गरीबी का उन्मूलन केवल सरकारी योजनाओं से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए समाज में समावेशी विकास, शिक्षा का प्रसार, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने की आवश्यकता है। एक समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र का संकल्प और विकास का मंत्र ही इसमें उपयोगी होगा। - अनिल जवलेकर
भारत की गरीबी आजकल चर्चा में है। कहा जा रहा है कि भारत के बहुत सारे लोग आवश्यक वस्तु एवं सेवा के अतिरिक्त खरीदने की क्षमता नहीं रखते। वैसे देखा जाए तो एक जमाना था, जब भारत भीख मांग कर खाता था और भुखमरी भी एक आम समस्या थी। आजकल भुखमरी से कोई मरा है, ऐसा नहीं होता। फिर भी यहाँ एक ऐसा असंतुष्ट वर्ग है जिसे भारत सबसे विकसित देश हो जाने के बाद भी कुछ न कुछ रोने के लिए कारण तलाशता रहेगा। इसका मतलब यह नहीं कि भारत में सब कुछ ठीक-ठाक है। भारत एक विविधतापूर्ण और तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाला देश है। फिर भी यह देश गरीबी और बेरोजगारी जैसी गंभीर सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। देश की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आज भी बुनियादी सुविधाओं जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पानी और पोषण से वंचित है। हालाँकि, सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और नीतियों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन के प्रयास होते रहे हैं और नतीजन भारत की गरीबी की समस्या लगभग समाप्ति की ओर है। लेकिन महंगाई और बेरोजगारी के चलते भारत का गरीब गरीबी रेखा के नीचे-ऊपर होते रहता है। इसलिए इस समस्या को ठीक से समझने की जरूरत है।
आखिर क्या है यह गरीबी?
गरीबी एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति या समुदाय अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। यह केवल आर्थिक संसाधनों की कमी तक सीमित नहीं होती, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पानी, भोजन और सामाजिक अवसरों की कमी भी गरीबी का हिस्सा होती है। गरीबी को आमतौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है - निर्धनता और सापेक्षिक गरीबी। निर्धनता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति के पास जीवित रहने के लिए आवश्यक साधन भी उपलब्ध नहीं होते, जबकि सापेक्षिक गरीबी वह स्थिति होती है जिसमें किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति समाज के अन्य लोगों की तुलना में कमजोर होती है। भारत में सभी प्रकार की गरीबी संख्यात्मक दृष्टि से कम हो रही है। लेकिन गरीबी से बाहर आए लोगों का हाल बहुत अच्छा है, ऐसा नहीं कह सकते।
गरीबी का मापन
भारत में गरीबी मापने के लिए कुछ मानक तय किए गए हैं, जिनके आधार पर यह निर्धारित किया जाता है कि कोई व्यक्ति गरीब है या नहीं। गरीबी को मापने के लिए मुख्य रूप से गरीबी रेखा का उपयोग किया जाता है, जो न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के आधार पर तय की जाती है। भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण समय-समय पर विभिन्न समितियों द्वारा किया गया है। अंतिम बार गरीबी रेखा का निर्धारण वर्ष 2014 में रंगराजन समिति द्वारा किया गया था और इस समिति के अनुसार, वर्ष 2011-12 में गरीबी रेखा की परिभाषा ग्रामीण क्षेत्र के लिए प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 972 रूपये से कम और शहरी क्षेत्र के लिए प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 1,407 रूपये से कम तय की गई थी। वर्तमान में, भारत में गरीबी रेखा का आधिकारिक निर्धारण नहीं किया गया है। हालांकि, विश्व बैंक ने वर्ष 2017 में प्रति व्यक्ति प्रति दिन $2.15 (आज लगभग 190 रू.) की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा निर्धारित की थी।
गरीबी कम हुई है
इन आंकड़ों के आधार पर, वर्ष 2011-12 में भारत की 29.5 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे मानी गई थी। भारत में पिछले दशक में गरीबी दर में उल्लेखनीय कमी आई है। भारत की कुल गरीबी दर 2011-12 में 29.5 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 4.0 प्रतिशत हो गई। यह 25.5 प्रतिशत अंकों की तेज गिरावट को दर्शाता है, जो राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। उत्तर भारत को देखा जाए तो सबसे अधिक गरीबी में कमी राजस्थान (21.8 प्रतिशत से 4.8 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (40.0 प्रतिशत से 3.5 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (47.5 प्रतिशत से 6.0 प्रतिशत) में देखी गई। सबसे कम गरीबी दर हिमाचल प्रदेश (11.0 प्रतिशत से 0.1 प्रतिशत) और पंजाब (11.3 प्रतिशत से 0.2 प्रतिशत) में रही। दिल्ली (0.8 प्रतिशत), हरियाणा (0.9 प्रतिशत) और जम्मू-कश्मीर (2.0 प्रतिशत) में गरीबी दर मध्यम स्तर पर बनी हुई है। एक प्रमुख अवलोकन यह है कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। पूर्वी भारत में 2023-24 में झारखंड (12.5 प्रतिशत) और ओडिशा (5.1 प्रतिशत) में सबसे अधिक गरीबी दर रही। बिहार (41.3 प्रतिशत से 4.4 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (30.4 प्रतिशत से 3.6 प्रतिशत) में उल्लेखनीय सुधार हुआ। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (7.7 प्रतिशत से 2.7 प्रतिशत) में सबसे कम गरीबी दर रही।
झारखंड में अभी भी गरीबी दर सबसे अधिक बनी हुई है, जो संकेत देता है कि अन्य पूर्वी राज्यों की तुलना में यहां गरीबी कम करने की गति धीमी रही है। उत्तर-पूर्वी भारत में भी 2023-24 में मणिपुर (7.9 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश (2.2 प्रतिशत) और नागालैंड (2.8 प्रतिशत) में सबसे अधिक गरीबी दर्ज की गई। असम (40.6 प्रतिशत से 3.8 प्रतिशत), मेघालय (24.8 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत) और मिजोरम (27.6 प्रतिशत से 1.0 प्रतिशत) में बड़े सुधार देखे गए। त्रिपुरा (0.1 प्रतिशत) और सिक्किम (0.3 प्रतिशत) में सबसे कम गरीबी दर दर्ज की गई।
उत्तर-पूर्वी राज्यों ने बहुत अच्छी प्रगति की है, विशेष रूप से त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम ने गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है। पश्चिमी भारत की बात की जाए तो 2023-24 में महाराष्ट्र (5.9 प्रतिशत) में गरीबी दर सबसे अधिक रही। गुजरात (27.2 प्रतिशत से 2.7 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (20.1 प्रतिशत से 5.9 प्रतिशत) में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। सबसे कम गरीबी दर दमन और दीव (0.5 प्रतिशत) और गोवा (0.6 प्रतिशत) में रही।
महाराष्ट्र में अभी भी अपेक्षाकृत अधिक गरीबी बनी हुई है, जबकि छोटे केंद्र शासित प्रदेश जैसे दमन और दीव तथा गोवा ने गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है। दक्षिण भारत में 2023-24 में सबसे अधिक गरीबी दर आंध्र प्रदेश (2.0 प्रतिशत) और तमिलनाडु (0.8 प्रतिशत) में रही। कर्नाटक (21.2 प्रतिशत से 1.8 प्रतिशत) और केरल (11.2 प्रतिशत से 1.0 प्रतिशत) में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। सबसे कम गरीबी दर तेलंगाना (0.2 प्रतिशत) और पुडुचेरी (1.6 प्रतिशत) में दर्ज की गई। दक्षिण भारतीय राज्यों में गरीबी दर सबसे कम है, और तेलंगाना, केरल और कर्नाटक ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है।
यह कहा जा सकता है कि 2011-12 से 2023-24 तक सभी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गरीबी दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। उत्तर और पूर्वी राज्यों में बड़ी गिरावट देखी गई है, लेकिन कुछ क्षेत्रों (जैसे झारखंड और ओडिशा) में अभी भी मध्यम स्तर की गरीबी बनी हुई है। दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में गरीबी दर सबसे कम रही है, जो मजबूत आर्थिक विकास को दर्शाता है। उत्तर-पूर्वी राज्यों ने प्रभावशाली सुधार दिखाया है, विशेष रूप से त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम ने गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है। भारत ने गरीबी उन्मूलन में शानदार प्रगति की है, और कुछ राज्यों ने लगभग शून्य गरीबी स्तर हासिल कर लिया है।
आर्थिक विकास ही उपयोगी
सरकार ने गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे कि मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना), प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, जन धन योजना, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना उपयोगी रही है। इन्हीं प्रयासों से गरीबी दर में कमी आई है, गरीबी का उन्मूलन केवल सरकारी योजनाओं से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए समाज में समावेशी विकास, शिक्षा का प्रसार, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने की आवश्यकता है। एक समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र का संकल्प और विकास का मंत्र ही इसमें उपयोगी होगा।