सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन दोनों ही भारतीय चिंतन की ऐसी धरोहरें हैं जो आज भी समाज और राष्ट्र के लिए मार्गदर्शन देने में सक्षम हैं। - अनिल जवलेकर
भारतीय विचार प्रवाह में सितंबर महीना महत्व का है क्योंकि इस माह में ऐसे दो व्यक्ति ने जन्म लिया जिन्होंने भारतीय विचार को आधुनिक मोड़ दिया। एक थे विनोबा भावे और दूसरे पंडित दीनदयाल उपाध्याय। वैसे विनोबाजी दीनदयाल जी से क़रीब 20 वर्ष से बड़े थे और दीनदयालजी के बाद लगभग 14 वर्ष ज्यादा जिंदा रहे। लेकिन दोनों के विचारों ने स्वतंत्र भारत की सभी सामाजिक आर्थिक नीतियों को प्रभावित किया है। विनोबाजी ने महात्मा गांधी के विचारों को स्पष्ट करते हुए सर्वोदय विचार को रखा और दीनदयालजी ने एकात्म मानव दर्शन को। दोनों ने भौतिकवादी साम्यवाद को नकारा और भारतीय प्राचीन सभ्यता एवं दर्शन को आधार बनाकर अपने विचार रखे। इसलिए यह एक बड़ा योगदान रहा और इस पर समन्वयात्मक चर्चा होनी चाहिए।
विनोबाज़ी और दीनदयाल जी - व्यक्तित्व और कार्य
विनोबा भावे (1895-1982) का जन्म महाराष्ट्र के एक गाँव में हुआ। वे एक साधारण ब्राह्मण परिवार से थे और जीवनभर अविवाहित रहकर उन्होंने तपस्वी, सादगीपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन जिया। बीस-इक्कीस वर्ष की आयु में उनकी गांधीजी से भेंट हुई और जीवनभर उन्होंने गांधीजी के शिष्य और उत्तराधिकारी के रूप में गांधीजीके विचारों को स्पष्ट किया और प्रचार किया। गांधीवाद को स्पष्ट करते हुए उन्होंने सर्वोदय का विचार दिया। भूदान व ग्रामदान आंदोलनों के माध्यम से सर्वोदय के सिद्धांतो को प्रत्यक्ष उतारनेकी कोशिश भी की। उनके गीता प्रवचन और अन्य वैचारिल साहित्य ने उन्हें नैतिक-आध्यात्मिक नेता के रूप में भी प्रतिष्ठित किया। दूसरी ओर पंडित दीनदयाल उपाध्याय (1916-1968) का जन्म उत्तर प्रदेश के एक गांव में हुआ और बचपन में ही अनाथ हो जाने के बावजूद वे गहन चिंतक, संगठनकर्ता और राष्ट्रभक्त बने। वे भी 20-21 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संपर्क में आए और अविवाहित रहकर अपना जीवन राष्ट्रसेवा को समर्पित किया। संघ की प्रेरणा से ही भारतीय जनसंघ के संगठन को मजबूत किया। संघटन को दिशा देने हेतु ही 1965 में उन्होंने एकात्म मानववाद का दर्शन प्रतिपादित कर राजनीति में भारतीय संस्कृति और नैतिकता को जोड़ा। पत्रकारिता के क्षेत्र में पांचजन्य और राष्ट्रधर्म जैसे पत्रों का संपादन कर इस विचार को प्रसारित किया। जहाँ विनोबा भावे ने समाज और ग्रामीण जीवन में नैतिक जागृति लाने का कार्य किया, वहीं दीनदयाल उपाध्याय ने राजनीति और शासन को भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि से जोड़कर राष्ट्र जीवन को दिशा देने का प्रयास किया। आज विनोबाजी का सर्वोदयवाद लगभग भुलादिया गया है लेकिन भारतीय जनता पक्ष ने एकात्म मानव दर्शन को आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है और अमल में लाने की कोशिश में है।
क्या है सर्वोदय विचार और एकात्म मानव दर्शन
सर्वोदय विचार महात्मा गांधी के रामराज्य की कल्पना द्वारा प्रतिपादित और बाद में विनोबा भावे द्वारा विकसित एक समग्र सामाजिक दर्शन है, जिसका अर्थ है सबका उदय या सबका कल्याण है। इसमें समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति तक सुख और सुरक्षा पहुँचाना ही प्रगति की कसौटी मानी जाती है। इसके मूल सिद्धांत हैं - अहिंसा और सत्य पर आधारित जीवन, आर्थिक व सामाजिक समानता, ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भरता, संपत्ति पर न्यासत्व (ट्रस्टीशिप), तथा सबको समान अवसर व सम्मान देना। भूदान, ग्रामदान और संपूर्ण क्रांति जैसे आंदोलनों के माध्यम से सर्वोदय को व्यवहार में उतारने का प्रयास किया गया। एकात्म मानव दर्शन पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी द्वारा प्रतिपादित एक मौलिक जीवनदर्शन है, जिसका उद्देश्य समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए संतुलित दृष्टिकोण देना है। इसमें मनुष्य को केवल आर्थिक प्राणी या राजनीतिक प्राणी मानने के बजाय उसके चारों आयामों - शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा, का समन्वय मान्यता प्राप्त है। यह दर्शन व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन पर बल देता है और विकास को केवल भौतिक उन्नति तक सीमित न रखकर नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन से जोड़ता है। इसका मूल संदेश है कि राष्ट्र एक जीवंत इकाई है, और नीतियों का उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक सुख-सुविधा पहुँचाना होना चाहिए, ताकि व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र - सभी का सामंजस्यपूर्ण विकास हो सके।
सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन-एक ही सिक्के के दो पहलू
सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन दोनों का लक्ष्य सबका कल्याण है, और दोनों की दृष्टि में थोड़ा ही अंतर है। सर्वोदय महात्मा गांधी और विनोबा भावे का विचार है, जो अहिंसा, सत्य, न्यासत्व (ट्रस्टीशिप), भूदान-ग्रामदान और ग्राम स्वराज पर आधारित होकर समाज के हर वर्ग, विशेषकर गरीब और वंचित के उत्थान पर केंद्रित है। दूसरी ओर, एकात्म मानव दर्शन पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नीति प्रधान विचार है, जो व्यक्ति के चारों आयामों-शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा, के संतुलित विकास को आवश्यक मानता है और राष्ट्र को एक जीवंत सांस्कृतिक इकाई मानकर स्वदेशी अर्थनीति तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बल देता है। इसमें भी अंत्योदय का विचार सम्मिलित है। सर्वोदय सामाजिक आंदोलन को माध्यम बनाकर सामाजिक-आर्थिक सुधार की दिशा देना चाहता है, जबकि एकात्म मानव दर्शन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के समग्र विकास का वैचारिक दर्शन प्रस्तुत करता है और राजनैतिक तौर पर नीति अपनाने की चेष्टा करता है। आज का ‘सबका साथ सबका विकास’ दोनों का समन्वय करता दिखता है।
दोनों विचारों की आज की स्थिति
यह सही है कि सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन दोनों ही भारतीय समाज और राजनीति में अलग-अलग रूपों से प्रभाव डाला हैं। विनोबाजी के देहांत के बाद सर्वोदय विचार पर बात कम ही होती है। लेकिन भाजपा तथा संघ परिवार ने दीनदयाल जी के विचार को चर्चा में रखा है। सर्वोदय विचार, जो गांधी जी और विनोबा भावे के भूदान-ग्रामदान, न्यासत्व और ग्राम स्वराज जैसे प्रयोगों पर आधारित था, अब बड़े आंदोलन के रूप में सक्रिय नहीं है लेकिन भारतीय परंपरा और संस्कृति से जुड़ा होने के कारण भारतीय जीवन को आज भी प्रवाहित करता है। आज भी विकास, सामाजिक न्याय, सहकारी आंदोलन, पर्यावरण संरक्षण, स्वावलंबी ग्राम अर्थव्यवस्था और सेवा-आधारित सामाजिक कार्य में सर्वोदय की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। दूसरी ओर, एकात्म मानव दर्शन, जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी ने प्रतिपादित किया, आज भारतीय राजनीति और शासन का प्रमुख वैचारिक आधार बन चुका है। “अंत्योदय”-सबसे अंतिम व्यक्ति तक सुविधाएँ और अवसर पहुँचाने का सिद्धांत-आज जन-धन योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, मुफ्त राशन और ग्रामीण आवास योजनाओं में व्यवहार रूप में उतरा हुआ है। इस दर्शन में व्यक्ति के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलन और राष्ट्र को सांस्कृतिक इकाई मानने का विचार भी शामिल है, जो आज की नीतियों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और समग्र विकास के रूप में प्रकट होता है। इस प्रकार, जहाँ सर्वोदय सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनों और वैकल्पिक विकास मॉडल को दिशा देता रहा है, वहीं एकात्म मानव दर्शन भारत के राजनीतिक-शासन तंत्र को वैचारिक आधार प्रदान कर रहा है।
दोनों का समन्वय आवश्यक
सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन दोनों ही भारतीय चिंतन की ऐसी धरोहरें हैं जो आज भी समाज और राष्ट्र के लिए मार्गदर्शन देने में सक्षम हैं। सर्वोदय हमें अहिंसा, ग्राम स्वराज, न्यासत्व, समान अवसर और सतत विकास की दिशा दिखाता है, जिससे सामाजिक न्याय और पर्यावरण संतुलन सुनिश्चित होता है; वहीं एकात्म मानव दर्शन व्यक्ति के शरीर-मन-बुद्धि-आत्मा के संतुलन और राष्ट्र को जीवंत सांस्कृतिक इकाई मानते हुए “अंत्योदय” अर्थात अंतिम व्यक्ति तक सुविधाएँ पहुँचाने की प्रेरणा देता है। यदि इन दोनों विचारों का समन्वय किया जाए तो एक ओर समाज में नैतिकता, सहयोग और आत्मनिर्भरता को बल मिलेगा और दूसरी ओर राष्ट्रीय नीतियाँ सांस्कृतिक आधार पर सबको समेटने वाली बनेंगी। इस प्रकार, सर्वोदय और एकात्म मानवदर्शन आज भी भारतीय समाज और शासन के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन और संतुलित विकास का आधार प्रस्तुत करते हैं। इसलिए सर्वोदय और एकात्म मानव दर्शन बहुत अलग नहीं है। सर्वोदय राजनीत या सत्ता को विकास का जरिया नहीं मानता जब कि एकात्म मानवदर्शन भारतीय राजनीति का हिस्सा बन गया है। लेकिन यह नहीं भुलाया जा सकता कि भारतीय नीति में दोनों उपयोगी है।ु