’सबका साथ और सबका विकास’ तभी संभव हो सकेगा, जब हम पिछड़े इलाक़ों विशेषकर जंगल, पहाड़ तथा समुद्र के किनारे रहने वाले, जिनमें उत्तर बंगाल, सुंदरवन तथा जंगल महल के पिछड़े जिले शामिल हैं, जब इनका सर्वांगीण विकास किया जायेगा। - डॉ. धनपत राम अग्रवाल
जंगल महल पश्चिम बंगाल का एक पिछड़ा हुआ इलाक़ा है, जहाँ ज्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं। उपजाऊ भूमि प्रायः नगण्य है। ज्यादातर लोग जंगलों पर आधारित कुछ विशेष पत्तों और कुछ विशेष प्रकार की घास पर अपना जीविकोपार्जन करते हैं। इनमें विशेष रूप से साल-पत्ता और सवाई घास पर आधारित जीवन है। लगभग 32 लाख लोग साल पत्ते पर और लगभग 12 लाख लोग सवाई घास पर आधारित जीविका चलाते हैं। यह अंचल झारग्राम जिले और पश्चिम मिदनापुर के तीन-चार ताल्लुकों में तथा थोड़ा सा हिस्सा बांकुड़ा और पुरुलिया जिले का है। पिछले 75 वर्षों की राजनैतिक स्वाधीनता के वावजूद यहाँ के निवासी घोर ग़रीबी और आर्थिक तंगी से त्रस्त हैं। कुछ लोग तो साल वन से सिर्फ़ पत्ते तोड़कर उन्हें तरह-तरह के बर्तन बनाने के लिये बेच देते हैं। इन पत्तों को तोड़कर मंडी तक पहुँचाने के काम में बहुत सी स्वयंसेविका समूह की महिलायें काम करती है, जिन्हें 0.70 पैसे से एक रुपये की क़ीमत प्रति प्लेट के आधार पर औसतन मिलते हैं। 6-7 पत्तों को धागे से सिलाई करके एक पत्तल तैयार की जाती है। इसके अलावा छोटी कटोरी और थाली के आकार के घरेलू बर्तन छोटे-छोटे घरेलू कुटीर शिल्प द्वारा निर्मित किये जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में महिलायें ही ज़्यादा काम करती हैं और औसतन 5000/- रुपये की मासिक आय उन्हें होती है। राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक तथा खादी ग्रामोद्योग, जो केंद्रीय और राज्य सरकार के युग्म प्रयास से संचालित होते हैं, उनके द्वारा प्रशिक्षण तथा कौशल विकास में भी मदद पहुंचाई जाती है। शुरुआती दिनों में साल पत्तों से बनी वस्तुओं पर जीएसटी देना पड़ता था, जिसे पत्ता श्रमिक संघ के लगातार प्रयासों के पश्चात जीएसटी हटा दिया गया है। परंतु यह जीविका का साधन अभी भी कई अन्य समस्याओं से जूझ रहा है,जिनमें थर्मोकोल द्वारा निर्मित चाय- नाश्ते से संबंधित उत्पाद शामिल हैं। हाल ही में पटना उच्च न्यायालय तथा अन्य कई पर्यावरण अधिकारियों द्वारा रोक लगाये जाने तथा राज्य सरकार के मुख्य सचिव को कई बार ज्ञापन देने के वावजूद थर्मोकोल उत्पादों पर प्रभावी ढंग से रोक नहीं लग पाई है जो साल पत्ता व्यवसाय के विपणन व्यवस्था में एक बहुत बड़ी बाधा है।
साल पत्ता तथा सवाई घास के उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कुछ अनुसंधान केंद्र भी झारग्राम में बने हैं तथा इन उत्पादों के हस्तशिल्प संबंधी केन्द्रों में स्वयंसेवी समूहों के माध्यम से उचित कौशल विकास की व्यवस्था की जा रही है, किंतु विपणन की व्यवस्था की कमी के वजह से श्रमिकों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। आर्थिक तंगी की वजह से इस इलाके में बेरोजगारी और गरीबी की समस्या बहुत गंभीर रूप ले रही है। आर्थिक असमानता की एक वजह यह रही कि जंगल महल के इस अंचल में नक्सलवाद और सामाजिक असंतोष की झलक मिलती रहती है।
जंगल उत्पादों को जीवन और जीविका से जोड़कर देखने की आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल में चाय पत्ता, तंबाकू पत्ता, पान पत्ता, केंदु पत्ता और साल पत्ता का सामूहिक रूप से अर्थनीति में अवदान देखें तो पता चलेगा कि सिर्फ इन पाँच पत्तों पर 50 लाख से ज़्यादा लोगों की जीविका निर्भर है।
पुरुलिया जिले में लाख की खेती होती है, जो कुसुम और पलास के वृक्षों के रस से प्राप्त होता है। भारत सरकार द्वारा स्थापित शेलक यानी लाख निर्यात निगम द्वारा इसके उत्पादन और निर्यात को प्रोत्साहन देकर विदेशी मुद्रा अर्जित होती है। हाल के समय में इस उद्योग के उत्पादन में काफ़ी कमी आ रही है।
इसी तरह बीड़ी बनाने के काम में आने वाले केंदू अथवा तेंदू पत्ते की भी खेती इस पूरे जंगल महल में होती है, जिससे लगभग 2 लाख लोगों की जीविका चलती है। हालांकि इससे प्राप्त प्रति व्यक्ति औसतन आय सिर्फ 4000-5000 रुपये मासिक के बराबर ही होती है, इसे बढ़ाने के प्रयासों की आवश्यकता है। एक बिनपुर नामक ताल्लुके, झारग्राम जिला का अध्ययन किया गया,जिसमें यह पाया गया कि व्यक्तिगत अथवा सामूहिक वन अधिकार (आईएफआर/सीएफआर) वन विभाग अधिनियमों के अनुसार एक ग्राम सभा को साल पत्ता तोड़ने का और उनको मोड़कर पत्तल बनाने का अधिकार दिया जाता है और उसे नाबार्ड और खादी ग्रामोद्योग द्वारा मशीन उपलब्ध कराके संचालित किया जाता है, तो निम्न उत्पादकता मिल सकती है -
ग्रामसभाः (ग्राम का नाम), ब्लॉकः बिनपुर, झाड़ग्राम (जंगलमहल), मुख्य एमएफआरः साल पत्ता, केंदु पत्ता, महुआ फूल, बाँस (डथ्च्. डपदवत थ्वतमेज च्तवकनबम)
स्थानीय प्रसंस्करण योजना
लेकिन पश्चिम बंगाल में सामुदायिक वनाधिकार की कार्यान्वयन- प्रगति वर्षों से कमजोर बताई जा रही है इससे ग्रामसभाओं को डथ्च्, चराई, संरक्षण व बाज़ार प्रबंधन की वास्तविक शक्तियाँ नहीं मिल पातीं। इन क़ानूनों का उद्देश्य जनता को उनके अधिकारों से वंचित नहीं बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा करना है ताकि उनके व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों के अनुकूल वन साधनों का उपयोग अपनी जीविका पालन के लिये सुचारू रूप से कर सकें। साल पत्ता और सवाई घास को टिम्बर कटाई कानून से अलग रखा गया है फिर भी जन जातियों की स्वायत्तता को बाधा पहुंचाई जाती है।
व्यक्तिगत व सामुदायिक वन अधिकार (प्थ्त्/ब्थ्त्)ः वनाधिकार कानून, 2006 (थ्त्।) का उद्देश्य अधिकार देना है- परंपरागत उपयोग की जमीन, चूल्हा-चेरा, चारा, ईंधन, छोटी लकड़ी, बाँस-झाड़ सहित लघु वनोत्पाद (डथ्च्) पर स्वामित्व/उपज /बेचने का अधिकार। 2012 के संशोधित नियमों के बाद बाँस व अन्य डथ्च् की ढुलाई के ट्रांज़िट परमिट ग्रामसभा/उसकी समिति जारी कर सकती है। आज समय की माँग है कि आदिवासियों के इन सभी अधिकारों की रक्षा हो और इसके लिये सरकारी अधिनियमों में लचीलेपन की आवश्यकता है। वन क्षेत्रों से आदिवासियों के पलायन को रोकने के लिये भी उनके अधिकारों के संरक्षण तथा उनके हितों के संवर्धन की आवश्यकता है।
“यदि ग्रामसभा को ब्थ्त् का औपचारिक अधिकार व ट्रांज़िट पास जारी करने की शक्ति मिलती है, तो साल व केंदु पत्तों के मूल्य-संवर्धन से गाँव स्तर पर रू. 24 लाख वार्षिक आय संभव है। इससे आजीविका स्थिर होगी, बिचौलियों की भूमिका घटेगी और स्थानीय स्वशासन मज़बूत होगा।”
रोजगार के अवसर
जंगल महल में वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी और पर्यटन विकास के अवसर है। जंगल महल (झारग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया) क्षेत्र में घने साल के जंगल और पहाड़ी इलाक़े हैं। यहाँ बाघमुंडी हिल्स, अजोध्या हिल्स, बाघमुंडी अरण्य, मुकुटमणिपुर क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं।
यहां के पहाड़ी, जंगल, झरने (खैराबेरा, मरबेन, बांधोनी) को इको-फ्रेंडली टूरिज़्म सर्किट के रूप में विकसित किया जा सकता है।
अजोध्या और झारग्राम बेल्ट में हाथी, हिरण, मोर आदि पर आधारित वाइल्ड लाइफ सफारी और बर्ड वॉचिंग सफारी तथा पुरुलिया, विष्णुपुर और आसपास में छऊ नृत्य पर आधारित सांस्कृतिक टूरिज़्म का बड़ा अवसर है।
लोक कला व हस्त शिल्प जैसे मुखौटे, मिट्टी की मूर्तियाँ, बाँस और लकड़ी की कारीगरी में भी संभावनाएं है।
विष्णुपुर (बांकुड़ा) का मदनमोहन मंदिर, श्यामराय मंदिर आदि विश्व प्रसिद्ध है। बलुचरी साड़ी और डोकरा शिल्प यहाँ की पहचान है। विष्णुपुर को न्छम्ैब्व् हेरिटेज सर्किट से जोड़कर विकसित किया जा सकता है।
सरकार की भूमिका
निष्कर्षः जंगल महल क्षेत्र पर्यटन, सांस्कृतिक धरोहर और हस्तशिल्प की दृष्टि से पूर्वी भारत का एक उभरता हुआ केंद्र बन सकता है।
’सबका साथ और सबका विकास’ तभी संभव हो सकेगा, जब हम इन पिछड़े इलाक़ों विशेषकर जंगल, पहाड़ तथा समुद्र के किनारे रहने वाले, जिनमें उत्तर बंगाल, सुंदरवन तथा जंगल महल के पिछड़े जिले शामिल हैं, जब इनका सर्वांगीण विकास किया जायेगा।