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ट्रम्प की अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति और भारत 

अमरीका को चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को अपनी मर्जी से प्रभावित करने की कोशिश ना करे, यही सभी के हित में होगा।  - अनिल जवलेकर

 

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार में फिलहाल हलचल मची हुई है। अमरीका की अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक भूमिका बदल रही है। पहले अमरीका अपने आप को दुनिया का लीडर समझता था और अपनी राजनीति और अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका उसी ढंग से चलाता था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शायद पहली बार यह हो रहा है की अमरीका अपने आप को एक देश के तौर पर देख रहा है और अपने देश के हित की बात कर रहा है। लगता है कि नेतागिरी से अमरीका ऊब चुका है और दूसरों की लड़ाई अब नहीं लड़ना चाहता। यह अमरीका के लिए अच्छा हो सकता है लेकिन दुनिया के लिए अच्छा हो यह कहा नहीं जा सकता! आज भी दुनिया अमरीकन डॉलर को अंतरराष्ट्रीय चलन के रूप में मानती है और अपने सारे व्यापार-व्यवहार डॉलर में करती है। इतना ही नहीं दुनिया के देश अपनी सारी जमा-पूंजी भी अमरीकन डॉलर में रखते हैं। इसलिए अमरीका को समझदारी से काम लेना होगा। 

अमरीका व्यापार घाटा काल्पनिक 

अमरीका के नए राष्ट्रपति ट्रम्प सत्ता में आते ही अपनी चुनावी वादे सच करने निकले है। उनका नारा ‘अमरीका पहले’ का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। यह बात सही है कि 1972 से अमरीका अंतरराष्ट्रीय व्यापार में घाटा उठा रहा है और यह घाटा 2024 तक 1.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। और इसमें सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन, मेक्सिको और कनाडा के साथ के व्यापार में है। भारत के साथ यह घाटा45.7 बिलियन डॉलर मतलब 4600 करोड़ रुपए का है। लेकिन यह घाटे की बात एकतरफा है। अमरीका का वस्तु व्यापार, घाटे का है, लेकिन पूंजी-व्यापार फायदे का है। व्यापार घाटे में बाहर गया  डॉलर पूंजी के रूप में अमरीका वापस आता है यह बात नहीं भुलाना चाहिए। सभी देश अमरीकी डॉलर पर भरोसा करते है और अपनी जमा पूंजी डॉलर में रखते है यह बात महत्वपूर्ण है। इसलिए अमरीका द्वारा अपने आप को अलग कर सोचना अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और व्यापार को क्षति पहुंचा सकता है। 

अमरीका क्या चाहता है?

अमरीका का प्रभाव पहले महायुद्ध के बाद से शुरू हुआ लेकिन दूसरे महायुद्ध के बाद अमरीका पूरी तरह महासत्ता के रूप में सामने आया। सभी दृष्टि से अमरीका ने विकास किया और दुनिया पर राज किया। सभी अंतरराष्ट्रीय समस्याओं में अपनी भूमिका निभाई और सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अपना आर्थिक योगदान दिया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार को मुक्त करने हेतु हुये सभी करारों में भी आगे रहा। वैसे राष्ट्रवाद अमरीका के लिए कोई नई बात नहीं है। अपना हित ध्यान में रखकर ही अमरीका अपनी राजनीति करता आया है और कमजोर देशों से अपनी बात मनवाता रहा है। लेकिन दुनिया में अब चीन के रूप में एक नई महासत्ता उभरी है और उसने व्यापार के बल-बूते पर अपनी सत्ता जमाई है। 

दुनिया के जीडीपी में अमरीका और चीन दोनों को मिलाकर हिस्सा लगभग आधा है। व्यापार में चीन अमरीका से आगे निकल गया है क्योंकि उसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार फायदे का रहा है। और यही एक वजह है कि अमरीका को मजबूरन अपने व्यापार नीति को बदलने की जरूरत महसूस हुई। अमरीका चाहता है कि उसके व्यापार घाटे में कमी आए। लेकिन इससे भी ज्यादा वह दुनिया में चीन का प्रभाव कम करना चाहता है और वह तभी हो सकता है जब उत्पादन को चीन से हटाकर किसी दूसरे देशों में ले जाया जाये। अमरीका यह कैसे करेगा यह देखने वाली बात होगी? 

भारत और अमरीका का व्यापार 

यह सभी जानते है की भारत और अमरीका का रिश्ता पुराना है लेकिन स्वतंत्रता के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक गुट निरपेक्ष तथा व्यापार में संरक्षणात्मक नीति अपनाई जिसकी वजह से अमरीका और भारत के दरम्यान व्यापार मर्यादित रहा। लेकिन 1991 से भारत ने खुली अर्थव्यवस्था स्वीकारी और उसके चलते दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा। वर्ष 2022-23 तक यह व्यापार 190 बिलियन डॉलर तक (16 लाख करोड़ रुपए) पहुँच गया है। यही नहीं अमरीका भारत का एक सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। 

भारत ने  अमरीका के साथ व्यापार में अपने सेवा निर्यात और कम लागत वाली उत्पाद से संतुलन बनाए रखा है और फायदे में रहा है। भारत मुख्यतः रत्न और आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स (दवा निर्माण और जैविक), पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुएँ, कृषि उत्पाद वगैरे का निर्यात करता है तथा कच्चा तेल और पेट्रोलियम पदार्थ, विमान एवं स्पेस क्राफ्ट के पार्ट, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी, कृषि उत्पाद वगैरह का अमरीका से आयात करता है। निश्चित रूप से अमरीका के बढ़े हुए आयात शुल्क ने भारत को सदमे में डाला है। 

ट्रम्प की व्यापार नीति का भारत पर असर 

यह तो निश्चित है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार एक एक-दूसरे से मिली हुई व्यवस्था है जिसका असर हर एक शामिल देश पर होता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में देश के आयात और निर्यात पर लगे बंधन और दी गई सुविधाएं महत्वपूर्ण होती हैं। अमरीका दुनिया का एक बड़ा देश है जिसके साथ व्यापार कर दूसरे देश लाभ कमाते है। भारत भी उसमें है। इसलिए ट्रम्प व्यापार नीति का भारत पर प्रभाव पड़ेगा यह निश्चित है। भारत के निर्यात पर इसका असर होगा और यह असर अमरीका-भारत के व्यापार पर ही नहीं बल्कि भारत के अन्य देशों के व्यापार पर भी पड सकता है। उत्पादन के क्षेत्र में चीन सबसे आगे है और अपना उत्पाद बेचने के लिए वह सस्ता व्यापार करेगा जो भारत के निर्यात को स्पर्धात्मक बनाएगा। यह सही है कि भारत भी इस मौके का फायदा उठा सकता है और अपना उत्पादन क्षेत्र बढ़ा कर निर्यात बढा सकता है। कैसे और कितना यह देखने वाली बात होगी? वैसे भारत ने आत्मनिर्भरता की नीति अपनाई हुई है जिसका मतलब भारत अपनी अंदुरुनी क्षमता बढ़ाना चाहता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और पूंजी पर निर्भरता कम करना चाहता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस दिशा में बनी नीति ही उपयुक्त रहेगी। 

ट्रम्प की व्यापार नीति खतरनाक 

दुनिया वैश्वीकरण की ओर मुड़ी हुई थी उसमें भी अमरीका आगे था। अब खुद ही संरक्षणात्मक व्यापार की बात कर रहा है। विकसित देशों ने जब तक अपना फायदा हो रहा था खुले व्यापार पर ज़ोर दिया। जब भारत जैसे विकसनशील देशों की बारी आई तो पीछे हटने लगे। यही बात दुनिया को भारी पड़ेगी। अमरीका के लिए भी यह अच्छी बात साबित नहीं होगी। वैसे भी रूस-यूक्रेन युद्ध से बहुत से देशों ने यह जाना कि डॉलर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार खतरनाक होता जा रहा है और इसका विकल्प ढूँढना जरूरी है। चीन, यूरोप और भारत जैसे देशों ने अपने चलन को अंतरराष्ट्रीय चलन के रूप में प्रयोग में लाना शुरू किया है। बहुत सारे देश अपनी डॉलर पूंजी की जमा भी कम करने की कोशिश कर रहे है। यह बात सही है कि अब फिर से सोने पर आधारित व्यवस्था की ओर मुड़ना कठिन है लेकिन ‘मल्टी करेन्सी’ व्यवस्था पर ज़ोर दिया जा रहा है। यह अमरीका की नीति को नकारने का परिणाम कहा जा सकता है। अमरीका को चाहिए कि इसको समझे और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को अपनी मर्जी से प्रभावित करने की कोशिश ना करे। यही सभी के हित में होगा। 

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