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ट्रंप के टैरिफ टेरर से देश को उबारेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत के लिए सक्षम और समृद्ध गांव जरूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों ने दुनिया के अन्य देशों के साथ-साथ भारत को भी हलकान किया है, लेकिन भारत गांवों का देश है और भारत के गांव हर परिस्थिति में देश को संभालने में सक्षम है। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

अमरीकी गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के बाद सभी भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी आयात शुल्क बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है। भारत के अलावा ब्राज़ील एकमात्र अमेरिकी व्यापारिक साझेदार है जिसे 50 प्रतिशत आयात शुल्क का सामना करना पड़ रहा है। इस घटनाक्रम के बादभारतीय शेयर बाजार में चौतरफा बिकवाली और कमजोर वैश्विक रुझान से निवेशकों की धारणा कमजोर हुई है। दरअसल भारत और अमेरिका के बीच अंतरिम व्यापार समझौते पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। अमेरिका भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्र में प्रवेश चाहता है, लेकिन भारत ने इससे साफ इनकार कर दिया। भारत के इनकार के बाद ट्रंप ने भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने को बहाना बनाकर यहां 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क थोपा है। जानकारों का मानना है कि अमेरिका अतिरिक्त शुल्क थोप कर भारत पर कूटनीतिक और व्यापारिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र में कोई समझौता नहीं करेगा क्योंकि भारत के लिए किसानों के हित सर्वोपरि है। अब भारत आत्मनिर्भरता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर मौजूदा चुनौतियों से निपटने की और कदम बढ़ा रहा है। देश के ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी आर्थिक को सुधारने की बात आर्थिक हलकों में प्रमुखता से रेखांकित की जा रही है।

विश्व भर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मनमाने व्यापार शुल्क को लेकर जो हाय-तौबा मची है उससे विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा और मंजिल दोनों को लेकर कई तरह के विमर्श और संकटों की बात हो रही है। यह सारी बातें भविष्य की चिंता से तो जुड़ी ही है, अतीत के अनुभवों को लेकर भी कई एक बातें साफ हुई है। भारत की बात करें तो हमारे यहां खास तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर उदारीकरण के दौर में जिस तरह की नीतिगत समझ बननी चाहिए थी वैसी नहीं बन सकी थी। इस कारण लंबे समय तक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा भारत का ग्रामीण क्षेत्र गंभीर उपेक्षाओं का शिकार रहा। आज जब रोजी रोजगार, आत्मनिर्भर भारत, स्वावलंबन की बात प्राथमिकता के साथ बहस के केंद्र में है तो देश के ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी आर्थिकी को भी नए सिरे से सुधारने की चिंता संतुलनकारों में दिख रही है।

मालूम हो कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 69 प्रतिशत आबादी ग्रामीण अंचल में रहती है। शहरीकरण के जोर के बावजूद नीति आयोग का अनुमान है कि 2045 में भी यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से ऊपर ही रहेगा। आवधिक श्रम बाल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 में बताया गया है कि ग्रामीण रोजगार मुख्य रूप से 54 प्रतिशत स्वरोजगार तथा 26 प्रतिशत आकस्मिक श्रम पर टिका है। ग्रामीण श्रमिकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (58.5 प्रतिशत) कृषि में लगा हुआ है जो आमतौर पर मौसमी रोजगार ही प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में वेतन भोगी नौकरियां कुल कार्य बल का महज 11 प्रतिशत ही है। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का सबसे बड़ा आधार वहां के लोगों के आय विकल्पों में सुधार ही है। सुखद है कि इस दिशा में देश की केंद्र तथा राज्य सरकारें सजगता के साथ सकारात्मक कदम बढ़ा रही हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार का 25 करोड लोगों को गरीबी से बाहर निकलने का तथ्य जगजाहिर है। इसकी तस्दीक संयुक्त राष्ट्र संघ में भी कर चुका है। 25 करोड लोगों के गरीबी रेखा से बाहर निकलने का सबसे चमकदार पक्ष उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे वे राज्य हैं जहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहता है। यह दोनों ऐसे राज्य हैं जो बीमारू के नाम पर लंबे दौर तक गांव के पिछड़ेपन के कारण नीची निगाह से देखे जाते रहे हैं। बीते एक दशक में गरीबी उन्मूलन का सर्वाधिक लाभ इन्हीं दोनों प्रदेशों में हुआ है।

गौरतलब है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सुधार की शुरुआत वर्ष 2014 में ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ से हुई थी। इसके तहत अब तक देश में कुल 55 करोड़ से अधिक बैंक खाता खोले जा चुके हैं जिनमें से 56 प्रतिशत खाते महिलाओं के हैं। 10 जून 2025 तक इन खातों में कुल जमा राशि 2.51 लाख करोड रुपए से अधिक हो चुकी है। वित्तीय समावेशन की इस कवायद का नतीजा है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में बचत और बीमा को लेकर जागरूकता आई है, वहीं वे वित्तीय लाभ के दूसरे विकल्पों को भी अब आसानी से आजमाने लगे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लोग शेयर बाजार की ओर भी उन्मुख हुए हैं। कोरोना महामारी से पहले डीमैट और म्युचुअल फंड खातों की संख्या 5 करोड़ थी जो अब लगभग बढ़कर 13 करोड़ के आसपास हो चुकी है। हालांकि इसमें भारी संख्या में भागीदारी शहरी खाता धारकों की है लेकिन माना जा रहा है कि ग्रामीण रुझानों के कारण ही बाजार का आकार बड़ा हुआ है।

देश में शेयर और फंड मार्केट में हिस्सेदारी की बात करें तो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की 5 वर्षों में डीमैट खाता धारकों की संख्या के अध्ययन के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2025 में सबसे ज्यादा 186 लाख इक्विटी निवेशक महाराष्ट्र में है जबकि दूसरे स्थान पर 130 करोड़ निवेशकों के साथ उत्तर प्रदेश है। वित्तीय वर्ष 2020 की तुलना में 2025 में महाराष्ट्र में 214.25 प्रतिशत वृद्धि दर्ज कराई है, वही उत्तर प्रदेश में 471.2 प्रतिशत की छलांग लगाई है। इन सब के बीच इस मोर्चे पर जिस प्रदेश के लोगों में दिलचस्पी जागी है उसका नाम है बिहार प्रदेश। बिहार में वित्तीय वर्ष 2020 में महज 7 लाख बाजार निदेशक थे, पर यह आंकड़ा अब 53 लाख के आसपास पहुंच गया है, यानी 689.2 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि दर। बिहार में हुए इस युगांतरकारी परिवर्तन के पीछे सबसे बड़ा हाथ बिहार की महिलाओं का है। वर्तमान में बिहार में 6389 जीविका बैंक सखियां ग्रामीणों को बैंक से जुड़े कार्य उनके घर-द्वार पर ही उपलब्ध करा रही हैं।

केंद्र की सरकार ने हाल ही में फैसला लिया है कि अब डाकघर के जरिए भी म्युचुअल फंड खरीदे जा सकेंगे। इसके लिए डाक विभाग और एसोसिएशन आफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया के बीच एक करार हुआ है। इस करार का मुख्य उद्देश्य देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है यह समझौता 3 वर्ष के लिए हुआ है जो अगस्त 2028 तक लागू रहेगा। सरकार का यह कदम अपनी रूपरेखा और संकल्पना में कितना अच्छा है यह इस बात से समझा जा सकता है कि पंचायती राज मंत्रालय ने ग्रामीणों को सुरक्षित और लाभकारी निवेश के प्रति जागरूक करने के लिए सेबी के साथ अभियान की चरणवार रूपरेखा तैयार की है। अभियान के तहत सबसे पहले 6 राज्यों में 3874 मास्टर ट्रेनर का एक नेटवर्क स्थापित किया जाएगा। इस कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक पहुंचाने की योजना है। डाकघर के जरिए तमाम तरह की बचत और बीमा सुविधाओं के साथ म्युचुअल फंड की बिक्री शुरू होगी तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखंड जैसे राज्य के ग्रामीण अंचल में समृद्धि और खुशहाली रफ्तार के साथ लौटेगी।

आत्मनिर्भर भारत के लिए सक्षम और समृद्ध गांव जरूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों ने दुनिया के अन्य देशों के साथ-साथ भारत को भी हलकान किया है, लेकिन भारत गांवों का देश है और भारत के गांव हर परिस्थिति में देश को संभालने में सक्षम है। बेशक अमेरिका से निर्यात के मोर्चे पर चुनौती खड़ी हुई है लेकिन भारत के सामने विकल्पों की कमी नहीं है। भारत को अमेरिका से बाहर नए बाजार तलाशने होंगे जिसका काम सरकार के स्तर पर शुरू भी हो चुका है। ऐसे में जरूरी है कि भारत रूस के साथ नई रणनीति के साथ आगे बढ़े और जरूरत पड़ने पर पलटवार की नीति भी अख्तियार करे। भारत तत्काल चुनिंदा वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ लगाने की स्थिति में है। प्रभावित क्षेत्रों को घरेलू स्तर पर प्रोत्साहन देकर मजबूत किया जा सकता है। बहरहाल चुनौती बड़ी है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता ग्रामीण भारत में है।      

 

(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी रहे हैं)

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