सही नीति यही होनी चाहिए कि सरकार गरीब को सशक्त और रोजगार क्षमता से युक्त करें ताकि वे आत्मनिर्भर हो सके, वरना भारत का नौजवान पूरी तरह पराधीन अवस्था का ही लोभी होगा और देश को सभी दृष्टि से कमजोर करेगा। - अनिल जवलेकर
भारत की गरीबी कम हो रही है, इसमें कोई शक नहीं है। अब वह 5 प्रतिशत से भी कम है। छत्तीसगढ़ और झारखंड छोड़ कर बाकी सभी राज्यों में यह प्रतिशत 10 से कम है और यह बात भारत और भारतवासियों के लिए ख़ुशी की है। लेकिन ग़रीब और उसके जीवन निर्वाह का प्रश्न अभी भी है। इसलिए यह जानना और समझना जरूरी है कि भारत सरकार इसके लिए क्या कर रही है? वैसे यह बात भी सही है कि स्वतंत्र भारत में शुरू से ही गरीबी का प्रश्न गंभीर रहा है और सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत में गुलामी का इतिहास शोषण का रहा है और अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए, तब भारत को वे कंगाल करके ही गए थे। वह परिस्थिति गंभीर थी। गरीबी और बेरोजगारी तो चरम सीमा पर थी, लेकिन इसका सामना करने के लिये भारत के पास पर्याप्त साधन नहीं थे। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि तब विदेशी अनाज और विदेशी दान पर भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह निर्भर थी। साधनों की कमी से निपटते-निपटते भारत आज आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है और अपने बलबूते पर अपनी समस्याओं को सुलझा रहा है। गरीबी का प्रश्न भी उन्हीं में से एक है।
भारत सरकार और ग़रीब कल्याण
भारत सरकार की पूरी व्यवस्थाएँ ही विकास और समाज कल्याण में लगी हुईं है और हर मंत्रालय का हर विभाग गरीब के लिए कुछ न कुछ योजना चला रहा है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार गरीबों के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत, ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत तक और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत तक को सब्सिडी वाले खाद्यान्न उपलब्ध करा रही है। सरकार खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और वितरण तथा चीनी क्षेत्र के विनियमन की व्यवस्था कर रही है। 2025-26 के केंद्रीय अर्थ संकल्प में इसके लिए 2,11,406 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, आवंटित खर्चे में 96 प्रतिशत हिस्सा खाद्यान्न सब्सिडी के लिए है। यह सब्सिडी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्यों को प्रदान की जाती है, ताकि वे किसानों से सरकार द्वारा अधिसूचित मूल्य पर खाद्यान्न खरीद सकें और उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत रियायती दरों पर बेच सकें।
खाद्यान्न सुरक्षा
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत लाभार्थी परिवारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है, एक अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई), जिसमें सबसे गरीब परिवार शामिल हैं, और दूसरे प्राथमिकता वाले परिवार। अंत्योदय अन्न योजना के तहत परिवारों को प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार है, जबकि प्राथमिकता वाले परिवारों के प्रत्येक सदस्य को प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न रियायती दर पर उपलब्ध कराया जाता है। दिसंबर 2022 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पात्र लाभार्थियों को 1 जनवरी 2023 से एक वर्ष की अवधि के लिए मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करने का निर्णय लिया। बाद में, इसे 1 जनवरी 2024 से अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
लाभार्थी गरीब
खाद्यान्न सुरक्षा के तहत गरीब लाभार्थी चुनना एक जटिल प्रक्रिया है और यह कार्य चुनौती भरा है। भारतीय व्यवस्था इसके लिए विभिन्न मानदंडों, सर्वेक्षणों और डिजिटल टूल्स का उपयोग करती है। सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना 2011,राशन कार्ड प्रणाली, आधार-आधारित पहचान, आय और सामाजिक-आर्थिक मानदंड आदि से लाभार्थी की पहचान की जाती है। गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) वाले परिवार, भूमिहीन कृषि मजदूर और दिहाड़ी श्रमिक, सरकारी नौकरी या व्यवसाय न रखने वाले परिवार, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी), महिला प्रधान परिवार, दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिक, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ, 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, स्कूल जाने वाले बच्चे (6-14 वर्ष), ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्र, आपदा-प्रभावित और संघर्षग्रस्त क्षेत्र, शहरी झुग्गियाँ और बेघर आबादी आदि ऐसी योजनाओं के लाभार्थी होते है। उच्च आय वर्ग के परिवार, जिनके पास फोर व्हीलर, एसी, ज्यादा जमीन, या व्यावसायिक संपत्ति है या जो दुकान, फैक्ट्री या बड़े पैमाने पर व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं, ऐसे इस योजना के लाभार्थी नहीं बन सकते। खाद्यान्न सुरक्षा तहत लाभार्थियों की 2011 की जनगणना के अनुसार अनुमानित संख्या लगभग 80 करोड़ थी। इस बात पर विवाद है कि खाद्यान्न सुरक्षा तहत कितने लोगों को लाभ मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी खाद्य सुरक्षा अहम बताते हुए खाद्यान्न का अधिकार मूलभूत माना है। इसलिए नवीनतम अनुमानों के अनुसार लाभार्थी 90 करोड़ होने चाहिए। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या बहुत है और सरकार को इसमें कमी लानी चाहिए।
क्या है खाद्यान्न सब्सिडी
सब्सिडी एक अनुदान योजना है जो अपेक्षित लाभार्थी को निश्चित मदद हेतु दिया जाता है। खाद्यान्न सब्सिडी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को दी जाती है और इसमें बफर स्टॉक के भंडारण की लागत भी शामिल है। 2020-21 से 2022-23 के बीच, खाद्य सब्सिडी में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत किया गया व्यय भी शामिल था। इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम अतिरिक्त खाद्यान्न मुफ्त दिया गया, जिससे सरकार पर तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया।
बढ़ती सब्सिडी चिंता का विषय
खाद्य सब्सिडी सीआईपी (सेंट्रल इश्यू प्राइस) और खाद्यान्नों के प्रबंधन की आर्थिक लागत के बीच का अंतर होती है। इसमें बफर स्टॉक बनाए रखने की लागत और राज्य सरकारों को किए गए अन्य आवंटन भी शामिल होते हैं। सीआईपी (सेंट्रल इश्यू प्राइस) वह दर है जिस पर केंद्र सरकार खाद्यान्न जारी करती है, जबकि आर्थिक लागत में खाद्यान्नों के अधिग्रहण और वितरण की लागत शामिल होती है। वर्षों से, खाद्य सब्सिडी में वृद्धि का मुख्य कारण सीआईपी (सेंट्रल इश्यू प्राइस) में संशोधन न होना रहा है, जबकि खाद्यान्नों की आर्थिक लागत में वृद्धि हुई है। 2002-03 में चावल की आर्थिक लागत रू. 11.7 प्रति किलोग्राम और गेहूं की रू. 8.8 प्रति किलोग्राम थी। 2024-25 में, चावल की अनुमानित आर्थिक लागत रू. 39.8 प्रति किलोग्राम और गेहूं की रू. 27.7 प्रति किलोग्राम है। खाद्य प्रबंधन की आर्थिक लागत को कम करना कठिन है, लेकिन खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए सीआईपी (सेंट्रल इश्यू प्राइस) में संशोधन करने पर विचार करने की आवश्यकता है। 15वें वित्त आयोग ने भी यह देखा कि खाद्य अनाज की आर्थिक लागत में वृद्धि को आंशिक रूप से सब्सिडी वाले खाद्यान्नों के सीआईपी को बढ़ाकर संतुलित करने की आवश्यकता होगी। एक सिफारिश यह रही है कि खाद्यान्नों को केवल अत्यंत गरीब परिवारों को ही सब्सिडी दरों पर प्रदान किया जाए।
मुफ्त की राजनीति अहितकारी
वैसे आजकल भारतीय राजनीति वोटों की गिनती तक सीमित हो गई है और परिणामस्वरूप सरकारी खर्च पर सेवा एवं वस्तु मुफ्त बाटने पर ध्यान दिया जा रहा है जो अर्थव्यवस्था पर बोझ डालने वाला है। यह मानना होगा कि पर्यावरण बदल रहा है और परिणाम भी अब सामने आ रहे है। आने वाले समय में सरकार की मदद और सहयोग महत्वपूर्ण रहेगा। यह देखा गया है कि संकट समय में बीमा व्यवस्था भी काम नहीं आती। अमरीका में जो जंगल की आग ने हाय-तौबा मचाई उससे हुए नुकसान को देखकर बीमा कंपनियाँ भी भाग खड़ी होती दिखती है। इसलिए सरकार के खाद्य भंडार और तिजोरी भरी रहे यही अच्छा होगा। सही नीति यही होनी चाहिए कि सरकार गरीब को सशक्त और रोजगार क्षमता से युक्त करें ताकि वे आत्मनिर्भर हो सके, वरना भारत का नौजवान पूरी तरह पराधीन और लोभी होगा तथा देश को सभी दृष्टि से कमजोर करेगा।