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व्यापार युद्ध में टेरिफ का मसलाः भारतीय हितों को आगे कर बात हो अमेरिका से

देश को आत्मनिर्भर बनाने की गरज से स्वावलंबी अभियान चला रहे स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि भारत उत्पादन के मोर्चे पर सक्षम है। भारत को व्यापार के मोर्चे पर अमेरिका सहित दुनिया के देशों के साथ खड़ा होना चाहिए, तथा भारतीय हितों को सबसे ऊपर रखते हुए सहमति समझौते करने चाहिए। - अनिल तिवारी

 

दुनिया भर में एक मशहूर कहावत है कि पैसा सिर चढ़कर बोलता है। अमेरिका फर्स्ट के अपने चुनावी वादे को आगे कर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों अधिक से अधिक पैसा बटोरने के चक्कर में न सिर्फ मनमाने ढंग से टैरिफ लगाए जाने की घोषणा कर रहे हैं बल्कि इसके लिए अलग-अलग तरह के हथकंडे भी अपना रहे हैं।

अभी हाल ही में दिए अपने एक बयान में ट्रंप ने दावा किया कि ’भारत ने ट्रेड में जीरो टैरिफ डील का ऑफर दिया है। उन्होंने कहा, भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने की पेशकश की है, जिसमें मूल रूप से यह प्रस्ताव है कि अमेरिकी वस्तुओं की एक रेंज पर कोई टैरिफ नहीं लगाया जाएगा। कतर की राजधानी दोहा में व्यापार अधिकारियों के साथ एक बैठक के दौरान ट्रंप ने यह दावा किया था, जिसे भारत ने खारिज कर दिया। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयंशकर ने ट्रंप के दावे को नकारते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, ट्रेड पर अमेरिका से बातचीत चल रही है, अभी कुछ भी तय नहीं है। ट्रंप के बयान पर जयशंकर ने कहा, ये जटिल वार्ताएं हैं। जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता, तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कोई भी व्यापार सौदा परस्पर लाभकारी होना चाहिए। इसे दोनों देशों के लिए कारगर होना चाहिए। व्यापार सौदे से हमारी यही अपेक्षा होगी। जब तक ऐसा नहीं हो जाता, इस पर कोई भी निर्णय लेना जल्दबाजी होगी।

मालूम हो कि ट्रंप सत्ता में आने के बाद से ही अमेरिकी खजाने को समृद्ध करने के नाम पर विभिन्न देशों के साथ व्यापार युद्ध का मोर्चा खोले हुए हैं। सामने के देश भी अपनी दक्षता और क्षमता के हिसाब से जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं। अमेरिकी टेरिफ के जवाब में जब चीन ने पलटवार किया तो ट्रंप ने अमेरिकी जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि हो सकता है अमेरिकी बच्चों को 30 की बजाय दो गुड़िया ही मिले और इन दो गुड़ियों की कीमत 30 गुड़ियों से ज्यादा चुकानी पड़े तो भी अमेरिका को ही फायदा होगा। लेकिन आंकड़े गवाह है की ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद पहले 3 महीनों में अमेरिका की अर्थव्यवस्था में 0.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। तब ट्रंप ने इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन को जिम्मेदार ठहराते हुए पूर्व राष्ट्रपति के ‘ओवरहैंग’ से छुटकारा पाने की बात कही थी।

लेकिन बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर अमेरिका ने गत 9 अप्रैल 2025 को भारत समेत कई देशों पर लगाए गए भारी टैरिफ को 90 दिन के लिए टाल दिया था। दुनिया के सबसे बड़े खरीददार अमेरिका और सबसे बड़े दुकानदार चीन के बीच बनी इस सहमति में अमेरिका ने चीनी सामानों पर आयात शुल्क को 145 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत कर दिया है, इसी तरह चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर लगने वाले टैरिफ को 125 प्रतिशत से काम करके 10 प्रतिशत किया है। दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद बाजार में उछाल आया लेकिन धीरे-धीरे उछाल का जोश ठंडा पड़ता जा रहा है। ऐसे में बाजार के जानकारों का कहना है कि इस समझौते को भविष्य में किस रूप में देखा जाएगा। क्या इस दिन से अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर में नरमी की शुरुआत हुई या एक बार फिर दुनिया खामोशी से मुक्त व्यापार से हटकर 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ की तरफ बढ़ चली है? अभी औसत वैश्विक टैरिफ केवल 2.6 प्रतिशत है दरअसल इन सवालों के जवाब के लिए हमें यह समझना होगा कि व्यापार को बढ़ाने में टैरिफ की क्या भूमिका है।

वर्ष 1947 मेंविश्व व्यापार 60 मिलियन डॉलर का था जो वर्ष 2023 में 25 ट्रिलियन डॉलर का हो गया यानी 400 गुना से अधिक की वृद्धि हुई। दूसरी तरफ वैश्विक जीडीपी केवल 26 गुना ही बढी। जाहिर है देश द्वारा आयात शुल्क कम करने और अपने बाजार को खोल देने से व्यापार में तेजी आई। आज लगभग 75 प्रतिशत वैश्विक व्यापार टेरिफ मुक्त है। जो लोग अमेरिका के चीनी सामानों पर टेरिफ घटाने को लेकर खुश हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि कुछ साल पहले तक अमेरिका के ज्यादातर टैरिफ तीन प्रतिशत से भी कम हुआ करते थे।

अब सवाल है कि अमेरिका अपने दूसरे व्यापारिक साझेदारों पर कितना टैरिफ लगाता है? पूरी तस्वीर समझने के लिए हमें पिछले चार महीनों के घटनाक्रम को याद करना होगा। इस साल जनवरी में दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ बढ़ाने की शुरुआत चीन से की। जवाब में चीन ने भी पलटवार किया। इस ट्रेड वॉर का वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

ट्रंप ने 2 अप्रैल को 57 देशों पर अतिरिक्त आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। लेकिन, चीन और जापान ने अमेरिकी बॉन्ड बेचना शुरू कर दिया, उधर अमेरिका में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। इसने ट्रंप को मजबूर किया कि- वह नए टैरिफ को 90 दिनों के लिए टाल दें। इस तरह ट्रंप ने अन्य देशों को 8 जुलाई तक का समय दिया है कि अमेरिका के साथ जल्द से जल्द ट्रेड डील कर लें। 

ब्रिटेन, जापान, कोरिया, वियतनाम और भारत सहित उन देशों पर दबाव हैं, जिन्होंने बातचीत शुरू कर दी है। अमेरिका का पहला समझौता ब्रिटेन के साथ हुआ, फिर चीन के साथ। अब ट्रंप की नजरें भारत पर हैं। नई दिल्ली पर एक मिनी डील साइन करने का दबाव हो सकता है। इसमें पूरे ट्रेड एग्रीमेंट के बजाय टैरिफ में कटौती और बड़ी खरीदारी पर जोर होगा। अमेरिका कृषि उत्पादों, मांस और कारों पर आयात शुल्क कम करने के लिए कह सकता है। साथ ही, भारी मात्रा में तेल, गैस और हवाई जहाजों की खरीद के लिए भी दबाव डाल सकता है।

इस दौरान भारत भी कोशिश कर रहा है कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता हो जाए। भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2024 में करीब 129 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जिसमें भारत को 45.7 अरब डॉलर का सर प्लस मिला। भारत ने अमेरिका से आयात के अंतर को मौजूदा 13 प्रतिशत से घटकर चार प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया है ताकि भारत को भविष्य की टेरिफ बढ़ोतरी से छूट मिल सके।

इस बीच भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक सफल समझौते की उम्मीद बन रही है। 9 जुलाई से अमेरिका द्वारा पारस्परिक टैरिफ लागू होने से पहले भारत टेरिफ पर अंतरिम व्यवस्था के विकल्पों पर भी विचार कर रहा है, लेकिन डेयरी और कृषि को जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को बातचीत के दायरे से बाहर रखना चाहता है।

भारत अमेरिका द्विपक्षी व्यापार समझौते के पहले चरण में तेजी लाने के लिए 17 मई से 20 मई तक अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर गए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल मैं अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर दोनों देशों के बीच हुई चर्चा को उर्वर बताया है।मालूम हो की पारस्परिक डायरीज योजना के तहत अमेरिका ने भारत पर 26 प्रतिशत टेरिफ लगाया था, लेकिन इस पर 90 दिनों की रोक की घोषणा की थी जो 8 जुलाई की मध्य रात्रि को समाप्त हो रही है। भारत उच्च टैरिफ से बचने और निर्यात बाजार की रक्षा करने के लिए अमेरिका के साथ अपने हितों को आगे करते हुए समझौते के लिए उत्सुक है।

भारत भले ही अमेरिका के साथ संबंध गहरे करना चाहता हो, लेकिन उसे एकतरफा समझौता नहीं करना चाहिए। कुछ ही दिन पहले, जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव था, तब ट्रंप ने दोनों देशों को समान अहमियत दी। उन्होंने आतंकवाद का जिक्र तक नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान को कूटनीतिक समर्थन दिया और आर्थिक मदद की। भारत के लिए संदेश साफ है - राष्ट्रीय हितों पर ध्यान दिया जाए, राजनीतिक दिखावे पर नहीं। किसी भी समझौते में भारत को अपने प्रमुख क्षेत्रों की रक्षा करनी चाहिए और निष्पक्षता पर जोर देना चाहिए। बातचीत ताकत से होनी चाहिए, मजबूरी में नहीं। देश को आत्मनिर्भर बनाने की गरज से स्वावलंबी अभियान चला रहे स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि भारत उत्पादन के मोर्चे पर सक्षम है। भारत को व्यापार के मोर्चे पर अमेरिका सहित दुनिया के देशों के तनकर खड़ा होना चाहिए, तथा भारतीय हितों को सबसे ऊपर रखते हुए सहमति समझौते करना चाहिए।              

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