— सरोज कुमार मित्र
डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना 1876 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा पुणे में की गई थी। कलकत्ता की ’दा डॉन’ पत्रिका के संपादक सतीश चंद्र मुखर्जी ने छात्रों के बीच प्रखर राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने के लिए 1902 में डॉन सोसायटी की स्थापना की थी। 1901 में लाला लाजपत राय ने पंजाब में कारीगरी शिक्षा अर्जित करने का आह्वान दिया। तिलक के मित्र माधोराव कर्मकार ने 1898 में वाराणसी में एक मराठी स्कूल की स्थापना की और चाफेकर क्लब की एक शाखा भी खोली गयी।
लेकिन कार्लाइल और रिसले के विरोध के कारण वंदेमातरम् और स्वदेशी आंदोलन से जुड़े छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों से निकाले जाने के परिणामस्वरूप 16 नवम्बर, 1905 को कलकत्ता में प्राथमिक से माध्यमिक और विश्वविद्यालयों तक शिक्षा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (एन.सी.ई.) की स्थापना की गई। इस काम के लिए सुबोध मल्लिक ने एक लाख रुपए और मयमनसिंह के जमींदार ब्रज किशोर राय ने पाँच लाख रुपए का सहयोग किया। स्वदेशी और शिक्षा का प्रचार तेजी से पूरे देश में फैल गया। बम्बई से महाराष्ट्र नाटक मंडली और बालक केशव हेडगेवार नागपुर में चंदा इकट्ठा कर इसे कलकत्ता में शिक्षा परिषद को भेज दिया।
अरविंद ने बड़ौदा में 750 रुपए प्रति माह वेतन वाली अपनी नौकरी छोड़ दी और 1906 में 75 रुपए वेतन पर कलकत्ता में बंगाल नेशनल कॉलेज में अध्यक्ष का पद स्वीकार किया। 1908 तक राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् द्वारा 25 माध्यमिक स्कूल, 300 प्राथमिक स्कूल तेलिगाँव, पुणे, राजमहेंद्री, मछलीपट्टनम, इलाहाबाद और येतमाल को स्वीकृति दी गई थी। 1908 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के अध्यक्ष रास बिहारी घोष को राजमहेंद्री में नागरिक सम्मान प्रदान किया गया और बाद में आंध्र विश्वविद्यालय का गठन किया गया। हेडगेवार ने यवतमाल स्थित स्कूल से मैट्रिक पास किया। स्वदेशी और राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करने के लिए 1909 में सत्यवादी (ओडिशा) में गोपबंधु दास ने स्कूल की स्थापना की थी।