स्वदेशी केवल एक आर्थिक नीति नहीं है, बल्कि भारत के लिए एक सांस्कृतिक, तकनीकी और रणनीतिक दृष्टि भी है। 1905 में औपनिवेशिक शोषण से लड़ने से लेकर विश्व व्यापार संगठन के नियमों को चुनौती देने और आज के वैश्विक डिजिटल प्रभुत्व तक, स्वदेशी की भावना महत्वपूर्ण बनी हुई है। स्वदेशी भारत की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता को स्थापित करती है।
स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के अखिल भारतीय संगठक कश्मीरी लाल ने “वैश्वीकरण का संकट और स्वदेशी का उदय“ विषय पर एक गोलमेज चर्चा में बोलते हुए कहा कि “स्वदेशी का दायरा, दृष्टि और अर्थ बहुत विस्तृत हो गया है“। इस कार्यक्रम का आयोजन इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन (आईपीएफ) द्वारा किया गया था और इसका संचालन आईपीएफ के निदेशक डॉ. कुलदीप रत्नू (स्वदेशी पत्रिका के पूर्व संपादक) ने किया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के कई प्रतिष्ठित लोगों ने भाग लिया, जिन्होंने घटते वैश्वीकरण और आत्मनिर्भरता पर नए सिरे से ज़ोर दिए जाने के मद्देनजर स्वदेशी आंदोलन के ऐतिहासिक विकास, वर्तमान महत्व और भविष्य की दिशा पर चर्चा की।
यह चर्चा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वदेशी उत्पाद खरीदने की अपील की पृष्ठभूमि में आयोजित की गई थी। इस संबंध में, कश्मीरी लाल ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका की व्यापार नीतियों में अचानक आए बदलाव को देखते हुए सभी देशों के लिए आत्मनिर्भरता के मुद्दे पर विचार-विमर्श करना ज़रूरी हो गया है। उनके अनुसार, स्वदेशी आज भी शोषण का विरोध करने और स्वतंत्रता की स्थापना की उसी स्थायी भावना में निहित है, लेकिन अब इसका दायरा साइबर सुरक्षा, स्वदेशी हथियार, डेटा संप्रभुता और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे व्यापक क्षेत्रों तक विस्तृत हो गया है।
स्वदेशी के विकसित होते दायरे पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ गांधीजी के काल में स्वदेशी का तात्पर्य केवल वस्त्रों से था, वहीं आज यह बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), माइक्रोचिप्स, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक विस्तृत हो गया है-जिसका प्रतीक चंद्रयान जैसी उपलब्धियाँ हैं। “आज स्वदेशी के बारे में हमारी समझ काफ़ी व्यापक हो गई है। गांधीजी के समय में हम वस्त्रों को स्वदेशी होने पर ज़ोर देते थे, और अब हम चंद्रयान के स्तर तक पहुँच गए हैं। पहले हम आलू के चिप्स जैसे स्वदेशी स्नैक्स बनाने की बात करते थे; अब हम स्वदेशी माइक्रोचिप्स बनाने की बात करते हैं।“
उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि युद्ध के तरीके कैसे विकसित हुए हैं, जिससे स्वदेशी आईटी, रक्षा और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का महत्व लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, “पहले हम सूचनाएँ जुटाने के लिए जासूसों पर निर्भर थे; अब हमारे पास तकनीक है। पहले हमें युद्ध लड़ने के लिए सीमा पार करनी पड़ती थी; आज हम अपने घर बैठे ही उन सीमाओं के पार ड्रोन भेज सकते हैं। अब हम बिना सीमा पार किए ही अपने दुश्मनों को परास्त कर सकते हैं। इसलिए स्वदेशी हथियारों और प्रणालियों के विकास के साथ स्वदेशी का महत्व और भी बढ़ गया है।“
श्री कश्मीरी लाल ने देश के आत्मनिर्भर भविष्य को आकार देने में भारत के आईटी उद्योग के महत्व पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने भारत के लिए अपनी स्वदेशी आईटी प्रणालियाँ और प्लेटफ़ॉर्म विकसित करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा कि इनके बिना, देश भविष्य की लड़ाइयों के लिए तैयार नहीं होगा, जो डिजिटल क्षेत्र में तेज़ी से लड़ी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत के युवाओं में अपनी तकनीकी प्रतिभा और नवाचार के माध्यम से तेल-समृद्ध देशों की आय के बराबर देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने की क्षमता है।
अपने उद्घाटन भाषण में, डॉ. रत्नू ने आर्थिक रणनीतियों में वैश्विक बदलाव का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया भर के देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं की रक्षा और घरेलू रोज़गार की रक्षा के लिए तेज़ी से अंतर्मुखी हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्वदेशी, जो कभी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र में था, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय नीति के एक केंद्रीय स्तंभ के रूप में फिर से उभरा है।
स्वदेशी पत्रिका के पूर्व संपादक ने याद दिलाया कि स्वदेशी का विचार 19वीं शताब्दी में तब पनपा, जब दादाभाई नौरोजी ने एक मौलिक रचना लिखी जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के ब्रिटिश शोषण का विस्तृत विवरण दिया गया था और आर्थिक महत्व के कई मुद्दे उठाए गए थे। उन्होंने बताया कि औपनिवेशिक शासन की उनकी आलोचना ने इस बात पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी कि क्या विदेशी शक्तियों को भारत के संसाधनों का दोहन जारी रखने की खुली छूट दी जानी चाहिए।
नौरोजी के विचारों को आगे बढ़ाते हुए, लोकमान्य तिलक और अरबिंदो घोष जैसे नेताओं ने स्वदेशी को एक आर्थिक दर्शन और एक राष्ट्रवादी आदर्श, दोनों के रूप में आगे बढ़ाया। डॉ. रत्नू ने कहा, “स्व की भावना स्वदेशी में विकसित हुई, जो आगे चलकर राष्ट्रवाद में परिवर्तित हो गई। इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक बड़ी प्रेरणा प्रदान की।“ उन्होंने आगे कहा कि “स्व“ की अवधारणा भारतीय संस्कृति में निहित है और एक व्यापक एवं गहन सभ्यतागत सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करती है।
उन्होंने याद दिलाया कि महात्मा गांधी ने चरखे को हथियार बनाकर और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान करके इसे एक नई दिशा दी। इसके साथ ही, ज़्यादा लोगों ने स्वदेशी कपड़े पहनना शुरू कर दिया और भारत की अपनी आर्थिक नीतियाँ बनाने की ज़रूरत को समझने लगे। आज़ादी के बाद, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास और आयात प्रतिस्थापन में स्वदेशी की अभिव्यक्ति हुई। उन्होंने वैश्विक आर्थिक नियंत्रण के साधन के रूप में टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (गैट) और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टीओ) के उदय का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक शक्तियों ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई है जिसके माध्यम से वे पेटेंट और निवेश के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना चाहती हैं। इसके जवाब में, स्वदेशी जागरण मंच (स्वजाम) ने भारत को पश्चिमी दबावों के आगे झुकने से रोकने और स्वदेशी आंदोलन की निरंतर प्रासंगिकता और आवश्यकता के बारे में भारतीयों में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किया।
आज, जब दुनिया वैश्वीकरण के रुझानों में उलटफेर देख रही है, तब भारत का स्वदेशी का पुनरुत्थान समयानुकूल और रणनीतिक दोनों है। उन्होंने कहा, “आज, हम विश्व स्तर पर चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति हैं, लेकिन एक बार फिर ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि जिन ताकतों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया था, उसने अचानक 180 डिग्री का मोड़ ले लिया है और अब राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद की वकालत कर रही है। इसने अपनी अर्थव्यवस्था और रोज़गार की रक्षा के लिए उच्च शुल्क लगाना शुरू कर दिया है, जिससे वैश्विक आर्थिक व्यवस्था अस्थिर हो रही है।“
इसके बाद हुई चर्चा में, डॉ. रत्नू ने पूछा कि क्या स्वदेशी पर वर्तमान ज़ोर राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ़ और वैश्विक संरक्षणवाद की अचानक प्रतिक्रिया है या किसी सुनियोजित दृष्टिकोण का हिस्सा है। श्री कश्मीरी लाल ने उत्तर दिया कि यह रणनीतिक है, प्रतिक्रियात्मक नहीं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अपने व्यापक शासन अनुभव का लाभ उठाते हुए, राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और वोकल फ़ॉर लोकल जैसी पहलों के माध्यम से लंबे समय से स्वदेशी के पक्ष में हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब अमेरिका ने यह घोषणा करके अपनी सनक दिखाई थी कि उन्हें अपने देश में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “इसलिए 2014 में सत्ता में आने से पहले ही, वे अमेरिका के तौर-तरीकों से अच्छी तरह वाकिफ थे। 2014 में सत्ता में आते ही, प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया भर में भारत के मूल्यों के बारे में जागरूकता फैलाना शुरू कर दिया।“
श्री कश्मीरी लाल ने बताया कि 7 अगस्त 2015 से स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1905 में इसी दिन हुई थी। उन्होंने आगे बताया कि प्रधानमंत्री के प्रयासों के कारण अब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कैसे भारत ने दो वैक्सीन सफलतापूर्वक निर्मित कीं, जबकि पश्चिमी देशों ने उन्हें उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया था, जिससे देश की आत्मनिर्भरता की क्षमता का प्रदर्शन हुआ।
प्रधानमंत्री के मन की बात संबोधनों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने बताया कि आत्मनिर्भरता और स्वदेशी बार-बार दोहराए जाने वाले विषय रहे हैं। ‘अब समय आ गया है कि ’मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़कर ’मेड बाय इंडिया’ और ’मैन्युफैक्चर्ड बाय इंडियंस’ की वकालत की जाए।’ इस दौरान स्वदेशी शोध संस्थान का प्रतिनिधित्व कर रहे श्री अनिल शर्मा ने रक्षा निर्माण में भारत की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला।
चर्चा में, डॉ. रत्नू ने प्रश्न उठाया कि क्या स्वदेशी के लिए वर्तमान आह्वान उसी भावना से प्रेरित हैं जो उस समय थी जब यह आंदोलन पहली बार ब्रिटिश शोषण के खिलाफ और बाद में विश्व व्यापार संगठन द्वारा लगाए गए नियमों के खिलाफ शुरू किया गया था।
श्री कश्मीरी लाल ने जवाब दिया कि बंगाल में 1905 के स्वदेशी आंदोलन को वर्तमान चक्र का पहला कदम माना जा सकता है। उन्होंने टिप्पणी की, “स्वदेशी की भावना वही है। यह शोषण और गुलामी की मानसिकता के खिलाफ है। 1905 में, जब बंगाल पर विभाजन थोपा गया था, लाल, बाल और पाल के नेतृत्व में हुई क्रांति दुनिया की सबसे महान क्रांतियों में से एक थी, क्योंकि यह एक ऐसी आधिपत्य वाली शक्ति के खिलाफ खड़ी हुई थी जिसके बारे में कहा जाता था कि सूरज कभी अस्त नहीं होता।“
उन्होंने कहा कि आज का माहौल भारत के लिए इस आंदोलन को आगे बढ़ाने और स्वदेशी ताकत में निहित वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी जगह सुरक्षित करने के लिए अनुकूल है। इस बार सरकार और जनता मिलकर स्वदेशी का समर्थन कर रहे हैं। इसलिए इस आंदोलन की सफलता निश्चित है।“
प्रतिभागियों ने भारतीय स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश और गूगल, फेसबुक और अमेज़न जैसे वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के प्रभुत्व पर चिंता जताई। डॉ. रत्नू ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठायाः आर्थिक संप्रभुता पर चर्चा करते समय, क्या स्वदेशी की परिभाषा केवल बाज़ार में बिकने वाली चीज़ों तक ही सीमित होनी चाहिए, या इसका दायरा व्यापक आयामों तक बढ़ाया जाना चाहिए?
श्री कश्मीरी लाल ने कहा कि किसी व्यवसाय को स्वदेशी माने जाने के लिए तीन आवश्यक शर्तें हैंः 1. मालिक भारतीय होना चाहिए। 2. व्यवसाय में प्रमुख शेयरधारक भारतीय होने चाहिए। 3. रॉयल्टी और लाभ भारत के भीतर ही रहने चाहिए। उन्होंने यह भी आगाह किया कि किसी को मार्केटिंग के बहकावे में नहीं आना चाहिए, इसके लिए उन्होंने कोलगेट नामक एक विदेशी कंपनी का उदाहरण दिया, जो वेदशक्ति जैसे भारतीय उत्पादों के नाम से टूथपेस्ट बेचती है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भाषा, पहनावा, औषधियाँ और जीवनशैली, सभी में स्वदेशी की भावना झलकनी चाहिए और हमारे त्यौहारों को भी उसी भावना के साथ मनाना उतना ही ज़रूरी है।
डॉ. के.बी. हेडगेवार के शब्दों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि “हमारी टोपी स्वदेशी होनी चाहिए, लेकिन हमारा मन भी स्वदेशी होना चाहिए।“
श्री कश्मीरी लाल ने श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा श्री डेविड मैककॉर्ड राइट को उद्धृत करते हुए याद दिलाया कि उन्होंने कहा था कि “आर्थिक विकास को गति देने वाले मूलभूत कारक गैर-आर्थिक और गैर-भौतिकवादी प्रकृति के हैं।”
इस प्रश्न पर कि क्या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, जिनके पुर्ज़े आयात किए जाते हैं लेकिन अंतिम उत्पाद भारत में ही बनाए जाते हैं, को स्वदेशी वस्तु माना जाना चाहिए, श्री कश्मीरी लाल ने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के समय में भी यही प्रश्न उठा था। उन्होंने कहा था कि “हम अपनी पसंद से देसी हैं“ और इसलिए हमें अपने इलाके के सबसे नज़दीक उत्पादित वस्तुओं को खरीदने का सचेत प्रयास करना चाहिए, जो वोकल फ़ॉर लोकल अभियान का सार भी है।
उन्होंने कहा कि यदि कुछ उत्पाद स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हैं, तो बड़े भारतीय ब्रांडों की ओर रुख करना चाहिए, लेकिन यदि कुछ भारत में पूरी तरह से अनुपलब्ध है, तो विदेशी सामान खरीदना अपरिहार्य हो जाता है। हालाँकि, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि लक्ष्य इसे आदत बनाना नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी आवश्यक वस्तुओं का घरेलू स्तर पर उत्पादन करने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने एक छात्र और डॉ. के.बी. हेडगेवार के बीच हुई बातचीत का भी ज़िक्र किया, जिसमें छात्र ने पूछा था कि क्या चश्मा पहनना चाहिए, क्योंकि उस समय भारत में लेंस नहीं बनते थे। डॉ. हेडगेवार ने जवाब दिया कि अच्छी दृष्टि ज़रूरी है, इसलिए चश्मा पहनना ज़रूरी है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि फैशनेबल रंगीन चश्मों के आयात से बचा जा सकता है, जो ज़रूरी नहीं थे।
श्री कश्मीरी लाल ने आगे कहा कि यदि भारत तकनीक का आयात कर रहा है, तो उसे चीन और जापान के उदाहरणों का अनुसरण करते हुए मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत को सबसे पहले संपूर्ण एफएमसीजी क्षेत्र को स्वदेशी बनाने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें उन्नत तकनीक की आवश्यकता नहीं होती और इसे आसानी से स्थानीयकृत किया जा सकता है।
ई-कॉमर्स दिग्गजों द्वारा छोटे व्यवसायों को कमज़ोर करने, बड़ी पूंजी वाली कंपनियों द्वारा भारी छूट का लालच देकर आकर्षिक करने, तथा डाटा संप्रभुता के सवाल पर भी बेबाक टिप्पणी की। उन्होंने श्री श्रीधर वेम्बू का हवाला दिया, जिन्होंने ज़ोहो और अराटाई ऐप जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म लॉन्च किए हैं। श्री कश्मीरी लाल ने देश के युवाओं से इस मिशन को आगे बढ़ाने और भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता को मजबूत करने की दिशा में काम करने का आह्वान किया।
अगले कदमों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए, श्री कश्मीरी लाल ने पाँच मुख्य क्षेत्रों पर जोर दियाः 1. रेहड़ी-पटरी वालों और दुकानदारों को प्रोत्साहित करना और उन्हें स्वदेशी आंदोलन के बारे में जागरूक बनाना। 2. स्कूलों में स्वदेशी जागरूकता ले जाना ताकि छोटी उम्र से ही आत्मनिर्भरता का विचार उनमें पैदा हो सके। 3. व्यापक सामुदायिक भागीदारी के लिए सामाजिक समूहों को शामिल करना। 4. संदेश को प्रभावी ढंग से फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना। 5. भविष्य के लिए इसकी निरंतरता और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए युवाओं को इस आंदोलन में शामिल करना।
स्वदेशी केवल एक आर्थिक नीति नहीं है, बल्कि भारत के लिए एक सांस्कृतिक, तकनीकी और रणनीतिक दृष्टि भी है। 1905 में औपनिवेशिक शोषण से लड़ने से लेकर विश्व व्यापार संगठन के नियमों को चुनौती देने और आज के वैश्विक डिजिटल प्रभुत्व तक, स्वदेशी की भावना महत्वपूर्ण बनी हुई है... भारत की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता को स्थापित करती है।