत निर्णायक होगा, क्योंकि इस अवधि में स्वदेशी स्टील्थ फाइटर और आधुनिक मल्टी-रोल लड़ाकू विमानों के आगमन से भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली वैश्विक स्तर पर और भी मजबूत होगी।
भारत की सैन्य शक्ति सुदृढ़ीकरण हेतु इसरो-डीआरडीओ का रणनीतिक समन्वय
आज के बदलते भू-राजनीतिक माहौल में युद्ध केवल ज़मीनी सीमाओं और परंपरागत रणक्षेत्र तक सीमित नहीं रह गए हैं। भविष्य में युद्ध अंतरिक्ष, साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम तकनीक और हाइपरसोनिक हथियारों के माध्यम से लड़े जाएंगे। इस संभावित चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारत की दो अग्रणी वैज्ञानिक संस्थाएँ - भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) - देश की रक्षा क्षमताओं को आधुनिक तकनीकी युग के अनुरूप सशक्त करने के लिए समन्वित रणनीति पर कार्य कर रही हैं।
इस दिशा में भारत ने कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। वर्ष 2019 में रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) का गठन किया गया, जो इसरो और डीआरडीओ के संयुक्त सैन्य अंतरिक्ष अभियानों, उपग्रह निगरानी और एंटी-सैटेलाइट क्षमताओं का समन्वय करती है। इसी वर्ष मिशन शक्ति के अंतर्गत भारत ने सफलतापूर्वक एंटी-सैटेलाइट परीक्षण कर अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी सामरिक क्षमता का प्रदर्शन किया। इसके बाद भारत ने प्दकैचंबमम्ग नामक युद्धाभ्यास का आयोजन किया, जो अंतरिक्ष, साइबर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित युद्ध की तैयारी को परखने का पहला समन्वित प्रयास था।
भारत ने हाइपरसोनिक हथियार प्रणालियों के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। डीआरडीओ ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (एचएसटीडीवी) और इसरो ने पुनः उपयोग योग्य प्रक्षेप यान (त्स्ट.ज्क्) विकसित कर भविष्य की रक्षा तकनीकों में अपनी पकड़ मजबूत की है। साथ ही द्वैत्य-उपयोग उपग्रहों के माध्यम से त्वरित सैन्य निगरानी की क्षमता भी विकसित की जा रही है, जिनमें आरआईएसएटी, जीआईएसएटी और ब्ंतजवेंज जैसे उपग्रह शामिल हैं। भारत अब क्पतमबजमक म्दमतहल ॅमंचवदे जैसे लेज़र और माइक्रोवेव हथियारों का भी संयुक्त रूप से विकास कर रहा है।
सुरक्षित सैन्य संचार के लिए क्वांटम संचार एवं क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन उपग्रह नेटवर्क की दिशा में भी इसरो और डीआरडीओ मिलकर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही, अंतरिक्ष, ड्रोन, रडार और साइबर उपकरणों से प्राप्त डाटा का त्वरित विश्लेषण कर एआई आधारित निर्णय प्रणाली भी तैयार की जा रही है, जो युद्धकालीन स्थितियों में त्वरित और सटीक निर्णय लेने में सहायक होगी।
इन सभी योजनाओं के प्रभावी संचालन के लिए रक्षा स्पेस कमांड का गठन किया गया है, जो प्रमुख रूप से ब्क्ै के अधीन कार्य करेगा। इसके अंतर्गत इसरो-डीआरडीओ संयुक्त अनुसंधान परिषद और संयुक्त स्पेस ऑपरेशंस सेंटर (जेएसओसी) बनाए जाएंगे, जहाँ उपग्रह, हाइपरसोनिक, एआई-आईएसआर, क्पतमबजमक म्दमतहल ॅमंचवदे और साइबर क्वांटम डाटा का समन्वित और त्वरित संचालन होगा।
सरकार ने इस समन्वित परियोजना के लिए 2025 से 2030 तक 10,000 करोड़ रूपये का ‘डिफेंस स्पेस मॉडर्नाइजेशन फंड’ स्वीकृत किया है। साथ ही स्पेस रक्षा प्रोटोटाइप लैब तथा फज्ञक् और हाइपरसोनिक अनुसंधान केंद्र भी स्थापित किए जा रहे हैं।
इसरो और डीआरडीओ का यह रणनीतिक समन्वय भारत की सुरक्षा-संप्रभुता को मज़बूत करेगा और देश को 2030 तक तकनीकी युद्धों में निर्णायक बढ़त दिलाएगा। भविष्य के बहु-डोमेन युद्धों में भारत को सामरिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक और निर्णायक कदम है। इस रणनीतिक सिद्धांत को “शत्रुविनाशः भारत का एकीकृत अंतरिक्ष एवं तकनीकी युद्ध सिद्धांत” नाम दिया गया है, जो आने वाले वर्षों में देश की रक्षा नीति का आधार बनेगा।
हमारा रक्षा बजट (2024-25)ः वर्तमान वर्ष में हमारा रक्षा बजट 6.21 लाख करोड रू.़ (जीडीपी का 2.1 प्रतिशत) है और इसमें लगातार वृद्धि की जा रही है। हालांकि यह अमेरिका के 997 बिलियन और चीन के 314 बिलियन की तुलना में काफ़ी कम है
उपसंहार
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते है कि भारत को तुलनात्मक दृष्टि से और अधिक प्रगति के लिए भारत के रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना के तहत भारतीय निजी क्षेत्र तथा सरकारी सैन्य शस्त्र उत्पादन करने वाली कंपनियों को तेजी से अपने अनुसंधान और नवाचार को गति देने की आवश्यकता है। साथ ही साथ डीआरडीओ तथा इसरो के द्वारा जो नयी तकनीक का विकास हो रहा है, उसे जमीनी स्तर पर उत्पादन बढ़ाने के लिए निजी एवं सरकारी कंपनियों के बीच पारदर्शिता के साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत को 2047 के पहले एक वैभवशाली, समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने के लिए स्वदेशी को पूर्णरूप से अपनाना होगा, ताकि स्वदेशी तकनीक, स्वदेशी पूंजी तथा स्वदेशी शस्त्रागार एवं स्वदेशी उत्पादों के क्षेत्र में भारत स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बन सके।
डॉ. धनपत राम अग्रवाल (अखिल भारतीय सहसंयोजक, स्वदेशी जागरण मंच)