swadeshi jagran manch logo
News Image

दुर्लभ खनिजों पर राष्ट्रीय प्राथमिकता

भारत दुर्लभ खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बन सकेगा और उसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी और इस मामले में चीन का एकाधिकार तोड़ने में भी सफलता मिलेगी। — विनोद जौहरी

 

वर्तमान वैश्विक व्यापार अवरोधों में चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शृंखला में व्यवधान डालने के प्रयासों से भारत के विभिन्न उद्योगों में चिंता बढ़ी है जबकि स्वयं भारत विश्व के दुर्लभ खनिज भंडारों में तीसरा सबसे बड़ा स्थान रखता है। अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी का चीन ने दुर्लभ खनिजों की एकाधिकार वर्चस्व द्वारा ही प्रतिरोध किया है। भारत ने हाल ही में दुर्लभ खनिजों के भंडार वाले देशों के साथ समझौतों की ओर कदम बढ़ाया है और अपने देश में ही खनन और शोधन के प्रयासों को प्राथमिकता दी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को क्लीन एनर्जी और ग्रीन टेक्नॉलजी पर आधारित आकार देने में रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) की बड़ी भूमिका है। रेयर अर्थ एलीमेंट्स (दुर्लभ खनिज) आज की टेक्नोलॉजी वाली दुनिया के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितना मनुष्य के लिए अनाज। 17 तत्वों के इस समूह को इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर मोबाइल फोन, रक्षा उपकरण, और पवन टरबाइन जैसी हाई-टेक चीजों में प्रयुक्त होते हैं। दुर्लभ खनिजों के समूह ग्रुप में सम्मिलित सेरियम का उपयोग कार एग्जॉस्ट सिस्टम्स के कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में किया जाता है और गैसोलीन में मिलाया जाता, वहीं डिस्क ड्राइव और लाउडस्पीकर्स के सुपर मैग्नेट्स में जायस्पोरियम और नियोडायमियम का इस्तेमाल होता है। हाइब्रिड गाड़ियों की बैटरी और यहां तक कि फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए उर्वरक तक में इनका उपयोग होता है।

17 दुर्लभ तत्त्वों में सीरियम, डिसप्रोसियम, अर्बियम, युरोपियम, गैडोलीनियम, होल्मियम, लैंथेनम, ल्यूटेशियम, नियोडिमियम, प्रेजोडायमियम, प्रोमीथियम, समेरियम, स्कैंडियम, टर्बियम, थ्यूलियम, इटरबियम और अट्रियम सम्मलित  हैं। इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनिसेंट और विद्युत रासायनिक गुण मौजूद रहते हैं और इस प्रकार ये तत्त्व उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। यहाँ तक कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिये भी ये तत्त्व काफी महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, पोस्ट-हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था के लिये हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण एवं परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग और ऊर्जा दक्षता आदि में दुर्लभ खनिजों का उपयोग सबसे आवश्यक है।

चीन आज जिस स्थिति में है, वहां वह एकाएक नहीं पहुंचा है। वर्ष 1990 के बाद से उसने इन तत्वों को रणनीतिक रूप से जरूरी माना और अपने नियमों, टेक्नोलॉजी और नीतियों को उसी के अनुसार से बदला। चीन का रेयर अर्थ मिनरल्स का व्यापार बीते तीन दशकों में 9 गुना हो गया है। चीन की पर्ल नदी, जूलॉन्ग नदी, ल्याओहे नदी से लेकर पोयांग झील और डॉन्गटिंग झील तक में ये पाए जाते हैं। वर्ष 2011 तक चीन रेयर अर्थ का 90 प्रतिशत उत्पादन अकेले करता था। हालांकि, 2022 तक यह हिस्सेदारी 62.9 प्रतिशत पर आ गई थी। चीन के बाद अमेरिका, म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया इनके उत्पादन में आगे हैं। चीन के 39 विश्वविद्यालयों में इस विषय पर नियमित अध्ययन होता है। इसके सापेक्ष विश्व के सबसे विकसित देश अमेरिका में एक भी पाठ्यक्रम नहीं है।

भारत के प्रयास 

इस विषय  में सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड  को एक बड़ी सफलता मिली है। इसके चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ने बताया कि सरकारी अध्ययनों से पता चला है कि तेलंगाना के सत्तुपल्ली और रामागुंडम की खुली खदानों से निकलने वाली हर 15 टन मिट्टी में एक किलोग्राम स्कैंडियम और स्ट्रोंटियम जैसे कीमती खनिज पाए जाते हैं। इन खदानों से अगस्त 2025 से व्यावसायिक आपूर्ति शुरू होने की उम्मीद है। स्कैंडियम एक खास धातु है, जिसका इस्तेमाल हवाई जहाज के पार्ट्स, ईंधन सेल और स्पोर्ट्स के सामान बनाने में होता है। वहीं, स्ट्रोंटियम का उपयोग फेराइट मैग्नेट, दवा, सिरेमिक और इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्व की खोज में आगे बढ़ रहा है। भारत की कोयला खदानें इसमें सहायता कर रही हैं। सरकार कोयला खदानों से निकलने वाले कचरे से रेयर अर्थ मेटल्स निकालने को बढ़ावा दे रही है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह खोज केवल वर्तमान खदानों तक ही सीमित नहीं है। इसे पेट्रोलियम सेक्टर और कम खोजे गए खनिज क्षेत्रों तक भी बढ़ाया जा रहा है। यह भारत के नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन का भाग है। इसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहन, रिन्यूएबल एनर्जी और आधुनिक रक्षा प्रणालियों के लिए जरूरी खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनना है।

केंद्र सरकार देश में नियोडिमियम की उपस्थिति से अवगत है। खान मंत्रालय के अधीन भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क वर्गीकरण, यूएनएफसी चरण अर्थात पुनरीक्षण सर्वेक्षण, प्रारंभिक अन्वेषण और सामान्य अन्वेषण और खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) (एमईएमसी) नियम, 2015 के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए देश भर में खनिज अन्वेषण में सक्रिय रूप से लगा हुआ है, जिसका उद्देश्य खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) (एमएमडीआर) संशोधन अधिनियम, 2023 में निर्दिष्ट महत्वपूर्ण खनिजों सहित विभिन्न खनिज वस्तुओं के लिए संसाधन बढ़ाना है। फील्ड सीजन (एफएस) 2021-22 और 2022-23 के दौरान, जीएसआई ने अनुमोदित फील्ड सीजन कार्यक्रम के अनुसार राजस्थान के सिरोही और भीलवाड़ा जिलों में नियोडिमियम सहित दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के लिए तीन पुनरीक्षण चरण परियोजनाएं शुरू की थीं।  

भारत में रेयर अर्थ एलीमेंट्स के रिजर्व खोजने में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को हाल के वर्षों में कुछ सफलता मिलती है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स के आयात के आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो वर्ष  2019-20 में हम 1448 टन रेयर अर्थ एलीमेंट्स का आयात कर रहे थे जो 2023-24 तक 2270 टन पर पहुंच गया। वर्ष 2024 में सबसे ज्यादा आयात चीन से किया गया जबकि हॉन्ग-कॉन्ग, जापान, मंगोलिया, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और फ्रांस भी बड़े आपूर्तिकर्ता रहे।

इसी वर्ष सरकार ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन प्रारम्भ किया है जो इन अत्यावश्यक मिनरल्स में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर लक्षित है। इसके अंतर्गत जिओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को वित्तीय वर्ष 2025 से वित्तीय वर्ष 2031 तक 1200 एक्स्पलोरेशन प्रॉजेक्ट्स का लक्ष्य दिया गया है। नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन के तहत देश और विदेश में क्रिटिकल मिनरल्स ऐसेट्स को प्राप्त करने, वैल्यू चेन को सुदृढ़ करने के लिए कौशल विकास, मिनरल प्रोसेसिंग पार्क, पेटेंट को बढ़ावा देने की कोशिश की जाएगी।

भारत में 1963 से अटॉमिक एनर्जी विभाग के अंतर्गत रेयर अर्थ के उत्पादन का दायित्व  1950 में गठित इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (आई आर ई एल इंडिया लिमिटेड) को मिला है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसकी वार्षिक क्षमता 6 लाख टन की है। यह इल्मेनाइट, र्यूटाइल, जिरकॉन, सिलिमैनाइट और गार्नेट जैसे अहम मिनरल्स का उत्पादन करता है। इसका एक प्लांट ओडिशा में और रिफाइनिंग यूनिट केरल में है।

परमाणु ऊर्जा विभाग ने राजस्थान के बालोतरा (पूर्ववर्ती बाड़मेर) जिले के कुछ हिस्सों में कठोर चट्टानी क्षेत्रों में 1,11,845 टन दुर्लभ मृदा तत्व ऑक्साइड (आरईओ) की खोज की है। दुर्लभ मृदा धातुओं सहित महत्वपूर्ण खनिजों के उपयोग हेतु नीतिगत ढाँचे के रूप में, राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन प्रारम्भ किया गया है, जो घरेलू महत्वपूर्ण खनिज उत्पादन और विदेशी आपूर्ति स्रोतों को बढ़ाकर महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने की भारत की रणनीतिक पहल है।

रेयर अर्थ एलिमेंट्स ऐसे खनिज हैं, जो विश्व के ग्रीन और डिजिटल भविष्य के लिए बहुत जरूरी हैं। क्वाड देशों - भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मदद से भारत रेयर अर्थ मेटल्स की खोज, उत्पादन और प्रोसेसिंग को आगे बढ़ा सकता है। इससे भारत दुर्लभ खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बन सकेगा और उसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी और इस मामले में चीन का एकाधिकार तोड़ने में भी सफलता मिलेगी। अभी 1 जुलाई, 2025 को वाशिंगटन डीसी में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव शुरू किया गया है। इसका मकसद लिथियम, कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे खनिजों के लिए सुरक्षित और मजबूत सप्लाई चेन तैयार करना है। इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया शामिल हुए थे। आज के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण खनिज बहुत जरूरी हैं। दरअसल, जैसे-जैसे विश्व की अर्थव्यवस्थाएं स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल तकनीक की ओर बढ़ रही हैं, इन खनिजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। ऐसे ही प्रयासों के चलते भारत निकट भविष्य में दुर्लभ खनिजों के निष्कर्षण एवं उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेगा।

Share This

Click to Subscribe