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नेपाल में पुनः हिन्दू राष्ट्र के लिए भारी समर्थन 

नेपाल में बदलते हुए राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में हिन्दू राष्ट्र के प्रति संकल्प स्पष्ट दिखाई दे रहा है जो भारत के लिए भी शुभ संकेत है। - विनोद जौहरी

 

पिछले कुछ समय से नेपाल का जनमानस गंभीर रूप से उद्वेलित है और वर्तमान कम्युनिस्ट पार्टी (मार्कसिस्ट लेनिनिस्ट) के प्रधानमंत्री श्री खड़ग प्रसाद शर्मा ओली के शासन से पूरी तरह असंतुष्ट है। भारत के लिए यह घटनाक्रम महत्वपूर्व है, क्योंकि नेपाल परंपरागत रूप से भारत का सबसे परम और विश्वसनीय मित्र देश है और दोनों देशों के धर्म, संस्कृति, धार्मिक धरोहर, मान्यताएँ, सामान्य और राज परिवार भारत से सदियों से एकीकृत हैं और उनको कभी अलग करके देखा भी नहीं जा सकता। 

भारत और नेपाल की 1751 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा पाँच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और सिक्किम से जुड़ी है इसलिए नेपाल भरत के रग रग में विद्यमान हैं और नेपाल के लगभग छह लाख नागरिक भारत में बसे हैं और 36000 गोरखा सैनिक और अधिकारी भारतीय सेना में हैं। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का सबंध है जिसके कारण प्रत्येक वर्ष दोनों देशों के बीच हजारों बेटे-बेटियों के विवाह हो रहे हैं जो भगवान राम और माता सीता के त्रेता युग से होता चला आ रहा है। इस पृष्ठभूमि में जो कुछ नेपाल में हो रहा हैं वह भारत में चिंता और संवेदना का विषय है। 2022 की जनगणना के अनुसार, हिमालय की गोद में स्थित नेपाल की जनसंख्या 30.55 मिलियन लगभग 3.5 करोड़ है और यहां की 81.19 प्रतिशत जनता हिन्दू है। विश्व भर में विभिन्न देशों में लगभग 20 लाख नेपाली नागरिक बसे हैं। 

वर्ष 2006 में राजशाही की समाप्तिके बाद नेपाल में बारह प्रधानमंत्री बदले हैं। श्री ज्ञानेंद्र शाह वर्ष 2002 में तब राजा बने, जब 2001 में उनके भाई और परिवार के लोगों की महल में हत्या कर दी गई थी। इस हत्या का आरोप राजकुमार दीपेंद्र पर लगा था। जिन्होंने खुद भी आत्महत्या कर ली थी।वर्ष 2006 के जनआंदोलन और माओवादी विद्रोह के बाद राजा ज्ञानेंद्र ने संवैधानिक राजशाही को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया था और उन्होंने पूर्ण सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया, सरकार और संसद को भंग कर दिया। उन्होंने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी और देश पर शासन करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया। इससे नेपाल में वामपंथियों का आंदोलन और भी भड़क गया और लंबी हिंसा के बाद आखिरकार 2008 में नेपाल से राजशाही का खात्मा हो गया। 

नेपाल में शासन व्यवस्था में परिवर्तन की मांग में एक बड़ा राजनीतिक दल राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी, ज्ञानेंद्र शाह को समर्थन कर रहा है। अपनी स्थापना के बाद से राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल में हिन्दू राष्ट्र और राजशाही का समर्थन करता आ रहा है। राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल के लिए हिन्दू राष्ट्र और राजशाही को एक दूसरे का पूरक मानता है। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने 575 सीटों वाली संसद में से संविधान सभा में 8 सीटें हासिल कीं। 2013 के चुनाव मेंयह 13 सीटें हासिल करने में सफल रही। 2017 में यह एक सीट पर आ गई, लेकिन 2022 के चुनाव में 14 सीटों के साथ वापस आ गई। चीन का प्रभाव भी वर्तमान सरकार में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया है। उससे लोगों का मोहभंग हो गया है। अब लोग पुराने दिन याद कर रहे हैं। विदेशों में बसे नेपाली नागरिक भी पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह की वापसी की मांग में आंदोलित हैं। 

नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के मुख्य प्रवेश द्वार से ही 10000 उत्साही लोगों की भारी भीड़ पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह की प्रतीक्षा कर रही थी और उनकी झलक पाने को आतुर थी। जनता नारेबाजी कर रही थी। भीड़ आवाज लगाती... नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन,’ यानी कि नारायणहिती (राजा का महल) खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं। भीड़ फिर शोर करती है और नारा लगाती है, “जय पशुपतिनाथ, हाम्रो राजालाई स्वागत छ.’ अर्थात जय पशुपतिनाथ, हमारे राजा का स्वागत है। ये भीड़ नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की वापसी, राजशाही की वापसी को लेकर नारे लगा रही थी और पूर्व राजा का स्वागत कर रही थी।  

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के पर्यटन स्थल पोखरा में 2 महीने के प्रवास के बाद काठमांडू लौटे हैं।  नेपाल में अभी ये चर्चा आम है कि ज्ञानेंद्र शाह राजनीति में वापसी कररहे हैं। इसके लिए वे लंबी तैयारी कर रहे हैं। पोखरा प्रवास के दौरान ज्ञानेंद्र शाह दर्जन भर से ज्यादा मंदिरों और तीर्थ स्थलों के दर्शन किए और जनता की संवेदना समझने का प्रयास किया।   

कुछ समय पूर्व नेपाल के 20 हिन्दू संगठनों ने पश्चिमांचल में तनहुँ जिले के देवघट में एक संयुक्त फ्रंट गठित किया है जो सड़कों पर उतर कर हिन्दू राष्ट्र की वापसी के लिए आंदोलन कर रहा है। नेपाल में विभिन्न मठों और धार्मिक पीठों का समर्थन भी हिन्दू राष्ट्र के लिए हैं जहां हिन्दू शिक्षा और संस्कृति का पठन पाठन किया जाता है।  

पिछले दिनों नेपाल की काठमांडू घाटी में बागमाती प्रदेश के ललितपुर में हिन्दू राष्ट्र के समर्थन में विभिन्न हिन्दू संगठनों, मठाधीशों, शंकरचार्य मठ के केशवानन्द स्वामी, शांति धाम के पीठाधीश, स्वामी चतुर्भुज आचार्य, हनुमान जी महाराज, हिन्दू स्वयंसेवक संघ के संयोजक, नेपाल पुलिस के पूर्व सहायक इंस्पेक्टर जनरल कल्याण कुमार तिमिलसिना, विश्व हिन्दू महासंघ, विश्व हिन्दू परिषद, सनातन धर्म सेवा, ओंकार समाज, नेपाल राष्ट्रवाद समाज और इसके अलावा एक दर्जन अन्य हिन्दू संगठन नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की वापसी के लिए संघर्षरत हैं। नेपाल के रक्षा सूत्रों के अनुसार नेपाल में 100 से अधिक हिन्दू संगठन सक्रिय हैं। 

नेपाली काँग्रेस के भीतर भी एक प्रभावशाली वर्ग हिन्दू राष्ट्र के लिए समर्थन में है। वर्ष 2018 में नेपाली काँग्रेस के श्री शंकर भण्डारी ने हिन्दू राष्ट्र के लिए एक अभियान चलाया था। पार्टी की महासमिति के 1400 सदस्यों में से 734 सदस्यों ने हिन्दू राष्ट्र के लिए समर्थन किया था। पार्टी के प्रभावशाली नेताओं डॉ. शशांक कोइराला, श्री शेखर कोइराला, श्री राम चन्द्र पौडेल भी हिन्दू राष्ट्र के समर्थन में हैं। 

नेपाल में बदलते हुए राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में हिन्दू राष्ट्र के प्रति संकल्प स्पष्ट दिखाई दे रहा है जो भारत के लिए भी शुभ संकेत है।

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