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वैश्विक पटल पर भारत का समर्थन

भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ बहुत सशक्त सैन्य शक्ति वाला आत्मनिर्भर देश है। इसलिए बेहतर है कि भारत की ओर कोई आंख उठा कर भी न देखें, यदि हमारी भृकुटी तन गयी तो तांडव हो जायेगा और भूगोल बदल जायेगा। - विनोद जौहरी

 

संप्रति वैश्विक परिदृश्य में ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में पाकिस्तान से उपजे भारत विरोधी विमर्श को विश्व भर में प्रचारित करने के द्वेषपूर्ण समाचार चिंताजनक हैं और तथ्यों के आधार पर उनका तुरंत खंडन और भी आवश्यक। पाकिस्तान के मिथ्या विमर्श विभिन्न विदेशी मीडिया चैनलों में पाकिस्तानी पत्रकारों के कारण तीव्रता से फैले हैं, और उतनी ही तीव्रता से उनका खंडन भारत के विश्व भर में तथ्यात्मक विमर्शों के कारण हुआ है। पाकिस्तान के भीतर से पाकिस्तान की सरकार और सेना के दमन के रोष से उपजे आक्रोश ने भी पाकिस्तानी विमर्श को झुठलाया है। पाकिस्तान की परमाणु बम की धमकी भी मिट्टी में मिल गयी और उसका चीनी सुरक्षा कवच भी धराशाई हो गया। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पाकिस्तानी सरकार और सेना सकते में हैं और उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे देशों से गुहार लगाने के अलावा कुछ नहीं बचा।

जब भी ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा हो, तो उस चर्चा का आरंभ 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान की सेना द्वारा भेजे गए आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में धर्म पूछकर हिंदु पर्यटकों की हत्या की चर्चा पहले होनी आवश्यक है। 

विश्व भर में भारत विरोधी मीडिया का विमर्श ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को पीड़ित और भारत को आक्रांता के रूप में परिलक्षित करने का है। इस षड्यंत्र का एक अंश और दंश हमारे एक विशिष्ट राजनीतिक वर्ग में व्याप्त है जो भारत को पराजित दिखाने और भारतीय सेना पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहा है और विदेशी मीडिया के भारत विरोधी विमर्श को ही भारत में आगे बढ़ा रहा है। 

वास्तविकता यह है कि विश्व भर में अमेरिका और रूस सहित 123 देशों ने भारत का समर्थन किया है और पहलगाम में आतंकवादी हमलों की निंदा की है और ये सभी देश ऑपरेशन सिंदूर पर भारत के पक्ष में खड़े हैं। 

चीन, तुर्किये और अज़रबैजान ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का साथ दिया है। अमेरिका के संदर्भ में पाकिस्तान सरकार के प्रधानमंत्री और नेता एवं मीडिया स्वयं अमेरिका की ओर से मध्यस्थता की बात कर रहे हैं और साथ ही यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के मात्र अड़तालीस घंटों में पाकिस्तानी का रक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के ध्वस्त होने, भारी संख्या में पाकिस्तानी आतंकवादियों की मृत्यु और नौ बड़े आतंकी लांच पैड के नष्ट होने से तिलमिलाया पाकिस्तान अमेरिका से युद्ध विराम कराने की गुहार लगा रहा था।

पाकिस्तान के संदर्भ में चीन और अमेरिका की गुत्थी बहुत उलझी हुई है। इस समय पाकिस्तान सरकार, नेता और मीडिया अमेरिका के भरोसे ही अपनी रक्षा की दुहाई दे रहे हैं और चीन पाकिस्तान में भारतीय मिसाइलों, एअर डिफेंस सिस्टम, सेना के तीनों अंगों की संयुक्त कमान और आक्रामक कार्यवाही से अपने आधुनिकतम रक्षा प्रणालियों के असफल होने से तिलमिलाया हुआ, पाकिस्तान में सीपैक और विभिन्न परियोजनाओं में भारी निवेश के कारण पाकिस्तान के साथ खड़ा है और भारत के भू-भाग पर अनधिकृत कब्जे को लेकर और पाक अनधिकृत काश्मीर पर सीपैक को लेकर चिंता के कारण भारत विरोध उसकी विवशता है। तुर्किये मुस्लिम देशों का खलीफा बनने का महत्वाकांक्षी हैं और अज़रबैजान उनका पिछलग्गू। पूर्व में भारत द्वारा अज़रबैजान के शत्रु देश अर्मेनिया को भारत ने समर्थन दिया था, इसी कारण अज़रबैजान का भारत विरोध उसकी ही परिणति है। 

अफगानिस्तान की भारत से निकटता के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने आतंकी देश पाकिस्तान को आतंक नियंत्रण की समिति का दायित्व सौंपा है जो निरर्थक है, क्योंकि अफगानिस्तान पाकिस्तान का धुर विरोधी है और दोनों देश आपसी सीमा विवादों में खूनी संघर्ष कर रहे हैं। 

दूसरी तरफ विभिन्न देशों में अमेरिकी टैरिफ व्यवस्था को लेकर विरोध है। चीन के विस्तारवादी और संरक्षणवादी व्यवहार को लेकर उसका अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ विरोध है। इसमें बांग्लादेश का कोण भी प्रासंगिक हैं जो अपने भयंकर संकट में पाकिस्तान के सहारे भारत विरोधी व्यवहार दिखा रहा है। अमेरिका परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान को चीन को टक्कर देने और उसका विरोध करने के उद्देश्य से अपने प्रभाव में लाने के लिए उत्सुक हो सकता है परंतु यह सब घटनाक्रम इतना उलझा हुआ और क्षणिक है कि प्रमाणिक रूप से अमेरिका के संदर्भ में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। 

भारत ने विभिन्न देशों में अपने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे जिन्होंने राष्ट्र धर्म निभाते हुए विश्व के सामने भारत का पक्ष रखा और पाकिस्तान द्वारा आतंकी हमलों और आपरेशन सिंदूर के तथ्यों को उनके सामने रखकर पाकिस्तान के दुष्प्रचार को ध्वस्त किया। अब यह प्रतिनिधिमंडल विदेशी यात्राओं से वापस आकर और भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट दे दिए हैं। 

समानांतर रूप से पाकिस्तान ने भी अपने प्रतिनिधिमंडल कुछ देशों में भेजे परंतु उनको अपने नकारात्मक विमर्श, दुष्प्रचार और आतंकी हमलों के कारण समर्थन नहीं मिला।

प्रेसवार्ता में हमारे प्रतिनिधिमंडलों ने विदेशों में अपनी सफल यात्रा के वर्णन किये है वहीं पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडलों के असफल झूठे प्रयासों का भी उल्लेख किया है।

इस पूरे घटनाक्रम में सिंधु नदी समझौते के निरस्त होने से पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट होने और उसका अस्तित्व संकट में आने से पाकिस्तान विश्व भर में अपने पक्ष में समर्थन के लिए गुहार लगा रहा है।   ज्ञात को कि पाकिस्तान के अस्सी प्रतिशत जल आपूर्ति भारत की नदियों से होती है। आपरेशन सिंदूर के चलते पाकिस्तानी नेता सिंधु नदी में खून बहाने की धमकी दे रहे थे, आज पानी के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस पर वार्ता नहीं होगी और जो वार्ता होगी वह केवल पाक अनधिकृत जम्मू-कश्मीर पर होगी।

पाकिस्तान के बड़े भूभाग बलोचिस्तान और पाक अनिधिकृत काश्मीर में स्वतंत्रता के लिए भारी जनाक्रोश और लड़ाई और सिंध में पाकिस्तान द्वारा दुराग्रही जल नहरों की खुदाई और दमनकारी नीतियों के कारण भारी विरोध  लंबे समय से चल रहा है। इस सब के बावजूद मुस्लिम देश भी पाकिस्तान के समर्थन में नहीं हैं क्योंकि पाकिस्तान आतंक का वैश्विक केंद्र बना हुआ है। रूस भारत का विश्वस्त मित्र देश है। 

’इंडिया एलोन’ जैसा विमर्श भारत विरोधी मीडिया में चलाया जा रहा है जिसकी स्पष्ट उपस्थिति भारत में भी है। आज भारत के कुछ विशिष्ट वामपंथी विचारधारा के समाचार पत्रों की स्थिति यह है कि वह चीन के विरुद्ध जनमानस के आक्रोश को नहीं प्रकाशित करते हैं और ऑपरेशन सिंदूर में भारत को पराजित और विश्व में अलग-थलग दिखाने का प्रयास करते हैं। भारत विरोधी विदेशी मीडिया भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिका को सम्मिलित करके अनर्गल समाचार छापता है और विमर्श संचालित करता है। आज अमेरिका और चीन भारत को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं। विश्व के बड़े देश और विशेषकर युरोपीय और मुस्लिम देश भारत के साथ संबंधों को नये आयाम दे रहे हैं। 

पाकिस्तान को कभी समझ नहीं आयेगा कि उसका समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे देश उसका अपने हित में इस्तेमाल कर रहे हैं। पाकिस्तान के आतंकियों को उन मददगार देशों ने ही विदेशों में एक्सपोर्ट किया है। 

झूठे विमर्शों से धरातल की वास्तविकता नहीं बदलती। संपूर्ण भारत के जनमानस ने आपरेशन सिंदूर से भारत का साथ दिया है और भारतीय सेना की विजय में अपना गौरव देखा है। कतिपय विरोधी और नकारात्मक विमर्श से धरातल की परिस्थितियां नहीं बदलतीं और चीन - तुर्किये - अज़रबैजान न तो पाकिस्तान को बदल सकते हैं और न उसकी बदहाली को, न भारत की ताकत को हरा सकते हैं और न उसको वैश्विक पटल पर अलग-थलग कर सकते हैं। भारत विरोधी मीडिया और इकोसिस्टम को भारत में चलाने वालों को भारत की जनता ने करारा जवाब दिया है और विदेशों में कई आमचुनावों में जनमानस ने मुस्लिम तुष्टिकरण और वामपंथी विचारधारा के राजनीतिक दलों को सत्ताच्युत किया है। भारत ने अमेरिका को अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और किसी भी मध्यस्थता के प्रयास की संभावना को नकार दिया है। भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ बहुत सशक्त सैन्य शक्ति वाला आत्मनिर्भर देश है। इसलिए बेहतर है कि भारत की ओर कोई आंख उठा कर भी न देखें, यदि हमारी भृकुटी तन गयी तो तांडव हो जायेगा और भूगोल बदल जायेगा।

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