स्वदेशी जागरण मंच (स्वजामं) ने कुल प्रजनन दर में ‘तेजी से हो रही गिरावट’ पर चिंता जताई और सरकार सहित सभी लोगों से इस मुद्दे पर ध्यान देने का आह्वान किया। मंच का मानना है कहा कि कुल प्रजनन दर में गिरावट होने से जनसंख्या में ‘खतरनाक असंतुलन’ हो सकता है और इससे देश का विकास भी धीमा पड़ सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भी हाल ही में यह मुद्दा उठाया और कहा कि प्रजनन दर (टीएफआर) में हो रही गिरावट को ‘गंभीरता’ से लिया जाना चाहिए।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने एक बयान में कहा, ‘‘स्वदेशी जागरण मंच कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में तेजी से हो रही गिरावट पर गहरी चिंता व्यक्त करता है। मंच इसका भविष्य में जनसंख्या वृद्धि और हमारे समाज के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी चिंता व्यक्त करता है।’’
मालूम हो कि टीएफआर का तात्पर्य महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की औसत संख्या से है। उन्होंने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच ने जून में लखनऊ में आयोजित अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें घटती प्रजनन दर पर चिंता जताई गई थी।
महाजन ने कहा, ‘‘हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने अपनी जनसंख्या को नियंत्रित रखने की समस्या है, ताकि हमारे विकास प्रयासों में कोई बाधा न आए। हमें यह समझना होगा कि यदि हमनें इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया तो इससे निर्भरता का बोझ बढ़ेगा और जनसंख्या में खतरनाक असंतुलन पैदा हो सकता है, जिससे देश के विकास की गति भी धीमी पड़ सकती है।’’
महाजन ने बताया कि आरएसएस प्रमुख ने भी टीएफआर के 2.0 से नीचे जाने पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा, ‘‘लैंसेट के नवीनतम प्रकाशन में बताया गया था कि भारत की कुल प्रजनन दर 2021 तक घटकर 1.91 रह गई है। साथ ही इसने यह भी अनुमान जताया था कि 2050 तक टीएफआर गिर कर 1.29 हो जाएगी। ’’
महाजन ने कहा, ‘‘हमें इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि सरसंघचालक जी ने कहा था कि यदि किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है। इसलिए, किसी भी स्थिति में टीएफआर 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी आदि में टीएफआर 2.1 से बहुत नीचे पहुंच गई, जिससे उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया।’’ महाजन ने कहा, ‘‘भारत को इन देशों से सीखना चाहिए और कुल प्रजनन दर में हो रही गिरावट को रोकने के लिए कुछ उपाय करने चाहिए।’’
इस बीच स्वदेशी जागरण मंच के राजस्थान सह प्रांत प्रचार प्रमुख राधेश्याम बंसल ने बताया कि 1960 में भारत की फर्टिलिटी रेट 6.0 थी, जो 1990 में घटकर 3.4 और अब 2.1 से नीचे पहुंच गई है। यह गिरावट विकसित देशों की स्थिति की ओर इशारा करती है, जहां कम फर्टिलिटी दर ने सामाजिक और आर्थिक संकट पैदा किए हैं। युवाओं की घटती संख्या से भविष्य में श्रम शक्ति कमजोर होगी, जिससे देश की आर्थिक उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। बढ़ती बुजुर्ग जनसंख्या के कारण युवाओं पर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी बढ़ेगी।
इस क्रम में स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र संयोजक प्रो. दीपक शर्मा ने एक प्रेस वार्ता के दैरान देश की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में लगातार आ रही गिरावट पर चिंता व्यक्त की और कहा कि जनसंख्या हमारा बाधक नहीं बल्कि साधक है। आज के बच्चे ही कल के भविष्य हैं। विकसित भारत के निर्माण में युवाओं की बड़ी भूमिका है। भारत को युवाओं का देश कहा जाता है लेकिन जिस तरह से हमारी युवा पीढ़ियां अपने करियर निर्माण अथवा अन्य कारणों से परिवार बसाने को लेकर विलंब कर रही हैं वह चिंता का विषय है।